बस के सफर से बिस्तर तक-1
(Bus Ke Safar Se Bistar Tak- Part 1)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right बस के सफर से बिस्तर तक-2
-
View all stories in series
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम महेश कुमार है और मैं सरकारी नौकरी में हूँ। मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि मेरी सभी कहानियाँ काल्पनिक है जिनका किसी व्यक्ति जीवित अथवा मृत, स्थान आदि से भी कोई सम्बन्ध नहीं है, अगर होता भी है तो ये मात्र एक सँयोग ही होगा।
मेरी पिछली कहानी को आपने पसन्द किया इसके लिये धन्यवाद।
अब एक नई कहानी लिख रहा हूँ उम्मीद करता हूँ कि यह भी आपको पसन्द आयेगी। आपने मेरी पहले की कहानियों में मेरे बारे में तो पढ़ ही लिया होगा। जैसा की आपने मेरी पिछली कहानी में मेरे और पिंकी के सेक्स सम्बन्धों के बारे में पढ़ा, यह उसके आगे की कहानी है।
पिंकी के साथ सेक्स सम्बन्ध बनने के बाद हमारा पढ़ाई में बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहा, पिंकी तो फिर भी किसी तरह पास हो गयी मगर मैं फेल हो गया था जिसके कारण मुझे भैया से काफी मार पड़ी और भाभी को भी डांट सुनने को मिली थी, मगर फिर भी मेरे पिंकी के साथ सेक्स सम्बन्ध जारी रहे.
पिंकी अब कॉलेज जाने लगी थी और मैं फिर से बारहवीं करने लगा। इस दौरान पिंकी के भैया की शादी हो गयी। पहले तो सब ठीक ही चलता रहा मगर फ़िर धीरे धीरे पिंकी की भाभी को हमारे सम्बन्धों का शक हो गया जिसके कारण पिंकी का हमारे घर भी आना जाना कम हो गया। पिंकी की भाभी अब हम दोनों पर नजर रखने लगी थी मगर फिर भी रात को छत पर या किसी और जगह हमारे सम्बन्ध बन ही जाते थे, साथ ही मेरी भाभी के साथ भी मेरे सम्बन्ध चल ही रहे थे.
मगर मेरी भाभी पेट से हो गयी थी, वो माँ बनने वाली थी इसलिये मेरी भाभी मुझे अपने साथ चुदाई का कम ही मौका देती थी और वैसे भी मेरा काम पिंकी के साथ तो चल ही रहा था।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि एक बार रात को मैं और पिंकी छत पर चुदाई कर रहे थे, पता नहीं कैसे वहाँ पर पिंकी की भाभी आ गयी और उसने हमें चुदाई करते हुए रँगे हाथ पकड़ लिया, पिंकी की भाभी ने मुझे तो कुछ नहीं कहा मगर पिंकी की शामत आ गयी। पिंकी का घर से बाहर निकालना अब बिल्कुल बन्द हो गया था, यहाँ तक कि उसके घर वालों ने पिंकी की पढ़ाई भी बन्द करवा दी। पिंकी के घर वाले अब उसकी शादी के लिये रिश्ता देखने लगे थे।
पिंकी के घर वालों ने मेरे घर पर भी मेरे व पिंकी के सम्बन्धों बारे में बता दिया था जिससे मुझे अपने मम्मी पापा के सामने काफ़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी, साथ ही पापा से मुझे काफी डांट भी सुननी पड़ी थी, वो तो बस शुक्र इतना था कि उस समय मेरे भैया घर पर नहीं थे, वरना भैया तो मुझे मार ही देते।
पिंकी की चुदाई बन्द होने के बाद मैं भी अपना सारा ध्यान अब पढ़ाई पर लगाने लगा जिसमें भाभी मेरी काफी मदद करती थी। मैं अब भी भाभी के कमरे में ही सोता था इसलिये भाभी के पेट से होने के बावजूद भी कभी कभी हम देवर भाभी चुदाई कर ही लेते थे।
इसी तरह दिन बीतते रहे और भाभी को महीना चढ़ता रहा, भाभी को अब घर के काम में दिक्कत आने लगी थी। पहले तो स्कूल से आने के बाद मैं भाभी की मदद कर देता था मगर भाभी को जब आठवाँ महीना लगा तो भाभी के लिये घर के काम करना और भी मुश्किल हो गया। मेरी मम्मी तो बीमार ही रहती थी इसलिये वो तो घर के काम कर नहीं सकती थी और मुझे भी स्कूल जाना होता था इसलिये मैं भी सारा दिन घर में नहीं रह सकता था.
और अभी तो भाभी का नौवाँ महीना बाकी था साथ ही अभी बच्चा भी होना था इसलिये हम किसी रिश्तेदार को बुलाने के लिये सोचने लगे. मगर हमारा कोई सगा रिश्तेदार तो था नहीं, बस गाँव में चाचा जी ही थे जिनके साथ हमारे अच्छे सम्बन्ध थे। मैं तो खुश हो रहा था कि अब गाँव से सुमन या फिर रेखा भाभी में से कोई आयेगा.
सुमन व रेखा भाभी के बारे में तो आप जानते ही हैं. अगर नहीं जानते तो मेरी पहले की कहानियां
भाभी की चुदाई के चक्कर में चचेरी बहन को पकड़ लिया
जरूर पढ़ें!
मगर सुमन का रिश्ता हो चुका था और दो महीने बाद ही उसकी शादी होने वाली थी इसलिये मेरे पापा को सुमन का बुलाना ठीक नहीं लगा और शादी वाले घर में बहुत काम होते हैं इसलिये रेखा भाभी भी नहीं आ सकती थी। मेरे पापा तो नौकरानी रखना चाहते थे मगर मेरी मम्मी व भाभी नौकरानी के लिये मना कर रही थी। अब समस्या यह थी की अगर बुलायें तो किसको बुलायें?
दो तीन दिन तक हमारे घर में यही बहस चलती रही, फिर मेरी भाभी ने ही कमान सँभालते हुए अपनी बुआ की लड़की ‘ममता जी’ को बुलाने की सलाह दी, जो सबको सही भी लगी, और फिर अगले ही दिन मेरे पापा भाभी की बुआ की लड़की, ‘ममता जी’ को हमारे घर ले कर आ गये।
ममता जी ने एम० ए० कर ली थी और आगे की पढ़ाई वो घर पर रह कर ही कर रही थी इसलिये उनको आने में कोई दिक्कत नहीं हुई। वैसे तो ममता जी, मेरी भाभी से बस साल भर ही छोटी थी, मेरी भाभी को तो शादी के बाद अब बच्चा भी होने वाला था मगर ममता जी की शादी तो दूर, अभी तक रिश्ता भी नहीं हुआ था, ममता जी आगे पढ़ना चाहती थी इसलिये पढ़ाई के कारण पहले तो वो खुद शादी से मना करती रही मगर अब उनके जितना पढ़ा हुआ योग्य कोई लड़का नहीं मिल रहा था।
मैंने ममता जी को भैया की शादी में ही देखा था उसके बाद उनसे मिलने का कभी मौका नहीं मिला था। मैं क्या हमारे घर में मेरी भाभी को छोड़ कर कोई भी ममता जी को नहीं जानता था मगर फिर भी वो इतनी मिलनसार वहंसमुख थी की हफ्ते भर में ही वो सभी से घुल मिल गयी।
ममता जी मेरे भैया की साली लगती थी, इस नाते वो मेरी भी साली ही लगी मगर मुझसे वो उम्र बड़ी थी इसलिये मैं उन्हें ममता जी कह कर बुलाता था और वो मुझे मेरे नाम से बुलाती थी.
ममता काफीहंसमुख थी काफी बार तो वो मुझे छोटे जीजा जी कह कर मजाक भी कर लेती थी। ममता मेरी भाभी के कमरे में सोने लगी और मैंने फिर से अपना बिस्तर ड्राईंगरूम में लगा लिया था, वैसे भी अब इस हालत में भाभी के साथ मैं कुछ कर भी नहीं रहा था। ममता ने हमारे घर का सारा काम सम्भाल लिया था जिससे अब भाभी को आराम हो गया और मुझे भी घर के काम से फुर्सत मिल गयी।
सब कुछ सही चल रहा था फिर एक दिन ममता ने बताया कि उन्हें प्रवेश प्रपत्र भरने के लिये उनके कॉलेज जाना होगा और उन्हें घर पर भी कुछ काम है। ममता पास ही के शहर में रहती थी जो की ज्यादा दूर तो नहीं था मेरे यहाँ से बस 80 किलोमीटर ही होगा मगर वहाँ की सड़क बहुत खराब थी, ममता को उनके घर से मेरे पापा ले कर आये थे, सड़क खराब होने के कारण उन्हें कमर में काफी दर्द हो गया था। अब मेरे पापा वहाँ दोबारा नहीं जाना चाहते थे इसलिये मेरे पापा ने ममता जी के साथ मुझे जाने के लिये कहा।
ममता को काम खत्म करके उसी दिन वापस भी आना था, नहीं तो घर पर भाभी को काम की परेशानी हो जाती इसलिये हम अगले दिन सुबह जल्दी ही घर से चल दिये और समय से पहुँच भी गये। सबसे पहले हम ममता जी के घर गये, और फिर वहाँ के काम निपटा कर ममता के कॉलेज चले गये। ममता ने काफी जल्दी भी की मगर फिर भी हमें कॉलेज में काफी समय लग गया और बड़ी मुश्किल से हमें उस दिन की आखरी बस मिल सकी। वो आखरी बस थी और हम देर से भी आये थे इसलिये बस में हमें बैठने के लिये सीट नहीं मिली।
उस बस में भीड़ तो नहीं थी, बस मैं और ममता जी ही खड़े हुए थे बाकी सभी सवारियां सीट पर बैठी हुई थी।
एक तो हमें सीट नहीं मिली थी, ऊपर से वो बस इतनी पुरानी और खटारा थी कि बहुत ही धीरे धीरे चल रही थी.
कुछ देर तक तो हम खड़े रहे फिर मैंने देखा कि बस के आखिर में जो एक लम्बी सी सीट होती है वो उस बस में नहीं लगी हुई थी, उसकी जगह खाली थी। खाली जगह देख कर मैं और ममता जी वहाँ चले गये। वहाँ पर ममता जी ने देखा की बस के कोने में छोटा सा लकड़ी का एक पटरा पड़ा हुआ था ममता जी नीचे उस पट्टरे पर बैठ गयी। कुछ देर तक तो मैं खड़ा रहा फिर मैं भी उनके बगल में ऐसे ही नीचे बैठ गया।
मेरे शहर को जाने वाली एक तो वो आखिरी बस थी और ऊपर से वो हर एक स्टैंड पर रूक रुक कर सवारी लेती हुई धीरे धीरे चल रही थी इसलिये कुछ देर बाद ही अन्धेरा होने लगा और धीरे धीरे बस में सवारियाँ भी बढ़ने लगी। मुझे उस बस वाले पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि एक तो वो हर एक स्टैंड पर सवारियाँ भरता हुआ बस को धीरे धीरे चला रहा था जिससे भीड़ बढ़ती जा रही थी, ऊपर से वो अन्धेरा होने पर भी बस की लाईट नहीं जला रहा था इसलिये बस की सवारियों के हमें पैर लग रहे थे। पता नहीं उस खटारा बस की लाईटें खराब थी या फिर वो जानबूझ कर लाईट नहीं जला रहा था।
कुछ देर तक तो मैं और ममता जी नीचे ही बैठे रहे मगर फिर सवारियाँ बढ़ने के कारण हमें खड़ा होना पड़ गया क्योंकि हमें सवारियों के पैर लग रहे थे। ममता जी बस के कोने में आगे की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी और मैं उनके बगल में खड़ा हो गया, ममता जी से बात करने के लिये मैंने ममता जी की तरफ ही मुँह किया हुआ था।
ममता जी के आगे की तरफ एक औरत खड़ी थी, एक तरफ मैं खड़ा हुआ था और उनके पीछे व बगल में बस का कोना था।
कुछ देर तक हम ऐसे ही खड़े रहे फिर ममता जी के आगे जो औरत खड़ी हुई थी, वो वहाँ से हट गयी, उसका स्टैंड आने वाला था इसलिये वो औरत वहाँ से आगे चली गयी और उसकी जगह ममता जी के आगे एक गँदा सा आदमी खड़ा हो गया। वो आदमी ममता जी की तरफ ही मुँह करके खड़ा हो गया था जिससे ममता जी को परेशानी होने लगी। कुछ देर तक तो ममता जी खड़ी रही मगर फिर उन्होने घुम कर अपना मुँह मेरी तरफ कर लिया, जिससे मैं और ममता जी एक दूसरे के आमने सामने हो गये और हमारे शरीर एक दूसरे से स्पर्श करने लगे।
बस में अब बिल्कुल अन्धेरा हो गया था और भीड़ भी काफी बढ़ गयी थी। भीड़ के कारण मैं और ममता जी अब एक दूसरे के बिल्कुल पास आ गये थे और सड़क की हालत काफी खराब होने के कारण बस काफी हिल भी रही थी जिससे ममता जी का कोमल बदन बार बार मेरे शरीर को स्पर्श हो रहा था। बस के हिलने से ममता जी की चुची मेरी छाती से व उनकी नर्म जाँघें बार बार मेरे लंड को को छुए जा रही थी।
ममता जी के कोमल बदन का स्पर्श पा कर अपने आप ही धीरे धीरे मेरा लंड उत्तेजित होने लगा. उस समय ममता जी के बारे में मैंने ऐसा सोचा भी नहीं था मगर फिर भी ममता जी के मखमली स्पर्श से मेरा लंड उत्तेजित होता जा रहा था। मैं कोशिश कर रहा था कि ममता जी को स्पर्श ना करूँ और मेरा लंड उत्तेजित ना हो मगर फिर भी धीरे मेरा लंड उत्तेजित हो गया।
उस दिन सुबह नहाने के बाद मैंने जल्दबाजी में एक तो पैंट के नीचे अण्डर वियर नहीं पहना हुआ था और दूसरा स्टाइल के चक्कर में रेशमी कपड़े की मैंने जो पैन्ट पहनी हुई थी, उसका कपड़ा भी बिल्कुल ही पतला सा था, इसलिये मेरे उत्तेजित लंड का उभार भी कुछ ज्यादा आ रहा था, यह बात ममता जी को पता ना चल जाये इसलिये मैं अपनी पूरी कोशिश करने लगा कि ममता जी को मेरे लंड का स्पर्श ना हो, मगर फिर भी भीड़ की वजह से और बस के हिलने के कारण मैं बार बार ममता जी को स्पर्श होता रहा जिससे ममता जी को भी इसका अहसास हो गया और वो हल्का हल्का कसमसाने सी लगी।
ममता जी को मेरी हालत का पता चल गया था इसलिये वो बिल्कुल चुप हो गयी। पहले वो बीच बीच में मुझसे बात कर रही थी मगर अब बिल्कुल खामोश हो गयी थी। मुझे अपने आप पर अब शर्मिंदगी हो रही थी कि पता नहीं ममता जी मेरे बारे में क्या सोच रही होगी.
ममता जी बुरा ना मान जायें, इसलिये मैं घूम कर खड़ा होना चाहता था मगर तभी बस एक जगह रुकी और वहाँ से बस में इतनी भीड़ भर गयी कि मैं ममता जी के साथ बिल्कुल ही चिपकता चला गया, जिससे ममता की चूचियां मेरी छाती से दब गयी और मेरा उत्तेजित लंड ममता जी की एक जाँघ पर लग गया।
अब तो ममता जी और भी जोर से कसमसाने लगी, उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे कंधों पर रख लिये और जोर से मुझे पीछे धकेलते हुए खुद भी पीछे हटने की कोशिश करने लगी, मगर ममता जी पहले ही कोने में खड़ी थी इसलिये उनके पीछे जगह नहीं थी और मेरे पीछे भी भीड़ इतनी थी कि मैं हिल भी नहीं पा रहा था।
मेरी व ममता जी की लम्बाई लगभग समान ही थी ऊपर से ममता जी के कसमसाने से मेरा लंड अब उनकी दोनों जांघों बीच आ गया और सीधा ही उनकी चुत के ऊपरी भाग पर लग गया। अब तो ममता जी और भी जोर से कसमसाई और अपनी पूरी ताकत लगा कर पीछे होने की कोशिश करते हुए उनके नीचे जो लकड़ी का पटरा सा पड़ा हुआ था उस पर खड़ी हो गयी मगर ये तो हम दोनों के लिये और भी बुरा हुआ क्योंकि पहले तो मेरा लंड उनकी चुत के ऊपरी भाग पर ही लग रहा था मगर अब ममता जी के उस पटरे पर चढ़ जाने की वजह से वो थोड़ा ऊपर हो गयी और मेरा उत्तेजित लंड ठीक बिल्कुल उनकी चुत के ऊपर ही लग गया। ममता जी ने भी शायद नीचे पेंटी नहीं पहन रखी थी क्योंकि मुझे उनकी चुत का उभार बहुत करीब से महसूस हो रहा था अब तो ममता जी और भी जोरो से कसमसाने लगी.
वो अब वापस उस पटरे से नीचे भी नहीं उतर पा रही थी क्योंकि पीछे से भीड़ का दबाव इतना था कि हम हिल भी नहीं पा रहे थे।
मैं भी अब डर गया की, आज तो ममता जी घर जा कर पक्का ही मेरी शिकायत करेगी। पहले ही पिंकी के साथ पकड़े जाने के कारण घर में मेरी इज्जत का कबाड़ा हो रखा था और अब अगर ममता जी भी मेरी शिकायत कर देगी तो मेरी शामत ही आ जानी थी।
ममता जी से दूर होने के लिये मैंने भी अपने दोनों हाथों को बस के साथ लगा लिया और जोर से अपने आप को पीछे धकेलने लगा मगर बस में भीड़ बहुत ज्यादा थी, मेरे पीछे एक मोटा सा आदमी खड़ा था उसके शरीर का सारा भार, साथ ही उस आदमी के पीछे की सवारियों का भार भी मुझ पर ही पड़ रहा था।
ममता जी भी कसमसा रही थी मगर कुछ कर नहीं पा रही थी, मेरी हालत भी ऐसी ही कुछ थी। हम दोनों ही अब ऐसी स्थिति में फंस गये थे कि कोई कुछ नहीं कर पा रहा था.
मैं और ममता जी आपस में कोई बात नहीं कर रहे थे बस मेरी व ममता की सांसें ही एक दूसरे के चेहरे पर पड़ रही थी। मैं अपने दिमाग व लंड को नियंत्रण में करने की पूरी कोशिश कर रहा था मगर ममता जी की चूचियों व चुत की गर्माहट पा कर तो मेरा लंड और भी बेकाबू होता जा रहा था, साथ ही बस के झटकों से हमारे शरीर भी हिल रहे थे जिससे मेरा लंड ममता जी की नर्म मुलायम चुत पर रगड़ खा रहा था, ऊपर से मैं और ममता जी बस के आखरी कोने में खड़े थे और आपको तो पता ही होगा कि बस में आगे की बजाये पीछे की तरफ झटके भी कुछ ज्यादा ही लगते हैं।
ममता जी भी अब विवश हो कर शांत हो गयी और अपनी गर्दन झुका कर बिल्कुल खामोश खड़ी हो गयी। भीड़ की वजह से बस में काफी शोर हो रहा था मगर मैं और ममता जी चुपचाप गर्दन झुकाए एक दूसरे के साथ चिपके हुए खड़े थे बस हमारी सांसें ही एक दूसरे पर पड़ रही थी। मैं अपने आप पर शर्मिंदा सा हो रहा था मगर तभी मुझे ममता जी के बदन का तापमान कुछ बढ़ा हुआ सा महसूस होने लगा. पता नहीं यह मेरा वहम था या फिर सही में ममता जी भी उत्तेजित होने लगी थी।
उस दिन से पहले मैंने ममता जी के बारे में कभी कुछ गलत नहीं सोचा था मगर उस समय हम दोनों ही ऐसी स्थिति में खड़े थे कि मेरे दिमाग में एक साथ काफी सवालों के विस्फोट से होने लगे।
बस धीरे धीरे चल रही थी और भीड़ भी कम नहीं हो रही थी बल्कि अब तो लोग बस की छत पर भी चढ़ने लगे थे इसलिये हम उसी हालत में खड़े रहे। धीरे धीरे ममता जी की सांसें भी अब तेज होती जा रही थी। अब तो मुझे भी लगने लगा था कि ममता भी उत्तेजित हो रही है और उन्हें मजा आ रहा है, क्योंकि काफी देर से मैं और ममता जी ऐसे चिपके हुए खड़े थे जिससे ममता जी का कोमल बदन मेरे शरीर से मसला जा रहा था और मेरा लंड भी बार बार उनकी चुत पर रगड़ मार रहा था.
और फिर वो भी तो एक लड़की ही थी, आखिर कब तक उनका बदन ये सब सहन कर पाता, अतः उनके बदन ने अब हथियार डाल दिये थे। ममता जी के बदन का बढ़ा हुआ तापमान और तेज होती सांसें उनकी हालत बयान कर रही थी।
ममता जी को भी मजा आ रहा है, ये मालूम होते ही मेरा लंड तो मेरी पैन्ट ही फाड़ कर बाहर आने को हो गया और फिर इन सब कामों में तो मैं पक्का ही बेशर्म हूँ। अभी तक मैंने अपना और पीछे की भीड़ का भार अपने हाथों पे ले रखा था मगर अब अपने हाथों का भार कम करते हुए मैं धीरे धीरे ममता जी के बदन से और अधिक जोर से चिपकने लगा। मेरे पूरे शरीर का भार साथ ही मेरे पीछे की सवारियों का भार भी अब ममता जी के बदन पर पड़ने लगा था जिससे ममता जी की दोनों चूचियाँ मेरे सीने से चटनी की तरह पिस गयी। बस के झटकों की वजह से तो मेरे व ममता जी के शरीर हिल ही रहे थे मगर अब मैं जानबूझ कर ज्यादा हिलने लगा था जिससे मेरा लंड ममता जी की चुत पर जोर से घिसने लगा।
ममता जी अब कोई हरकत नहीं कर रही थी बस गर्दन झुकाये चुपचाप खड़ी थी मगर ममता जी की चुत की बढ़ती हुई तपिश मैं अपने लंड पर साफ महसूस कर रहा था। मुझे अब यकीन होता जा रहा था कि ममता जी को भी मजा आ रहा है मगर शर्म की वजह से वो कुछ बोल नहीं रही है।
मैं अब धीरे से अपना मुँह भी ममता जी के कान की लौ के पास ले आया और अपनी सांसों से भी उन्हें गर्म करने लगा, बीच बीच में जानबूझ कर मैं कभी कभी अपने होंठ उनके कान की लौ से छुआ दे रहा था जिससे ममता जी का बदन झनझना सा जाता और वो अपने चेहरे को मुझसे दूर हटा लेती।
ममता जी कुछ बोल तो नहीं रही थी मगर उनकी हालत से लग रहा था कि वो अब पूरी तरह से उत्तेजित हो गयी थी क्योंकि उनकी सांसें अब काफी तेज हो गयी थी और उनका बदन भी मुझे तपता हुआ सा महसूस हो रहा था।
मेरे लंड से तो पानी निकल ही रहा था मगर शायद अब ममता जी की चुत भी गीली हो रही थी क्योंकि मुझे नीचे अपने लंड के पास कुछ ज्यादा ही गीलापन महसूस हो रहा था।
मेरा शरीर तो ममता जी के बदन से चिपका हुआ था मगर मेरा लंड अब भी ममता जी की चुत पर ठीक से नहीं लग रहा था, क्योंकि ममता जी ने दोनों जांघें बन्द की हुई थी जिससे मेरी व ममता जी की जांघें ही एक दूसरे की जांघों से चिपकी हुई थी और मेरा लंड बस चुत के ऊपरी भाग पर ही लगा हुआ था।
मैंने अब बहाना सा बनाया जैसे कि भीड़ की वजह से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है और कसमसाते हुए धीरे से नीचे ही नीचे अपने दोनों घुटनों को बार बार ममता जी के घुटनों पर टकराने लगा जिससे मेरे घुटने ममता जी के दोनों घुटनों के बीच थोड़ा सा घुस गये. ममता ने भी अब बिना कुछ कहे अपनी जांघों को फैला कर मेरी जांघों को अपनी दोनों जांघों के बीच जगह दे दी.
ममता जी के मखमली बदन पर मानो जैसे कि मैं अब लेट ही गया था, मुझे अब अपने लंड पर भी बहुत ही गर्मी का अहसास हो रहा था, क्योंकि मेरा लंड अब ममता जी की ठीक चुत पर, चुत पर नहीं बल्कि सीधा ही चुत की दोनों फांकों के बीच ही लग गया था जो बहुत ही गीली हो रखी थी। ममता जी की चुत इतनी गर्म व गीली हो रही थी कि मुझे ऐसा लग रहा था जैसे ममता जी की चुत से बहता चुत रस मेरे लंड को ही जला ही देगा।
मुझे अब अपने लंड से ही ममता जी की चुत की बनावट महसूस हो रही थी क्योंकि ममता जी के चुत रस से भीग कर उनकी सलवार चुत से चिपक गयी थी, उनकी चुत का उभार और यहाँ तक की चुत की फांकें भी मैं अपने लंड से ही महसूस कर पा रहा था।
मेरा दिल तो कर रहा था कि अभी ममता जी की सलवार को खोल कर या फाड़क अपना मूसल लंड उनकी चुत में घुसा दूँ. मगर एक तो मैं ममता जी से डर रहा था कि कहीं वो घर जा कर मेरी शिकायत ना कर दे और दूसरा बस में भीड़ इतनी ज्यादा थी कि मैं हिल भी नहीं पा रहा था, इसलिये मैंने जैसा चल रहा था वैसा ही चलने दिया, हाँ बस अपनी हरकतों को थोड़ा तेज जरूर कर दिया था, बस के हिलने के साथ साथ मैंने अब अपने शरीर को धीरे धीरे ऊपर नीचे भी हिलाना शुरु कर दिया जिससे मेरा लंड अब ममता जी की चुत की दोनों फांकों के बीच घिसने लगा। मेरे ऊपर नीचे होने से मेरा लंड तो ममता जी की चुत की फांकों को रगड़ ही रहा था साथ ही उनकी चूचियां भी मेरे सीने से चटनी की तरह पिसने लगी।
ममता जी अब भी चुपचाप गर्दन झुकाए खड़ी थी, उनके हाथ अब भी मेरे कंधों पर थे जिनमें हल्का हल्का कंपन सा हो रहा था। जैसे जैसे सड़क के झटकों वजह से बस हिल रही थी मैं भी वैसे वैसे ही अपने शरीर को ममता जी के बदन पर रगड़ रहा था।
तभी सड़क पर शायद कोई गहरा खड्डा रहा होगा कि हमें एक जोर का झटका लगा जिससे सभी सवारियां जोर से हिल गयी, मैंने भी मौके का फायदा उठा कर इस बार अपने होंठों से ममता जी के नर्म गालों को छू लिया जिससे ममता जी का पूरा बदन सिहर सा उठा।
अब तो मुझे नया बहाना मिल गया था इसलिये मैं बार बार इसी तरह ममता जी के मुलायम गालों को छूने लगा।
हल्की हल्की सर्दी हो गयी थी और बस की खिड़कियों से भी ठण्डी हवा आ रही थी मगर फिर भी मेरे व ममता जी के बदन जल रहे थे। ममता जी का बदन तो अब जैसे भट्टी की तरह ही तप रहा था, शायद उनका स्खलन होने वाला था इसलिये उनकी सांसें भी अब फूलने लगी थी।
इसी तरह बस धीरे धीरे चलती रही और मैं ममता जी के बदन को रगड़ता रहा… बीच बीच में अपने होंठों को मैं ममता जी के गालों के साथ कभी कभी उनके होंठों को छुआने की कोशिश कर रहा था. मगर जैसे ही मेरे होंठ ममता जी के होंठों के पास जाते वो अपना चेहरा घुमा ले रही थी.
मगर इस बार जब मैंने अपने होंठों को ममता के होंठों के करीब किया तो ममता जी ने अपना चेहरा नहीं घुमाया और मेरे होंठ उनके नर्म रसीले होंठों को हल्का सा छू गये जिससे उनमें हल्का कंपन सा होने लगा.
मैंने भी अपने होंठों को वहाँ से हटाया नहीं और अपने होंठ उनके होंठों पर ऐसे ही रखे रहा। हम दोनों के होंठ एक दूसरे के ऊपर बिल्कुल स्थिर थे…ना तो मैंने अपने होंठों से कोई हरकत कर रहा था और ना ही ममता जी। हम दोनों बस एक दूसरे की सांसों की गर्मी को महसूस कर रहे थे।
ममता जी के होंठों में अब थोड़ी हरकत सी हुई, उनके होंठ अब थरथराने लगे और उन्होंने अपने होंठों को मेरे होंठों पर हल्का सा रगड़ दिया.
मेरे भी दिल की धड़कन अब तेज़ हो गई और मैंने भी अपने होंठों को खोल कर उनके नर्म नाज़ुक अधरों को हल्का सा अपने होंठों से दबा लिया जिससे पहले तो ममता जी का पूरा बदन कंपकपा गया और फिर अगले ही पल उन्होंने खुद ही मेरे एक होंठ को अपने होंठों के बीच दबा कर धीरे धीरे चुसना शुरू कर दिया।
अब तो मुझसे भी रहा नहीं गया और मैंने जोर से ममता जी के होंठों को चूसना शुरु कर दिया। मैं और ममता जी दोनों ही स्खलन की कगार पर पहुँच गये थे इसलिये मैंने अपनी हरकत को तेज कर दिया, मैं अब ममता जी के होंठों को चूसते हुए जोर से अपने लंड को उनकी चुत की फांकों के बीच घिसने लगा जिससे ममता जी का पूरा बदन जोर से कंपकंपाने लगा, सांसें फूल गयी और फिर अचानक ममता जी की दोनों जांघें कसमसाने लगी, ममता जी भी मेरे होंठ को जोर से चूसने लगी और दोनों हाथों से मेरे कंधों को भींच कर उनका पूरा बदन ऐंठ सा गया।
ममता जी की अब हल्की हल्की हुं…हुंहुं… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हुंहुंहुं.. की कराहें सी सुनाई दी और नीचे मेरे लंड और जांघों के पास गीलापन सा भी फैलने लगा। इसके बस कुछ पल बाद ही मैं भी ढेर हो गया और मैंने भी अपना सारा वीर्य पैंट में ही छोड़ दिया।
ममता जी के चुतरस और मेरे वीर्य से हम दोनों ही नीचे से भीग गये वहाँ इतना गीलापन हो गया जैसे की वहाँ बाढ़ आ गयी हो। ममता जी अब मेरे होंठों को छोड़ कर गर्दन झुकाये अपनी सांसों को काबू में करने की कोशिश कर रही थी।
मेरा भी काम हो गया था इसलिये मैं भी अब शांत हो गया।
मैं और ममता जी अब भी ऐसे ही खड़े रहे मगर कोई कुछ बोल नहीं रहा था, फिर कुछ देर बाद बस रूक गयी, यह आखरी स्टॉप था इसलिये एक एक करके सारी सवारियां उतरने लगी। मैं व ममता जी भी बस से उतर गये और घर जाने के लिये हमने एक रिक्शा पकड़ ली।
ममता जी अब भी कुछ नहीं बोल रही थी इसलिये मैंने ही उनसे बात करने की कोशिश की मगर ममता जी ने बस ‘हाँ हूँ…’ में ही मेरी बात का जवाब दिया, इसके सिवा घर तक उन्होंने कोई बात नहीं की।
अब मुझे डर लगने लगा था कि कहीं ममता जी मेरी शिकायत ना कर दें।
हम घर पहुंचे तब तक रात के दस बज गये थे, तब तक मेरी भाभी ने रात का खाना बना लिया था और सभी ने खाना भी खा लिया था। मेरे मम्मी पापा तो खाना खा कर अपने कमरे में भी जा चुके थे।
मैंने और ममता जी ने भी खाना खाया, फिर ममता जी भाभी के कमरे में चली गयी और मैं ड्राईंगरूम में आ कर सो गया।
कहानी अभी जारी रहेगी. अपने विचार मुझे मेल करें!
[email protected]
एडल्ट स्टोरी का अगला भाग : बस के सफर से बिस्तर तक-2
What did you think of this story??
Comments