कमाल की हसीना हूँ मैं-15
(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 15)
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मैंने उन्हें सताने के लिये उनके लंड के टोपे पर हल्के से अपने दाँत गड़ा दिये।
वो ‘आआआह’ कर उठे और मुझसे बदला लेने के लिये मेरे भगनास को अपने दाँतों के बीच दबा लिया। मैं उत्तेजना से छटपटा उठी।
वो काफी गर्म हो चुके थे, उनको शायद इस पोजीशन में मज़ा नहीं आ रहा था क्योंकि उनकी जबरदस्तियों को मैं ऊपर होने की वजह से नाकाम कर रही थी तो उन्होंने मुझे करवट बदल कर नीचे पटका और खुद ऊपर सवार हो गये। अब मैं नीचे थी और वो मेरे ऊपर।
मैंने अपनी टाँगों को मोड़ कर अपनी चूत को उनकी तरफ़ आगे किया और उनके सिर को अपनी दोनों जाँघों के बीच दबा दिया। मैंने दोनों जाँघों से उनके सिर को भींच रखा था, जिससे उनको भागने का कोई रास्ता नहीं मिले।
लेकिन दूसरी ओर मेरी हालत उन्होंने खराब कर रखी थी। उनका लंड मेरे गले में ठोकर मार रहा था। मैंने जितना हो सकता था अपने मुँह को फाड़ रखा था लेकिन उनके लंड का साइज़ कुछ ज्यादा ही था, मेरा मुँह दुखने लगा था और जीभ दर्द करने लगी थी।
उन्होंने अपनी कमर को मेरे मुँह पर दबा रखा था। मैंने उनके लंड की जड़ को अपनी मुठ्ठी में पकड़ कर उनके लंड को पूरा अंदर घुसने से रोका लेकिन उन्होंने अपने हाथों से जबरदस्ती मेरे हाथ को अपने लंड पर से हटा दिया और एक धक्का मारा।
मेरी साँस रुकने लगी क्योंकि उनका लंड गले में घुस गया था। मैं छटपटाने लगी तो उन्होंने अपने लंड को कुछ बाहर खींच कर पल भर के लिये मुझे कुछ राहत दी लेकिन फिर पूरे जोर से वापस अपने लंड को गले के अंदर डाल दिया।
अब मैंने अपनी साँसें उनके धक्कों के साथ ट्यून कर लीं, जिससे दोनों को ही कोई दिक्कत नहीं हो। हर धक्के के साथ उनके टट्टे मेरी नाक को भी बंद कर देते थे। उनके घुंघराले बाल मेरे नथुनों में घुस कर गुदगुदी करने लगते।
वो तेजी से अपनी कमर को आगे पीछे कर रहे थे और ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने मेरे मुँह को मेरी चूत समझ रखा हो। मैंने भी अपनी टाँगों से उनके सिर को कैंची की तरह अपनी चूत में दाब रखा था। उनका लंड मेरे थूक से गीला हो कर चमक रहा था।
कुछ देर तक इसी तरह मुझे रगड़ने के बाद जब उनके लंड में झटके आने लगे तो उन्होंने मुझे एकदम से छोड़ दिया नहीं तो मेरे मुँह में ही धार छोड़ देते। मेरा तो कब का छूट चुका था।
जब वो मुझ पर से उतरे तो मैंने देखा कि मेरे रस से उनके होंठ लिसड़े हुए हैं। वो अपनी जीभ निकाल कर अपने गीले होंठों पर फ़ेर रहे थे।
“मज़ा आ गया !” उन्होंने कहा।
“धत्त ! आप बहुत गंदे हैं !” मैंने शरमाते हुए उनसे कहा, “आपने मेरे मुँह को क्या समझ रखा था… इतना बड़ा वो.. घुसेड़-घुसेड़ कर गला चीर कर रख दिया।”
“वो? वो क्या?” उन्होंने शरारत से पूछा।
“वो…” मैंने उनके लंड की ओर इशारा किया।
“अरे उसका कुछ नाम भी होगा। इतनी प्यारी चीज़ है… जरा मुहब्बत से नाम तो लेकर देखो… कितना खुश होगा।”
“क्यों सताते हो.. अब आ जाओ ऊपर !” मैंने कहा।
“नहीं पहले तुम इसका नाम लो।”
वैसे तो औरतों के लिये लंड का नाम और वो भी किसी पराये मर्द के सामने लेना बड़ा मुश्किल होता है लेकिन मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं थी। फिर भी मैं शरमाने का नाटक करते हुए झिझकते हुए धीरे से फ़ुसफ़ुसाई, “लंड !”
“क्या.. कुछ सुनाई नहीं दिया…?” वो पूरी बेशरमी पर उतर आये थे।
“लंड !” मैंने फिर से कहा, इस बार आवाज में कुछ जोर था।
वो खुश हो गये। उन्होंने उठकर अचानक लाईट ऑन कर दी। पूरा कमरा दूधिया रोशनी में नहा गया।
“ऊँ हूँ… नहीं…” मैंने शरम से अपने छातियों को हाथों से ढक लिया और अपनी चूत को दोनों टाँगों के बीच भींच लिया जिससे उनकी उस पर नज़र ना पड़े।
“क्या करते हो बेशरम.. मुझे बहुत शरम आ रही है… प्ली..ईऽऽ..ज़ लाईट बंद कर दो !” मैंने कहा।
“नहीं! आज मुझे तुम्हारा यह हुस्न पूरी तसल्ली के साथ देखने दो। ये कोई पहली बार तो हम नहीं मिल रहे हैं। हम पहले भी एक दूसरे के सामने नंगे हुए हैं… भूल गईं?” फिरोज़ भाईजान मुस्कुरा रहे थे।
वो बिस्तर के पास खड़े होकर मेरे जिस्म को निहारने लगे। मैं उनकी हरकतों से पागल हुई जा रही थी। उन्होंने अपने हाथों से मेरे हाथ को मम्मों से हटाया। मैं कनखियों से उनकी हरकतों को बीच-बीच में देख रही थी। फिर उन्होंने मेरे दूसरे हाथ को मेरी जाँघों से भी हटा दिया। मैं अपने नंगे जिस्म को रोशनी में उनके सामने, उघाड़े हुए लेटी हुई थी। फिर उन्होंने मेरी जाँघों को पकड़ कर उनको एक-दूसरे से अलग किया और फैला दिया, जिससे मेरी चूत खुल जाये।
वो कुछ देर तक मेरे नंगे जिस्म को इसी तरह निहारते रहे और फिर झुक कर मेरे होंठों पर एक किस किया और मेरी कमर के नीचे एक तकिया दे कर मेरी कमर को उठाया। मेरी चूत ऊपर की तरफ़ हो गई।
उन्होंने मेरी टाँगों को मोड़ कर मेरी छातियों से लगा दिया। फिर मेरे ऊपर से अपने लंड को मेरी चूत पर रख कर कहा, “शहनाज़ ! आँखें खोलो !”
मैंने और सख्ती से अपनी आँखों को भींच लिया और सिर हिला कर इंकार जताया।
“तुम्हें मेरी कसम शहनाज़! अपनी आँखें खोलो और हमारे इस मिलन को अपने दिल-ओ-दिमाग में कैद कर लो।”
उन्होंने अब अपना वास्ता दिया तो मैंने झिझकते हुए अपनी आँखें खोलीं। मेरा जिस्म इस तरह टेढ़ा हो रहा था कि मुझे अपनी चूत के मुँह पर रखा उनका मोटा और लंबा लंड साफ़ नज़र आ रहा था।
मैंने कुछ कहे बिना उनके लंड को अंदर लेने के लिये अपनी कमर को उचकाया। लेकिन उन्होंने मुझे अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दिया और अपने लंड को ऊपर खींच लिया।
मेरी चूत के दोनों होंठ उत्तेजना में बार-बार खुल और बंद हो रहे थे। शायद अपनी भूख अब उनसे नहीं संभाल रही थी। मेरी चूत के किनारे, रस से बुरी तरह गीले हो रहे थे।
उन्होंने मेरी चूत के रस को पहले की तरह अपने पायजामे से पोंछ कर साफ़ किया और पूरा सुखा दिया। मैं उनके लंड को अपनी चूत में लेने के लिये बुरी तरह तड़प रही थी।
“क्यों तड़पा रहे हो जान ! अंदर कर दो ना ! क्यों मिन्नतें करवा रहे हो !” मैंने उनकी आँखों में झाँकते हुए उनसे मिन्नतें कीं।
“ऊँहूँ पहले रिक्वेस्ट करो।” वो मेरी हालत का मज़ा ले रहे थे।
“प्ली..ईऽऽऽ..ज़ऽऽऽ”, मैंने उनसे कहा।
“क्या? प्लीज़ क्या?” उन्होंने वापस मुझे छेड़ा।
“आप बहुत गंदे हो, छी! ऐसी बातें लड़कियाँ बोलती हैं क्या?”
“नहीं ! जब तक नहीं बोलोगी कि तुम्हें क्या चाहिये, तब तक नहीं दूँगा।” उन्होंने सताना जारी रखा।
“ओफ ओह ! दे दो ना अपना लंऽऽड !” कहकर मैंने झट से अपनी आँखें बंद कर लीं।
“उम्म ! अपने जेठ जी का लंड चाहिये?”
मैंने अपना सिर हिलाया तो उन्होंने आगे कहा, “तो फिर खुद ही ले लो अपनी चूत में।”
मैंने लपक कर उनके लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फाँकें अलग कर के उनके लंड को अपनी चूत के दरवाजे पर रख कर जोर का धक्का ऊपर की तरफ़ मारा तो उनका मोटा लंड थोड़ा मेरी चूत में घुस गया।
“हूँ… ऊँह।” मेरे मुँह से एक हल्की सी दर्द भरी आवाज निकली। मैंने अब अपनी टाँगों को दोनों ओर फैलाया और उनकी कमर को दोनों ओर से अपनी टाँगों से जकड़ लिया। अब मैं उनके जिस्म से किसी जोंक की तरह चिपक गई थी।
वो अपनी कमर उठाते तो मेरा पूरा जिस्म उनके साथ ही उठ जाता। उन्होंने एक ही धक्के में अपना पूरा मूसल जैसा लंड मेरी चूत में डाल दिया। मैंने अपनी चूत के मसल्स से उनके लंड को बुरी तरह जकड़ रखा था।
मैं उनके मंथन से पहले अपनी चूत से उनके लंड को अच्छी तरह महसूस करना चाहती थी।
“शहनाज़ ! बहुत टाईट है तुम्हारी…” कहते हुए फिरोज़ भाईजान के होंठ मेरे होंठों पर आ लगे।
“आपको पसंद आई?” मैंने पूछा तो उन्होंने बस ‘हूँ’ कहा।
“यह तुम्हारे लिये है… जब जी चाहे इसको इस्तेमाल करना।”
मैंने उनके गले में अपनी बांहें डाल कर उनके कान में धीरे से कहा- आज मुझे इतना रगड़ो कि जिस्म का एक-एक जोड़ दर्द से तड़पने लगे।
कहानी जारी रहेगी।
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