बाथरूम का दर्पण-1
(Bathroom Ka Darpan- Part 1)
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अन्तर्वासना के तमाम पाठकों एवं पठिकाओं को रोनी का प्यार भरा नमस्कार!
मैं अन्तर्वासना की कहानियों का नियमित पाठक हूँ। मैं तीस साल का युवक हूँ कद 5’6″ एवं स्मार्ट हूँ, सागर विश्वविद्यालय से स्नातक किया है, इंजीनियर बनाने की चाहत थी पर बन नहीं पाया परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी थी पर भवन निर्माण के काम करने की चाहत थी सो वह काम करने लगा।
ठेकेदारी से नवनिर्माण एवं पुराने मकानों में सुधार एवं सजावट का काम करके भी आजीविका ठीक से चल जाती है, उन्हें वास्तु के हिसाब से सुधार करना एवं नया रूप देना हमारे शौक एवं कमाई दोनों को पूरा करता है।
इस काम के लिए मैंने ऑफिस नहीं बनाया बल्कि मोबाइल से ही मुझे इतने ऑर्डर मिलते रहते हैं कि काम करने का समय तय करना मुश्किल हो जाता है। जब समय मिलता है तो अन्तर्वासना कहानियाँ पढ़ता हूँ एवं सेक्सी साईट पर सर्फिंग अच्छा लगता है।
अब मतलब की बात पर आते हैं! मेरे साथ हुई एक खूबसूरत घटना जो एकदम सत्य है, आपको लिख रहा हूँ।
तो हुआ यूँ 21 मार्च 2011 को दोपहर में मेरे मोबाईल पर फोन आया जो मिस्टर पी.एल.पाण्डेय (बदला हुआ नाम) ब्रांच मैंनेजर का था जो पास की तहसील के एक बैंक में कार्यरत हैं, उन्होंने पूछा- मैं अपने पुराने बाथरूम को नए तरीके से बनाना चाहता हूँ, क्या तुम इसे बना सकते हो? इसका क्या खर्चा होगा?
क्यूंकि मेरा अन्य जगह पर काम चल रहा था तो मैंने कह दिया कि शाम सात बजे तक आ जाऊँगा।
उन्होंने कहा- ठीक है।
काम में व्यस्तता के कारण समय का पता ही नहीं चला और रात के आठ बज गए। पाण्डेय जी का फोन आया तो मैंने उन्हें सॉरी कहकर अगले दिन आने को कह दिया।
तो उन्होंने कहा- सुबह दस बजे तक जरूर आ जाना!
और फोन कट गया। अगली सुबह नौ बजे बाइक से मैं निकल पड़ा लेकिन पाँच किलोमीटर ही चला था कि टायर पंचर हो गया। साढ़े दस तक पंचर बनवाकर 11 बजे पाण्डेय साहब के घर पहुँचा।
पुराना लेकिन शानदार मकान बना था। गेट के बाहर बाइक को छोड़कर अन्दर गया, बगीचे में सुन्दर पौधे और फूल लगे थे।
मुख्य दरवाजे पर पहुँच कर घण्टी बजाई तो थोड़ी देर में एक महिला ने दरवाजा खोला जो इतनी खूबसूरत थी कि मैं उसे देखता रह गया।
उसने पूछा- क्या काम है?
मैंने कहा- पाण्डेय साहब से मिलना है बाथरूम की रिपेयरिंग के लिए!
तो वह बोली- मैं मिसेज़ रमा पाण्डेय (बदला हुआ नाम) हूँ, साहब बैंक चले गए है आप अन्दर आकर बाथरूम देख लीजिये। उसके बाद बैंक जाकर साहब से मिल लेना।
वो मुझे अन्दर ले गई और बैठक में बिठाकर रसूई की ओर चली गई। रमा पाण्डेय ने उस समय आसमानी रंग की झालरदार और सुन्दर मेक्सी पहनी थी, जिसका गला बहुत ही गहरा था, अन्दर की गोलाइयों के बीच की घाटी साफ दिखाई दे रही थी, उनकी उम्र 32 के आसपास होगी फिगर 34-30-36 होगा, पीछे से उसकी चाल और उसकी गाण्ड की
गोलाइयों को देखकर मन विचलित होने लगा। मन पर काबू करके मैंने मकान का जायजा लिया, अन्दर से भी बहुत शानदार कोठी थी, सारा सामान करीने से सजा हुआ था।
तभी वो ट्रे में पानी का गिलास और जूस लाई और मेज़ पर रख दिया। रखते समय मम्मों की झलक देख कर मेरे लिंग में तनाव पैदा होने लगा।
मैं जूस पीने लगा तो उसने बताया कि साहब को दो दिन के दौरे पर जाना है आप बाथरूम में लगने वाले सामान की लिस्ट बनाकर साहब को उनके जाने के पहले बैंक में दे देना।
फिर मैं उनके साथ बाथरूम देखने के लिए चलने लगा। सामने गैलरी में दो दरवाजे दिखे, एक साहब के बेडरूम में खुलता है और दूसरा बाथरूम में! बाथरूम का दरवाजा खोला तो उसमें से तेज गंध आई जैसे वहाँ पर हवा का आना-जाना न हो।
अन्दर जाकर देखा तो 8 बाई 10 का कमरा था। मेरे हिसाब से इतनी जगह बाथरूम के लिए पर्याप्त होती है। इसमें एक दीवार की ओर टोयलेट सीट लगी थी उसके सामने की दीवार पर 1 बाई 1 फ़ुट का छोटा रोशनदान लगा था, बीच की एक दीवार पर नल और सामने की दूसरी दीवार पर पुराना सा शॉवर लगा था। कुल मिला कर पुराने समय का बाथरूम था।
मैंने पूछा- मैडम, आप को कैसा बाथरूम बनवाना है?
बोली- मुझे यहाँ पर मार्डन टाइप बाथटब जिसमे हैंड-शॉवर, ठंडा-गर्म पानी के नल हों, एक दीवार पर सुन्दर सा शॉवर जो बाथरूम के मध्य में हो, वाशबेसिन, सुन्दर से नल, 5 फीट ऊँचाई तक सुन्दर टाइल्स, जमीन पर मारबल और अच्छा सा दरवाजा!
तब मैंने कहा- मैडम, अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक सुझाव देना चाहता हूँ।
तो वो बोली- हाँ जरूर! इसीलिए तो आपको बुलाया है!
तब मैंने कहा- मैडम बाकी सब तो आपने सही चुना है, मैं चाहता हूँ कि आपके बाथरूम में रोशनदान बड़ा हो हवा और रोशनी के लिए, क्यूंकि रोशनदान के नीचे की दीवार खाली है। मैं चाहता हूँ कि यहाँ पर आदमकद दर्पण लगना चाहिए क्यूंकि नहाते वक्त अपने आप को दर्पण में देखना बड़ा ही सुखद और आनंददायक लगता है!
यह सुनते ही उसके होंठों पर हल्की मुस्कान, गालों पर लाली छा गई और शायद शर्म के कारण चेहरा घुमाकर दूसरी ओर देखने लगी।
मैंने पूछा- मैडम, क्या मेरी सलाह पसंद नहीं आई?
तो उन्होंने इतना ही कहा- बहुत!
और शरमा कर मुस्कुरा दी।
मैंने कहा- मैडम, एक बात और कि इस काम में एक सप्ताह लग जायेगा! आप लोगों को परेशानी होगी।
तब रमा मैडम बोली- रोनी जी, चिंता मत करो, हमारे बच्चे अपने मामा के घर गए हैं, हम लोग उनका बाथरूम प्रयोग कर लेंगे।
यह बात करते हुए भी रमा ने नजरें नीचे की हुई थी।
मैंने समय बर्बाद न करते हुए तुरंत पूछ लिया- कितने बच्चे हैं आपके?
रमा बोली- दो! छोटा नर्सरी में बड़ा सेकंड में पढ़ता है।
मैं भी कहाँ चूकने वाला था, तुरंत कह दिया- लगता नहीं है कि आपके दो बच्चे होंगे।
तो उसने लजाते हुए कहा- रोनी जी, आप जल्दी से बैंक जाओ, साहब को दौरे पर जाना है।
जब मैं उसके घर से निकला तो वह दरवाजे तक आई और जब गेट से निकला तो एक बार पलटकर देखा तो रमा खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी।
वहाँ से मैं सीधा बैंक गया। शायद पाण्डेय जी दौरे पर निकलने वाले थे, मैंने अपना परिचय दिया और लेट आने के बारे में बताया तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, पूछा- बाथरूम देखकर क्या एस्टीमेट बनाया?
मैंने कहा- लगने वाले सामान की लिस्ट मैंने बना दी है, देख लीजिये! सामान के अलावा मजदूरी दस हज़ार रूपये होगी, एक सप्ताह में काम हो जाएगा।
उन्होंने कहा- मैं दो दिन के दौरे पर जा रहा हूँ, अपने आदमी को भेजकर सामान मंगवा दूंगा। शाम को सामान चैक कर लेना और कल से काम लगा देना।
पाण्डेय जी ने 5000 रुपये एडवांस दिए, फिर दौरे पर जाने की तैयारी करने लगे। उस समय दोपहर का एक बज रहा था।
साहब बोले- सामान लाने वाला तुम्हें शाम 4-5 बजे तक सामान लाकर दे देगा, सो तुम चेक कर लेना।
मैंने कहा- ठीक है!
और मैं बैंक से उठकर बाहर आ गया, सोचा चार घंटे का समय किसी प्रकार काटना है सो पिक्चर देखने चला गया। लेकिन पिक्चर में मन नहीं लग रहा था, कारण रमा पाण्डेय का मुस्कुराना एवं लजाना, बार-बार उसके अग्र एवं पश्च उभार दिखाई दे रहे थे। बाथरूम में मैंने यही कहा था कि नहाते वक्त अपने आप को देखना, यह तो नहीं कहा कि नहाते वक्त अपने आपको नग्न देखना अच्छा लगता है, फिर वो इतना जोरों से क्यों शरमाई और नजरें चुरा रही थी। कुछ तो बात जरूर थी जो वह नहीं कह सकती थी पर उसकी आँखों ने कह दी थी।
अब मेरे मन में सवाल यह उठ रहा था, शायद यह मेरा भ्रम हो, पर दिल मानने को तैयार नहीं था क्यूंकि सामान्य घटना और असामान्य घटना में फर्क होता है जो हम महसूस कर सकते हैं। अगर बारीकी से देखा जाये तो वैसे पाण्डेय जी भी भरपूर जवान और खूबसूरत इन्सान थे दिल के भी बहुत साफ थे। उनके दोनों के बीच सम्बन्ध भी बहुत अच्छे होंगे। फिर क्या है जो मेरे मन में हलचल मचा रहा है।
इसी उधेड़बुन था कि अचानक 5 बजे मेरे मोबाइल पर काल आई, फोन उठाया तो दूसरी तरफ नारी स्वर था- मैं रमा पाण्डेय बोल रही हूँ!
मेरे हाथ से फोन गिरते गिरते बचा, अपने आप को संभालते हुए मैंने कहा- जी कहिये?
तो वो बोली- सामान आ गया है, आप आकर चेक कर लो!
मैंने कहा- जी 30 मिनट में पहुँच जाऊँगा…
बोली- ओ के!
और फोन कट गया।
मैंने अपने आप को सामान्य किया, पिक्चर छोड़ कर बाहर आया, मुँह धोकर अपने आप को तरोताजा किया फिर एक रेस्टोरेंट में जाकर लस्सी का आर्डर दिया और आगे की योजना के बारे में सोचने लगा कि पाण्डेय जी घर पर नहीं होंगे अगर कुछ ऐसा हुआ तो क्या करना है।
फिर लस्सी पीकर पाण्डेय जी के घर की ओर चल पड़ा।
पाँच बज कर चालीस मिनट पर उनके घर पहुँच कर घण्टी बजाई, 3-4 मिनट बाद दरवाजा खुला, रमा जी सामने थी।
एक बार दिल जोर से धड़क गया क्यूंकि उस समय उन्होंने गुलाबी मेक्सी पहनी थी और गीले बालों पर तौलिया लपेटे हुए थी लेकिन गीले बालों पर पानी की बूंदें मोती की तरह चमक रही थी, साबुन की महक आ रही थी।
उन्होंने कहा- बैठिए, मैं आती हूँ!
पीछे से उनको जाते हुए देखा तो एक बार फिर घायल हो गया, मेक्सी में से उनकी लाल ब्रा एवं पेंटी की झलक सी दिखाई दे रही थी।
रमा ने पानी लाकर दिया और पूछा- क्या पियोगे चाय या काफी?
मैंने कहा- कुछ भी…!
रमा ने कहा- आप सामान देख लो कोई चीज कम तो नहीं!
और वो फिर रसोई में चली गई। मैंने सामान को बारीकी से देखा, सब ठीक था पर दर्पण दिखाई नहीं दिया।
हालांकि दर्पण कोई छोटी चीज नहीं थी तो सोचा शायद कहीं हिफ़ाजत से रख दिया होगा।
तब तक चाय आ गई मैंने पूछा- दर्पण दिखाई नहीं दे रहा?
वो बोली- उसे बाथरूम में रखवा दिया है, देख लेना। पहले चाय पी लो, मैं आती हूँ!
कहकर अपने बेडरूम में चली चली गई, शायद बालों को सुखाकर तैयार होने।
मैंने अपनी चाय ख़त्म करके सोचा कि मैं ही ग़लतफ़हमी में था, यह तो घास भी नहीं डाल रही है। बाथरूम में जाकर दर्पण का मुआयना करूँ और निकलूँ!
कहानी के कई भाग हैं।
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