बस के सफर से बिस्तर तक-2

(Bus Ke Safar Se Bistar Tak- Part 2)

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इस एडल्ट स्टोरी के पिछले भाग
बस के सफर से बिस्तर तक-1
में आपने पढ़ा कि मैं अपने भाई की साली के साथ भीड़ भरी बस में एक कोने में खड़ा था, हमारे बदन एक दूसरे से जुड़े हुए थे.
अब आगे:
मैं और ममता जी अब भी ऐसे ही खड़े रहे मगर कोई कुछ बोल नहीं रहा था, फिर कुछ देर बाद बस रूक गयी, यह आखरी स्टॉप था इसलिये एक एक करके सारी सवारियां उतरने लगी। मैं व ममता जी भी बस से उतर गये और घर जाने के लिये हमने एक रिक्शा पकड़ ली। ममता जी अब भी कुछ नहीं बोल रही थी इसलिये मैंने ही उनसे बात करने की कोशिश की मगर ममता जी ने बस ‘हाँ हुँ…’ में ही मेरी बात का जवाब दिया, इसके सिवा घर तक उन्होंने कोई बात नहीं की।
अब मुझे डर लगने लगा था कि कहीं ममता जी मेरी शिकायत ना कर दें।

हम घर पहुंचे तब तक रात के दस बज गये थे, तब तक मेरी भाभी ने रात का खाना बना लिया था और सभी ने खाना भी खा लिया था। मेरे मम्मी पापा तो खाना खा कर अपने कमरे में भी जा चुके थे।
घर जा कर मैंने तो खाना‌ खाया मगर ममता जी ने खाना भी नहीं खाया, वो बिना खाना खाये ही सीधा मेरी भाभी के कमरे में चली गयी। अब तो मैं और भी डर गया कि ममता जी पक्का ही मेरी शिकायत करेंगी।
खैर खाना खा कर मैं भी ड्राईंगरूम में आ कर सो गया।

अगले दिन ममता जी से बात करना तो दूर नजरें मिलाने की भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं सोच रहा था कि ममता जी ने मेरी भाभी को तो रात में ही बता दिया होगा और अब मेरी मम्मी पापा को भी मेरी शिकायत करेंगी, मुझे मेरी पिटाई होना तय ही लग रहा था…
मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
ममता जी ने शायद किसी को भी कुछ नहीं बताया था और उनका व्यवहार तो ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

एक दो दिन तो मैं डर डर कर रहा मगर फिर पहले जैसा ही सब कुछ सामान्य हो गया।

ममता जी के मेरी शिकायत नहीं करने से मेरे दिल में अब उनके लिये नये नये ख्याल आने लगे और मैं दिल ही दिल में उनको पाने के लिये योजनायें बनाने में लग गया, जिसके लिये मैं किसी ना किसी बहाने से ममता जी के अधिक से अधिक पास रहने की कोशिश करने लगा, साथ ही घर के कामों में भी उनकी मदद कर देता और इस बहाने मैं उनके हाथ पैर व मखमली बदन को स्पर्श कर देता था।

वो मुझे काम करने के लिये मना भी करती थी मगर मैं उनकी बात को हंसी मजाक में अनदेखा कर देता और जानबूझ कर उनके साथ घर के काम में लगा रहता था। यह बात ममता जी भी समझती थी इसलिये मेरे घर के काम करने व उन्हें छूने पर वो हंसने लगती थी।

एक दिन तो बातों बातों में उन्होंने मुझे कह भी दिया- मुझे सब पता है कि आजकल तुम क्यों मेरी इतनी मदद करने में लगा हुआ है!
मैंने उन्हें खोलने के लिये पूछा भी- क्यों मदद करता हूँ?
तो वो बस हंस कर रह गयी मगर मेरी बात का जवाब नहीं दिया।

ममता जी को मेरी नियत का पता था, वो मुझे कुछ कहती तो नहीं थी मगर मुझसे दूर ही रहने की कोशिश करती रहती थी।
इसी तरह दिन गुजरते गये मगर ममता जी के साथ मेरी बात नहीं बन रही थी. मेरी भाभी को नौवाँ महीने समाप्त होने वाला था और बच्चा होने की तारीख नजदीक आ रही थी इसलिये कुछ दिन बाद मेरे भैया महीने भर की छुट्टी आ गये।
भैया आये उसी रात से उन्होंने भाभी के कमरे पर कब्जा जमा लिया। ममता जी अब भैया भाभी के कमरे में तो नहीं सो सकती थी, और मेरे मम्मी पापा का कमरा भी इतना बड़ा नहीं था कि ममता जी उसमें अपना बिस्तर लगा सकें… ममता जी अब मेरे साथ ड्राईंगरूम में एक ही बैड पर सोने के लिये मजबूर हो गयी।

ममता जी मेरे साथ शायद सोना तो नहीं चाहती थी मगर ड्राईंगरूम में एक ही बैड था जिस पर मैं सोता था, और ममता जी के लिये दूसरा बिस्तर लगाने की उसमें जगह नहीं थी, क्योंकि उस समय ड्राईंगरूम में सुमन के दहेज का सामान रखा हुआ था जो रामेशर चाचा ने कुछ दिन पहले ही खरीद कर हमारे यहाँ रखवा दिया था जिसमें कुर्सियां, सोफासैट, टेबल, टीवी ट्राली और अलमारी आदि थे।

सुमन के बारे में तो आप पहले ही पढ़ चुके होंगे जिनकी अब शादी होने वाली थी। सुमन का ससुराल नजदीक ही था इसलिये चाचा जी ये सारा सामान गांव ले जाने की बजाये हमारे यहाँ रखवा दिया था ताकि शादी के दिन वो यही से उसे सुमन के ससुराल पहुँचा सकें, जिससे उनकी मेहनत और किराया भी बच जायेगा।

वैसे हमारा ड्राईंगरूम इतना छोटा भी नहीं है मगर उस समय इतने सारे सामान के होते हुए ड्राईंगरूम में इतनी जगह नहीं थी कि ममता जी अपना अलग से बिस्तर लगा सकें।

वैसे वो बैड काफी बड़ा था जिस पर हम दोनों आराम से सो सकते थे‌ मगर ममता जी को मेरी‌ नियत का पता था इसलिये मेरे साथ सोने में वो थोड़ी‌ घबरा सी रही थी।

रात को ममता‌ जी‌ जब घर के सारे काम निपटा कर सोने के लिये आई‌ तो‌ उस समय मैं पढ़ाई कर रहा ‌था, पढ़ाई तो‌ कहाँ कर रहा था बस ये सोच कर रोमांचित सा‌ हो रहा था‌ कि‌ आज ममता जी मेरे पास सोयेंगी. और बस उनके आने का इन्तजार ही कर रहा था।

ममता जी के आते ही मैंने भी उन्हें छेड़ने के लिये मजाक करते हुए कह दिया- आज तो लगता है ऊपर वाला मुझ पर काफी मेहरबान है!
जिससे ममता जी के चेहरे पर घबराहट व शर्म के मिलेजुले भाव उभर आये, मगर फिर जल्दी ही उन्होंने अपने आप को सम्भाल लिया और हंसते हुए कहने लगी‌- अगर मुझे हाथ भी लगाया ना तो तेरी पिटाई कर दूँगी… मुझे पता है कि तू क्या सोच रहा है!
मैंने भी हंसते हुए उनसे पूछ लिया- क्या सोच रहा हूँ?
ममता जी पहले तो शर्मा सी गयी और फिर बनावटी सा गुस्सा करके बोली- चुपचाप पढ़ाई कर ले, नहीं तो चपेड़ पड़ेगी!

इसके बाद ममता जी ने मुझसे कोई ‌बात नहीं ‌की‌ और चुपचाप अपनी अलग से रजाई ले कर सो गयी। हम दोनों ने ही अलग अलग रजाई ले रखी थी मगर फिर भी ममता जी मुझसे काफी दूर हो कर सोई।

मैं पढ़ने की कोशिश तो कर रहा था मगर पढ़ाई में मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं लग रहा था क्योंकि ममता जी के इतने पास और वो भी अकेले में होने पर मेरे दिल में अजीब ही गुदगुदी सी हो रही थी, ममता जी के साथ ऐसा मौका मुझे आज तक नहीं मिला था। मेरा दिल उन्हें पकड़ने को तो कर रहा था मगर साथ ही मुझे डर भी लग रहा था क्योंकि उस बस वाली घटना के बाद हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ था जिससे मेरा कुछ काम बन जाये।‌ अभी तक मैंने बस हंसी मजाक में ही, या फिर घर के काम करने के बहाने ही छुआ था और उसका भी ममता जी विरोध करती थी.
और अब तो मेरे भैया भी घर पर ही थे, अगर मैंने कुछ किया और ममता जी ने मेरी शिकायत कर दी तो मेरी शामत आ जानी थी, इसलिये मैं काफी डर भी रहा था।

कुछ देर‌‌ तक तो पढ़ाई के बहाने मैं ऐसे ही बैठा रहा और ममता जी के बारे में सोचता रहा… मैं सोच रहा था कि हो सकता है ममता जी ही आगे से कोई पहल या इशारा कर दें!
मगर ममता जी ने ऐसा कुछ नहीं किया, शायद वो सो गयी थी।

ममता जी ‌की‌ तरफ से जब कोई हरकत नहीं हुई तो मैंने भी‌ अब ड्राईंगरूम की लाईट बन्द कर दी और चुपचाप सो गया। लाईट बन्द करने के बाद भी ड्राईंगरूम में एक छोटा सा बल्ब जल रहा था जिसकी रोशनी इतनी ज्यादा तो नहीं थी मगर देखने के लिये पर्याप्त थी। मैं अब भी ममता जी की तरफ ही देख रहा था… ना तो मुझे नीन्द आ रही थी और ना ही ममता जी के साथ कुछ करने की मेरी हिम्मत हो रही थी।

मुझे डर भी लग रहा था और इतना अच्छा मौका मैं हाथ से जाने भी तो नहीं देना चाहता था. करीब घण्टे भर तक मैं ऐसे ही लेटा रहा, फिर जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने सोच लिया कि अब जो होगा वो देखा जायेगा.
इसलिये पहले तो मैं खिसक कर ममता जी के नजदीक हो गया और फिर धीरे से अपना एक हाथ ममता जी की रजाई में घुसा दिया जो सीधा ही ममता जी के शर्ट के ऊपर से उनके मुलायम अनारों पे रखा गया.
और जैसे ही मैंने उनकी चूचियों को पकड़ा, ममता जी ने तुरन्त मेरे हाथ को पकड़ लिया और धीरे से फुसफसाई- ओय… क्या कर रहा है? हम्म… मुझे पता था… तू शरारत किये बैगर नहीं मानेगा,
इसीलिये तो…!

एक बार तो डर के मारे मेरी जान ही निकल ‌गयी मगर फिर जल्दी ही मैंने अपने आप को सम्भाल लिया क्योंकि ममता जी का इतनी देर तक जागना और इस तरह से मेरी चोरी का पकड़ना इस बात का सबूत था कि‌ ममता जी के दिल में भी‌ जरुर कुछ ना कुछ तो चल ही रहा है।
यह बात मेरे दिमाग में आते ही मैंने एक ही झटके में अपनी रजाई को फेंक कर अलग कर दिया और तुरन्त ममता जी की रजाई में घुस गया.

“अ..र.. ऐ… रेरेरे..?!? ये…क्या.. कर…रहा…है…!!?” कहते हुए ममता जी धीरे से फिर से फुसफुसाई मगर तब तक मैंने ममता जी को अपनी बाँहों में भर लिया, मेरी इस हरकत से ममता जी एक बार तो जैसे सहम सी गई, ममता जी को मुझसे इतनी जल्दी इस तरह की हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी इसलिये वो‌ बुरी तरह से घबरा गयी थी। डर व घबराहट के कारण कुछ देर तक तो उनके मुँह से आवाज भी नहीं निकल सकी और वो गुमसुम सी हो गयी. फिर एक लम्बी सी सांस लेते हुए वो जल्दी से मुझे अपने से दूर धकेलते हुए बिस्तर से उठने का प्रयास करने लगी.
मगर मैंने उन्हें छोड़ा नहीं, मैं ऐसे ही उन्हें अपनी बांहों में भर कर उनसे लिपटा रहा.

मुझे हटाने का प्रयास करते हुए ममता जी अब धीरे धीरे फुसफुसाने लगी- छोड़… छोड़ मुझे… ओय… ये क्या कर रहा है… महेश… छोड़ मुझे…
मेरे दिल की धड़कन अब तेज़ हो गई थी और डर के मारे पूरा बदन कंपकपां भी रहा था फिर भी मैं ममता जी से लिपटा रहा… ममता जी भी डर व घबराहट से कांप रही थी और कंपकपांती सी आवाज में वो अब बुदबुदा भी रही थी- च..छो.ड़…. छोड़.. म.मुझे… अ.ओय… क्या कर रहा है… छोड़ मुझे…

मुझसे अब रहा नहीं गया और मैंने अपने होंठ धीरे से ममता जी के होंठों पर रख दिए। मैंने सीधा ही उनके होंठों को चूमा नहीं बल्कि धीरे धीरे बहुत ही हल्के से अपने होंठों को ममता जी के होंठों पर रगड़ने लगा जिससे उनके होंठ थरथराने लगे- म्म्म. म.म.. ह..ऐ..श्शश… न्..न्..न.ही..ई… य.ए.ऐ… क्क्…य..आ… क…र..अ…

ममता जी की कम्पकपाती आवाज ने वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि मैंने अपने होंठों को खोल कर उनके नर्म नाज़ुक अधरों को अपने अधरों में कैद कर लिया और बड़े प्यार से उन्हें चूमने लगा जिससे ममता जी कसमसाने लगी। वो हल्के हल्के कसमसा रही थी मगर उनका विरोध अब क्षीण होने लगा था।
मेरे हाथ भी अब अपने आप हरकत में आ गये जो उनके कँधों पर से होते हुए उनकी गर्दन को सहलाने लगे। उनके कन्धों पर मेरे हाथ ऐसे फिसल रहे थे जैसे कोई नर्म मुलायम रेशम हो।
मैं अपनी उंगलियों से उनके गले के चारों तरफ घुमा घुमा कर उन्हें उत्तेजित करने लगा।
ममता जी के होंठों को चूसते हुए मैं अपना हाथ धीरे से उनके सीने पर ले आया और शर्ट के ऊपर से उनके मुलायम अनारों पर रख दिया.
जैसे ही मैंने उनकी चूची को पकड़ा… ममता जी सिहर सी गयी और उन्होंने मेरे होंठों को अपने दांतों से काट लिया और… “इईईई… श्श्श्शशश…” एक हल्की सी सिसकारी के साथ ममता जी ने हाथ की उंगलियों से मेरी पीठ की चमड़ी को जोर से भींच लिया।

मैंने भी अब धीरे धीरे उनकी एक चूची को सहलाना शुरू कर दिया और साथ ही साथ उनके होंठों को भी चूसता रहा। इतनी नर्म और मुलायम चूची थी कि बस पूछो मत।
जैसे जैसे मैं ममता जी की चूची दबा रहा था, ममता जी सिसकार सी‌ रही थी और उनकी‌ कमर के नीचे का भाग लहराते हुए बल ‌से‌ खा रहा था। कुछ देर उनकी चूची को सहलाने के बाद मेरा हाथ फिसलता हुआ नीचे उनके पिछवाड़े पर आ गया और उनके गोल गोल चूतड़ को धीरे अपनी हथेली में भर कर सहलाने लगा।

मुझे कुछ अजीब सा लगा, मैंने अपने हाथों को और अच्छी तरह से सहला कर देखा तो पाया कि ममता जी ने आज भी अन्दर कुछ नहीं पहना है। शायद ममता जी कभी पैंटी पहनती ही नहीं थी क्योंकि अभी तक मैंने कपड़ों में भी कभी उनकी पैंटी नहीं देखी थी।

ममता जी के नितम्बों को‌ सहलाते हुए मैं अब अपना हाथ आगे की उनकी जांघों पर ले आया और उनकी मांसल व भरी हुई जांघों को सहलाते हुए उनकी योनि की तरफ बढ़ने लगा। मैंने उनकी योनि को कपड़ों के ऊपर से ही‌ छुवा था की तभी ममता जी ने “इईईई… श्श्शशश… अआआ… ह्ह्ह… ओय….” कहते हुए अपने होंठों को मेरे होंठों से छुड़ा लिया और मुझे अपने ऊपर से धकेल कर कर उठने की कोशिश करने लगी, मगर मैंने उन्हें फिर से दबोच लिया अबकी बार मैंने अपना एक पैर भी ममता जी पैरों पर डाल कर उन्हें दबा लिया ताकि वो उठने की कोशिश ना कर सके।

मेरा मुँह अब ममता जी की गर्दन पर था, मैंने भी अब अपने गीले होंठ उनके कान की लौ के ठीक नीचे उनकी गर्दन पर रख दिए और एक प्यारा सा चुम्बन कर दिया।
“इईईई… श्श्श्श… महेश…” ममता जी के मुँह से सिसकारी सी निकल गयी… उन्होंने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया और सिसकारते हुए अपने से दूर हटाने की कोशिश करने लगी मगर मैं उन्हें ऐसे ही पकड़े रहा और अपने काम को जारी रखते हुए उनकी गर्दन व गालों‌ को‌ अपनी जीभ से चाटते हुए धीरे धीरे उनके होंठों की तरफ बढ़ने लगा जिससे ममता जी मुँह से मादक सिसकारियाँ निकालने लगी।‌

ममता जी को भी मजा‌ आ रहा था मगर शायद शर्म व डर की वजह से वो खुल‌ कर मेरा साथ नहीं दे पा रही थी और इसीलिये शायद वो मेरा विरोध भी कर रही थी मगर उनका विरोध ना के ही बराबर था जिसका मुझ पर ज्यादा असर नहीं हो रहा था।
मेरे होंठ अब उनके होंठों पर पहुँच गये थे और मैं फिर से उनके होंठों को मुँह में भर कर चूसने लगा जिससे ममता जी के हाथ अपने आप ही अब मेरे सिर पर आ गये और वो भी मेरे होंठों को‌ धीरे धीरे चूसने‌ लगी।

ममता जी मेरे होंठों को चूसने में मशगूल थी इसलिये उनके होंठों को चूसते चूसते ही धीरे धीरे मैं उनके शर्ट को ऊपर खिसकाने लगा और जब तक ममता जी को इस बात का अहसास होता, मैंने उनके शर्ट को‌ उनकी चूचियों तक ‌उलट दिया था, शर्ट के नीचे उन्होंने काले रंग की ब्रा पहन रखी थी और ब्रा में से उनकी दोनों चूचियाँ बाहर आने को‌ हो रही थी।

मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी ब्रा के ऊपर रख दिए… पहले तो मैंने दोनों कबूतरों को एक बार प्यार से सहलाया और फिर झटके से उनकी ब्रा को ऊपर की तरफ खिसका दिया जिससे ममता जी की दोनों चूचियां ब्रा के कपों‌ में से बाहर आ गयी और अब मेरे सामने दो आज़ाद कबूतर उछल रहे थे.
“अआआ..ह्हह… ओय… ये क्या कर है?” ममता जी ने अचानक से अपना मुँह मेरे मुँह से छुड़वा कर कहा और अपनी ब्रा को फिर से नीचे करने की कोशिश करने लगी.

यह एडल्ट स्टोरी जारी रहेगी.
अपने विचार मुझे मेल करें कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है!
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एडल्ट कहानी का अगला भाग : बस के सफर से बिस्तर तक-3

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