विवशता

romeomercutio3 2011-08-26 Comments

प्रेषक : रोमियो

नमस्कार यह मेरी पहली कहानी है, अन्तर्वासना पढ़ने से पहले मैं लोगों के मुँह से अवैध संबंधों के किस्से सुनता रहता था, कुछ सच्चे, कुछ झूठे, लेकिन अन्तर्वासना पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि ज्यादातर किस्से सच्चे होते हैं, हो या न हो लेकिन एक बात तो सच्ची है कि मनुष्य के मन में कहीं न कहीं ऐसी बातें तो चलती रहती हैं, तभी तो यह कहानियाँ हैं और एक सीमा एक मर्यादा के बाद सिर्फ एक ही रिश्ता बचता है ‘औरत और मर्द का रिश्ता’ !

आदर्श पर चलना अच्छी बात है लेकिन अज्ञानी होना मूर्खता है।

इस दुनिया में क्या हो सकता है और क्या नहीं, इसकी जानकारी हमें होनी ही चाहिए, तभी हम हमारे सम्बन्धों का निर्वहन ठीक तरह से कर पायेंगे।

खैर जो भी हो, मेरे जीवन में एक घटना घटी, सच्ची है, इसका यकीन आप खुद करेंगे।

मैं नॉएडा में सॉफ्टवेयर इन्जिनीयर हूँ, अपने मम्मी पापा एवं छोटी बहन शीतल के साथ रहता हूँ। मम्मी-पापा ज्यादातर नॉएडा से गाँव आते जाते रहते हैं, क्यूंकि हमारे काफी रिश्तेदार अब भी हमारे पुश्तैनी गाँव में रहते हैं, उन्हें वहीं ज्यादा आनंद आता है।

हमारे ताऊ जी की साली का बेटा महिंदर गुड़गाँव में ही एम आर है, उसका हमारे घर काफी आना जाना है, हम दोनों बहन-भाइयों के साथ काफी जुड़ाव है। चूँकि पुरानी रिश्तेदारियाँ काफी घनिष्ट होती थी, या होती हैं, दूर दूर के लोगों की 8-10 दिन मेहमाननवाजी करना आम होता था, लेकिन अब वो बात नहीं रही, सब व्यस्त हो गए हैं।

महिंदर की मुझसे भी अच्छी पटती थी और शीतल से भी, वो अक्सर कंपनी की गिफ्टें लाता रहता, कभी कभी खाने पीने की चीज़ें, फिर धीरे धीरे मुझे दाल में कुछ काला नज़र आने लगा, उसका कारण मेरी गैरहाजिरी में उसका आना था, मैंने सोचा ऐसा सोचना ठीक नहीं क्यूंकि हम तीनों बचपन से साथ खेलें हैं, मतलब बड़े हुए हैं।

लेकिन फिर भी शक तो शक ही होता है, उसे जितनी जल्दी दूर कर लिया जाए उतना ठीक !

एक दिन मैंने महिंदर की कार को हमारे सोसाइटी की पार्किंग में देखा, यह वक्त शीतल के घर पर अकेले होने का था और मेरे आफिस में होने का ! और अब जैसा समझ आ रहा था कि महिंदर शीतल के पास होगा ही।

कुछ देर मैंने सोसाइटी के क्लब में स्नूकर खेला और महिंदर की गाड़ी पर नज़र रखी। पूरे एक घंटे बाद महिंदर प्रसन्न मुद्रा में मोबाइल की स्क्रीन देखता हुआ नीचे आया, गाड़ी स्टार्ट की और चला गया।

मुझे घर पहुँचने में अभी पूरे 35 मिनट बाकी थे, मैं अपने टाइम पर घर पहुँचा तो शीतल ने 5 मिनट घंटी बजाने पर दरवाज़ा खोला, बोली- आप भी न भैया, मैं नहा रही थी।

मैंने चाय पीते हुए शीतल से पूछा- महिंदर बहुत दिनों से नहीं आया?

तो वह बोली- महिंदर भाई आज ही आये थे, दस मिनट बैठ कर चले गए, कहने लगे, तू पढ़ाई कर, मैं यहाँ से निकल रहा था, सोचा मिलता चलूँ !

शाम को मम्मी-पापा गाँव से आ गए, मैंने बात को ढील दी, मैं दूसरे काम में व्यस्त हो गया, अब एक झूठ तो पकड़ा गया था क्यूंकि महिंदर पूरे एक घंटे तो मेरे सामने ही रुका था, और यह बात भी तय थी कि यह रास लीला बहुत सफाई से काफी लम्बे अरसे से चल रही थी, फिर भी मुझे पूरी सफाई चाहिए थी, फिर मैंने ठान लिया कि मम्मी पापा के गाँव जाते ही अब हकीकत का पता लगा कर ही रहूँगा।

हमारे फ्लैट की दो चाभियाँ हैं, और फ्लैट अन्दर बाहर दोनों तरफ से लाक हो सकता है। एक दिन मैंने योजना बनाई, शीतल से कहा- मैं कंपनी के काम से क्लायंट से मिलने मेरठ जा रहा हूँ, रात नौ बजे तक आऊँगा, तू कॉलेज से आकर घर में ही रुकना, कोई परेशानी हो तो मुझे फ़ोन कर देना या महिंदर को बुला लेना।

मेरा इतना कहने पर शीतल ने भोली सूरत से हाँ कर दी, जबकि उसकी आँखों में खुशी साफ़ दिखाई दे रही थी। फिर वो मेरे रहते कॉलेज चली गई, मैं तैयार होकर बाहर सिगरेट पीकर आया, शीतल को कॉलेज के लिए निकलता देख मैं वापस आया, ताला खोला और स्टोर रूम में जाकर बैठ गया। मेरा मोबाइल ज्यादातर साइलेंट मोड पर ही रहता है।

करीब एक घंटे बाद महिंदर का फ़ोन आया- कहाँ हो यार? चलो आज तुम्हें शालोम (दिल्ली का एक अच्छा रेस्तराँ) में भोजन करवाते हैं। मैंने कहा- मैं तो मेरठ जा रहा हूँ, रास्ते में हूँ, मोदीनगर क्रास कर गया, फिर कभी चलेंगे, और हाँ शीतल आज अकेली है, उधर से निकलो तो थोड़ा ध्यान रखना, घर हो आना।

मेरे फ़ोन काटते ही शीतल घर आ गई, अब में होशियार हो गया, उसके ठीक 30 मिनट बाद दरवाजे की घण्टी बजी, बिल्कुल यह महिंदर ही था। कुछ देर तक कुछ आवाजें ही नहीं आई, फिर मैंने ताक-झाँक शुरू की, बेडरूम की तरफ से गया, परदे के पीछे से देखा कि महिंदर शीतल को पीछे से पकड़े हुए है और उसकी गर्दन चूम रहा है, शीतल का बदन अकड़ता जा रहा है, कह रही थी- बस बस ! अब नहीं आःह्ह्ह !

मेरा दिमाग घूम गया, एकदम चक्कर आ गए, मैं उन्हें रोकने ही जा रहा था कि मेरे मन में ख्याल आया कि अपनी बहन को इस हालत में रंगे हाथों पकड़ूं या नहीं।

तभी महिंदर बोला- आज तो डरने की कोई बात नहीं है, हमेशा की तरह जल्दी नहीं मचाएंगे, दिल से प्रेम रस पियेंगे !

अब रोकने से कोई फ़ायदा नहीं था क्यूंकि शीतल आज कोई पहली बार सम्भोग नहीं कर रही थी।

धीरे धीरे मैं कामुक हो चला, अपने लिंग को वहीं खड़ा खड़ा मसलने लगा, शीतल का टाप उतर चुका था, महिंदर अब उसकी स्पोर्टी ब्रा के स्ट्रिप उतार रहा था, नीली जींस और दूधिया चिकने नंगे बदन पर सोने की चेन में शीतल कोई अप्सरा लग रही थी, यकीन मानो मैंने आज तक किसी जवान लड़की को नग्न अपने सामने नहीं देखा था, ब्ल्यू फ़िल्म दूसरी बात है।

उसके स्तन हल्के पीले थे, उन पर भूरे रंग के निप्पल कुछ लाली लिए हुए थे, महिंदर उन पर अपने उंगलियों के पौर गोल गोल घुमा रहा था, फिर उसने निप्पल को चुसना शुरू किया, शीतल लम्बी लम्बी सिसकियाँ ले लेकर” आह मम्मी अआः ” कर रही थी।

फिर नीचे आकर महिंदर ने उसकी जींस का बटन खोला, शीतल आँख बन्द कर गुस्से वाला चेहरा बना कर खड़ी थी, महिंदर ने उसे पलंग पर बिठा कर जींस नीचे सरकाई और उसकी योनि को मुट्ठी में भींचने लगा, फिर पेंटी उतार कर, शीतल की टाँगें चौड़ी की, शीतल स्पंदन के झटके ले रही थी, फिर योनि की फांकें चौड़ी कर वह मेरी बहन की चूत के अन्दर हल्की हल्की फूंक मारने लगा, हल्की हल्की ठंडी हवा शीतल को मदमस्त कर रही थी, उसकी गरम योनि को राहत मिल रही थी, वो हवा में अपने बालों को झटक रही थी, आँखें बन्द थी, शीतल कोहनियों के बल पलंग पर पैर फैलाये हुई थी, अब शायद महिंदर उसनी योनि को चूसने लगा था।

शीतल पहले तो जोर जोर से सिसकारियाँ भरने लगी, पूरे घर में आवाज गूँज रहीं थी, फिर अपनी कमर को चलाने लगी। तब महिंदर ने योनि में उंगली डाल दी, शीतल ने उसे धक्का दिया, महिंदर ने अपने लिंग निकाल कर शीतल को उलटा किया, घोड़ी बनाया और फिर अपने हाथ की बड़ी अंगुली से उसकी योनि पर थूक लगाया, फिर अपने लिंग पर धीरे धीरे डालते हुए महिंदर पूछ रहा था- जा रहा है? बोल गया?

शीतल हुंह हुंह कर रही थी, अधिक चिकनाई की वजह से लिंग बार बार फिसल रहा था। मैं ऊपर होने के वजह से सब कुछ साफ़ साफ़ देख पा रहा था। बस अब शीतल का चेहरा नहीं दिख रहा था, उसकी योनि थोड़ी थोड़ी दिख रही थी। महिंदर का लिंग पूरा साफ़ दिख रहा था।

शीतल बोली- रुको, मैं ऊपर आती हूँ उस दिन जैसे !

महिंदर चित लेट गया, शीतल ने खुद अपने हाथ से टटोल कर लिंग को योनि में फंसाया और बैठती चली गई। शीतल महिंदर की तरफ झुकी थी, महिंदर कूल्हे उचका रहा था।

दस मिनट बाद दोनों स्खलित हो गए, शायद शीतल तो हो ही गई थी क्यूंकि वो अब अकड़ी हुई सिर्फ महिंदर को रोकने की कोशिश में थी।

फिर दोनों उठे, शीतल की गोरी जांघों पर वीर्य था जो योनि में से रिस रिस कर आ रहा था। आधा घंटा दोनों फिर ऐसे ही पड़े रहे, फिर जाकर नहाये, महिंदर जरूरी काम की वजह बता कर कॉफी पीकर चला गया, शीतल बेडरूम में जाकर सो गई।

जब उसके खर्राटों की आवाज़ आने लगी तो मैं बाहर निकल गया।

दो दिन बाद शनिवार को मम्मी पापा गाँव से वापस आ गए, मैंने इशारों में मम्मी को शीतल और महिंदर के ऊपर शक होने की बात बताई। अगली सुबह पापा का मुँह चढ़ा हुआ था, महीने भर बाद शीतल की शादी का इश्तेहार अखबार में था और उसके चार महीने बाद यानि आज से एक महीने पहले शीतल की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई।

सब खुश थे, महिंदर भी खुश दिखा, शीतल भी ! हालांकि शीतल समझ चुकी है कि मैं सब जानता हूँ, वो अब मुझसे झेंपती है, महिंदर से हमारे सम्बन्ध अब तनाव पूर्ण हैं, अभी चार दिन पहले ही शीतल और हमारे जमाई साहब उसी बेडरूम में जब सो रहे थे तो मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि बताइए ‘यह है दुनिया !’

जब एक सभ्य समाज में आप बर्बर प्रजातियों की तरह अपनी बहन-बेटियों पर हिंसा नहीं करना चाहते तो कम से कम उन्हें संभाल कर रखिये क्यूंकि एक सीमा एक मर्यादा के बाद सिर्फ एक ही रिश्ता बचता है ‘औरत और मर्द का रिश्ता !’

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