कमाल की हसीना हूँ मैं-10

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 10)

शहनाज़ खान 2013-05-02 Comments

This story is part of a series:

मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी। जैसे ही उनका सहारा छोड़ कर बाथरूम तक जाने के लिये दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सर बड़ी जोर से घूमा और मैं हाई-हील सैंडलों में लड़खड़ा कर गिरने लगी। इससे पहले कि मैं जमीन पर भरभरा कर गिर पड़ती, फिरोज़ भाईजान लपक कर आये और मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया। मुझे अपने जिस्म का अब कोई ध्यान नहीं रहा। मेरा जिस्म लगभग नंगा हो गया था।

उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में फूल की तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये। मैंने गिरने से बचने के लिये अपनी बाँहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया।

दोनों किसी नौजवान जोड़े की तरह लग रहे थे। उन्होंने मुझे बाथरूम के भीतर ले जाकर उतारा।

“मैं बाहर ही खड़ा हूँ, तुम फ़्रेश हो जाओ तो मुझे बुला लेना ! जरा संभल कर उठना-बैठना।” फिरोज़ भाईजान मुझे हिदायतें देते हुए बाथरूम के बाहर निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया। मैंने पेशाब करके लड़खड़ाते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे जिस्म को बेपर्दा ना कर दें।

मैं अब खुद को ही कोस रही थी कि किस लिये मैंने अपने अंदरूनी कपड़े उतारे। मैं जैसे ही बाहर निकली तो वो बाहर दरवाजे पर खड़े मिल गये। वो मुझे दरवाजे पर देख कर लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाँहों में भर कर वापस बिस्तर पर ले आये।

मुझे सिरहाने पर टिका कर मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर दिया। मेरा चेहरा तो शर्म से लाल हो रहा था।

“अपने इस हुस्न को जरा संभाल कर रखिये वरना कोई मर ही जायेगा… आहें भर-भर कर !” उन्होंने मुस्कुरा कर कहा।

फिर साईड टेबल से एक एस्प्रीन निकाल कर मुझे दी, मेरे कप में कुछ कॉफी भरकर मुझे दी और बोले, “लो इससे तुम्हारा हेंगओवर ठीक हो जायेगा।”

मैंने कॉफी के साथ दवाई ले ली।

“लेकिन एक बात अब भी मुझे खटक रही है। वो दोनों आप को साथ क्यों नहीं ले गये…? आप कुछ छिपा रहे हैं… बताइये ना…?”

“कुछ नहीं शहनाज़ मैं तुम्हारे कारण रुक गया ! कसम तुम्हारी !”

लेकिन मेरे बहुत जिद करने पर वो धीरे-धीरे खुलने लगे, वो भी असल में कुछ तन्हाई चाहते थे।

“मतलब?” मैंने पूछा।

“नहीं, तुम बुरा मान जाओगी ! मैं तुम्हारा दिल दुखाना नहीं चाहता।”

“मुझे कुछ नहीं होगा ! आप कहो तो… क्या आप कहना चाहते हैं कि जावेद और नसरीन भाभी जान के बीच…” मैंने जानबूझ कर अपने वाक्य को अधूरा ही रहने दिया।

वो भौंचक्के से कुछ देर तक मेरी आँखों में झाँकते रहे।

“मुझे सब पता है… मुझे पहले ही शक हो गया था। जावेद को जोर देकर पूछा तो उसने कबूल कर लिया।”

“तुम… तुमने कुछ कहा नहीं? तुम नई बीवी हो उसकी… तुमने उसका विरोध नहीं किया?” फिरोज़ ने पूछा।

“विरोध तो आप भी कर सकते थे। आपको सब पता था लेकिन आप ने कभी दोनों को कुछ कहा नहीं। आप तो मर्द हैं और उनसे बड़े भी।” मैंने उल्टा उनसे ही सवाल किया।

“चाह कर भी कभी नहीं किया। मैं दोनों को बेहद चाहता हूँ और…”

“और क्या?”

“और… नसरीन मुझे कमज़ोर समझती है।”कहते हुए उन्होंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया।

मैं उस प्यारे इंसान की परेशानी पर अपने को रोक नहीं पाई और मैंने उनके चेहरे को अपनी हथेली में भरकर उठाया। मैंने देखा कि उनकी आँखों के कोनों पर दो आँसू चमक रहे हैं। मैं यह देख कर तड़प उठी। मैंने अपनी उँगलियों से उनको पोंछ कर उनके चेहरे को अपने सीने पर खींच लिया। वो किसी बच्चे की तरह मेरी छातियों से अपना चेहरा सटाये हुए थे।

“आपने कभी किसी डॉक्टर से जाँच क्यों नहीं करवाई?”मैंने उनके बालों में अपनी उँगलियाँ फ़िराते हुए पूछा।

“दिखाया था… कई बार चेक करवाया…”

“फिर?”

“डॉक्टर ने कहा…” दो पल को वो रुके। ऐसा लगा मानो सोच रहे हों कि मुझे बतायें या नहीं। फिर धीरे से बोले, “मुझ में कोई कमी नहीं है।”

“क्या?” मैं जोर से बोली, “फिर भी आप सारा कसूर अपने ऊपर लेकर चुप बैठे हैं। आपने भाभी जान को बताया क्यों नहीं? यह तो बुजदिली है !”

“अब तुम इसे मेरी बुजदिली समझो चाहे जो भी। लेकिन मैं उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहता। भले ही वो सारी ज़िंदगी मुझे एक नामर्द समझती रहे।”

“मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है, लेकिन मैं आपको वो दूँगी जो नसरीन भाभी जान ने नहीं दिया।”

उन्होंने चौंक कर मेरी तरफ़ देखा, उनकी गहरी आँखों में उत्सुकता थी मेरी बात का आशय सुनने की।

मैंने आगे कहा, “मैं आपको अपनी कोख से एक बच्चा दूँगी।”

“क्या?? कैसे??” वो हड़बड़ा उठे।

“अब इतने बुद्धू तो आप हो नहीं कि समझाना पड़े कैसे !” मैं उनके सीने से लग गई, “अगर वो दोनों आपकी चिंता किये बिना जिस्मानी ताल्लुकात रख सकते हैं तो आपको किसने ऐसा करने से रोका है?” मैंने अपनी आँखें बंद करके फुसफुसाते हुए कहा जो उनके अलावा किसी और को सुनाई नहीं दे सकता था।

इतना सुनना था कि उन्होंने मुझे अपने सीने में दाब लिया। मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो उनके होंठ मेरे होंठों से आ मिले। मेरा जिस्म कुछ तो दोपहर के नशे से और कुछ उत्तेजना से तप रहा था।

मैंने अपने होंठ खोल कर उनके होंठों का स्वागत किया। उन्होंने मुझे इस तरह चूमना शुरू किया मानो बरसों के भूखे हों। मैं उनके चौड़े सीने के बालों में अपनी उँगलियाँ फेर रही थी। उन्होंने मेरे जिस्म पर बंधी गाउन की उस डोर को खींच कर खोल दिया।

अब मैं सिर्फ सैंडल पहने, पूरी तरह नंगी उनके सामने थी। मैंने भी उनके पायजामे के ऊपर से उनके लंड को अपने हाथों से थाम कर सहलाना शुरू किया।

“मम्मंह… काफी मोटा है। भाभीजान को तो मज़ा आ जाता होगा?” मैंने उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में भर कर दबाया।

फिर पायजामे की डोरी को खोल कर उनके लंड को बाहर निकाला। उनका लंड काफी मोटा था। उनके लंड के ऊपर का सुपाड़ा एक टेनिस की गेंद की तरह मोटा था।

फिरोज़ भाईजान गोरे-चिट्टे थे, लेकिन लंड काफी काला था। उनके लंड के मुँह से पानी जैसा चिपचिपा रस निकल रहा है। मैंने उनकी आँखों में झाँका। वो मेरी हरकतों को गौर से देख रहे थे।

मैं उनको इतनी खुशी देना चाहती थी जितनी नसरीन भाभीजान ने भी नहीं दी होगी। मैंने अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और स्लो-मोशन में अपने सिर को उनके लंड पर झुकाया। मेरी आँखें लगातार उनके चेहरे पर टिकी हुई थी।

मैं उनके चेहरे पर उभरने वाली खुशी को अपनी आँखों से देखना चाहती थी। मैंने अपनी जीभ उनके लंड के टिप पर लगाई और उससे निकलने वाले रस को चाट कर अपनी जीभ पर ले लिया। फिर उसी तरह धीरे-धीरे मैंने अपना सिर उठा कर अपनी जीभ पर लगे उनके रस को उनकी आँखों के सामने किया और मुँह खोल कर जीभ अंदर कर ली।

मुझे अपना रस पीते देख वो खुशी से भर उठे और वापस मेरे चेहरे पर अपने होंठ फिराने लगे। वो मेरे होंठों को, मेरे कानों को, मेरी आँखों को, गालों को चूमे जा रहे थे और मैं उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में भर कर सहला रही थी।

मैंने उनके सिर को पकड़ कर नीचे अपनी चूचियों से लगाया। उन्होंने जीभ निकाल कर दोनों चूचियों के बीच की गहरी खाई में फ़िराई। फिर एक मम्मे को अपने हाथों से पकड़ कर उसके निप्पल को अपने मुँह में भर लिया। मेरे निप्पल पहले से ही तन कर कड़े हो गये थे।

वो एक निप्पल को चूस रहे थे और दूसरे मम्मे को अपनी हथेली में भर कर मसल रहे थे। पहले तो उन्होंने धीरे-धीरे मसला मगर कुछ ही देर में दोनों मम्मे पूरी ताकत से मसल-मसल कर लाल कर दिये। मैं उत्तेजना में सुलगने लगी।

मैंने उनके लंड के नीचे उनकी गेंदों को अपनी मुठ्ठी में भर कर सहलाना शुरू किया। वो बीच-बीच में मेरे फूले हुए निप्पल को दाँतों से काट रहे थे और कभी जीभ से निप्पल को छेड़ने लगते।

मैं “सीईऽऽ… आआ…आहहऽऽऽऽ… मममऽऽऽ… ऊँऊँऽऽऽऽ” जैसी आवाजें निकालने से खुद को नहीं रोक पा रही थी।

उनके होंठ दोनों मम्मों पर घूमने लगे और जगह-जगह मेरे मम्मों को काट-काट कर अपने मिलन की निशानी छोड़ने लगे। पूरे मम्मों पर लाल-लाल दाँतों के निशान उभर आये।

मैं दर्द और उत्तेजना में “सीईऽऽऽ… सीईऽऽऽ…” कर रही थी और अपने हाथों से अपने मम्मों को उठाकर उनके मुँह में दे रही थी।

“कितनी खूबसूरत हो…” फिरोज़ भाई जान ने मेरे दोनों उरोजों को पकड़ कर खींचते हुए कहा।

“आगे भी कुछ करोगे या इनसे ही चिपके रहने की मर्ज़ी है?” मैंने उनको प्यार भरी एक झिड़की दी।

निप्पल लगातार चूसते रहने की वजह से दुखने लगे थे, मम्मों पर जगह-जगह उनके दाँतों के काटने से लाल-लाल निशान उभरने लगे थे।

मैं काफी उत्तेजित हो गई थी, जावेद इतना फोर-प्ले कभी नहीं करता था। उसको तो बस टाँगें चौड़ी करके अंदर डाल कर धक्के लगाने में ही मज़ा आता था।

कहानी जारी रहेगी।

शहनाज़ खान

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