वो तोहफा प्यारा सा -3
(Vo Tohfa Pyara Sa- Part 3)
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श्वेता में सबसे बड़ा परिवर्तन यह आया कि अपने शरीर के कुछ अंगों पर उसने कभी ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वो हमेशा अधोवस्त्रों से ढके रहते थे, पर अब वो अपने शरीर के एक एक अंग का ख्याल रखती, हर अंग को संवारती, निखारती।
अब तो श्वेता के सभी पुराने करीबी भी कहने लगे थे कि ऐसा क्या कर रही हो तो इतनी सुन्दर लगने लगी हो।
श्वेता अपने सिर के बालों से लेकर पैर के नाखून तक अब संवार कर रखने लगी ताकि यदि मैं उसकी नई फोटो लूं तो उसमें उसका नया रूप नया रंग दिखाई दे।
मुझे रोज एक नई अप्सरा अपने सामने श्वेता के रूप में देखने को मिलती।
भला दुनिया की कौन सी महिला सुन्दर नहीं दिखना चाहती।
मैं खुद भी अब इस बात का ज्यादा ख्याल रखता कि श्वेता बदन पर क्या ज्यादा अच्छा लगेगा, कौन सा हेयर स्टाइल रखना चाहिये, कैसे सुन्दर दिखना है।
जब कभी मैं बाहर जाता तो श्वेता खुद ही उनके लिये अनेक कामुक अंदाजों में अपने फोटो क्लिक करती और मुझे भेजती, मुझे रिझाती, उत्तेजित करती।
इस तरह घर से बाहर होकर भी मैं सदा श्वेता से बंधा रहता।
मुझे लगा इन सब परिवर्तनों के चलते हम दोनों में प्यार और विश्वास भी बढ़ने लगा है।
साथ ही हमारा बिल्कुल सीधा सादा यौन जीवन भी अब पहले के मुकाबले जवां हो गया था, हम दोनों ही एक दूसरे को पहले से अधिक सुख दे पा रहे थे।
रोज ही कुछ नया कुछ अलग करने का मन होता।
यूं तो हम हमेशा सभ्यस एवं सामाजिक भाषा का ही प्रयोग करते थे, परन्तु कभी कभी हम एक दूसरे के साथ शाब्दिक छेड़छाड़ भी करते रहते।
कुछ कामुक शब्दों का प्रयोग करते, बहुत अधिक मूड में होते तो कुछ गन्दी-गन्दी बातें करके एक दूसरे को खुश करते।
मेरे लिये तो सबसे पहली बात श्वेता को खुश रखना था और उसके लिये मेरी खुशी और खुद को अधिक से अधिक सुन्दर बनाकर रखना ही सर्वोपरि था, और अब ये दोनों काम ही वो लगातार करने लगी थी।
अगर ये कहूँ कि अब वो अपनी इस mature लाइफ को बहुत enjoy करने लगी थी तो शायद गलत नहीं होगा।
पर उस शाम तो गजब ही हो गया।
चूंकि अगले दिन छुट्टी भी तो बेटे ने अपनी बुआ के घर जाने की जिद कर ली।
हालांकि मुझे लगा कि वो बुआ को परेशान करेगा तो मैंने इजाजत नहीं दी।
पर जैसे ही मैंने श्वेता को उसकी जिद के बारे में बताया तो श्वेता ने मुझे आँख मारते हुए कहा- जाने दो ना कल आ जायेगा, और तब तक हम भी मस्ती करेंगे।
श्वेता की बात समझ में आते ही मैंने भी मुस्कुराते हुए बेटे को जाने की इजाजत दे दी।
अब तो मेरा भी दिमाग उसी ओर चलने लगा।
बेटे के घर से बाहर निकलते ही मैंने अन्दर से दरवाजा बन्द किया और श्वेता को सारे कपड़े उतारने का फरमान जारी कर दिया।
उसने हंसते हुए इसका कारण पूछा।
तो मैंने कहा- अब कल बेटे के घर वापस आने तक हम दोनों घर में सारा दिन नंगे ही रहने वाले हैं, और एक दूसरे से बिना किसी औपचारिकता के बिल्कुल खुले भाव से पेश आयेंगे, कुछ गंदी-गंदी बातें भी करेंगे।
श्वेता मेरे इस नये प्रयोग से एकदम चौंक गई। पर मैं भी जानता था कि अन्दर ही अन्दर यह नया विचार उसे बहुत रोमांचित भी कर रहा था।
श्वेता भी अब मस्ती के मूड में आ गई और तुरन्ते अपने सारे कपड़े उतार दिये।
मैंने भी समय न गंवाते हुए अपने सभी वस्त्रों का परित्याग कर दिया।
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वैसे तो मैं और श्वेता आज से पहले भी कई बार ऐसे नग्नावस्था में एक दूसरे के साथ होते थे पर ऐसा सिर्फ रात में बिस्तर पर ही होता था।
यह आज का विचार मेरे लिये एक नया रोमांच भरने वाला था।
मैं आते जाते बार बार उसे इधर उधर छेड़कर निकल जाता, कभी उसके नितम्बों पर हाथ फिराता, कभी उसकी गोलाइयों को सहलाकर निकल जाता, तो कभी योनिप्रदेश को उंगली से छू देता।
शुरू शुरू में तो श्वेता खुद को बचाने का प्रयास करती रही पर धीरे धीरे उसे यह खेल अच्छा लगने लगा।
अब तो वो भी घर का काम करते-करते बीच बीच में मुझे को छेड़ने का प्रयास करती, बीच बीच मेरे खूंटी से तने लिंग को पकड़ कर मरोड़ भी देती, अंडकोष सहला देती।
ऐसा करते करते शायद वो ही बदन में गर्मी महसूस करने लगी, उसने मुझे पकड़ कर सोफे पर लिटा दिया और जोर जोर से मेरा लिंग सहलाने लगी।
मैं तो आज पूरा मजा लेने के मूड में था और तुरन्त सोफे से उठकर श्वेता से दूर हटते हुए बोले- ना जान, तू अभी से चुदवाने के चक्कर में लग गई? कुछ देर रूक देखते हैं कि हम दोनों में से कौन खुद पर ज्यादा नियंत्रण कर सकता है।
मुझे अपनी पकड़ से छूटते देख श्वेता तो चेहरा देखने लायक था, ऐसा लग रहा था जैसे शेर के हाथ शिकार आने के बाद निकल गया हो।
पर मेरी चुनौती सुनकर श्वेता ने भी खुद पर काबू किया और मन ही मन सोचा होगा- ठीक है बच्चू!!!!! अब जब तक तुम गिड़गिड़ा कर मेरे सामने नहीं आओगे मैं भी कुछ नहीं देने वाली।
हम दोनों का ही एक दूसरे को यूं छेड़ना बदस्तूर जारी था।
रात को जब श्वेता खाना बना रही थी तो मैं उसके पीछे गया और उसे वहीं दबोच लिया, अपना पूरा बदन उसके बदन से रगड़ने लगा।
श्वेता भी समझ रही थी कि अब मेरे के लिये रूकना मुश्किल होने लगा है पर अब वो भी मुझे तड़पाना चाहती थी।
मैं बेवकूफ श्वेता के दिमाग में चल रही शैतानी को समझ नहीं पाया।
‘आहहह हहहह…’ श्वेता जानबूझ कर मुझे बदन से बदन रगड़ने का मौका दे रही थी।
ईसस्स… मेरा अपने हाथों से श्वेता के मोटे स्तनों का मर्दन, उनको सहलाना और उनकी घुण्डियों को मरोड़ना कितना सुखदायक लग रहा था।
अब श्वेता मेरे साथ खेल खेल रही थी, वो मुझे कुछ देर तड़पाकर मेरे पास से हट जाती पर मैं भी उसके पीछे पीछे वहीं पहुंच जाता।
तभी उसने मुझसे छिटककर दूर होने को कहा तो मैंने भी बोल दिया- जानेमान, आज तुझे ऐसा चोदने वाला हूँ कि तू अगली बार खुद ऐसी चुदाई को बोलेगी।
मेरी ऐसी भाषा सुनकर ही जैसे श्वेता और गर्म होने लगी।
आनन्द इतना जिसको यहाँ शब्दों में ब्यान करना मुश्किल हो रहा है।
हम तो चाह रहे थे कि काश ये समय यहीं थम जाये और जैसा पिछले 3 घंटे से चल रहा है ऐसा ही चलता रहे।
बस अब तो श्वेता ने भी खुद को मेरी की बाहों में समर्पित कर दिया।
मैंने उसे पास की दीवार से सटा दिया और बस उसके बाद तो उफ्फ्फफ्फ…
मैं आज भी उस दिन का वो कामुक उन्माद याद करता हूँ तो मन में एक खुशी की लहर दौड़ जाती है।
उस रात हम सारी रात नहीं सोये, आँखों में नींद थी ही नहीं, मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे श्वेता कोई कामदेवी हूँ और मैं उसका अनन्य भक्त।
पूरी रात में श्वेता ने चार बार 4 बार मुझे अपने भीतर समाने का मौका दिया और हर बार मैंने पिछली बार से ज्यादा आक्रामक होकर मुझ पर वार किया।
पर अन्त में मुझे ही ढेर हो जाना था।
रात की तीसरे पहर तक हम दोनों की कामक्रीड़ा जारी थी, उसके बाद पता नहीं कब हमें नींद आ गई।
सुबह नंगधड़ंग श्वेता ने अपने चूचुकों को मेरे होठों पर रगड़ रगड़ कर ही मुझे जगाया और मैंने एक बार फिर से श्वेता को अपनी बाहों में समेट लिया।
आज भी मेरे लिये वो रात किसी दिवा स्वएप्नस से कम नहीं है।
उसके बाद तो जब भी हम दोनों को मौका मिलता हम दोनों अकेले होने पर घर में नग्न ही रहते और एक दूसरे के साथ पूरी मस्ती भी करते।
कहानी जारी रहेगी।
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