कमाल की हसीना हूँ मैं-11

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 11)

शहनाज़ खान 2013-05-03 Comments

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मैं काफी उत्तेजित हो गई थी। जावेद इतना फोर-प्ले कभी नहीं करता था। उसको तो बस टाँगें चौड़ी करके अंदर डाल कर धक्के लगाने में ही मज़ा आता था।

उन्होंने मेरी टाँगें पकड़ कर नीचे की ओर खींचा तो मैं बिस्तर पर लेट गई। अब उन्होंने मेरी दोनों टाँगें उठा कर उनके नीचे दो तकिये लगा दिये, जिससे मेरी चूत ऊपर को उठ गई। मैंने अपनी टाँगों को चौड़ा करके छत की ओर उठा दिया, फिर जेठ जी के सिर को पकड़ कर अपनी चूत के ऊपर दबा दिया। फिरोज़ भाईजान अपनी जीभ निकाल कर मेरी चूत के अंदर उसे डाल कर घुमाने लगे। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ने लगी। मैं अपनी कमर को और ऊपर उठाने लगी जिससे उनकी जीभ ज्यादा अंदर तक जा सके।

मेरे हाथ बिस्तर को मजबूती से थामे हुए थे, मेरी आँखों की पुतलियाँ पीछे की ओर उलट गई और मेरा मुँह खुल गया। मैं जोर से चीख पड़ी- हाँऽऽऽ और अंदरऽऽ फिरोज़ भाई आआहहहऽऽऽ ऊऊहहऽऽ इतनेऽऽ दिन कहाँ थेऽऽ मैंऽऽऽ पाऽऽगल हो जाऊँऽऽगीऽऽ… ऊऊऽऽऽ हहहऽऽऽ ऊऊईई माँऽऽऽ क्याऽऽऽ कर रहे होऽऽऽ फिरोज़ मुझेऽऽ संभालोऽऽऽ मेराऽऽऽ छूटनेऽऽ वालाऽऽऽ हैऽऽऽ फिरोऽज़ इसीऽऽ तरह साऽऽरी ज़िंदगीऽऽ तुम्हारी दूऽऽसरीऽऽऽ बीवी बनकर चुदवातीऽऽऽ रहूँऊऽऽगी।”

एकदम से मेरी चूत से रस की बाढ़ सी आई और बाहर की ओर बह निकली। मेरा पूरा जिस्म किसी पत्ते की तरह काँप रहा था। काफी देर तक मेरा झड़ना चलता रहा।

जब सारा रस फिरोज़ भाईजान के मुँह में उड़ेल दिया तो मैंने उनके सर को पकड़ कर उठाया। उनकी मूछें, नाक, होंठ सब मेरे रस से सने हुए थे। उन्होंने अपनी जीभ निकाली और अपने होंठों पर फिराई।

“छी… गंदे !” मैंने उनसे कहा।

“इसमें गंदी वाली क्या बात हुई? यह तो टॉनिक है। तुम मेरा टॉनिक पी कर देखना… अगर जिस्म में रंगत ना आ जाये तो कहना।”

“जानू अब आ जाओ !” मैंने उनको अपने ऊपर खींचा, “मेरा जिस्म तप रहा है। नशे की खुमारी कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है… इससे पहले कि मैं पागल हो जाऊँ मेरे अंदर अपना बीज डाल दो।”

फिरोज़ भाईजान ने अपने लंड को मेरे मुँह से लगाया।

“एक बार मुँह में तो लो… उसके बाद तुम्हारी चूत में डालूँगा। पहले एक बार प्यार तो करो इसे !”

मैंने उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर उसे चूसना और चाटना शुरू कर दिया। मैं अपनी जीभ से उनके लंड को एकदम नीचे से ऊपर तक चाट रही थी और अपनी जीभ से उनके लंड के नीचे लटकते हुए अंडकोषों को भी चाट रही थी। उनका लंड मुझे बड़ा प्यारा लग रहा था। मैं उनके लंड को चाटते हुए उनके चेहरे को देख रही थी।

उनका उत्तेजित चेहरा बड़ा प्यारा लग रहा था। दिल को सकून मिल रहा था कि मैं उन्हें कुछ तो आराम दे पाने में कामयाब रही थी। उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया था कि उसका एक टुकड़ा भी मैं वापस अगर दे सकी तो मुझे अपने ऊपर फ़ख्र होगा।

उनके लंड से चिपचिपा सा बेरंग का प्री-कम निकल रहा था जिसे मैं बड़ी बेकरारी से चाट कर साफ़ कर देती थी। मैं काफी देर तक उनके लंड को तरह तरह से चाटती रही। उनका लंड काफ़ी मोटा था इसलिये मुँह के अंदर ज्यादा नहीं ले पा रही थी और इसलिये जीभ से चाट-चाट कर ही उसे गीला कर दिया था।

कुछ देर बाद उनका लंड झटके खाने लगा। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर मुझे रुकने का इशारा किया।

“बस….. बस….. और नहीं ! नहीं तो अंदर जाने से पहले ही निकल जायेगा।” कहते हुए उन्होंने मेरे हाथों से अपने लंड को छुड़ा लिया और मेरी टाँगों को फैला कर उनके बीच घुटने मोड़ कर झुक गए।

उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत से सटाया।

“आपका बहुत मोटा है। मेरी चूत को फाड़ कर रख देगा।” मैंने घबराते हुए कहा, “फिरोज़ भाईजान, धीरे-धीरे करना नहीं तो मैं दर्द से मर जाऊँगी।”

वो हंसने लगे।

“आप बहुत खराब हो ! इधर तो मेरी जान की पड़ी है।” मैंने उनसे कहा।

मैंने भी अपने हाथों से अपनी चूत को चौड़ा कर उनके लंड के लिये रास्ता बनाया। उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत के दर पर टिका दिया।

मैंने उनके लंड को पकड़ कर अपनी फैली हुई चूत के अंदर खींचा।

“अंदर कर दो…” मेरी आवाज भारी हो गई थी।

उन्होंने अपने जिस्म को मेरे जिस्म के ऊपर लिटा दिया। उनका लंड मेरी चूत की दीवारों को चौड़ा करता हुआ अंदर जाने लगा। मैं सब कुछ भूल कर अपने जेठ के सीने से लग गई। बस सामने सिर्फ फिरोज़ थे और कुछ नहीं। वो ही इस वक्त मेरे आशिक, मेरे सैक्स पार्टनर और जो कुछ भी मानो, थे। मुझे तो अब सिर्फ उनका लंड ही दिख रहा था।

जैसे ही उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ आगे बढ़ा मेरे मुँह से “आऽऽहहऽऽऽ” की आवाज निकली और उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में धंस गया।

वो इस पोजीशन में मेरे होंठों को चूमने लगे।

“अच्छा तो अब पता चला कि मुझसे मिलने के लिये तुम भी इतनी बेसब्र थी… और मैं बेवकूफ सोच रहा था कि मैं ही तुम्हारे पीछे पड़ा हूँ। अगर पता होता ना कि तुम भी मुझसे मिलने को इतनी बेताब हो तो…” वाक्य को अधूरा ही रख कर वो कुछ रुके।

“तो?…. तो?”

“तो तुम्हें किसी की भी परवाह किये बिना कब का पटक कर ठोक चुका होता।” उन्होंने शरारती लहजे में कहा।

“धत्त !! इस तरह कभी अपने छोटे भाई की बीवी से बात करते हैं? शर्म नहीं आती आपको?” मैंने उनके कान को अपने दाँतों से चबाते हुए कहा।

“शर्म? अच्छा? चोदने में कोई शर्म नहीं है पर शर्म बात करने में ही है ना !” कहकर वो अपने हाथों का सहारा लेकर मेरे जिस्म से उठे और साथ-साथ उनका लंड भी मेरी चूत को रगड़ता हुआ बाहर की ओर निकला और फिर वापस पूरे जोर से मेरी चूत में अंदर तक धंस गया।

“ऊऊऊहहऽऽऽ दर्द कर रहा है। आपका वाकयी काफी बड़ा है। मेरी चूत छिल गई है। पता नहीं नसरीन भाभी इतने मोटे लंड को छोड़ कर मेरे जावेद में क्या ढूँढ रही हैं?” मैंने उनके आगे-पीछे होने की ताल से अपनी ताल भी मिलाई।

हर धक्के के साथ उनका लंड मेरी चूत में अंदर तक घुस जाता और उनकी कोमल झाँटें मेरी मुलायम त्वचा पर रगड़ खा जाती। वो जोर-जोर से मुझे ठोकने लगे उनके हर धक्के से पूरा बिस्तर हिलने लगता। काफी देर तक वो ऊपर से धक्के मारते रहे। मैंने नीचे से अपनी टाँगें उठा कर उनकी कमर पर लपेट ली थी और उनके बालों भरे सीने में अपने तने हुए निप्पल रगड़ रही थी। इस रगड़ से एक सिहरन सी पूरे जिस्म में दौड़ रही थी।

मैंने अपने हाथों से उनके सिर को पकड़ कर अपने होंठ उनके होंठों पर लगा कर अपनी जीभ उनके मुँह में घुसा दी। मैं इसी तरह उनके लंड को अपनी चूत में लेने के लिये अपनी कमर को उचका रही थी। उनके जोरदार धक्के मुझे पागल बना रहे थे। उन्होंने अपना चेहरा ऊपर किया तो मैं उनके होंठों की छुअन के लिये तड़प कर उनकी गर्दन से लटक गई।

फिरोज़ भाईजान के शरीर में दम काफी था जो मेरे जिस्म का बोझ उठा रखा था। मैं तो अपने हाथों और पैरों के बल पर उनके जिस्म पर झूल रही थी।

इसी तरह मुझे उठाये हुए वो लगातार चोदे जा रहे थे, मैं “आआऽऽहहऽऽऽ माँआऽऽऽ मम्मऽऽऽ ऊफ़्फ़ऽऽऽ” जैसी आवाजें निकाले जा रही थी।

उनके धक्कों से तो मैं निढाल हो गई थी। वो लगातार इसी तरह पंद्रह मिनट तक ठोकते रहे। इन पंद्रह मिनट में मैं दो बार झड़ चुकी थी लेकिन उनकी रफ़्तार में कोई कमी नहीं आई थी।

उनके सीने पर पसीने की कुछ बूँदें जरूर चमकने लगी थीं। मैंने अपनी जीभ निकाल कर उन नमकीन बूँदों को चाट लिया। वो मेरी इस हरकत से और जोश में आ गए।

पंद्रह मिनट बाद उन्होंने मेरी चूत से अपने लंड को खींच कर बाहर निकाला।

उन्होंने मुझे किसी बार्बी डॉल की तरह एक झटके में उठाकर हाथों और पैरों के बल घोड़ी बना दिया। मेरी टपकती हुई चूत अब उनके सामने थी।

“मम्मऽऽऽ दोऽऽऽ… डाऽऽऽल दोओऽऽऽ आज मुझे जितना जी में आये मसल डालो… आआआह मेरी गर्मी शाँत कर दो।”

मैं सैक्स की भूखी किसी चुदक्कड़ वेश्या की तरह छटपटा रही थी उनके लंड के लिये।

कहानी जारी रहेगी।

शहनाज़ खान

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