कमाल की हसीना हूँ मैं-12
(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 12)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left कमाल की हसीना हूँ मैं-11
-
keyboard_arrow_right कमाल की हसीना हूँ मैं-13
-
View all stories in series
मैं सैक्स की भूखी किसी चुदक्कड़ वेश्या की तरह छटपटा रही थी उनके लंड के लिये।
“एक मिनट ठहरो।” कहकर उन्होंने मेरा गाउन उठाया और मेरी चूत को अच्छी तरह साफ़ करने लगे। यह जरूरी भी हो गया था, मेरी चूत में इतना रस निकला था कि पूरी चूत चिकनी हो गई थी। उनके इतने मोटे लंड के रगड़ने का अब एहसास भी नहीं हो रहा था।
जब तक लंड के रगड़ने का दर्द नहीं महसूस होता तब तक मज़ा उतना नहीं आ पाता है। इसलिये मैं भी उनके इस काम से बहुत खुश हुई। मैंने अपनी टाँगों को फैला कर अपनी चूत के अंदर तक का सारा पानी सोख लेने में मदद की। मेरी चूत को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद उन्होंने अपने लंड पर चुपड़े मेरे रस को भी मेरे गाउन से साफ़ किया।
मैंने बेड के सिरहाने को पकड़ रखा था और कमर उनकी तरफ़ कर रखी थी। उन्होंने वापस अपने लंड को मेरी चूत के द्वार पर लगा कर एक और जोरदार धक्का दिया।
“हम्मऽऽऽफफ़्फ़ऽऽऽऽ” मेरे मुँह से एक आवाज निकली और मैंने उनके लंड को अपनी दुखती हुई चूत में रगड़ते हुए अंदर जाते हुए वापस महसूस किया। वो दोबारा जोर-जोर से धक्के लगाने लगे। उनके धक्कों से मेरे बड़े-बड़े स्तन किसी पेड़ पर लटके आमों की तरह झूल रहे थे।
मेरे गले पर पहना हुआ भारी नेकलेस उनके धक्कों से उछल-उछल कर मेरी चूचियों को और मेरी ठुड्डी को टक्कर मार रहा था। मैंने उसके लॉकेट को अपने दाँतों से दबा लिया जिससे कि वो झूले नहीं।
फिरोज़ भाईजान ने मेरी इस हरकत को देख कर मेरे नेकलेस को अपने हाथों में लेकर अपनी ओर खींचा। मैंने अपना मुँह खोल दिया।
अब ऐसा लग रहा था मानो वो किसी घोड़ी की सवारी कर रहे हों और नेकलेस उनके हाथों में दबी उसकी लगाम हो। वो इस तरह मेरी लगाम थामे मुझे पीछे से ठोकते जा रहे थे।
“फिरोज़… ऊऊऊऽऽऽहहऽऽऽ… फिरोज़… मेरा वापस झड़ने वाला है… तुम भी मेरा साथ दो प्लीईऽऽऽज़ !” मैंने फिरोज़ भाईजान से मेरे साथ झड़ने की गुज़ारिश की।
फिरोज़ भाईजान ने मेरी पीठ पर झुक कर मेरे झूलते हुए दोनों मम्मों को अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया और पीछे से अपनी कमर को आगे पीछे ठेलते हुए जोर-जोर के धक्के मारने लगे।
मैंने अपने सिर को झटका देकर अपने चेहरे पर बिखरी अपनी ज़ुल्फों को पीछे किया तो मेरे दोनों मम्मों को मसलते हुए जेठ जी के हाथों को देखा। उनके हाथ मेरे निप्पलों को अपनी चुटकियों में भर कर मसल रहे थे।
“अम्मंह… फिरोज़… फिरोज़ !” अब हमारे बीच कोई रिश्तों का तकल्लुफ नहीं बचा था। मैं अपने जेठ को उनके नाम से ही बुला रही थी, “फिरोज़… मैं झड़ रही हूँ… फिरोज़ तुम भी आ जाओ… तुम भी अपनी धार छोड़ कर मेल कर दो।”
मैंने महसूस किया कि उनका लंड भी झटके लेने लगा है। उन्होंने मेरी गर्दन के पास अपना चेहरा रख दिया। उनकी गर्म-गर्म साँस मेरी गर्दन पर महसूस हो रही थी।
उन्होंने लगभग मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, “शहनाज़… मेरा निकल रहा है… आज तुम्हारी कोख तुम्हारे जेठ के रस से भर जायेगी।”
“भर जाने दो मेरे जानम डाआऽऽऽल दो, मेरे पेट में अपना बच्चा डाल दो… मैं आपको अपनी कोख से बच्चा दूँगी।” मैंने कहा और एक साथ दोनों के जिस्म से अमृत की धारा बह निकली।
उनकी उँगलियों ने मेरी चूचियों को बुरी तरह निचोड़ दिया। मेरे दाँत मेरे नेकलेस पर गड़ गये और हम दोनों बिस्तर पर गिर पड़े, वो मेरे ऊपर ही पड़े हुए थे, हमारे जिस्म पसीने से लथपथ हो रहे थे।
“आआऽऽऽ हहऽऽऽ फिरोज़ऽऽऽ ! आज आपने मुझे वाकई ठंडा कर दिया आआऽऽपने मुझे वो… मज़ा… दिया जिसके… लिये मैं… काफी.. दिनों से तड़प रही थी.. मममऽऽऽ।” मेरा चेहरा तकिये में धंसा हुआ था और मैं बड़बड़ाये जा रही थी।
वो बहुत खुश हो गये और मेरी नंगी पीठ को चूमने लगे और बीच बीच में मेरी पीठ पर काट भी लेते।
मैं बुरी तरह थक चुकी थी। वापस नशे और हेंगओवर ने मुझे घेर लिया। पता ही नहीं चला कब मैं नींद के आगोश में चली गई।
जेठ जी ने मेरे नंगे जिस्म पर कपड़े किस तरह पहनाये ये भी पता नहीं चल पाया। उन्होंने मुझे कपड़े पहना कर चादर से अच्छी तरह लपेट कर सुला दिया। मैं हसीन ख्वाबों में खो गई।
अच्छा हुआ कि उन्होंने मुझे कपड़े पहना दिये थे, वरना अपनी इस हालत की सफाई जावेद और नसरीन भाभी जान से करना मुश्किल काम होता।
मेरे पूरे जिस्म पर उकेरे गये दाँतों के निशानों की दिलकश नक्काशी का भी कोई जवाब नहीं था।
जब तक दोनों वापस नहीं आ गये, फिरोज़ भाईजान की गोद में ही सिर रख कर सोती रही और फिरोज़ भाईजान मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरते रहे। बीच-बीच में वो मेरे गालों पर या मेरे होंठों पर अपने गर्म होंठ रख देते।
जावेद और नसरीन भाभी रात के दस बजे तक चहकते हुए वापस लौटे। होटल से खाना पैक करवा कर ही लौटे थे। मेरी हालत देख कर जावेद और नसरीन भाभी घबरा गये। बगल में ही एक डॉक्टर रहता था, उसे बुला कर मेरी जाँच करवाई।
डॉक्टर ने देख कर कहा कि बहुत ज्यादा शराब पीने की वजह से डी-हायड्रेशन हो गया है और जूस वगैरह पीने को कह कर चले गये।
अगले दिन सुबह मेरी तबियत एकदम सलामत हो गई। अगले दिन जावेद का जन्मदिन था। शाम को बाहर खाने का प्रोग्राम था। एक बड़े होटल में सीट पहले से ही बुक कर रखी थी। वहीं पर पहले हम सबने ड्रिंक्स ली फिर खाना खाया।
वापस लौटते समय जावेद ने बाज़ार से एक ब्लू फ़िल्म का डी-वी-डी खरीद लिया। घर पहुँच कर हम चारों हमारे बेडरूम में इकट्ठे हुए। सब फिर से ड्रिंक्स लेने लगे। मुझे सबने मना भी किया कि पिछले दिन मेरी तबियत शराब पीने से खराब हो गई थी और कुछ देर पहले होटल में तो मैंने ड्रिंक पी ही थी, पर मैं कहाँ मानने वाली थी।
मैंने भी ज़िद करके उनके साथ और ड्रिंक्स लीं। फिर पहले म्यूज़िक चला कर कुछ देर तके एक दूसरे की बीवियों के साथ हमने डाँस किया।
मैं जेठ जी की बाँहों में नशे की हालत में थिरक रही थी और नसरीन भाभी को जावेद ने अपनी बाँहों में भर रखा था। फिर जावेद ने कमरे की ट्यूबलाईट ऑफ कर दी और सिर्फ एक हल्का नाईट लैंप जला दिया।
हम चारों बिस्तर पर बैठ गये, जावेद ने डी-वी-डी ऑन करके ब्लू फ़िल्म चला दी। फिर बिस्तर के सिरहाने पर पीठ लगा कर हम चारों बैठ गये। एक किनारे पर जावेद बैठा था और दूसरे किनारे पर फिरोज़ भाईजान थे। बीच में हम दोनों औरतें थीं। दोनों ने नशे में मस्त अपनी-अपनी बीवियों को अपनी बाँहों में समेट रखा था। इस हालत में हम ब्लू फ़िल्म देखने लगे।
फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, कमरे का माहौल गर्म होता गया। दोनों मर्द बिना किसी शर्म के अपनी अपनी बीवियों के गुप्ताँगों को मसलने लगे। जावेद मेरे मम्मों को मसल रहा था और फिरोज़ नसरीन भाभी के।
जावेद ने मुझे उठा कर अपनी टाँगों के बीच बिठा लिया। मेरी पीठ उनके सीने से सटी हुई थी। वो अपने दोनों हाथ मेरे गाउन के अंदर डाल कर अब मेरे मम्मों को मसल रहे थे।
मैंने देखा नसरीन भाभी फिरोज़ को चूम रही थी और फिरोज़ के हाथ भी नसरीन भाभी जान के गाउन के अंदर थे। मुझे उन दोनों को इस हालत में देख कर पता नहीं क्यों कुछ जलन सी होने लगी।
हम दोनों के गाउन कमर तक उठ गये थे। और नंगी जाँघें सबके सामने थीं। जावेद अपने एक हाथ को नीचे से मेरे गाउन में घुसा कर मेरी चूत को सहलाने लगे। मैं अपनी पीठ पर उनके लंड की ठोकर को महसूस कर रही थी।
फिरोज़ ने नसरीन भाभी के गाउन को कंधे पर से उतार दिया था और एक मम्मे को बाहर निकाल कर चूसने लगे थे। ये देख कर जावेद ने भी मेरे एक मम्मे को गाउन के बाहर निकालने की कोशिश की। मगर मेरे इस गाउन का गला कुछ छोटा था इसलिये उसमें से मेरा स्तन बाहर नहीं निकल पाया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
उन्होंने काफी कोशिशें की मगर सफ़ल ना होते देख कर गुस्से में एक झटके में मेरे गाउन को मेरे जिस्म से हटा दिया। अब सिर्फ हाई-हील के सैंडल पहने मैं सबके सामने बिल्कुल नंगी हो गई क्योंकि प्रोग्राम के अनुसार हम दोनों औरतों ने गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था।
मैं शर्म के मारे अपने हाथों से अपने मम्मों को छिपाने लगी और अपनी टाँगों को एक दूसरे से सख्ती से दबा लिया जिससे मेरी चूत के दर्शन ना हों।
“क्या करते हो.. शर्म करो बगल में फिरोज़ भाई और नसरीन भाभीजान हैं… तुमने उनके सामने मुझे नंगी कर दिया। छी-छी क्या सोचेंगे जेठ जी?” मैंने फुसफुसाते हुए जावेद के कानों में कहा जिससे बगल वाले नहीं सुन सकें।
“तो इसमें क्या है? नसरीन भाभीजान भी तो लगभग नंगी ही हो चुकी हैं। देखो उनकी तरफ़..” मैंने अपनी गर्दन घुमा कर देखा तो पाया कि जावेद सही कह रहा था।
फिरोज़ भाईजान ने भाभी के गाउन को छातियों से भी ऊपर उठा रखा था। वो भाभीजान की चूचियों को मसले जा रहे थे। वो भाभीजान के एक निप्पल को अपने दाँतों से काटते हुए दूसरे मम्मे को अपनी मुठ्ठी में भर कर मसलते जा रहे थे।
नसरीन भाभी ने फिरोज़ भाईजान के पायजामे को खोल कर उनके लंड को अपने हाथों में लेकर सहलाना शुरू कर दिया था।
इधर जावेद मेरी टाँगों को खोल कर अपने होंठ मेरी चूत के ऊपर फ़ेरने लगा। उसने ऊपर बढ़ते हुए मेरे दोनों निप्पल को कुछ देर चूसा और फिर मेरे होंठों को चूमने लगा। नसरीन भाभीजान के मम्मे भी मेरी तरह काफी बड़े-बड़े थे।
दोनों भाइयों ने लगता है दूध की बोतलों का मुआयना करके ही निकाह के लिये पसंद किया था। नसरीन भाभी के निप्पल काफी लंबे और मोटे हैं, जबकि मेरे निप्पल कुछ छोटे हैं।
अब हम चारों एक दूसरे की जोड़ी को निहार रहे थे।
कहानी जारी रहेगी।
शहनाज़ खान
What did you think of this story??
Comments