आज दिल खोल कर चुदूँगी -11
(Aaj dil Khol Kar Chudungi- Part 11)
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अब तक आपने पढ़ा..
मैं झड़ने लगी और मुझे झड़ता हुआ पाकर पति मेरी बुर पर ताबड़तोड़ धक्कों की बौछार करते हुए चोदते जा रहे थे। मेरी चूत से ‘फच.. फचा.. फच..’ की आवाजें आने लगी थीं।
लण्ड भी ‘सक.. सक..’ करके अन्दर- बाहर करते हुए पति मेरी बुर में लण्ड जड़ तक चाप कर झड़ते हुए बोले- ले.. मैं भी गया.. तेरी चूत में… ले साली अपनी चूत में.. मेरे वीर्य को.. आह.. ले.. मैं झड़ रहा हूँ.. ततत..तेरी चूत में..
वे झड़ कर हाँफने लगे और हम दोनों एक मस्त चुदाई के बाद आराम से एक दूसरे को बाहों में लेकर सो गए।
अब आगे..
सुबह नींद तब खुली जब मैंने दरवाजे पर घंटी की आवाज सुनी।
मैं उठी और जाकर दरवाजा खोला तो सामने सुनील चाय लेकर खड़ा था।
‘अरे आप..?’
‘गुड मॉर्निंग..’ सुनील बोला- लग रहा है, रात को कुश्ती देर तक चली।
मैं मादकता से बोली- ऐसा क्यों लग रहा है..
सुनील बोला- मुझे पता है नवीन ने तुमको केवल गरम तो कर दिया होगा पर ठंडा नहीं कर पाया होगा और तुमने ठंडा होने के लिए आकाश भाई को सोने नहीं दिया होगा।
मैं सुनील की बात सुनकर मुस्कुरा दी और सुनील भी मुस्कुराते हुए अन्दर आ गए। तब तक मेरे पति भी जाग गए थे। मैं बाथरूम में जाकर फ्रेश हुई और पति भी फ्रेश होकर आ गए.. फिर हम सब लोग बैठकर चाय पीने लगे।
अब सुनील बोले- नेहा जी.. आज आप को पूरे दिन के लिए सिर्फ आराम है.. कहीं जाना नहीं है। हो सकता है रात का कोई प्रोग्राम बने।
सुनील 20000/- रूपया मेरे पति को देते हुए बोले- आकाश जी इसे रखिए.. यह कल का कुछ हिसाब है.. बाकी बाद में देखा जाएगा और मैं दोपहर में तो आ नहीं सकता.. शाम तक ही आऊँगा। इसलिए आप लोग बाहर जाकर खाना खा लीजिएगा।
इस सबके बाद सुनील चले गए। उनके जाने के बाद मैं बाथरूम में नहाने चली गई.. लेकिन कुछ ही देर बाद पति बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगे।
मैंने अन्दर से ही पूछा- क्या है?
तो पति ने कहा- साथ नहाने का मन है।
मैंने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोल दिया। फिर पति भी मेरे साथ नहाते हुए मेरी चूचियों और चूतड़ों को दबाने लगे, वो कभी मेरी चूची को मुँह में भर लेते और कभी बुर को सहला देते।
मैं पति की इस तरह की हरकतों से गरम होने लगी और बोली- इरादा क्या है जनाब का.. सुबह-सुबह रंगीन मिजाजी..?
पति मुस्कुराते हुए मेरी योनि प्रदेश को चूमने लगे। काफी देर मेरी बुर को चूसने से मेरी चूत की गरमी बढ़ गई और मैं सिसियाते हुए पति के सर को बुर पर दबाते हुए चूत को चटवाने लगी..
साथ ही मैं सिसक भी रही थी- ऊऊउई.. आआह्ह्ह.. आआह्ह.. मेरे राजा चाटो.. मेरी चूत.. मेरी चूत को काट कर खा जाओ..
पति मेरी चूत की पंखुड़ियों को मुँह से खींच-खींच कर चूस रहे थे.. पर अचानक चूत को पीना छोड़कर अचानक से लण्ड को बुर पर लगा दिया और एक तेज शॉट लगा कर लंड को ‘सटाक’ से मेरी चूत में पेल दिया।
मैं आकाश की इस हरकत के लिए तैयार नहीं थी। मैंने ‘ऊऊउ..ईईई.. सीई..’ की आवाज करते हुए कस कर पति को पकड़ लिया।
उधर पति ने मेरी बुर पर लगातार दस-बारह झटके मार कर लण्ड को बाहर निकाल लिया और बोले- बस आज ऐसे ही रहा जाए.. बिना चुदाई पूरी किए..।
मैं मिन्नतें करती रही- और पेलो..
पर पति मेरी काम वासना की आग का मजा उठा रहे थे और नहाकर बाहर निकल गए।
कुछ देर बाद मैं भी बाहर आई.. पर मेरी चुदास पूरे चरम पर थी इसलिए मेरी चूतड़ और कमर बल खा रहे थे। उस पर मेरे पति मेरे नितम्बों पर चिकोटी लेते बोले- क्या हुआ मेरी जान.. तबियत सही नहीं है क्या?
मैं वासना के नशे में बाथगाउन उतार नंगे ही जाकर पति की गोद में बैठ गई और मैंने अचनाक उनके खड़े लण्ड को कसकर पकड़ कर उस पर चिकोटी काट ली।
पति तेज स्वर में चिल्ला उठे और मुझे गोद से उतार कर ‘आह सी..’ करने लगे।
मैं बोली- क्या हुआ.. अब पता चला कि बात क्या है?
फिर पति बोले- जान.. मैंने तुम्हें जानबूझ कर प्यासा छोड़ दिया था। अभी पूरा दिन ही बाकी है.. पता नहीं कब लण्ड से चूत लड़ जाए.. क्यों उतावली होती हो.. मौका मिलेगा तो किसी भी लण्ड से चूत लड़ा लेना। मैंने रोका तो नहीं है।
मैं मुस्कुराने लगी।
फिर पति कपड़े पहन कर बोले- मैं सामने वाली दुकान से उसी के हाथ नाश्ता भिजवाता हूँ.. और मैं नहीं आऊँगा क्योंकि मुझे एक काम से जाना है और एक या दो घण्टे में आऊँगा.. तुम कपड़े पहन लो।
ये बोल कर वे चले गए..
पर मुझे शरारत सूझ रही थी इसलिए मैंने एक छोटा सा स्कर्ट और टाप डाल लिया.. स्कर्ट केवल मेरी चूत और चूतड़ों को ढकने भर के लिए काफी था.. बाकी मेरी जांघें पूरी नंगी दिख ही रही थीं।
इन कपड़ों में मेरी स्थिति यह थी कि अगर मैं झुक जाऊँ.. तो चूतड़ों के छेद और चूत का भी दीदार हो ही जाएगा.. क्योंकि मैंने पैन्टी नहीं पहनी थी।
फिर मैं मिरर के सामने बैठ कर पूरी तरह से तैयार हो कर बिस्तर पर लेट गई।
तभी घंटी बजी.. मैंने जाकर दरवाजा खोला.. तो सामने एक बांका नौजवान हाथ में नाश्ते का पैकट लिए खड़ा था। वो मेरे को ऊपर से नीचे देखते हुए बोला- मेम साहब.. साहब ने ये नाश्ता भिजवाया है।
मैं एक तरफ को होते हुए बोली- अन्दर मेज पर रख दो।
वह बांका जवान कमरे में अन्दर दाखिल होकर.. नाश्ता मेज पर रखकर खड़ा होकर मुझे देखते हुए बोला- मेम साहब मैं जाऊँ?
मैं बोली- आप का नाम क्या है और जाने की जल्दी है क्या?
वह बोला- मेरा नाम विनय है और मेरी सामने दुकान है..
मेरा इरादा उसे देख कर चुदने का हो उठा था.. इसलिए मैंने उसे कुछ और दिखाने और उसको अपने जाल में फंसाने के लिए एक तरीका सोचा।
और मैं बोली- विनय मेरा एक काम कर दोगे क्या?
वह बोला- जी मेम साहब..
मैं बोली- एक बोतल पानी ला दो।
और पैसा देने के लिए मैं मिरर के पास जाकर और झुककर अपने हैंडपर्स से पैसा निकालने लगी। मेरे झुकते ही विनय को मेरी चूत का दीदार हो उठा। विनय आँखें फाड़ कर देखते हुए अपना लण्ड सहलाने लगा।
यह सब करते हुए मैं मिरर से विनय को देख रही थी और जानबूझ कर पैसा ढूँढ़ने का नाटक कर रही थी ताकि उसको ज्यादा से ज्यादा गरम कर सकूँ।
मेरे दिमाग में घुस चुका था कि आज इस साले को इतना गरम कर दूंगी कि ये आज मेरी चूत चोद ही दे। मैं उसी की हरकतों तो नोटिस करते हुए घूम गई.. बिना विनय को कोई मौका दिए हुए..
मेरे पलटते ही विनय डरकर बगल में देखने का नाटक करने लगा। मैं जब विनय के करीब पहुँची तो विनय की साँसें तेज चल रही थीं। विनय की साँसों में एक वासना की महक आ रही थी।
मैंने एक सौ का नोट देते हुए उसके हाथों को दबा दिया।
अब मैं मादक अदा से अंगड़ाई लेते हुए बोली- थोड़ा जल्दी आना पानी लेकर.. बहुत प्यासी हूँ..।
विनय हकलाते हुए बोला- जी जी जी.. मेमममेम साहहब..
वो झटके से मुझे घूरता हुआ कमरे के बाहर चला गया। मैं जाकर बिस्तर पर चूत खोल कर बैठ गई और एक पत्रिका लेकर पैर को मोड़ लिया ताकि विनय को आते ही मेरी चिकनी बुर का दीदार हो जाए।
और वही हुआ.. जैसे ही विनय पानी की बोतल लेकर आया.. वैसे ही मैंने मुँह के सामने पत्रिका करके पढ़ने का नाटक करते हुए अपने पैरों को थोड़ा और फैला दिया। ताकि विनय मेरी बुर को अच्छे से देख ले।
कमरे के अन्दर आते ही सबसे पहले विनय की कामुक निगाहें मेरी जाँघों के बीच में पहुँच कर मेरी बुर को ताड़ने लगीं।
काफी देर तक बुर का मैं जमकर दीदार कराने के बाद चौंकते हुए बोली- अरे तुम कब आए?
विनय सच्चाई छुपाते हुए बोला- ब्ब्स.. अ..अभी आआआ.. आया म..मेम स..स.. साहब।
‘ओके..’
बोला- नाश्ता नहीं किया मेमसाहब.. ठण्डा हो गया है..
मैं बोली- विनय लेकिन कुछ और है जो गरम है।
‘ऐसा क्या है.. आप नाश्ता तो खा लीजिए।’
मैं बोली- नाश्ते के साथ कुछ और खाने का मन हो गया है।
ये कह कर मैंने आगे की बात अधूरी छोड़ दी।
तभी विनय ने पूछा- और क्या खाना चाहती है- मेमसाब?
मैं बोली- अगर तुम खिलाओ.. तो जरूर खा लूँगी।
विनय बोला- आप बताइए.. मैं अभी ला देता हूँ..
जानबूझ कर विनय भी बात बढ़ा कर बात कर रहा था।
मैं अश्लीलता से खुलते हुए बोली- अपना केला खिला दो।
विनय सकपकाते हुए बोला- मेरी दुकान पर केला नहीं बिकता.. रूकिए कहीं और से ले आता हूँ।
मैं बोली- नहीं.. मैं जब भी खाऊँगी.. तो तुम्हारा ही केला ही खाऊँगी।
विनय बोला- क्यों मजाक करती है-मेमसाब.. मेरे पास कहाँ है केला..?
मैं उसको उंगली से बुलाते हुए बोली- जरा यहाँ को आओ.. दिखाती हूँ..।
विनय के करीब आते ही मैंने अपनी जांघों को पूरा खोल दिया और जैसे ही विनय मेरे करीब आया।
मैं बोली- विनय अगर तुम्हारे पास केला निकला.. तो खिलाओगे ना.. वादा करो।
‘वादा मेमसाब.. जरूर खिलाऊँगा..’ वो लजरते हुए स्वर में बोला।
तभी मैंने एक झटके से विनय के मोटे तगड़े और खड़े लण्ड को पकड़ लिया।
‘यह है केला.. अब जल्दी से निकालो और खिलाओ।’
विनय को भी अब चुदास चढ़ गई थी और वो भी नाटक करते हुए बोला- मेमसाब, यह केला मुँह से खाने के लिए नहीं है।
मैंने तुरंत विनय का हाथ पकड़ कर ले जाकर सीधे अपनी गरम चूत पर रख कर दबाते हुए बोली- इसे खिलाना है। अब तो केला खाने की सही जगह है ना..
विनय ने मेरी बुर को चापते हुए कहा- जी मेमसाब.. लेकिन कोई आ गया तो?
मैं सिसियाते स्वर में कराही- आह्ह्ह.. आआ आह्ह्ह्ह.. नहीं विनय कोईई.. नहींई.. आएगा.. तुम इत्मीनान से खिलाओ अपना केला.. यह मेरी चूत इसको आराम से खा लेगी।
क्या विनय ने मुझे केला खिला पाया.. कि नहीं.. पढ़ने के लिए आपको अन्तर्वासना पर जुड़े रहना होगा। मेरी मदमस्त चुदाई का अगला भाग शीघ्र ही आपके साथ होगा।
कहानी जारी है।
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