नया मेहमान-3
(Naya Mehman-3)
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मैं घर चला आया, मेरा दूसरा कदम भी कामयाब रहा। घर जाकर बेड पर लेट गया पर नींद नहीं आ रही बार बार रेखा का नग्न शरीर जो बाथरूम में देखा था, नजर के सामने आ जाता, अंत में बाथरूम में जाकर रेखा भाभी की याद कर हस्तमैथुन किया तब राहत हुई।
अचानक साले साहब का फोन आ गया, पूछा- कोई परेशानी तो नहीं हो रही? कहो तो मैं आ जाऊँ?
मैंने कहा- सब ठीक है, रेखा भाभी अच्छे से तुम्हारी दीदी की देखभाल कर रही हैं, खुद अस्पताल में रुक गई और मुझे घर भेज दिया आराम करने के लिए !
‘ठीक है, जरुरत हो तो फोन कर देना।’
फिर फोन कट गया।
अगले दिन के लिए तीसरे और अंतिम कदम पर विचार करने लगा, मेरे दिमाग में रेखा के कहे ये शब्द ज्यादा खटक रहे थे ‘पैकेट अपने साथ ले जाओ, यहाँ मेरे किस काम के !’
नींद नहीं आ रही थी, बार बार रेखा का नग्न शरीर जो बाथरूम में देखा था, नजर के सामने आ जाता !
अंत में बाथरूम में जाकर रेखा भाभी की याद कर हस्त मैथुन किया, तब राहत हुई।
आगे के लिए तीसरा और अंतिम कदम पर विचार करने लगा, मेरे दिमाग में रेखा के कहे ये शब्द ज्यादा खटक रहे थे- पैकेट अपने साथ ले जाओ, यहाँ मेरे किस काम का !’ सोचते सोचते कब नींद आ गई, पता नहीं चला।
सुबह जल्दी नींद खुल गई बारिश के मौसम के कारण रात से ही हल्की बूंदा बांदी हो रही थी। नहा धोकर दूध लेने चला गया, फिर उसे उबालकर थर्मस में भर लिया।
एक थर्मस चाय के लिए लेकर घर से निकल पड़ा। रास्ते में एक अच्छे से होटल में नाश्ता किया, रेखा भाभी के लिए नाश्ता पैक करवाया, थर्मस में चाय लेकर अपनी जान के लिए ब्रेड का पैकेट लिया और अस्पताल पहुँच गया।
रेखा बच्चे को गोद में लेकर खिला रही थी, मुझे देख मुस्कुरा दी, बोली- यह आपका नया मेहमान बड़ा परेशान कर रहा है, इसे संभालो !
कहकर बच्चे को मेरी गोद में देने लगी, बच्चे को लेते समय मैंने उसका हाथ भी धीरे से दबा दिया, फिर भाभी से चाय नाशता करने का बोल दिया, अपनी दीदी को ब्रेड दूध दे देना ! कहकर मैं नए मेहमान में खो गया, सोच रहा था, मेरा बेटा मेरे को बड़ा लकी साबित हो रहा है शायद जिसके सपने मैंने कई बार देखे वो आज सच हो जाये।
ये लोग नाश्ता करके फ्री हुए ही थे कि डॉक्टर राउंड पर आ गई, साथ में सुन्दर सी नर्स हाथ में फ़ाइल लिए हुए थी, छाती पर एक तरफ नेम प्लेट थी जिस पर ‘अलका रानी’ लिखा था, वो बोली- आप लोग बाहर जाओ, मरीज को मैडम चेक करेंगी !
मैं और रेखा बाहर आ गए, रेखा को काफी करीब से देख रहा था अब मैं ! वो अलसाई सी लग रही थी, आँखों में नशा सा छाया हुआ था।
मैंने पूछा- रात में नींद नहीं आई क्या?
तो बोली- तुम्हारा लाडला सोने कहाँ दे रहा था ! बड़ा बदमाश है, रात में बार बार रोता है।
मैंने कहा- इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूँ, अब ऐसे समय में तुम्हारा ही सहारा है।
तो रेखा हंसकर बोली- जीजाजी, मैं तो मजाक कर रही हूँ, आप जल्दी सिरियस हो जाते हो।
‘हाँ, तुम्हें लेकर कुछ ज्यादा ही सीरियस हो जाता हूँ।’
बोली- क्या मतलब?
कुछ बोल पाता, इसके पहले नर्स आ गई।
‘अब आप मरीज के पास जा सकते हैं।’ नर्स ने आकर कहा- डॉक्टर मैडम ने यह परचा दवाई लाने के लिए दिया है।
मैंने बच्चे को रेखा को दिया, कहा- भाभी, आप अन्दर जाओ, मैं दवाई लेकर आता हूँ।
रेखा अन्दर चली गई।
सुबह के नौ बज गए थे, बाहर बूंदा बांदी अभी भी जारी थी। मैं दवाई लेकर आया तो मेरी जानू ने कहा- जान, आपको अपने काम की साईट पर जाना है क्या?
मैंने कहा- हाँ थोड़ी देर में जाऊंगा।
तो मेरी जानू ने कहा- तुम भाभी को लेकर घर छोड़ देना, तो यह नहा कर खाना बना लेगी, आप लोगों के लिए। मेरे लिए दलिया बनाकर लाना है, अभी दोपहर तक यहाँ कोई जरुरत भी नहीं रहेगी। फिर नर्स तो है ही अस्पताल में !
मैंने कहा- ठीक है !
फिर तभी अल्का रानी आ गई दवाई चैक करने ! तो मैंने 100 का नोट उसे दिया, फिर कहा- सिस्टर, हम लोग घर जा रहे हैं। खाना खाकर दोपहर तक आ जायेंगे, आप हमारे बीवी बच्चे का खयाल रखियेगा।
तो अलका बोली- आप आराम से आइयेगा, मेरी डयूटी 4 बजे तक है, चिंता मत करना।
फिर उसने नोट अपने ब्लाउज में ठूंस लिया और मुस्कुराकर चली गई।
मैंने कहा- चलिए भाभी, आपको घर छोड़ दूँ, फिर मुझे काम से जाना है।
रेखा ने अपना बैग ले लिया जिसमें उसके कपड़े और जरुरत का सामान रखा था।
मैंने अपनी पत्नी से कहा- जान चलता हूँ। जल्दी ही लौटूंगा, कुछ लाना हो तो?
बोली- नहीं !
मैंने कहा- ठीक है।
फिर बाहर आ गया। पीछे पीछे भाभी भी आ गई।
अब मेरे तीसरे कदम पर अमल करने का समय आ गया था तो मैंने अपने आप को तैयार तो पहले ही कर लिया था कि अब क्या करना है।
लगता था कि उस दिन मौसम भी हमारा साथ दे रहा था, भाभी को बाइक पर पीछे बिठा कर मैं चलने लगा तो मैंने पूछा- खाने में क्या बनोओगी?
रेखा बोली- जो आप कहो।
मैंने कहा- सब्जी तो है नहीं, लेने चलना पड़ेगा, चलो सब्जी बाजार से ले लेते हैं।
बोली- ठीक है, पर बारिश तो तेज होती जा रही है, हम भीग जायेंगे।
मैंने कहा- तुम्हें जाकर तो नहाना ही है पर अपना बैग डिक्की में डाल दो।
उसने बैग डिक्की में रख दिया, मैं दूर की सब्जी की दुकान तक उसे ले गया, सब्जी खरीदने के बाद वहाँ से निकल ही रहे थे कि पानी तेजी से पड़ने लगा।
मैंने कहा- भाभी, मैं तो भीग ही रहा हूँ, आप मेरे पीछे आकर अपने आप को मेरी ओट में कर लो तो ज्यादा नहीं भीगोगीl
मरता क्या न करता ! वो मेरे से चिपककर बैठ गई, अब मुझे पीठ पर उसके स्तनों का अहसास हो रहा था, गर्दन के नीचे उसकी साँस टकरा रही थी, अभी घर जाने का मन नहीं था मेरा, अभी उसके जिस्म में कुछ हलचल मचाने के बाद ही घर जाकर कुछ उम्मीद जा सकती है, यह सोच मैंने कहा- भाभी, तेल मसाला भी ले लेते हैं, अगर घर पर न हुआ तो दोबारा भीगना पड़ेगा।
फिर बाइक को दूसरी ओर मोड़ दिया, अब तक भाभी को शायद ठण्ड लगने लगी होगी। क्योंकि उसकी कंपकंपाहट मुझे साफ महसूस हो रही थी।
एक दुकान के सामने गाड़ी को रोक, भाभी का हाथ पकड़कर खींचता हुआ शेड के नीचे ले आया। उसका सारा ब्लाउज़ गीला हो चुका था अन्दर की ब्रा साफ दिखाई दे रही थी, मेरे को उधर देखते हुए पाया तो उसने पल्लू खींच कर ढकने की असफल कोशिश की, चेहरे पर
पानी की बूंद गुलाब पर ओस की तरह लग रही थी, इच्छा तो हुई कि उन्हें पी लूँ ! यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
फ़िलहाल दुकानदार से सामान पैक कराया, फिर रेखा भाभी को कहा- अब घर पास ही है।
शार्ट कट से घर जाने लगा, बारिश ने भी आग में घी का काम किया, तभी तो भाभी मुझसे चिपकी हुई थी।
घर पहुँच कर गाड़ी रोक दी, पर लगता है भाभी को तो होश ही नहीं था।
‘सो गई हो?’ मैंने कहा- भाभी उतरो, घर आ गया है।
तब ओह कहते हुए उतर कर सीढ़ियों पर पहुँच गई, सामान उसके हाथ में था, मैंने डिक्की से उसका बैग निकाला और ऊपर अपने मकान का ताला खोल अन्दर आ गए।
अन्दर आकर कुछ गरमी सी महसूस हुई मैंने बाथरूम का बल्ब और गीजर ऑन कर दिया, फिर कहा- भाभी, गरम पानी से नहा लेना ठण्ड भी दूर हो जाएगी।
बोली- ठीक है।
फिर तौलिये से अपना बदन पोंछते हुए बाल सुखाने लगी।
मेरी योजना का अगला कदम बड़ा महत्त्वपूर्ण था।
पानी गर्म हो गया था, मैंने गीजर बंद कर दिया, भाभी से कहा- एक एक कप चाय हो जाये?
बोली- ठीक है।
फिर वो रसोई में चली गई। वो गई, वहाँ से वापस आकर बताया- दूध तो है नहीं, चाय के लिए।
मैंने कहा- अरे हाँ ! मैं तो भूल ही गया था, वो तो सारा दूध अस्पताल ले गया था। खैर, तुम नहा लो, जब तक मैं दस मिनट में दूध लेकर आता हूँ !
रेखा ने अपने कपडे बैग से निकाले और बाथरूम में रख दिए, बोली- आप चले जाओ तो मैं दरवाजा अन्दर से लगा लूँगी।
मैं समझ गया कि यह नहाने को उतावली हो रही है, सारे कपड़े जो गीले हैं। मैंने कहा- इस दरवाजे पर लगा लॉक अन्दर बाहर दोनों तरफ से खोला-लगाया जा सकता है। तुम निश्चिन्त होकर नहा लो, यदि मैं दूध लेकर ना आ पाया और दरवाजा खोलने की जरुरत पड़े तो दूसरी चाबी यह मेज पर रखी है।
फिर मैं बाहर निकल गया और अपनी चाबी से दरवाजा लॉक कर दिया। सीढ़ी में जाकर एक सिगरेट जलाकर कश लेने लगा।
मेरी योजना यह थी कि मेरी अनुपस्थिति में रेखा स्वछन्द होकर नहाएगी, फिर मैं लॉक खोलकर धीरे से घर में आऊँगा और बाथरूम के दरवाजे की झिरी से उसे नहाते हुए देख उसके हुस्न का दीदार करूँगा।
सिगरेट ख़त्म होते ही मैं दबे पांव आया, चाबी लगाकर दरवाजा खोल अन्दर आ गया, जिस कमरे से बाथरूम लगा हुआ था, हौले से उस कमरे में गया पर यहाँ तो सारी योजना चौपट लग रही थी। बाथरूम का दरवाजा खुला था, कहीं रेखा नहाकर निबट तो नहीं गई थी।
पर नहाने जैसे आवाज बराबर आ रही थी, अब क्या करूँ?
अगले पल सोचा जो होगा देखा जायेगा, दबे पांव दरवाजे तक पहुँच गया अन्दर का मंजर देख बेहोशी सी छाने लगी पर होश नहीं खोने दिया, बाथरूम में रेखा दरवाजे की तरफ मुँह करके पटरी पर जन्मजात नंगी बैठी हुई थी, उसका गोरा बदन आँखों के सामने बेपर्दा था।
कहानी जारी रहेगी।
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