कमाल की हसीना हूँ मैं -9
(Kamaal Ki Haseena Hun Mai-9)
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शुरू-शुरू में तो मुझे बहुत शर्म आती थी। लेकिन धीरे-धीरे मैं इस माहौल में ढल गई। कुछ तो मैं पहले से ही चंचल थी और पहले गैर मर्द, मेरे ननदोई ने मेरे शर्म के पर्दे को तार-तार कर दिया था। अब मुझे किसी भी गैर मर्द की बाँहों में जाने में ज्यादा झिझक महसूस नहीं होती थी।
जावेद भी तो यही चाहता था। जावेद चाहता था कि मुझे सब एक सेक्सी-हॉट औरत के रूप में जानें।
वो कहते थे कि जो औरत जितनी फ़्रैंक और ओपन माइंडेड होती है, उसका हसबैंड उतनी ही तरक्की करता है। इन सबका हसबैंड के रेप्यूटेशन पर और बिज़नेस पर भी फ़र्क पड़ता है।
हर हफ्ते एक-आध इस तरह की गैदरिंग हो ही जाती थी। मैं इनमें शमिल होती लेकिन किसी गैर मर्द से जिस्मानी ताल्लुकात से झिझकती थी। शराब पीने, नाच गाने तक और ऊपरी चूमा-चाटी तक भी सब सही था, लेकिन जब बात बिस्तर तक आ जाती तो मैं चुपचाप अपने को उससे दूर कर लेती थी।
वहाँ आने के कुछ दिनों बाद जेठ और जेठानी वहाँ हमारे पास आये। जावेद भी समय निकाल कर घर में ही घुसा रहता था। बहुत मज़ा आ रहा था। खूब हंसी-मजाक चलता। देर रात तक नाच गाने और पीने-पिलाने का प्रोग्राम चलता रहता था।
फिरोज़ भाईजान और नसरीन भाभी काफी खुश मिजाज़ के थे। उनके निकाह को चार साल हो गये थे मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई थी। यह एक छोटी कमी जरूर थी उनकी ज़िंदगी में, मगर बाहर से देखने में क्या मज़ाल कि कभी कोई एक शिकन भी ढूँढ ले चेहरे पर।
एक दिन दोपहर को खाने के साथ मैंने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली। मैं सोने के लिये बेडरूम में आ गई। बाकी तीनों ड्राइंग रूम में गपशप कर रहे थे। शाम तक यही सब चलना था इसलिये मैंने अपने कमरे में आकर फटाफट अपने कपड़े उतारे और नशे में एक हल्का सा फ्रंट ओपन गाउन डाल कर बिस्तर पर गिर पड़ी। अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था और मुझे अपने सैंडल उतारने तक का होश नहीं था। पता नहीं नशे में चूर मैं कब तक सोती रही।
अचानक कमरे में रोशनी होने से नींद खुली। मैंने अलसाते हुए आँखें खोल कर देखा तो बिस्तर पर मेरे पास जेठ जी बैठे मेरे खुले बालों पर मुहब्बत से हाथ फ़िरा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठने लगी तो उन्होंने उठने नहीं दिया।
‘लेटी रहो !’ उन्होंने माथे पर अपनी हथेली रखते हुए कहा- अब कैसा लग रहा है शहनाज़?’
‘अब काफी अच्छा लग रहा है।’
तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरा गाउन सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी गोरी-चिकनी चूत जेठ जी को मुँह चिढ़ा रही है। कमर पर लगे बेल्ट की वजह से पूरी नंगी होने से रह गई थी लेकिन ऊपर का हिस्सा भी अलग होकर एक निप्पल को बाहर दिखा रहा था।
मैं शर्म से एक दम पानी-पानी हो गई। मैंने झट अपने गाउन को सही किया और उठने लगी। जेठजी ने झट अपनी बाँहों का सहारा दिया। मैं उनकी बाँहों का सहारा ले कर उठ कर बैठी लेकिन सिर जोर का चकराया और मैंने सिर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया।
जेठ जी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने अपने चेहरे को उनके घने बालों से भरे मजबूत सीने में घुसा कर आँखें बंद कर लीं।
मुझे आदमियों का घने बालों से भरा सीना बहुत सैक्सी लगता है। जावेद के सीने पर बाल बहुत कम हैं लेकिन फिरोज़ भाईजान का सीना घने बालों से भरा हुआ है।
कुछ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने में अपने चेहरे को छिपाये उनके जिस्म से निकलने वाली खुशबू अपने जिस्म में समाती रही। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में संभाल कर मुझे बिस्तर के सिरहाने से टिका कर बिठाया। मेरा गाउन दोबारा अस्त-व्यस्त हो रहा था, जाँघों तक टांगें नंगी हो गई थी।
मैंने अपने सैंडल खोलने के लिये हाथ आगे बढ़ाया तो वो बोले पड़े- इन्हें रहने दो शहनाज़… अच्छे लगते हैं तुम्हारे पैर इन स्ट्रैपी हाई-हील सैंडलों में।’
मैं मुस्कुरा कर फिर से पीछे टिक कर बैठ गई। मुझे एक चीज़ पर खटका हुआ कि मेरी जेठानी नसरीन और जावेद नहीं दिख रहे थे। मैंने सोचा कि दोनों शायद हमेशा कि तरह किसी चुहलबाजी में लगे होंगे या वो भी मेरी तरह नशे में चूर होकर कहीं सो रहे होंगे।
फिरोज़ भाईजान ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास से ट्रे उठा कर मुझे एक कप कॉफी दी।
‘ये… ये आपने बनाई है?’ मैं चौंक गई क्योंकि मैंने कभी जेठ जी को बावर्चीखाने में घुसते नहीं देखा था।
‘हाँ ! क्यों अच्छी नहीं बनी है?’ फिरोज़ भाईजान ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा।
‘नहीं नहीं, बहुत अच्छी बनी है।’ मैंने जल्दी से एक घूँट भर कर कहा- लेकिन भाभी जान और वो कहाँ हैं?’
‘वो दोनों कोई फ़िल्म देखने गये हैं… छः से नौ… नसरीन जिद कर रही थी तो जावेद उसे ले गया है।’
‘लेकिन आप? आप नहीं गये?’ मैंने हैरानी से पूछा।
‘तुम नशे में चूर थीं। अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देख भाल कौन करता?’ उन्होंने वापस मुस्कुराते हुए कहा।
फिर बात बदलने के लिये मुझसे आगे बोले- मैं वैसे भी तुमसे कुछ बात कहने के लिये तन्हाई खोज रहा था।’
‘क्यों? ऐसी क्या बात है?’
‘तुम बुरा तो नहीं मानोगी ना?’
‘नहीं! आप बोलिये तो सही,’ मैंने कहा।
‘मैंने तुमसे पूछे बिना दिल्ली में तुम्हारे कमरे से एक चीज़ उठा ली थी,’ उन्होंने हिचकते हुए कहा।
‘क्या?’
‘ये तुम दोनों की फोटो !’ कहकर उन्होंने हम दोनों की हनीमून पर सलमान द्वारा खींची वो फोटो सामने की जिसमें मैं लगभग नंगी हालत में जावेद के सीने से अपनी पीठ लगाये खड़ी थी।
इसी फोटो को मैं अपने ससुराल में चारों तरफ़ खोज रही थी लेकिन मिली ही नहीं थी। मिलती भी तो कैसे, वो स्नैप तो जेठ जी अपने सीने से लगाये घूम रहे थे।
मेरे होंठ सूखने लगे, मैं फटीफटी आँखों से एकटक उनकी आँखों में झाँकती रही। मुझे उनकी गहरी आँखों में अपने लिए मुहब्बत का बेपनाह सागर उफ़नते हुए दिखाई दिया।
‘आ… आपने यह फोटो रख ली थी?’
‘हाँ इस फोटो में तुम बहुत प्यारी लग रही थीं… किसी जलपरी की तरह। मैं इसे हमेशा साथ रखता हूँ।’ यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
‘क्यों… क्यों…? मैं आपकी बीवी नहीं, ना ही माशूका हूँ। मैं आपके छोटे भाई की ब्याहता हूँ। आपका मेरे बारे में ऐसा सोचना भी मुनासिब नहीं है।’ मैंने उनके शब्दों का विरोध किया।
‘सुंदर चीज़ को सुंदर कहना कोई पाप नहीं है !’ फिरोज़ भाई जान ने कहा- अब मैं अगर तुमसे नहीं बोलता तो तुमको पता चलता ! मुझे तुम अच्छी लगती हो तो इसमें मेरा क्या कसूर है?’
‘दो… वो स्नैप मुझे दे दो ! किसी ने उसको आपके पास देख लिया तो बातें बनेंगी !’ मैंने कहा।
‘नहीं वो अब मेरी अमानत है। मैं उसे किसी भी कीमत पर अपने से अलग नहीं करुँगा।’
मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी। जैसे ही उनका सहारा छोड़ कर बाथरूम तक जाने के लिये दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सर बड़ी जोर से घूमा और मैं हाई-हील सैंडलों में लड़खड़ा कर गिरने लगी। इससे पहले कि मैं जमीन पर भरभरा कर गिर पड़ती, फिरोज़ भाईजान लपक कर आये और मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया। मुझे अपने जिस्म का अब कोई ध्यान नहीं रहा। मेरा जिस्म लगभग नंगा हो गया था।
कहानी जारी रहेगी।
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