यौनसुख से वंचित पाठिका से बने शारीरिक सम्बन्ध -6

(Yaun Sukh Se Vanchit Pathika Se Bane Sharirik Sambandh-6)

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जैसे जैसे मेरा जंगलीपन बढ़ रहा था वो और ज़्यादा एंजाय कर रही थी।
वो बहुत बुरी तरह से मचल रही थी थी, पर मैं भी अबकी बार पूरी तरह से एंजाय करना चाहता था और मेरे मन में भी यह बात थी कि आज मैं इसके साथ इस तरह से काम करूँ कि आगे भी इसे मेरी सेवाओं की ज़रूरत पड़ती रहे।

हर आदमी किसी ना किसी मामले में स्वार्थी होता है, मैं भी हूँ क्योंकि घर से तो पूरी खुराक मिलती नहीं तो चलो जब तक यहाँ से ज़रूरत पूरी होती रहे तो अच्छी बात है।
और वैसे देखा जाए तो यह स्वार्थ भी नहीं था, थी तो केवल मात्र जिस्मानी आवश्यकता ही।

जैसे ही मैंने उसके स्वर्ग के द्वार पर होंठ लगाए और जीभ फेरी तो वो एकदम से बहुत बुरी तरह से सिहर उठी, उसने अपनी टाँगें घुटनों से मोड़ लीं और मेरे सिर को वहाँ पर और ज़ोर से दबाने लगी।
फिर उसने मुझे ऊपर को धकेला और मेरे सिर पर हाथ लगा कर ऊपर को उठाने की कोशिश की, मैंने सिर उठा कर उसकी आँखों में झाँका तो तो उसने मुझे उठने का इशारा किया।

जैसे ही मैं ऊपर को उठा तो वो एकदम से पलट कर मेरे ऊपर आ गई, मेरी समझ में उसकी बात अब आई थी, क्योंकि वो घूम कर 69 को पोज़ीशन में आ गई थी।
अब दोबारा जैसे ही मैंने उसकी चूत पर मुँह लगाया तो उसने भी मेरे पूरी तरह से अकड़े हुए लिंग के सुपाड़े की चमड़ी को पीछे को कर के सुपाड़े अपने मुँह में भर लिया।
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जब उसने मेरे सुपाड़े को मुँह में भर कर उस पर चारों ओर अपनी जीभ घुमाई और एक ज़ोर का सड़का मारा जैसे कुल्फ़ी को चूसते हैं, तो मैंने जो महसूस किया, उसे लिखने के लिए शायद कोई शब्द नहीं बना, बस उस अनुभव को केवल महसूस ही किया जा सकता है या फिर उसकी कल्पना की जा सकती है।

मैं बस यह कह सकता हूँ कि उसकी चुसाई ने मेरे शरीर के हर एक रोंगटे को खड़ा कर दिया था और फिर मेरे मुँह से भी एक सिसकारी निकल पड़ी- सस्स्स्स स्सिईईई ईईईई आआहह!
मेरी इस सिसकारी ने उसके जोश को कई गुणा बढ़ा दिया था और वो मेरे पूरी तरह से तने हुए लंड को बहुत जोश से लेकिन बिना कोई तकलीफ़ दिए चूस रही थी।
कभी तो पूरे लंड को लालीपोप की तरह चूसती और कभी उसे बाहर निकाल कर सिर्फ़ जड़ से लेकर सुपाड़े तक चाटती।

जैसे जैसे उसका जोश बढ़ रहा था और उसके चूसने में जंगलपना बढ़ रहा था, वैसे वैसे ही मेरा जोश भी बढ़ रहा था और मैं भी उसकी चूत पर अपनी जीभ की ताक़त दिखा रहा था और एक बार तो मैंने उसकी पूरी चूत ही मुँह में भर ली और बड़े ज़ोर से चूसा, शायद ज़्यादा ही ज़ोर से चूस लिया था क्योंकि मेरे ऐसा करते ही उसने मेरा लंड चूसना बंद कर दिया और अपने कूल्हे ऊपर को उठा लिए और मुझ पर से उठकर फिर से एक बार घूम गई।

अब वो मेरे ऊपर आ गई थी, यानि कि सीधी होकर उसने अपनी दोनों टाँगें मेरे दोनों तरफ कर लीं और जैसे उकड़ूं बैठते हैं उस तरह से मेरे ऊपर आ गई, मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा, उस पर अपनी चूत टिकाई और मेरे ऊपर बैठती चली गई और मेरा लंड उसकी चूत में एकदम से फँसा हुआ ऐसे घुसता चला गया जैसे मक्खन में छुरी…
पर उसके चेहरे को देख ऐसा लग रहा था जैसे उसे लंड अंदर घुसने से तकलीफ़ हुई हो!

मैंने पूछा भी- क्या हुआ?
पर उसने अपना सिर हिला कर मना कर दिया कि ‘कुछ नहीं!’
उसकी चूत अंदर से बहुत गर्म थी, 8-10 सेकिंड वो ऐसे ही रुकी रही और फिर धीरे धीरे वो हिलने लगी और अपनी टांगें घुटनों से मोड़ कर मेरे ऊपर लेट गई और अपने स्तन मेरे मुँह के पास कर दिए।

मैंने भी देर ना करते हुए उसके एक स्तन को हाथ में पकड़ कर दबाना और मसलना शुरू कर दिया और दूसरे को मैंने अपने मुँह में भर लिया और कभी बहुत प्यार से और कभी बहुत ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

मेरा बाँया हाथ उसके चूतड़ों पर पहुँच गया, मैं कभी उसके चूतड़ों को सहलाने लगता और कभी ज़ोर ज़ोर से दबाने लगता।
2-3 मिनट तक तो वो ऐसे ही धीरे धीरे हिलती रही, फिर उसकी गति भी कुछ तेज़ हो गई और उसने अपने मम्मे मेरे मुँह से निकाल लिए, अपना मुँह मेरे मुँह के ऊपर ले आई, मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और ज़ोर से चूसने लगी और फिर अपनी नर्म नर्म जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरे मुँह में पूरी लंबी जितनी अंदर तक जा सकती थी, उतनी अंदर तक डाल कर जीभ को अंदर ही घुमाने लगी।

मेरे जोश को तो जैसे पूरा एक्सीलेटर मिल रहा था, जैसे ही वो ऊपर से नीचे को ज़ोर लगाती, मैं भी नीचे से पूरा ज़ोर लगाता!
पर मुझे ऐसे पूरा मज़ा नहीं आ रहा था क्योंकि उसकी स्पीड कम थी।

मैंने उसे रुकने का इशारा किया, वो रुकी नहीं पर आँखों ही आँखों से इशारा करके उसने पूछा ‘क्यों?’
मैंने उसे पलट कर नीचे आने को कहा तो उसने मेरा मुँह छोड़ दिया और कहा- अभी कुछ देर रूको!

मैंने महसूस किया कि उसकी चूत अब पूरी गीली हो चुकी थी और उसके चेहरे से दर्द के भाव गायब हो चुके थे। उसकी आँखें बंद थीं और चेहरे पर किसी बच्चे जैसे भाव, जैसे बच्चे को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो!
बीच बीच में वो अपनी आँखें खोल कर मेरी ओर देखती और फिर से आँखें बाद कर लेती, कभी मेरे होंठों को चूसने लगती तो कभी मेरी बालों से ढकी गालों पर हल्के हल्के दाँतों से काटने लगती!

मैंने भी उसकी क्रियाओं का प्रति उत्तर देना शुरू कर दिया, कभी मैं उसके गाल चाटता, तो कभी उसके होंठों को चूसने लगता।
अबकी बार जैसे ही वो मेरे होंठों की ओर झुकी तो मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कमर से हटा कर उसे कस के जफ़्फ़ी डाल ली और पलटी मार कर उसके ऊपर आ गया।

अब जैसे ही मैं उसके ऊपर आया तो मैंने एकदम से अपनी धक्के मारने की गति बढ़ा दी और साथ ही उसके मम्मों को बारी बारी से चूसना शुरू कर दिया।
मुझ में जोश बढ़ता ही जा रहा था, मम्मों को ज़ोर से चूसते समय मैंने अब काटना भी शुरू कर दिया था।
ऐसा नहीं है कि मैं जानबूझ कर ऐसा कर रहा था पर जोश जोश में पता ही नहीं लग रहा था… जैसे ही मैं ज़ोर से चूसता या काटता तो उसके मुँह से सिसकारी निकल जाती ‘सस्स्स सीईई ईईई आअह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह म्मीईईईरी… जाअंन्नाआअ’

अब वो भी पूरे जोश में आ चुकी थी- ओह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह जान… करो आज मेरी सालों की प्यास बुझा दो यआआआअररर!
उसकी चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी, मेरा लिंग अब बड़े आराम से जा रहा था, गीली थी पर थी पूरी टाईट!
कुछ ही देर में वो बोली- जानूऊऊ… मेरा होने वाला है!

जैसे ही उसने यह बोला, मैं एकदम से रुक गया क्योंकि मैं यह नहीं चाहता था कि उसका हो जाए!
अगर औरत का हो जाए और आदमी का ना हो तो कुछ देर में ही औरत को तकलीफ़ और दर्द होने लगता है इसलिए मैं यह चाहता था कि हमारा डिस्चार्ज साथ साथ ही हो मेरा क्योंकि एक बार हो चुका था तो मुझे तो टाइम लगना ही था।

मैंने अपने सीधे हाथ की उंगली उसकी चूत से निकलते पानी से गीली कर ली और उसकी गुदा पर फेरने लगा और चूत का पानी उसकी गुदा पर लगा दिया और उंगली को दोबारा से चूत से गीला कर लिया।
चूत का पानी भी बह कर उसकी गुदा के आसपास जा चुका तो मैंने उसकी गुदा पर फेरते हुए उंगली को उसकी गांड में धीरे से सरका दिया।

जैसे ही मैंने ऐसा किया तो वो एकदम से चिहुन्क गई और उसका ध्यान भी बँट गया।
इधर मैंने अपने धक्कों की गति फिर से बढ़ा दी क्योंकि अब मैं भी उसके साथ ही झड़ जाना चाहता था। मेरे धक्कों की गति बढ़ते ही उसको फिर से मस्ती चढ़ने लगी और उसने फिर से पूरा ज़ोर लगाना शुरू कर दिया।
अब मुझे भी लग रहा था कि मैं भी अपनी मंज़िल के पास ही हूँ।

जैसे ही उसका जोश बढ़ा तो मैंने अपनी उंगली को भी उसकी गांड में आगे पीछे चलाना शुरू कर दिया और मुश्किल से डेढ़ दो मिनट में ही उसका शरीर अकड़ने लगा और उसने झड़ना शुरू कर दिया- आआआआ… आआआः… मेरीइईईई ईईईईई जान तुमने ततओ मेरी सूखीईईईई ज़मीन को सींच दिया रे ऊफ्फ़ हाय राम… मर्रर गई रे… ओह्ह ह्ह्हह्ह गॉड अरीईयेयिया…

जैसे वो झड़ने लगी तो मैंने भी अपनी गति को बहुत तेज़ कर दिया अपने दोनों हाथों को बेड पर टिका कर मैं अपना ऊपर का शरीर ऊँचा उठा लिया और मेरे धक्कों से धप्प धप्प की आवाज़ आ रही थी। मैंने मुश्किल से 15-16 धक्के और मारे होंगे कि मेरा भी वीर्य निकलना शुरू हो गया।

जब तक मेरा वीर्य निकलता रहा, मेरे धक्कों की गति बनी रही और जैसे ही मेरी पिचकारी पूरी तरह से खाली हुई तो मैं एकदम निढाल सा उसके ऊपर ही लेट गया और शायद 10-12 मिनट ऐसे ही पड़ा रहा।

फिर जब मुझे याद आया कि मुझे तो अभी अपनी लैब पर जाना है तो मैं हड़बड़ा कर उठा।
मेरे उठने से मंजरी भी जाग गई, मैंने अपने कपड़े उठा कर पहनने शुरू किए तो मंजरी ने मुझे रोक दिया और बोली- पहले नहा लो! मैंने उसकी ओर प्रश्नसूचक नज़रों से देखा तो बोली- नहाने से थकावट उतर जाएगी!

मैं बाथरूम की ओर चला तो वो भी मेरे साथ ही अंदर आ गई और गीज़र चालू कर दिया।
मैंने कहा- गर्म पानी से?
वो बोली- गर्म पानी से थकावट भी उतार जाएगी और रात को नींद भी अच्छी आएगी।

वो मेरे सामने ही बैठ कर पेशाब करने लगी तो मैं बोला- क्यों तिबारा खड़ा करवा रही हो, अब की खड़ा हो गया तो मेरे अंदर से निकलेगा भी कुछ नहीं!
वो बोली- मेरे हज़ूर, लगता है कि आपका दोबारा आने का इरादा नहीं है, इसी लिए सारी भूख आज ही मिटा लेना चाहते हो?
यह बोल कर वो मुस्कुरा दी और पेशाब करके अपनी चूत और टाँगों को धोने लगी।

मैं बोला- आ जाओ!
तो वो मुझे बोली- आपको काम पर भी जाना है!
मैं जल्दी से नहाया, मेरे बाहर आते ही उसने मुझे तेल और कंघा दिया और ड्रेसिंग टेबल की ओर इशारा करके बोली- आप जल्दी से तैयार हो जाओ, तब तक मैं कुछ खाने को लाती हूँ!
जब उसने मुझे यह बोला तो याद आया कि आज तो खाना भी नहीं खाया।

मुझे दाढ़ी मूँछें सेट करने और पगड़ी बाँधने करीब 10 मिनट का टाइम लगा। जितनी देर में मैं तैयार हुआ उतनी देर में वो दो बड़े बड़े परांठे, एक कटोरी में मक्खन और एक कटोरी में दही ले आई और बोली- आज तो मैं कोई तैयारी नहीं कर पाई थी पर अगली बार आपके खाने का पूरा ख्याल रखूँगी!

मैंने हाथ पकड़ कर उसे भी वहीं बैठा लिया और उसे अपने हाथ से खिलाने लगा।
वो बोली- आप खाओ, मैं तो बाद में भी बना कर खा लूँगी!
पर फिर भी ज़बरदस्ती मैंने उसे करीब आधा परोंठा खिला ही दिया।

मैंने घड़ी देखी तो 5 बज चुके थे, मैं चलने को तैयार था, वो अंदर गई और एक पैकेट लेकर आई।
मैंने कहा- यह क्या है?
तो वो बोली- यह मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट है।

मैं उस पैकेट को लेने से झिझक रहा था, मैंने मना किया- मंजरी इसे रहने दो!
मेरी बात से उसकी आँखें भर आईं और बोली- जब मैंने तुम्हें अपने पति के बराबर का दर्जा दिया है तो क्या मेरा इतना भी हक नहीं बनता?
मैं बोला- देखो मंजरी, ये सब करने से मेरा कोई ऐसा हक नहीं बनता और अगर मैं तुम्हें अपनी पत्नी का दर्जा दूँगा तो मेरे बीवी बच्चों का क्या?

वो एक पल के लिए मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखती रही और फिर एक लंबा साँस लेकर बोली- मैं आपके परिवार का कोई भी हक नहीं छीन रही, ना ही कभी छीनने की कोशिश करूँगी बल्कि आपका यह एहसान मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी।
और साथ ही उसकी आँखों से दो आँसू निकल पड़े।
जैसे मैंने उसके आँसू देखे, मुझे लगा कि मैंने कुछ ग़लत बोल दिया है, मैंने उससे वो पैकेट ले लिया और अपने हाथ से उसके आँसू पोंछने लगा।

जैसे ही मैंने उसके आँसू पौंछे, उसने मुझे अपनी कौली में भर लिया और बोली- दलबीर जी, कोई ग़लती हुई हो तो माफ़ करना!
मैंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और बोला- नहीं डियर, ऐसी बात मत करो!
फिर वो बोली- अब कब आओगे?
मैं बोला- जल्दी ही।

उसने मुझे गाड़ी में बैठाया, घर को लॉक किया और मुझे वहीं पर लाकर छोड़ दिया जहाँ से मुझे अपनी गाड़ी में बैठाया था।

मैंने दुकान पर आकर देखा उस पैकेट में एक चेक शर्ट और एक रेडीमेड पैंट थी बिल्कुल मेरे नाप की और उसके अंदर एक लिफ़ाफ़ा भी था जिसमें 1000 के 5 नोट भी थे।
मैंने उसे फ़ोन करके बोला- देखो मंजरी, मैंने पैकेट ले लिया, पर उसके अंदर का लिफ़ाफ़ा मुझे कबूल नहीं… क्योंकि मैं कोई प्रोफेशनल नहीं हूँ।

इस पर वो बोली आप बुरा मत मानो… मैंने तो यह समझा था कि आपके काम का जो हर्ज़ हुआ है, यह उसकी भरपाई के लिए है, आगे से नहीं दूँगी पर आपसे भी मेरी एक शर्त है।
मैंने कहा- क्या?
तो वो बोली- आपको कभी भी कोई भी फ़ाइनेन्शियल ज़रूरत होगी तो मुझे कहोगे?
मैंने कहा- ठीक है!

दोस्तो, लगभग एक साल होने वाला है, हमारे सम्बन्ध अभी भी बरकरार हैं और उसके पति को भी कोई शिकायत नहीं है।
मुझे मंजरी ने एक और चूत भी दिलवाई, और खुद बहुत गर्मजोशी से मेरे साथ सेक्स सम्बन्ध बनती है जबसे मंजरी मेरे जीवन में आई है मुझे कम से कम शारीरिक सुख की कमी नहीं है।

वो मुझे कई बार कह चुकी है कि अगर मैं किसी और के साथ सम्बन्ध रखना चाहूँ तो उसे कोई ऐतराज़ नहीं है और यह भी कहती है कि अगर तुम्हारी कोई और दोस्त, गर्लफ़्रेन्ड हो तो तुम उसे मेरे यहाँ ला सकते हो।

मेरी भी ईश्वर से यही दुआ है कि मेरी तरह सबकी कमी को दूर करना।
इस कहानी में मैंने जगह और पात्रों के नाम बदले हैं। मंजरी के साथ और कैसे कैसे किया और बाकी मेरे जीवन में कौन कौन आई… यह फिर कभी मौका मिलने पर लिखूंगा।

आप लोग यानि पाठक गण ही सभी लेखकों व अन्तर्वासना की अमूल्य धरोहर हैं, आप सब की राय की प्रतीक्षा करूँगा!
आपका डा. दलबीर सिंह
[email protected]

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