पंख निकल आये-2

(Pankh Nikal Aaye-2)

This story is part of a series:

अचानक हवा के जोरदार झोंके से सामने का दरवाजा खुल गया। कमरे में धूप का प्रकाश छा गया। दोनों का ध्यान अंतरात्मा से निकल कर यथार्थ पर जा पहुँचा। उनका मुँह दरवाजे की ओर था। उन्हें ग्लानि भावना ने डस लिया, कहीं कोई बाहर से देख न ले।

अक्षत कन्या संवेदना की देवी होती है, रति छटपटाई, छूटने का प्रयास किया, घबराकर बोली- दरवाजा खुला है! कोई देख लेगा!

रति की छटपटाहट ने रोहित की सम्भोग ज्वाला पर घी का काम किया। उसकी बाँहों में और कसक आ गई। पुरुष को साहसी उद्यमों से वासना का नशा सा हो जाता है। यह सोच कर कि उन्हें यूँ चिपकते कोई देख भी सकता है, रोहित के शरीर से रोमांच की धारा बहने लगी। जितना रति छूटने का प्रयास करती, उतना रोहित उसके शरीर का मर्दन करता।
मानो किसी बालिका को बहला रहा हो, वह बोला- कोई नहीं आयेगा!

रति घबराहट भरी आँखों से खुले दरवाजे के पर ताके जा रही थी। सामने गार्डन में पेड़ों का झुरमुट था। कोई प्रांगण में आये भी तो वह वृक्ष-शृंखला पारदर्शी पर्दे का कार्य करती थी। रोहित ने उसकी घबराहट जान कर उसे अपनी ओर घुमा लिया और कहा- इस तरफ मुँह कर ले, कोई आया तो मैं देख रहा हूँ।

रति ने शतुरमुर्ग की तरह अपना चेहरा रोहित के सीने में छुपा लिया। पुरुष वक्ष से लग कर उसे मदमोहक गंध का आभास हुआ। वह अभी भी घबरा रही थी लेकिन छटपटाहट मंद हो गई। बलिष्ठ पुरुष के सीने से लग कर उसे एक सहारे का बोध हो रहा था। खुले दरवाजे में एक तरह से वह ज्यादा सुरक्षित थी। सोच रही थी, जब तक दरवाजा खुला है, शायद मामाजी एक हद से आगे उसका मर्दन नहीं करेंगे।

रोहित ने पीठ पर हाथ फेरते हुए धीमे से पूछा- तूने ऊपर चोली तो नहीं पहनी, लेकिन नीचे मिनी-लहंगे के अंदर कुछ पहना भी है या नहीं?
यह प्रश्न सुन कर रति की लज्जा बढ़ गई।
कुछ देर चुप्पी के बाद वह बोली- जी मामाजी, पेंटी पहनी है।

अब तक रोहित का एक हाथ नीचे सरक कर रति की गांड तक पहुँच गया। उस हाथ से बचने के लिए रति ने नितंब सामने को लचकाए। रोहित का वज्र उसकी नाभि के नीचे वर्जित क्षेत्र में जा टकराया। रोहित का दूसरा हाथ उसकी संकरी कमर में कसा हुआ था। रति ऐसे चिपकी हुई थी, जैसे जंगली लता किसी बड़े वृक्ष पर लिपटी हो।

रोहित ने रति के माथे पर पुचकारते हुए, उसका स्कर्ट थोड़ा ऊपर को खिसका दिया। रोहित का हाथ अब उसकी पिछली जांघों पर था। किसी पुरुष का नग्न-जांघों में पहला-स्पर्श पा कर रति के रोमांच एवं भय का पारा एक साथ चरम बिंदु तक जा पहुंचा। वह आगे बढ़ने के लिए मना करना चाहती थी, लेकिन भावावेश में उसकी आवाज ही गुम हो गई। उसका जबड़ा खुला, लेकिन आवाज न निकल सकी। अब तक रोहित के पंजे और ऊपर को खिसक आये, वह और विवश हो गई।

रोहित आश्चर्य-चकित हुआ, उसे चड्डी की अपेक्षा थी, लेकिन उसके हाथों ने नग्न त्वचा का स्पर्श किया।

‘नीचे तो तूने कुछ नहीं पहना है, तेरी पेंटी कहाँ है?’ तनिक गुस्सैली आवाज में उसने पूछा।

रुआंसी आवाज में रति ने उत्तर दिया- जी मामाजी, मैंने जी-स्ट्रिंग पेंटी पहन रखी है।

रोहित को अपने सामान्य ज्ञान पर संदेह हुआ कि भला यह जी-स्ट्रिंग कहाँ की बला है। उसने अपना हाथ दोनों चूतड़ों पर फिरा कर जान लिया कि रति ने पेंटी पहनी जरूर है, लेकिन इसका पीछे वाला भाग केवल एक स्ट्रैप मात्र है जो उसकी गांड-दरार में जा घुसा था।
अब दूसरा हाथ भी नीचे सरका कर, रोहित ने दोनों नग्न ग्लोब दबोच लिए। उनका मर्दन करते हुए पूछा- ये सेक्सी चीज तुझे मिली कहाँ से?

सीने पर सिर झुकाये, पीछे से झटके सहते हुए वह बोली- जी, मेरी एक सहेली ने बर्थडे गिफ्ट दी है।

‘तूने कभी सोचा, बाहर इतनी हवा चल रही है, तेरी स्कर्ट उड़ेगी तो सब तेरे नंगे चूतड़ देखेंगे। तुझे अपना नंगा-नंगा दिखने में मजा आता है क्या?’ उनकी आवाज में थोड़ा गुस्सा था।

रोते हुए रति ने कहा- मैं कपड़े बदल लूंगी, मामाजी, प्लीज़ बस मम्मी को मत बताना।’
रति को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने पहले क्यों नहीं सोचा कि आज तेज हवा है।

रति को सताते में रोहित को मजा आ रहा था, तनिक प्यार से पूछा- कैसे रंग की है तेरी पेंटी?
‘जी लाल रंग की, मामाजी।’
‘तुझे मालूम है कि लाल रंग कितना भड़काऊ होता है? कोलेज में लड़के देखेंगे तो तेरे पीछे सांड की तरह पागल हो जायेंगे।’ रोहित की आवाज में समझाने वाला प्यार छुपा था।

रति की हिम्मत बढ़ी- जी मामाजी, लेकिन वो तो स्कर्ट से ढकी रहेगी न?

मामा ने चूतड़ पर एक प्यार भरी चपत लगाई, उसके लहजे की नक़ल करते हुए बोला- लेकिन इतनी हवा में तेरी मिनी-स्कर्ट बार-बार उड़ेगी न!
रति को अपनी गलती का अहसास हुआ, वह चुप रही।

रोहित ने अब एक हाथ सामने ला कर रति की ठोड़ी पकड़ी, मानो किसी बालिका को डांटना चाहता हो। रति ने निरीह आँखों से मामा की ओर देखा। उसके अबोध चेहरे को देख रोहित का रोमांच बढ़ गया। उसने अपने होंठ रति के रसीले गुलाबी अधरों पर धर दिए।

चकित आँखों से मामा कि काम-उत्तेजित आँखों में झांकते हुए रति फिर भय व आश्चर्य के मिले जुले भावों से भर गई। उसके अक्षत अधरों में कोई हलचल नहीं हुई। रोहित ने भी कोई हलचल नहीं करी, बस बहुत देर तक होंठ से होंठ मिलाये रखे।
कुछ क्षणों बाद रति की चेतना लौटी। उसने छटपटाकर मामा से अलग होने का प्रयास किया।
रोहित ने अधरपान रोक कर रति की आँखों में झाँखा। उसकी आँखों में अज्ञात भय था और प्रश्न भी। प्रश्न ऐसा, जैसे कोई छात्रा अपने गुरु जी से नए आयाम के बारे में कुछ जानना चाहती हो। फिर उसकी आंखें स्वतः लज्जा से झुक गई।

रति को सँभलते देख, रोहित ने अपने होंठ फिर उसके अधरों से लगा दिए। अब उसका सिर पीछे से दबोच लिया।
रति ने आंखे झुकाये-झुकाये छटपटाकर छुटना चाहा, लेकिन रोहित की मजबूत पकड़ के चलते वह विवश रही।
इस बार रोहित ने अपने होंठों में हल्का सा कंपन किया।
अपने अछूती पंखुड़ियों पर पहली बार पुरुष-अधर चुम्बन पा कर, रति के सारे शारीर में सम्भोगाग्नि छा गई। वह सुध-बुध खोकर अपने मामा के आलिंगन-चुम्बन में अमृत-तुल्य सुख का आस्वादन करने लगी।

रोहित फिर अलग हुआ। वह लगातार रति के भावो को पढ़ रहा था। रति की अर्ध-मुंदी आंखें खुली। उसने मामा को प्रश्न व कामोत्तेजना की चमक से निहारा। मानो पूछना चाह रही थी कि क्या उसकी जन्मों की प्यास यूँ ही अधूरी रह जायेगी।

कामाग्नि से दमकते चेहरे पर छाए भोलेपन को देख, रोहित की पुरुष-वासना फिर भड़की। उसके लंड में एक लचक आई, जिसे रति ने अपनी योनि पर महसूस किया। रति का चहरा सुर्ख लाल हो रहा था। रोहित ने अपने हाथ उसके गालों पर रखे तो वो ऐसे गर्म थे मानो बुखार छा गया हो। गालों पर खुदरेले पंजों का प्रथम-स्पर्श पाकर रति फिर से तड़फने लगी।

तेजी से अपना मुँह सामने लाकर रोहित ने अपने होंठों से रति के दोनों होंठ ऐसे मर्दन करने शुरू कर दिए जैसे कोई भूखा बालक रसीले संतरे की फांकें चूस रहा हो।

इस बार रति के शरीर से गुजरे करेंट का झटका उसके योनि-द्वार तक पहुँचा। ऐसा अनुभव रति को पहले कभी नहीं हुआ था। जब रोहित ने उसके चूतड़ों को अपने हाथ से दबाया, तो इस बार रति को लगा कि उसकी मुनिया, मामाजी के मुन्नेराम से टकराने के लिए लालायित हो रही है। एडियो के बल वह थोड़ा उचक गई। रोहित का खड़ा टट्टू सीधे रति की अछूती मुनिया पर जा टकराया।

अब दोनों को खूब मजा आ रहा था, मानो स्वर्ग का आनन्द भूलोक पर आ पहुंचा हो। इन क्षणों में उन्हें यह भी परवाह नहीं थी कि सामने का दरवाजा निर्लज्ज खुला हुआ है। बल्कि यह अहसास कि कोई उस लता-वृक्ष रूपी आलिंगन को छुप कर देख रहा होगा, उनकी वासना को और भड़का रहा था।

रोहित ने अपनी जीभ होंठों की लक्ष्मण-रेखा पार करके आगे बढ़ाई तो किसी अनुभव-हीन बालिका की तरह, रति ने अपने दांत भीच लिए। रोहित ने तनिक जोर लगाया कि वह उसकी दन्त-शृंखला पार कर सके, लेकिन उसने दांत भींचे रखे।

रोहित ने अचानक रति कि गुदगुदी गांड पर तीन-चार चपत मारे। इस अकस्मात प्रहार से घबराकर उसकी जंगली चीख निकली- उईई!

फुसफुसा कर रोहित ने कहा- अपने दांत खोल, दांत ढीले कर!

रति ने ज्यों ही जबड़ा ढीला किया, रोहित के चपत बंद हो गए। रोहित की जीभ अब बिल में घुस कर अपना शिकार ढूंढ रही थी। रति बचने के लिए अपनी जिह्वा पीछे किये जा रही थी। लेकिन वह भला कहाँ तक बचती। अंततः मिलन हो ही गया।

अब रति के सामने समर्पण के सिवा और कोई रास्ता नहीं रह गया। मामा उसकी जिह्वा से खेलते रहे, वह एक मोम की गुड़िया की तरह पिघलती रही। उसके सारे काम-अंगों से अमृत-रस की धारा बह-बह कर एक बिंदु में केंद्रित होने लगी। उसे लगा जैसे उसकी योनि की गहराई में नए-नए स्रोत फूट रहे हों।

अक्षत कन्या के लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था। सारा शरीर एक सुखद अनुभूति से भरे जा रहा था। उसके जेहन में तरह-तरह के भाव आ रहे थे, जिनसे वह विवश सी थी। अपने अनुभवी नायक के अधीन हो जाने के सिवा उसके पास और कोई विकल्प न रह गया। रति को अपने आगोश में ढला जान रोहित ने अधर-चुम्बन को तनिक विराम दिया। रति की आँखों में समर्पण के भाव स्पष्ट दिख रहे थे।

रोहित उसे और विचलित करना चाहता था, उसने कहा- देखें तो, तेरी पेंटी कितनी सेक्सी है?

यह सुन कालेज-गर्ल फिर शरमा गई, उसके चेहरे में फिर लालिमा उभरी, उसने मामा की आँखों में झाँखा, वहाँ शरारत चमक रही थी। रति ने बिना कुछ कहे आंखें झुका ली।

रोहित ने घुटनों के बल झुक कर उसका मिनी-लहंगा ऊपर उठाया। कोई पुरुष पहली उसके सामने घुटने टेक, उसका स्कर्ट उठा कर नीचे छुपा खजाना देख रहा है! यह जान रति का रोमांच और बढ़ गया।पुरुष पर उसे अपनी शक्ति का आभास भी हुआ। उसकी टांगों में कंपन होने लगा। सहारे के लिए उसने मामा के सिर पर हाथ रख दिया। मानो, पहली बार किसी अप्सरा-कन्या ने, किसी नायक-पुरुष को इस अवस्था में छुआ हो। यह अनुभव उसके रोमांच को हिम-शिखा तक पहुंचा रहा था।

रति की चिकनी जंघाएँ देख कर रोहित की प्यास बढ़ चली। स्कर्ट के नीचे वह लगभग नग्न ही थी। जी-स्ट्रिंग उसकी नन्ही पिंकी को ढकने का असफल प्रयास कर रही थी। शायद उसके रोम नहीं आये थे क्योंकि बिना शेविंग के भी वह मक्खन समान थी।

मिनी-लहंगे के नीचे अपना सिर घुसा कर रोहित ने रति की जंघाओं को हल्का सा चुम्बन दिया। चूत के इतने पास चुम्बन पा कर रति फिर भय, आश्चर्य एवं रोमांच के मिले-जुले भावो से भर गई।

नारी-लज्जा वश उसने पीछे हटने का प्रयास किया, लेकिन तनिक डाँटते हुए रोहित ने कहा- हिल मत, एक जगह खड़ी रह!
डर कर वह किसी अनुशासित छात्रा की तरह अविचल खड़ी रही।
रोहित ने अपने पंजे रति के नग्न चूतड़ों पर कस दिए और अपने अधर जी-स्ट्रिंग के पीछे छुपी पंखुड़ियों पर!

उस स्पर्श के अनुभव से रति की आंखें फट चली। वह मिनी-लहंगे के नीचे छुपे मामा के सिर को ताके जा रही थी। एक बार को तो उसने पीछे दुबक जाने की सोची, लेकिन फिर मामा के आदेश को याद कर वह अविचलित खड़ी रही।

थोड़ी देर बाद रोहित के होंठों में हलचल हुई। उसे लगा कि मामा उसकी पंखुड़ियाँ होंठों से हौले-हौले चबा रहे हैं। यह जान रति का चेहरा घोर लज्जा से भर उठा। उसका शरीर रक्त संचार से इतना गरम हो गया, मानो बुखार छा गया हो। योनि की गहराई में स्रोते फूटने लगे।

एक सेक्सी सीत्कार के साथ रति ने अपने हाथों का दबाव मामा के सिर पर बढ़ा दिया। न चाह कर भी वह अब उनके सिर को धीरे-धीरे गाईड करने के लिए विवश हो चली थी। जैसे जैसे रति रोहित का सिर हिलाती, वैसे वैसे ही रोहित उसके नितंबो को हिलाता। उसकी योनि से मदमोहक सुगंध आ रही थी, जो रोहित को पागल किये जा रही थी।

किसी अक्षत कन्या को वश में करने के लिए पहले दिन इतना ही सब काफी था। ज्यादा कुछ करने से वह बिदक भी सकती थी। रोहित उसे खोना नहीं चाहता था। उसे यह डर था कही दोबारा लौट कर नहीं आई तो उसके साथ प्रथम-संगम का सपना, केवल सपना बनकर रह जायेगा। लेकिन अक्षतयोनि कि नशीली सुगंध के सामने वह विवश था। वह खुशबू उसकी प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति कर रही थी। कुछ देर और वह यूँ ही मिनी-लहंगे के नीचे मुँह घुसाये लगा रहा।

अंततः वह खड़ा हुआ और रति की आँखों में झाँका। उसकी आँखों में मासूम समर्पण था, मानो वह श्रेष्ठ शिष्या की तरह अगले पाठ के लिए भी तैयार हो। एक झटके से उसे अपने सीने से लगा कर, रोहित ने प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा। फिर फुसफुसाकर बोला- तू बहुत अच्छी लड़की है। तेरी यह ड्रेस ठीक-ठाक है, तू इसमें कालेज जा सकती है। चल मैं तुझे छोड़ आऊँ!’

‘ठीक है मामा जी, चलिए मैं तैयार ही हूँ!’ वह बोली।
रोहित ने उसके दोनों गालों को अपने हाथो में लेकर कुछ देर तक निहारा। फिर प्रबल अधर-पान करने लगा। अब वह भी निपुण हो चली थी, उसके भी होंठ मचलने लगे। इस बार उसकी जीभ, होंठों की लक्ष्मण-रेखा पार कर रोहित की जिह्वा खोज रही थी। समय गुजरे जा रहा था। विवश होकर वे एक दूसरे से अलग हुए, और दरवाजा भेड़ कर मोटर-सायकिल की ओर बढ़ चले।

रोहित की बाइक पर वह पहले भी कई बार सवारी कर चुकी थी, लेकिन आज कुछ अलग-अलग लग रहा था। मामाजी की पीठ से चिपक कर आज लगा मानो पहली बार अपने नायक से यूँ चिपक कर बैठी हो। लज्जा भी आ रही थी और रोमांच भी हो रहा था।

कुछ देर में वे कॉलेज पहुँच गए। रोहित ने पूछा- आज कितनी देर का फंक्शन है, मैं लेने आ जाऊँगा!

‘जी मामाजी, दो घंटे में खत्म हो जायेगा, आप बारह बजे तक आ जाइयेगा, मैं यहीं मिलूंगी!’
‘ठीक है, फिर हम शॉपिंग को चलेंगे। मैं भी तो तुझे कुछ बर्थ-डे गिफ्ट दिलाऊँ!’ तनिक शरारती अंदाज में रोहित ने कहा।

मुस्कुराकर रति ने अपनी आंखें नीचे झुका ली। फिर पलट कर दौड़ते हुए अपनी सहेलियों के बीच चली गई।
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