पत्नी के आदेश पर सासू माँ को दी यौन संतुष्टि-2
(Patni Ke Aadesh Par Sasu Maa Ko Di Yaun Santushti-2)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left पत्नी के आदेश पर सासू माँ को दी यौन संतुष्टि-1
-
View all stories in series
अपनी पत्नी की मम्मी यानि मेरी सास की अन्तर्वासना के हल के बारे में सोचते सोचते हमें नींद आ गई और सुबह आठ बजे खुली तब मैं जल्दी से उठ कर तैयार होकर ऑफिस चला गया।
साँझ को देर से घर लौटा तो रूचि और सासू माँ के बीच में किसी बात पर बहस चल रहे थी।
जब मैंने उनसे बहस की वजह पूछी तो सासू माँ उठ कर खड़ी हो गई और अपने पहने हुए कपड़ों की तरफ मेरा ध्यान दिलाते हुए मुझसे पूछा– राघव बेटे, मेरे इन कपड़ों में क्या बुराई है?
मैंने जब उनके पहने हुए कपड़ों पर गौर किया तो देखा कि उन्होंने बहुत ही महीन और टाईट ब्लाउज पहना हुआ था जिसमें उनके अड़तीस इंच नाप के उरोज उभर कर बाहर आ गए थे।
उन्होंने बहुत ही छोटा ब्लाउज पहना हुआ था और उस पर उन्होंने लाल रंग की साड़ी नाभि से काफी नीचे बाँध रखी थी जिस कारण उनकी नंगी कमर एवं पेट साफ़ दिखाई दे रहा था।
सासू माँ ने साड़ी कुछ अधिक कस कर बाँध रखी थी जिससे उनके अड़तीस इंच के गोल गोल नितम्ब उभर कर बाहर निकल आये थे।
उनके उभरे हुए वक्ष और नितम्ब तथा उनकी तीस इंच की गोरी तथा मुलायम कमर बहुत ही आकर्षक लग रही थी जिस कारण सासू माँ बहुत ही कामुक दिख रही थी।
सासू माँ का यह रूप देख कर मेरे दिल के एक कोने में उनके उभरे हुए उरोजों तथा बाहर निकले हुए नितम्बों को मसलने एवं दबाने की इच्छा जागृत हो गई।
उस समय सासू माँ अपनी बेटी रूचि से भी अधिक सुंदर, आकर्षक तथा कामुक लग रही थी तथा मैं उनको अपने आगोश में ले कर चूमना चाहता था लेकिन रूचि की उपस्तिथि के कारण अपने पर नियंत्रण रखा।
मैंने सासू माँ के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा– मम्मी, मुझे तो आप इन कपड़ों में फंसे हुए लगते है क्योंकि ये कपड़े कुछ अधिक तंग और छोटे हैं, मेरे ख्याल में इन कपड़ों में तो आपका भी दम घुट रहा होगा।
मेरी बात सुन कर रूचि बोली– मैं भी तो इनको यही कह रही थी कि इन्हें बदल लें।
हम दोनों की बात सुन कर सासू माँ बोली– नहीं ये कपड़े न तो तंग हैं और न ही छोटे हैं। मैं तो इन कपड़ों में अपने को बहुत सहज महसूस कर रही हूँ।
सासू माँ की बात सुन कर रूचि बोली– मम्मी, आप अपने ब्लाउज को तो देखो कितना फंसा हुआ है। आप तो ठीक से सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है।
यह सुनते ही सासू माँ ने कहा– रूचि, क्या बकवास कर रही हो? मैं अभी तुम्हें दिखाती हूँ कि मुझे सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है।
इतना कह कर सासू माँ ने अपने वक्ष पर से साड़ी का पल्लू हटा दिया और एक लम्बी सांस लेते हुए बोली– लो देखो और बताओ क्या दिक्कत?!?
उनकी बात पूरी होने से पहले ही उनके ब्लाउज के सामने लगे सभी बटन कट कट की आवाज़ करते हुए टूट गए और ब्रा में फंसे हुए उनके उरोज ब्लाउज से बाहर निकल आये।
गुलाबी रंग की जालीदार पारदर्शी ब्रा में सासू माँ के उरोज और उनके ऊपर के काले अंगूर जितने मोटे चूचुक बिल्कुल साफ़ साफ़ दिख रहे थे।
मेरे को सासू माँ के वक्ष को घूरते हुए देख कर रूचि उठ कर उनकी साड़ी के पल्लू से उनके शरीर को ढक कर उन्हें खींचते हुए कपड़े बदलने के लिए कमरे में ले गई।
कुछ देर के बाद जब सासू माँ हल्के आसमानी रंग की नाइटी पहन कर कमरे से बाहर निकली तब उनके काले चूचुकों ने घोषणा कर दी कि उन्होंने नाइटी के नीचे ब्रा नहीं पहनी हुई थी।
रात को जब हम खाना खा रहे थी तब सासू माँ का चेहरा उतरा हुआ था, आँखें नम थी तथा वह कुछ भी नहीं बोल रही थी।
वह सिर्फ एक ही रोटी खा कर उठ गई और हमें शुभ रात्रि कह कर अपने बिस्तर पर जा कर लेट गई तब उनकी दयनीय स्थिति देख कर रूचि का चेहरा भी उतर गया।
कुछ देर के बाद हमने कमरे के बाहर सिसकियों की आवाज़ सुनी तब रूचि सासू माँ की देखने के लिए बाहर गई और कुछ ही क्षणों में उन्हें अपने साथ हमारे कमरे में ले आई।
क्योंकि रूचि उनकी दयनीय हालत सहन नहीं कर सकी इसलिए वह उन्हें अपने साथ अंदर ला कर बिस्तर पर बिठा कर पूछा– मम्मी, मैंने तो कुछ कहा ही नहीं है फिर क्या हो गया, अब क्यों रो रही हैं? क्या पापा जी की याद आ रही है?
सासू माँ सिसकती हुई बोली– नहीं, मुझे उनकी याद नहीं आ रही है। मेरे पूरे शरीर में आग लगी हुई है और मैं उसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे अगर जल्द ही यौन सुख नहीं मिला तो मैं पागल हो जाऊँगी। क्या तुम दोनों मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते?
इसके बाद सासू माँ रोने लगी और उनकी आँखों में से आंसुओं की धारा बहने लगी जिसे देख कर हम दोनों के दिल पसीज गए।
रात बहुत हो गई थी इसलिए मैं सासू माँ और रूचि को शयनकक्ष में सोने के लिए छोड़ कर बैठक में रखे दीवान पर सोने चला गया।
सुबह उठ कर रोजाना की दिनचर्या के अनुसार मैं और रूचि तैयार हो कर अपने अपने काम पर चले गए और शाम को देर से घर लौटे।
उस शाम और रात सब समान्य रहा और सासू माँ ने भी कोई ऐसी बात या हरकत नहीं करी।
रात को जब मैं और रूचि सम्भोग करने के बाद अपने को साफ़ करके एक दूसरे के बाहुपाश में लेटे हुए थे तब रूचि ने सासू माँ की दयनीय स्थिति की बात उठाते हुए कहा– राघव, हमारे माता पिता हमारी परवरिश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। हमारी ख़ुशी और सुख के लिए वे सब कुछ करते हैं जिसके लिए उन्हें कितने भी दुख उठाने पड़ते हैं।
बिना रुके आगे बोलते हुए उसने कहा– वह कई बार खुद नहीं खाकर हमें अवश्य ही खिलाते हैं, खुद नया कपड़ा नहीं पहन कर भी हमारे लिए नए कपड़े अवश्य ही लाते हैं तथा कई बार स्थान की कमी होने पर हमारे सोने की वयवस्था करते हैं और खुद जाग कर रात बिताते हैं। हमें खुश देख कर वे खुश तो होते है लेकिन हमें दुखी देख कर वे अपना दुख भूल कर हमें खुश करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।
रूचि की बात सुन कर मैंने कहा– रूचि, तुम जो कह रही हो, वह बिल्कुल सही है इसलिए इतना बड़ा व्याखान मत दो। तुम्हें जो कहना है उसे संक्षिप्त में कह दो।
तब रूचि ने कहा– मैं अपनी मम्मी से बहुत ही प्यार करती हूँ और मुझसे उनकी ऐसी दयनीय स्थिति देखी नहीं जाती है। जैसे मेरी ख़ुशी के लिए उन्होंने बहुत दुख सहा है और बहुत त्याग किये हैं तो क्या हम उनके सुख और ख़ुशी के लिए कुछ दुख सहते हुए कोई त्याग नहीं कर सकते?
मैंने उत्तर में कहा– रूचि, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ कि हमें भी अपने माता पिता के सुख और ख़ुशी के लिए कुछ तो करना चाहिए। तुमने उनसे बात की है और उनके दुख को दूर करने के लिए वे क्या चाहती हैं, जानती हो। इसलिए तुम्ही बताओ कि हम उनके लिए ऐसा क्या कर सकते है कि उन्हें भरपूर सुख और ख़ुशी मिले?
मेरे उत्तर को सुन कर रूचि बोली– अगर मैं उनकी ख़ुशी और सुख के लिए अपना स्वार्थ छोड़ दूँ और तुम थोड़ा अतिरिक्त परिश्रम करने के लिए राज़ी हो जाओ तो रास्ता निकल सकता है।
मैंने पूछा– तुम बात को घुमा कर मत कहो और सीधा सीधा बताओ कि कौन सा स्वार्थ और कैसा परिश्रम?
तब रूचि ने सीधी बात कही– मैं अपने निजी प्रयोग की वस्तु को साझा करने का स्वार्थ छोड़ कर तुम्हें मम्मी को यौन आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करने का अनुरोध करती हूँ। तुम्हें इस कार्य को करने के लिए कुछ अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ेगा और मैं आशा करती हूँ कि मेरी ख़ुशी के लिए तुम इस कार्य में मुझे पूरा सहयोग दोगे।
मैं माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए बोला– रूचि तुम्हारी ख़ुशी के लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है लेकिन मैं तुम्हारे अनुरोध का पालन नहीं कर सकता क्योंकि मुझे सिर्फ तुम्हारे आदेशों के अनुसार ही कार्य करने की आदत है।
मेरी बात सुन कर रूचि थोड़ी गौरवान्वित होते हुए हंसी और बोली– मेरे राजा ऐसा नहीं कहो और अब मज़ाक करना छोड़ कर मेरी बात ध्यान से सुनो, कल रात मैंने माँ से विस्तार से बात की थी, वे चाहती हैं कि आप की मर्ज़ी के सप्ताह में किसी भी दो दिनों और मेरी माहवारी वाले पाँचों दिन आप उनके साथ सम्भोग करके उन्हें आनन्द और संतुष्टि प्रदान करें।
मैंने रूचि से पूछा– तुम क्या चाहती हो?
रूचि बोली– माँ की ख़ुशी के लिए हम जितना वह कह रही हैं उतना तो कर सकते हैं।
मैंने कहा– रूचि, अब मेरे लिए क्या आदेश है?
रूचि ने मेरे मुँह को चूमते हुए कहा– मैं चाहती हूँ कि कल तुम मम्मी को यौन आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान कर दो। मैं मम्मी को इस बारे में बता दूंगी ताकि तुम्हें कोई असुविधा नहीं हो।’
इसके बाद हम दोनों एक दूसरे के बाहुपाश में लिपट कर सो गए।
अगला दिन शनिवार होने के कारण मेरी छुट्टी थी इसलिए मैं काफी देर तक सोता रहा और रूचि रोजाना के समय बुटीक चली गई।
लगभग ग्यारह बजे सासू माँ ने मुझे जगाने के लिए आवाज़ लगाई, लेकिन ना तो मैं उठा और ना ही मैंने उन्हें कोई उत्तर दिया।
तब सासू माँ मेरे पास आई और मेरे कन्धों को पकड़ कर हिलाते हुए कहा– मेरे प्यारे राजकुमार, काफी देर हो गई तुम्हें सोते हुए, ग्यारह बजने ही वाले हैं, अब उठ भी जाओ।
जब मैं नहीं हिला तब उन्होंने झुक कर मुझे चूमते हुए मेरे कान में कहा– उठ कर कुछ खा पी लोगे तभी शरीर में ताकत एवं फ़ूर्ति आ जायेगी और तभी तुम रूचि के आदेश का पालन कर पाओगे।
मेरे कान में सासू माँ की बात पड़ते ही मेरे मस्तिष्क में रात की सारी बाद याद आ गई और मैंने आँखें खोली तो उनको मेरे ऊपर झुके हुए पाया।
उन्होंने झीना सा ढीला ढाला ब्लाउज पहना हुआ था जिसका खुला गला नीचे झुका हुआ था ओर उनके अड़तीस नाप के झूलते हुए उरोजों के दर्शन हो गए।
मैं झट से उठ कर बैठ गया और देखा कि सासू माँ ने नीचे सिर्फ पेटीकोट ही पहना हुआ था क्योंकि उनके नितम्बों की गोलाई से चिपके पेटीकोट पर पैंटी की रूपरेखा दिखाई नहीं दे रही थी।
मैंने सासू माँ से कहा– आप चाय नाश्ता मेज पर लगाओ, मैं तब तक मुँह हाथ धो कर आता हूँ।
मैं बाथरूम से निपट कर आया और सासू माँ के साथ बैठ कर चाय नाश्ता किया फिर बैठक में दीवान पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगा।
कुछ देर के बाद सासू माँ रसोई तथा घर की सफाई करके मेरे पास आई और बोली– मेरे राजा, रूचि कह गई थी कि तुम आज मुझे आनन्द और संतुष्टि दोगे। तुम वह मुझे नहाने से पहले दोगे या नहाने के बाद दोगे या फिर नहाते हुए दोगे?
मैंने उनके प्रश्न के उत्तर में उनसे ही प्रश्न पूछ लिया– आप वह आनंद और संतुष्टि कब लेना चाहेंगी?
उन्होंने तुरंत उत्तर दिया– नहाने के बाद दिया तो जब पसीना आएगा तब फिर से नहाना पड़ेगा। मैं तो चाहूंगी कि तुम वह आनन्द एवं संतुष्टि को नहाने से पहले और नहाते हुए दे दो।
मैंने उनकी बात सुन कर उठ कर उनके पीछे पीछे कमरे में जाते हुए मुस्करा कर कहा– ठीक है चलिए जैसा आप कहती हैं, वैसा ही करते हैं।’
कमरे में पहुँच कर सासू माँ मेरे पास आईं और अपने दोनों हाथों के बीच में मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
मैंने उनको अपना सहयोग देते हुए उनके चुम्बन लिए और होंठों तथा जीभ को चूस कर उनको उत्तेजित करने की शुरुआत की।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
सासू माँ भी मेरे होंठों और जीभ को चूसती रही लेकिन उनके हाथ मेरे लिंग को छोड़ कर बाकी शरीर के कई हिस्सों को सहला एवं मसल रहे थे।
उनकी देखा देखी मैंने भी अपने हाथों का प्रयोग शुरू कर दिया और सबसे पहले उनके नितम्बों को दबाया फिर कमर को सहलाते हुए ऊपर बढ़ा तथा उनके उरोजों पर जाकर रुक गया।
उनके बहुत ही मुलायम, ठोस और मासल उरोज मेरे हाथ में समा ही नहीं रहे थे इसलिए मैं उनके काले अंगूरों जितनी बड़े चूचुकों को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच में लेकर मसलने लगा।
मेरी इस क्रिया से सासू माँ उत्तेजित होने लगी और उन्होंने मेरे लोअर के ऊपर से मेरे लिंग को टटोलने लगी।
जैसे ही उनके हाथ में मेरा लिंग आया उन्होंने उसे मसलना शुरू कर दिया तब मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोल कर उनके उरोजों को मसलने एवं चूसने लगा।
सासू माँ की उत्तेजना जब और भी अधिक बढ़ गई तब उन्होंने मेरे लोअर को नीचे सरका कर मेरे लिंग को बाहर निकाला और उसे हिलाने लगी, जिससे वह सख्त होना शुरू हो गया।
तब मैंने सासू माँ के पेटीकोट के नाड़े को खींच कर उसकी गाँठ खोल दी और उसे नीच गिरा कर उन्हें बिलकुल नग्न कर दिया।
फिर मैं उनके जघन-स्थल पर हाथ फेरता हुआ उनकी योनि तक पहुँच गया और अपनी दो उंगलियाँ उसमें डाल कर अंदर बाहर करने लगा।
जब सासू माँ की समझ नहीं आया कि क्या करें, तब वह बोली– मुझे खड़े होकर थोड़ी असुविधा हो रही है। हमने जो करना है क्यों न हम उसे लेट कर करें?
मैंने उनकी बात मानते हुए उन्हें बिस्तर पर लेटा दिया और खुद पलटी हो कर उनके साथ लेट गया जिससे वह मेरे लिंग को मुँह में ले कर चूसने लगी और मैं उनकी योनि को चाटने अथवा चूसने लगा।
सासू माँ इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि दो मिनट के बाद ही उनका शरीर अकड़ गया और उन्होंने मेरा सिर अपनी जाँघों में दबा कर अपनी योनि में से रस का स्खलन कर दिया।
उनके योनि रस की मात्रा इतनी अधिक थी कि मेरा पूरा मुँह भर जाने के बाद भी उसने बाहर बह कर मेरे मुँह तथा गालों को धो दिया।
इसके पांच मिनट बाद सासू माँ ने एक बार फिर योनि रस का विसर्जन किया जिसे पीने के बाद डकार मारने के लिए मुझे उनसे अलग होना पड़ा।
मेरे अलग होते ही सासू माँ ने भी मेरे लिंग को चूसना बंद कर दिया और पीठ बल सीधा हो कर लेट गई तथा अपनी टाँगें इतनी फैला दी कि उनकी योनि भी अपना मुँह खोल कर मुझे न्यौता देने लगी।
मैं उनकी योनि का न्यौता स्वीकार करते हुए उनकी टांगों के बीच में बैठ गया और अपने लिंग को उनकी योनि के खुले हुए मुँह में रखते हुए जोर से एक धक्का लगा दिया।
धक्का लगते ही मेरे सात इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे लिंग का अगला आधा भाग सासू माँ की गीली और चिकनी योनि में प्रवेश कर गया।
मैंने देखा कि सासू माँ के चेहरे पर कुछ असुविधा की रेखाएँ उभरी लेकिन उन्होंने अपने को सामान्य करते हुए मुस्कराते हुए सिर हिला कर मुझे आगे बढ़ने का संकेत दिया।
अपने लिंग पर सासू माँ की योनि की गर्मी महसूस कर मैं बहुत ही उत्तेजित हो गया और मेरा लिंग लोहे की तरह सख्त होने बावजूद भी फूलने लगा।
मैंने अधिक समय नहीं गवांते हुए एक और धक्का लगा कर अपने पूरे लिंग को उनकी योनि के अंदर पहुँचा दिया।
इस बार योनि के अंदर की सिकुड़ी हुई माँस-पेशियों को धकेलता हुआ जब मेरा लिंग उसमे घुसा तब सासू माँ ने मेरी कमर को कस कर पकड लिया और उनके मुँह से एक आह.. भी निकल गई।
मेरे पूछने पर उन्होंने कहा कि उन्हें आनन्द की पहली किश्त मिली है इसलिए उनके मुख से वह स्वर निकला था।
उसके बाद मैं तेज़ी से अपने लिंग को उनकी योनि के अन्दर बाहर करने लगा और उनके मुँह से लगातार आह.. आह.. का स्वर उनके आनंद का परिचय देने लगा।
उनके साथ संसर्ग करते हुए मुझे दस मिनट ही हुए थे की सासू माँ की टाँगें अकड़ गई और उन्होंने मुझे अपने बाहुपाश में कस कर अपने नाख़ून मेरी पीठ में धंसा दिए।
मुझे जब दर्द का एहसास हुआ तब मैं रुका ही था कि सासू माँ की योनि के अंदर मेरे लिंग को गर्मी महसूस हुई, तब मैं समझ गया कि उन्होंने तीसरी बार रस का विसर्जन किया था।
इस बार हुए विसर्जन के कारण योनि के अंदर बहुत ही फिसलन हो गई थी तथा माँस-पेशियों में थोड़ा ढीलापन आ गया था जिससे मेरा लिंग बहुत ही सहज भाव से उसके अंदर बाहर होने लगा।
उसके बाद जब मैं तेज़ी से संसर्ग कर रहा था तब सासू माँ ने मुझे बहुत ही तीव्र गति से करने के लिए कहा और खुद भी नीचे से कूल्हे उठा कर मेरे हर एक धक्के का जवाब देने लगी।
इस अत्यंत तीव्र गति से संसर्ग करते हुए दस मिनट ही बीते थे तब सासू माँ की योनि की माँस-पेशियों ने सिकुड़ कर मेरे लिंग की जकड़ लिया।
योनि के अंदर हो रही उस जकड़न के कारण मेरे लिंग को बहुत ही रगड़ लगने लगी और मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि चंद क्षणों में सासू माँ की लम्बी और ऊँचे स्वर की सिसकारी और मेरी हुंकार के साथ दोनों के रस का स्खलन हो गया।
मेरी साँसें फूल गई और मैं निढाल हो कर हांफता हुआ सासू माँ के ऊपर लेट गया और वह मुझे अपने बाहुपाश में लेकर चूमने लगी।
उनके मुख से तेजी से निकलती हुई गर्म साँसें यह बता रही थी कि वह भी हांफ रही थी लेकिन प्रेम भाव से वशीभूत होकर वह मेरे मुँह, गालों और होंठों को चूमे तथा चूसे जा रही थी।
पांच मिनट बीतने पर जब मुझे पंखे की हवा कुछ ठंडी लगने लगी तब मुझे ज्ञात हुआ कि मेरा और सासू माँ का पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था।
कुछ क्षणों के बाद जब मैंने अपने लिंग को सासू माँ की योनि से बाहर निकाल कर उनके बगल में लेट गया तब वह उठ बैठी और मेरे लिंग को मुँह में लेकर चाट तथा चूस कर साफ़ कर के वापिस लेट गईं।
एक घंटे तक हम बिना कोई बात किया एक दूसरे से लिपट कर लेटे रहने के बाद सासू माँ बोली– मेरे राजा, तुमने जो आनंद एवं संतुष्टि मुझे आज दी है वह तुम्हारे ससुर जी ने आज तक कभी भी नहीं दे सके। मेरे विवाह के पच्चीस वर्ष बाद ही मुझे यह आनंद एवं संतुष्टि प्राप्त हुई है।
इसके बाद वह उठ कर बाथरूम में चली गई और दो मिनट के बाद ही मुझे आवाज़ लगा कर कहा– मेरे जानेमन, मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ, जल्दी से आ जाओ।
क्योंकि मुझे भी सासू माँ के साथ सम्भोग करने पर एक अलग ही अनुभव हुआ इसलिए मुझे उनके साथ नहाते हुए संसर्ग करने की इच्छा जाग उठी और मैं बाथरूम में चला गया।
वहाँ सासू माँ शावर के पास मेरी इंतज़ार में खड़ी थी और मेरे अन्दर पहुँचते ही मुझे खींच कर शावर के नीचे ले गई और उसे चला कर मुझसे लिपट गई।
पानी की फुहार के नीचे हम कभी एक दूसरे का चुम्बन लेते, कभी हम अपने शरीर को दूसरे के शरीर से रगड़ते, कभी एक दूसरे के गुप्तांगों को मसलते, चूमते एवं चूसते।
मेरी उत्तेजना बढ़ने के कारण जब मेरा लिंग तन कर खड़ा हो गया तब सासू माँ ने झुक कर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी और मैं भी थोडा झुक कर उनके उरोजों से खेलने लगा।
तभी मेरी नज़र उनके पीछे की ओर निकले हुए नितम्बों पर पड़ी और मैंने झट से उनके नितम्बों के बीच में से अपना एक हाथ बढ़ा कर उनकी योनि में उंगली करने लगा तथा दूसरे हाथ से उनकी चूचुक मसलने लगा।
मेरे इस दोहरे आक्रमण से सासू माँ ने तीन मिनट में ही अपने शरीर को ऐंठते हुए अपनी योनि को सिकोड़ लिया और अपने योनि रस से मेरे हाथ धो दिए।
मेरे हाथ में लगे हुए उनके योनि रस को मैंने तुरंत चाट लिया तथा सासू माँ को घोड़ी की तरह झुका कर उनके पीछे से जा कर एक ही धक्के में अपना पूरा लिंग उनकी योनि में घुसा दिया।
अकस्मात् ही पूरा का पूरा लिंग एक ही धक्के में उनकी योनि में घुस जाने से लगने वाली रगड़ के कारण सासू माँ के मुँह से हल्की सी आह.. निकल गई।
उसके बाद मैंने बहुत ही तीव्र गति से संसर्ग करना शुरू कर दिया और पांच मिनट में ही सासू माँ को अपना योनि रस विसर्जन करने के लिए मजबूर कर दिया।
ऊपर से शावर का पानी और नीचे रस से भरी हुई सासू माँ की योनि में से फक फक का स्वर पूरे बाथरूम को बहुत ही रोमांचक बना रहा था।
अगले पांच मिनट के बीतते ही सासू माँ ने बहुत जोर से सिसकारी ली तथा उनका शरीर अकड़ गया, टाँगे कांपने लगी और उनकी योनि ने मेरे लिंग को जकड़ कर निचोड़ना शुरू कर दिया।
कुछ ही क्षणों में ही हम दोनों का रस स्खलित हो गया और सासू माँ की टांगों ने भी जवाब दे दिया जिस कारण वह हाँफते हुए ज़मीन पर बैठ गई।
क्योंकि मैं भी बहुत थक चुका था इसलिए मैं सासू माँ के पास ही ज़मीन पर लेट गया तब उन्होंने मेरे सिर को पकड़ कर अपनी गोदी में रख लिया।
मेरे सिर को सासू माँ की गोदी में रखते ही वह उनके उरोज से टकराने लगा और जब उनके उरोजों की चूचुक मेरे होंठों के छूने लगी तब मैं उनको अपने मुँह में ले कर चूसने लगा।
कुछ देर के बाद हम दोनों ने उठ कर एक दूसरे के गुप्तांगों को धोया और फिर नहा कर बाथरूम से बाहर निकले और कपडे पहन कर अपनी अपनी दिनचर्या में लग गए।
रात को जब रूचि बुटीक से वापिस आई और उसने मुझसे दिन में हुई क्रिया के बारे में पूछा तो मैंने सब बता दिया।
तब उसने मेरे लिंग को बाहर निकाल उसे धन्यवाद करते हुए कस कर चूम लिया।
पिछले दो वर्षों से मैं हर रात रूचि से सम्भोग करता हूँ और शनिवार तथा रविवार की दोपहर को सासू माँ को आनन्द और संतुष्टि प्रदान करता हूँ।
रूचि के माहवारी वाली पांच रातों को मैं उसकी मौजूदगी में ही सासू माँ के साथ संसर्ग कर के उन्हें आनंद और संतुष्टि देता हूँ।
इस बीच सासू माँ कई बार सोमवार से शुक्रवार तक पापा जी के पास अलवर चली जाती थी लेकिन हमेशा शनिवार और रविवार को आनंद और सतुष्टि प्राप्त करने के लिए अवश्य लौट आती थीं।
प्रिय मित्रो, मैं अपने बचपन के मित्र सिद्धार्थ वर्मा का बहुत आभारी हूँ जिसने मेरे द्वारा लिखी जीवन की इस घटना का अनुवाद एवं संपादन करके आप सबके सामने प्रस्तुत किया है।
सम्पादक के शब्द
अन्तर्वासना के प्रबुद्ध पाठको, आपको राघव के जीवन की सत्य घटना पर आधारित यह रचना कैसी लगी इसके लिए आप अपने विचार मेरी मेल आई डी [email protected] पर भेज सकते हैं!
What did you think of this story??
Comments