अतृप्त वासना का भंवर-2
(Atript Vasna Ka Bhanwar- Part 2)
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आपने अब तक की कहानी में पढ़ा था सुखबीर की बीवी प्रीति मुझसे सेक्स को लेकर बातें कर रही थी.
मैंने उससे पूछा- क्या पहले भी ऐसे ही संभोग करते थे?
मैंने प्रीति की दुखती रग तो समझ ली थी, पर वो मुझसे इसका समाधान पाना चाहती थी.
अब आगे..
मेरे सवाल पर उसने कहा- हां पर पहले उत्तेजना अधिक होती थी, जिस वजह आनन्द आता था.
मैंने उससे पूछा- क्या तुम दोनों संभोग से पूर्व कोई क्रीड़ा करते हो?
उसने कहा- नहीं.
अब मुझे बात थोड़ी थोड़ी समझ आने लगी थी. उसका पति संभोग तो चाहता होगा, मगर वो रोज रोज के एक तरह से करने से ऊब गया होगा. लगभग मैंने उसकी नस पकड़ ही ली थी.
मैंने उससे फिर पूछा कि क्या कभी उसके पति ने संभोग से पूर्व कुछ और करने की इच्छा जताई?
उसने तब कहा कि हां कुछ साल पहले उन्होंने ब्लू फिल्म दिखाई थी और वैसा ही सब करने को कहा था, पर मुझसे वो सब नहीं हुआ.
मैं समझ गई कि ये मुखमैथुन की बात कर रही है.
तभी उसने खुद ही बता दिया कि वो संभोग पूर्व प्रायः मुख मैथुन करना चाहते थे, पर मैं ही अपनी भागीदारी नहीं दे पाती थी.
मैंने कहा कि तुम्हारी समस्या का हल तो खुद तुम्हारे पास ही था और अब इसे तुम ही ठीक कर सकती हो.
मैंने उससे कहा कि मर्द किसी नकारात्मक व्यवहार से ही इस तरह बदल जाते हैं. अब अगर कुछ ठीक करना है, तो पति का मन फिर से होगा.
उसने तब मुझसे उपाय पूछा तो मैंने उससे कहा कि सबसे पहले तो किसी का रूप ही सब कर सकता है और तुम तो इतनी सुंदर हो कि किसी का भी मन मोह लो, पर पति तुम्हारा एक सा रूप देख ऊब गया होगा. उसे कोई नया रूप दिखाना होगा, जिससे वो तुम्हारी तरफ आकर्षित हो. फिर तुम्हें अपने पति को उकसाना होगा और ये काम तब होगा. जब तुम वो सब करो, जो पति चाहता हो.
उसने कहा कि उसका पति तो अब बहाने बनाने लगा है.
मैंने उसे बताया कि जब पति की इच्छा हो, तो तुम अपनी इच्छा उसे बढ़कर दिखाना. फिर जब उसका मन होगा और तुम वो करोगी, जो तुम्हारा पति चाहता है, तो वो दंग रह जाएगा और पक्का तुम दोनों के संबंध बदल जाएंगे.
इस पर उसने पूछा कि ऐसा वो क्या करे, जिससे उसका पति उसकी ओर आकर्षित हो.
मैंने उसे बताया कि पहले अपनी वेशभूषा बदलो और रात में सोने के समय कुछ ऐसा पहनो, जिससे उसकी कामुकता झलके. क्योंकि उसी से तो मर्द ज्यादा आकर्षित होते हैं.
इसके बाद मैंने फ़ोन पर उसे कुछ ब्रा, पैंटी और नाइटी के डिजायन दिखाए और उसे खरीदने को कहा.
उसे खुद भी वो ब्रा और पैंटी बहुत पसंद आए, पर वो इस तरह के कपड़ों को अपने पति के सामने पहनने में शर्मा रही थी.
मैंने उससे कहा कि कम से कम पति के सामने तो लज्जा त्याग दो और जैसा वो कहे, वैसा करो. अगर तुमने उसे खुश किया, तो वो बदले में तुम्हें भी खुश रखेगा.
मैंने उसे सुझाव दिया कि ये सब कुछ करने से पहले अपने पति से खुल के बात करो और अपनी इच्छाएं बताओ. तुम खुद भी पति की इच्छा को जानो.
वो मुझे बड़े ध्यान से सुन रही थी.
उसको मैंने बताया कि ये सब एकाएक न करना वरना पति को शंका होगी कि अचानक क्या ये हो रहा है. इसलिए धीरे धीरे बातें करते हुए बात को आगे बढ़ाना.
इतनी सारी बातें करके वो चली गयी और मैं अपने कामों में लग गयी.
अगले दिन शाम को मैं पति के साथ बाजार गयी थी, मुझे खुद के लिए कुछ कपड़े लेने थे.
मैंने देखा कि वहीं प्रीति और उसका पति सुखबीर भी थे. वहीं मुझे पता चला कि मेरे पति और सुखबीर दोनों में अच्छी मित्रता है. जब मेरे पति को पता चला के प्रीति से मेरी मित्रता है, तो सुखबीर के साथ गपशप करने लगे और हम दोनों को खरीददारी करने छोड़ दिया. मैं नए ब्रा और पैंटी लेने गयी थी और मेरी पसंद देख प्रीति ने भी मुझसे सुझाव माँगा कि वो अपने लिए किस तरह के ले.
मैंने उसकी शरीरिक बनावट देख कर उसके लिए ब्रा और पैंटी निकलवाये. मैंने उसे पतली डोरी वाली पैंटी दिलवाई क्योंकि उसके चूतड़ और जांघें बहुत अच्छे आकर में सुडौल थे. इस तरह के ब्रा पेंटी दिलाए, जिसमें उसकी केवल योनि ही ढकी रहे. मर्दों को तो ऐसे सुडौल और गोल चूतड़ खुले ही ज्यादा आकर्षित करते हैं. मर्द अधिक जब कामुक तब होते हैं, जब उन्हें ललचाया जाए. उसके स्तन भी बहुत अच्छे आकर में थे, इसलिये उसे ऐसी ब्रा लेने को कहा, न केवल जो पारदर्शी हो, अपितु स्तनों को सही जगह रखे.. न कि झूलते और लटकते दिखाए.
उमरदराज और अनुभवी मर्द ऐसी औरतों को ज्यादा पसंद करते हैं, जो न तो अधिक उम्र की हों और न कम उम्र की. जिनके शरीर ढीले ढाले नहीं, बल्कि थोड़ा सख्त दिखें. ये सारी चीजें प्रीति में थीं, केवल उन्हें निखारे जाने की आवश्यकता थी.
हम अपनी खरीदारी कर वापस लौट आए. दुकान से बाहर निकलते समय मैंने ध्यान दिया कि सुखबीर मुझे कुछ अलग नजरों से छुप छुप कर देख रहा था. उसकी नजरों में कुछ अजीब सा था, जो मेरा ध्यान उसकी ओर खींच रहा था.
अगले दिन प्रीति से फिर मुलाकात हुई, मैंने उससे पूछा- क्या हुआ?
उसने मुझे बताया कि वो धीरे धीरे समय के अनुसार थोड़ा थोड़ा बात छेड़ने का प्रयास कर रही है. उसकी बातों में मुझे असंतुष्टि और निराशा सी दिखी. मैंने उसे फिर से प्रोत्साहन देना शुरू किया कि अपनी व्यवहारिक जीवन बचाना है, तो प्रयास करते रहना पड़ेगा.
मैंने उसे समझाना शुरू किया कि उसके जीवन में इतना परिवर्तन, उसकी शारीरिक रूप रेखा से नहीं, बल्कि खुद उसी के नकारात्मक व्यवहार से आया है. अब इसे खुद ही सुधारना पड़ेगा.
प्रीति को मैंने बोला कि उसके पति का तुम से विश्वास उठ गया है कि तुम किसी तरह का अनोखी या प्रभावशाली रतिक्रिया कर सकती हो.
प्रीति की छवि सुखबीर के मन में एक ठंडी महिला की बन गयी थी और अब अगर उन्हें अपनी पुरानी मस्ती भरी जिन्दगी फिर से जीनी है, तो प्रीति को उस छवि को बदलना पड़ेगा.
मेरी सारी बातें सुनकर प्रीति संतुष्ट और उत्साहित सी दिखी और अब उसने ठान लिया कि वो अपने पति का मन बदल देगी.
हमारी रोज भेंट होती और मैं उसे रोज अपने पति को रिझाने का कोई न कोई तरीका बताती. पर एक महीना होने को आया, किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं दिख रहा था.
मुझे यहां आए 3 महीने हो गए थे और अब तो प्रीति और सुखबीर से निरंतर बातें होने लगी थीं. पर हर बार मैंने ध्यान दिया कि सुखबीर मेरी ओर बड़ी आशा से देखता, जो मुझे बैचैन कर देता. मैं बात समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्यों वो मुझे ऐसे देखता था और न ही मेरी हिम्मत होती थी कि उससे कोई सवाल पूछूं.
हमने एक दूसरे के फ़ोन नंबर ले लिए थे और जरूरत के अनुसार बातें भी होती थी. कोई किसी तरह से शक न करे इसलिए मैंने प्रीति और अपने पति को बता दिया था कि सुखबीर के पास मेरा नंबर है और उसका नम्बर मेरे पास है.
फिर एक हफ्ते के बाद प्रीति ने मुझे बताया कि उसके पति ने आज संभोग किया और प्रीति ने भी उसे अपनी संगत दी, जिससे अन्य दिनों के बराबर थोड़ा फर्क पड़ा.
मैंने उससे कहा कि और प्रयास करो कि वो हर दिन करने को आतुर हो. मैंने उसे और रिझाने का सुझाव दिया. उससे कहा कि संभोग से पूर्व वो खुद ही आगे बढ़े और रतिक्रिया की शुरुआत करे.
प्रीति ने मेरी बात मान तो ली, पर मुझे लग रहा था कि अभी इतनी जल्दी कोई हल नहीं निकलने वाला है.
ठंड का महीना था जैसी नाइटी, पैंटी और ब्रा उसने ली थी, इस मौसम में उसे पहनना संभव नहीं था और सुखबीर को शक भी होता. इसलिए मैंने उसे किसी भी तरह के जल्दबाज़ी से रोका.
इधर मैं भी अपने मित्रों को एडल्ट साईट में देख और बातें कर कभी कभी उत्तेजित हो जाती और संभोग की कमी महसूस करती, पर मेरे लिए ये सब कुछ फिलहाल सपने की तरह था. सब पति पर निर्भर करता था. इस नए शहर में किसी मित्र को बुला कर जोखिम भी नहीं उठा सकती थी, क्योंकि भले मैं नई थी, पर पति काफी दिनों से थे, तो कौन कहां पहचान ले, इस बात का क्या भरोसा था.
इसी बीच एक दिन मेरे वाट्सअप पर सुखबीर ने एक संदेश सुप्रभात लिखा हुआ एक फोटो के साथ भेजा. मैंने उसका कोई उत्तर नहीं दिया, पर मेरे मन में भ्रम पैदा कर गया.
मैंने कुछ ज्यादा सोचने से खुद को रोका और अन्य दिनों की भांति ही उससे अगले दिन मिली, बातें की और दूध लेकर चली आयी.
इसी बीच मैं प्रीति से उसके संबंधों के बारे में पूछा, तो वो कहने लगी कि अभी भी वैसी ही स्थिति है.
मैंने उसे प्रयास करते रहने को कहा.
और इधर सुखबीर ने मेरे वॉट्सएप्प पर संदेश भेजने अधिक कर दिए. पहले एक दो दिन तो केवल सुबह संदेश भेजता था, पर देखा, तो अब रात सोने से पहले भी आने लगे. एक हफ्ता बीतने के बाद एक दिन मैंने भी उसे उत्तर दे दिया. इसके बाद तो जैसे वो शुभचिंतक ही बन गया. रोज मुझे कोई न कोई संदेश भेजता.
धीरे धीरे ‘पति आए.. कि नहीं आए..’ पूछने के बहाने उसने वॉट्सएप्प पर बातें शुरू कर दीं.
करीब करीब एक महीने के बाद हम दोनों में काफी बातें होने लगी. पर सुखबीर कहीं न कहीं से बात शुरू कर अपनी पारिवारिक जीवन की बातें करने लगता. कभी कभी मैं भी उसे अपने पारिवारिक जीवन के बारे में बता देती. पर मैं हमेशा यही प्रयास करती कि उसे किसी प्रकार प्रीति की भावनाएं समझाऊं, पर उससे खुल कर कह भी नहीं सकती थी.
धीरे धीरे हम दोनों खुलने लगे थे और मुझे प्रीति की चिंता होती थी, इसलिए जहां एक तरफ प्रीति को सुझाव देती, वहीं दूसरी तरफ खुद से भी प्रयास करती कि सुखबीर, प्रीति की भावनाएं समझ जाए.
एक दिन प्रीति ने झल्लाकर मुझसे कह दिया कि सब प्रयास करना बेकार है.
जब मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ?
तो उसने बताया के कल रात हम दोनों ने संभोग किया, पर मैं असंतुष्ट रह गयी.
जब मैंने पूरी बात पूछी, तो पता चला कि शुरुआत तो लगभग ठीक की दोनों ने आलिंगन और चुम्बनों के साथ और काफी देर तक ये सब किया. फिर सुखबीर ने मुख मैथुन की इच्छा प्रकट की. पर प्रीति को इन सब में घिन आती थी, तो सुखबीर ने ज्यादा दबाव नहीं दिया.
संभोग में सुखबीर पहले झड़ गया और प्रीति असंतुष्ट रह गयी. दोबारा भी प्रीति ने संभोग की इच्छा जताई और सुखबीर को उत्तेजित करने का प्रयास किया, पर वो यहीं असफल हो गयी.
मैंने उससे कहा- यदि मुख मैथुन करना चाहता था, तो उसमें क्या बुराई है?
पर प्रीति ने कहा- मुझे ये सब अजीब लगता है और घिन आती है.
तब मैंने उसे समझाया कि तेरे पति में कोई कमी नहीं है बल्कि कमी तुम्हीं में है. यदि उसे संभोग की चरम सीमा तक पहुंचाना है, तो खुद सब करना होगा.
उसने मेरी बात मान ली और जैसा मैंने उसे सिखाया, वैसा ही करने का निश्चय किया.
अगले दिन मैं दूध लेने गयी तो सुखबीर के चेहरे पर ताजगी सी दिख रही थी और अन्य दिनों के बराबर उसका व्यवहार बदला बदला दिख रहा था. पर आज भी उसकी नजर से मेरे ढके हुए स्तन, कमर और चूतड़ बच नहीं पाए. चोर नजर से उसने आखिर मेरा सब देख ही लिया. मैं धीरे धीरे समझने लगी थी कि उसके मन में क्या है और इसलिए अब चाहती थी कि किसी तरह प्रीति के साथ इसके संबंध अच्छे हो जाएं.
घर आकर मैंने प्रीति को फ़ोन कर पूछा कि कुछ हुआ या नहीं?
प्रीति पहले तो शरमाई सी बातें करने लगी, फिर जब मैं बेशर्म की तरह बातें करने लगी, तो खुल कर उसने बताया कि रात दोनों ने काफी देर संभोग किया.. और जो सुखबीर चाहता था, वैसा ही उसने किया.
प्रीति ने ये भी बताया कि उसने लिंग चूसने में कोई अच्छा काम नहीं किया क्योंकि उसे सही तरीके से लिंग चूसना आता ही नहीं था … पर प्रयास किया.
दूसरा काम उसने ये किया कि पति की हर बात मानी, पहली बार प्रीति ने भी उसे अपनी योनि चाटने दी और प्रीति को भी ये अनुभव बहुत पसंद आया.
तीसरी बात उसने ये अच्छी की कि सुखबीर के झड़ने के बाद उसे फिर से उत्तेजित किया और पारंपरिक तरीके से बदल कर खुल कर संभोग में भागदारी निभाई.
ये सब सुन कर मैंने उससे कहा कि शायद इसी वजह से उसके पति आज खुश दिख रहे थे और तुम्हें आगे भी इसी प्रकार से प्रयत्न करते रहना होगा.
मुझे भी अब ऐसा लगने लगा था कि अब उनकी समस्या सुलझ गयी होगी.
एक हफ्ते तक दोनों की अच्छी बनी और मुझसे जितना हो सका, मैंने अपने अनुभवों से प्रीति का मार्गदर्शन किया. पर इन सबमें मैंने ये पाया कि सुखबीर की अभिलाषाएं और अधिक हैं, पर प्रीति उसे पूरा करने में असमर्थ थी.
दूसरी तरफ सुखबीर भी प्रीति से अपनी बात का जोर डालने में असमर्थ था. मैंने उसे फिर लिंग चूसने सहलाने और मर्द को जल्दी उत्तेजित करने के जितने तरीके थे, सब बताए.
अगले दिन प्रीति ने खुशी से झूमते हुए मुझे फ़ोन कर सारी बात बताई और कहा कि उसके जीवन में जैसे फिर से जवानी लौट आयी है.
मुझे ये सुनकर अच्छा लगा कि उन दोनों ने रात में काफी देर तक संभोग किया, खुल के बातें की और दोनों पूरी तरह से एक दूसरे को संतुष्ट कर दिया.
मुझे और अधिक खुशी तब हुई कि सुबह उठकर भी दोनों ने पूरी कामुकता और उत्सुकता के साथ संभोग किया. मुझे उस दिन पता नहीं क्यों सुखबीर ने ढेर सारे संदेश भेजे और मैंने भी खुशी से उत्तर दिए.
अगले दिन दूध लेने गयी, तो दुकान बंद थी, घर पर भी ताला लगा था. मैंने प्रीति को फ़ोन लगाया तो फ़ोन नहीं लग रहा था. काफी देर तक प्रयास करने पर दोपहर तक फ़ोन लगा तो प्रीति ने बताया कि वो अपनी बेटी के यहां जा रही है, क्योंकि 2 महीने के बाद उसे बच्चा होने वाला था. उसकी देखभाल के लिए वो लोग उसके ससुराल जा रहे थे.
मैंने भी ज्यादा नहीं सोचा और अपने काम में लग गयी. मैं अपने उसी साइट पर फिर से व्यस्त हो गयी और फिर इसी बीच मेरी गुजरात की सहेली, जिसका वर्णन मैंने अपनी पिछली कहानी में किया था, उससे दोबारा बात शुरू हो गयी. हम दोनों एक दूसरे के संभोग संबंधित बातें साझा करने लगे. उसने बताया कि वो और उसका पति दोबारा मुझसे मिलना चाहते हैं.
मैंने उसे बताया कि फिलहाल अभी कुछ भी संभव नहीं है.
उसने मुझसे कहा कि कुछ नया करने की इच्छा हो रही है.
इन्हीं बातों के साथ हमारी बातें खत्म हो गयी.
इन चार महीनों में मेरा केवल 3 बार पति के साथ संभोग हुआ, पर हर बार मेरी कामाग्नि अधूरी ही रही.
पति से ज्यादा सवाल भी नहीं कर सकती थी और साइट पर दूसरों को देखने सुनने की बीमारी सी जैसे लग गयी थी. जिसकी वजह से मन में काम भावना तीव्र उठती और मेरे पास हसमैथुन के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता.
चार दिन के बाद मैंने दुकान खुली देखी, तो दूध वहीं लेने चली गयी क्योंकि बगल से लेती, तो शायद सुखबीर बुरा मान जाता. दूध लेने के क्रम में उसने सारी बात बताई कि प्रीति फिलहाल 2-3 महीने नहीं आएगी.
मैंने उन्हें अपने पड़ोसी होने के नाते खाने पीने के लिए अपने ही घर में बोल दिया.
उन्होंने कहा कि उसकी जरूरत नहीं है. उसके भाई का घर पास में ही है, वहीं उसकी व्यवस्था है.
शाम को प्रीति को फ़ोन किया तो उसने कहा कि संबंधी के घर है, इसलिए वो यहां खुल कर ज्यादा बात नहीं कर सकती और उसने मुझे सुखबीर का थोड़ा ख्याल रखने बोला.
अगले दिन मेरे पति दो दिन के लिए रामगढ़ चले गए. सुखबीर को पता था कि मेरे पति सुबह ही चले गए, इसलिये जब मैं दुकान पर पहुंची, तो सुखबीर ने तरह तरह से बात करने के बहाने निकाले और करीब आधे घंटे तक मुझसे बातें की.
बातें तो बस बहाने थे, उसकी नजर तो मेरे कपड़ों में छुपे मेरे बदन को टटोल रही थी. मैं उसकी भावना समझ गयी थी, पर पता नहीं क्यों जहां मुझे नाराजगी दिखानी चाहिए थी, वहां मैं कोई भी विरोध नहीं कर पा रही थी.
मैं जल्दी में उससे बात खत्म करके घर चली आयी, क्योंकि ज्यादा देर बात करने पर पता नहीं लोग क्या सोचने लगते. इस जगह, परपुरुष से इतनी देर बातें करने का कोई गलत अर्थ भी निकाला जा सकता था.
उससे कैसे बचूं, मैं दिनभर कभी ये सोचती रही, कभी ये सोचती कि अपने शरीर की प्यास मिटाने का साधन मिल गया. पर मन ऐसे ख्यालों से ये सोच कर कांप जाता, क्योंकि प्रीति मेरी अच्छी सहेली बन चुकी थी और उसके पीठ पीछे ऐसा करना सही नहीं था.
आप अपने विचार मुझे मेल कर सकते हैं.
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कहानी जारी है.
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