गलतफहमी-3
(Galatfahami- Part 3)
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कहानी के पिछले भाग में तनु भाभी की मस्ती और उनसे मेरी दोस्ती कैसे आगे बढ़ रही है वो आपने पढ़ी, अब आगे…
भाभी से व्हाटसप में बातें करते वक्त, मैंने उनका मन टटोलते हुए कहा कोई प्यार मोहब्बत का चक्कर तो नहीं था!
भाभी ने हाँ कहा और ‘ये बातें फिर कभी करेंगे’ कहकर… बात को टालने लगी और वो अपने अकेलेपन के दर्द को बताने की कोशिश करने लगी.
तब मैंने कहा- भाभी, आपके पड़ोस में तो आपकी बहुत सी सहेलियां हैं। और क्या भैया आपको टाईम नहीं देते?
जवाब आया- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है।
मैंने बात को और आगे खींचना चाहा, मैं भाभी के नजदीक जाने का रास्ता तलाश रहा था। मैंने कहा- तनु, मैं तुमसे एक बात पूछूं? कहीं बुरा तो नहीं मानोगी?
उसने कहा- हाँ पूछो, कुछ भी पूछो!
तब मैंने कहा- भैया तो हैंडसम हैं आपको टाईम भी देते हैं, आपकी सहेलियां भी हैं तो क्या भैया आपको बिस्तर पे संतुष्ट नहीं कर पाते, या उनका लिंग छोटा है?
यह बात मैंने बहुत झिझकते हुए कही थी और कह कर मैं डरने लगा कि कहीं भाभी नाराज ना हो जाये।
पर सामने से कोई जवाब नहीं आया और वो आफ लाईन हो गई।
शायद मैंने सच में ज्यादा बड़ी बात कह दी थी। फिर उस दिन और कोई बात नहीं हुई।
दूसरे दिन 11 बजे भाभी का फोन आया, मैंने कहा- हाँ तनु बोलो.. मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था। कल के लिए सॉरी..!
भाभी ने कहा- कोई बात नहीं, मुझे बुरा नहीं लगा। हाँ सुनो, अब मैं तुम्हें रोज मयंक के स्कूल जाने के बाद इसी समय फोन करुंगी।
मैंने फिर कहा- कल के लिए रियली सॉरी!
भाभी ने कहा- सॉरी की कोई जरूरत नहीं है.. बस ये है कि हर कोई गलतफहमियों का शिकार होता है। तुम्हारे भैया बेड में अच्छे हैं, और रोज करते भी हैं, उनका वो भी छोटा भी नहीं है, शायद आठ इंच का होगा, घुमाते भी हैं, पैसे भी देते हैं, कोई पाबंदी भी नहीं है।
मैंने कहा- तो फिर आपके अकेलेपन का कारण क्या है?
भाभी ने कहा- वास्तव में लोगों की इच्छाएं, आकांक्षाएं वक्त के साथ बदलती रहती हैं और लोग उसे कभी समझ ही नहीं पाते! एक औरत महज सेक्स, पैसे, या आजादी की भूखी नहीं रहती, उसे अपनापन, सच्चा प्यार चाहिए होता है, उसे कोई समझने वाला चाहिए होता है। और भी ऐसी बातें हैं जो शब्दों से कोई औरत बता भी नहीं सकती कि उसे क्या चाहिए। ऐसे भी किसी औरत का पूरा जीवन ही पाबंदियों के बीच गुजरता है, अभी हालात थोड़े बदले हैं, या कुछ लोग अपवाद हो सकते हैं। परंतु अधिकांश लड़कियों को अपने अरमानों का गला घोंट कर ही जीना पड़ता है।
पहले भ्रूण हत्या से बच जाओ तो समाज की बुरी नजर का शिकार बनो..! फिर पिता और भाई की बंदिशें, उनसे आगे बढ़ो तो पति और सास के ताने, बच्चे ना हुए तो बांझ, और बच्चे हो गये तो बस उन्हीं में आपका जीवन समर्पित हो गया! क्या कोई बता सकता है कि हम अपने लिए कब जीती हैं? इसीलिए एक औरत वास्तव में क्या चाहती है, ये उसके आंखों से पढ़कर समझने की जरूरत होती है। और उम्र के अलग-अलग पड़ाव में हमारी जरूरतों और चाहतों में परिवर्तन भी होते रहते हैं।
जैसे एक औरत जो अच्छे अमीर परिवार से वास्ता रखती हो, वो चाहेगी कि कोई उसे पैसे और खूबसूरती के अलावा भी पसंद करे मतलब अंदर से समझे, जाने… पर गरीब परिवार की औरत रसूखदार घरानों से अपने आपको तौलने की कोशिश करती है। वहीं एक अविवाहित लड़की सोचती है कि अच्छे पैसे वाले से उसकी शादी हो, तो कॉलेज की लड़कियां हैंडसम और पैसे वाला बायफ्रेंड खोजती हैं, और उन्हीं से शादी भी हो जाये ऐसा सोचती है।
अविवाहित लड़कियों के मन में शादी को लेकर ख्वाब भी बहुत होते हैं तो उतना ही नये जीवन के लिए डर भी रहता है। बारहवीं की लड़कियां सिर्फ खूबसूरती के पीछे पागल होती हैं। तो दसवीं की लड़कियां सेक्स शरीर और दोस्ती को जानने के लिए व्याकुल। फिर मासिक धर्म का आना, सीने के उभारों का निकलना, चिड़चिड़ापन ये सब भी तो सभी लड़कियों को झेलना ही पड़ता है। उस समय भी दिमाग में तरह-तरह की बातें आती हैं, उत्सुकता, चाहत, भय, सभी चीजों से हमारा जीवन घिरा रहता है।
यह बात मैंने औसतन लड़कियों या औरतों के लिए कही है। इन सबके बीच भी और बहुत सी बातें होती हैं पर मैं तुम्हें और बोर नहीं करना चाहती।
मैंने माहौल गंभीर होता देखकर बात को दूसरी तरफ घुमाने के लिए कहा- ओह… तो जब बात दसवीं की आई है तो आप अपनी पुरानी आप बीती ही बता दीजिए।
‘नहीं संदीप, अभी मैं चाह कर भी नहीं बता पाऊंगी और आधी-अधूरी बात से तुम्हें भी मजा नहीं आयेगा। ऐसा करो कि पहले तुम अपनी कुछ प्राईवेट बात बताओ फिर बाद में मैं तुम्हें बताऊंगी।’
मैंने भी मौका देख कर चौका मारना उचित समझा और अपनी सबसे ज्यादा प्राईवेट बात बता दी कि मैं लेखक हूं।
भाभी ने कहा- और कुछ.. यह तो मैं जानती ही हूं।
मैंने कहा- मैं अंतर्वासना का लेखक संदीप साहू हूं।
भाभी सन्न रह गई.. दो मिनट बाद आवाज आई- क्या.. क्या कहा तुमने… फिर से कहो?
तो मैंने फिर कहा- हाँ तनु, मैं अंतर्वासना के लिए कहानी लिखता हूं और अपने आसपास वालों में यह बात मैं सिर्फ तुम्हें ही बता रहा हूं। क्या तुम अंतर्वासना के बारे में जानती हो?
‘हाँ यार… उसके बारे में कौन नहीं जानता, हाँ कोई नियमित है तो कोई अनियमित… पर जानते तो सभी हैं ना। उसमें तो ऐसी-ऐसी कहानी आती है कि भरोसा ही नहीं होता। क्या सब सच्ची कहानियां होती हैं? उसमें तो बहुत लोग टिप्पणी भी करते हैं। और लेखक लोग लिखे रहते हैं कि आप लोगों का मेल प्राप्त हुआ। तो क्या तुम्हें भी मेल आते हैं?’
मैंने भाभी से कहा- अरे अब बस भी करोगी! तुम पहले शांत हो जाओ मैं तुम्हें पूरी बात समझाता हूं। अंतर्वासना में सभी टाईप की कहानियां होती हैं, कुछ सच्ची तो कुछ काल्पनिक होती है। और फिर इस दुनिया में भरोसा ना करने लायक कुछ भी तो नहीं है, इसमें लिखी सारी चीजें सभी जगह नहीं होती, पर कहीं नहीं होती ऐसा बोलना भी गलत है। और हाँ हम लोगों को मेल भी आते हैं।
भाभी ने तुरंत कहा- तब तो खू ऐश होती होगी तुम्हारी, अच्छी-अच्छी लड़कियों से दोस्ती… खुली-खुली बातें… मजा आ जाता होगा यार तुम्हें तो?
मैंने कहा- यही तो सबकी गलतफहमी है, यार तनु लेखक भी तो इंसान ही होता है… उसे कोई अजूबा या खिलौना क्यों समझती हो?
तनु ने कहा- सॉरी यार.. लेकिन मैंने तो तुम्हें कुछ कहा ही नहीं।
तब मैंने थोड़ा सामान्य होते हुए कहा- वास्तव में मुझे कुछ मेल करने वालों की करतूत याद आ गई तो मैं भड़क उठा.
भाभी ने कहा- तुम अपनी अच्छी बुरी सारी बातें बताओ, मैं सुनने के लिए बैठी हूं ना!
मैंने कहा- पहली बात तो अधिकांश ईमेल मुझे फेक आई डी से ही आते हैं, पर मुझे उनसे कोई दिक्कत नहीं होती क्योंकि सामने कोई ना कोई शक्स तो होता ही है जो हमसे बात कर रहा होता है। पर कुछ लोग ऐसे बात करते हैं जैसे अंतर्वासना के लेखकों की कोई इज्जत ही नहीं होती।
भाभी ने कहा- मतलब कैसी बातें?
मैंने कहा- आप छोड़ो ना, आप नहीं सुन सकती!
भाभी ने फिर जिद की- तुम खुल कर बताओ, मैं सब सुनने के लिए तैयार हूं।
मैंने कहा- इस दुनिया में कुछ लोग बहुत ही कमीने होते हैं। वो लोग हमें अपने बाप का नौकर ही समझते हैं। और कुछ तो मुझे किसी भी समय तुम अपना लंड दिखाओ, अपना पिक भेजो, और अपनी बीवी. की नंगी तस्वीर भेजो… जैसी मांग करते हैं। कोई माँ बहन के बारे में अनाप-शनाप बोलते हैं। यार अगर कुछ लेखक रिश्तों को तार-तार करते भी हैं तो क्या सबको एक ही तराजू में तौलना सही होगा? हमारा भी घर परिवार है.. सैक्स की कहानी लिखते हैं! पर हमारे अंदर भी इंसानियत है, हम भी तो सामाजिक प्राणी ही हैं।
अब यार, मैं लेखक हूँ तो लौड़ा खड़ा करके घूमूँ क्या..!
कुछ लोग वाईफ स्वैपिंग की बात करते हैं, तो बहुत से गे लोगों के संदेश आते हैं, इनमें कोई बुराई नहीं है, वे अपने तरह के लोगों को ढूंढने का प्रयत्न करते हैं।
और इनके अलावा कुछ लड़कों के भी संदेश आते हैं जो अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं, मैं उन्हें भी सही मशविरा देने की कोशिश करता हूं।
कुछ लोगों को छोटी कहानी पसंद आती है तो कुछ लोगों को लंबी। कमेंटस में एक लाईन लिखते हैं ‘मजा नहीं आया…’ और पूरी कहानी की ऐसी-तैसी कर देते हैं। उन्हें क्या मालूम कि दिमाग में कितना जोर डालना पड़ता है, समय निकालना पड़ता है।
असली कहानी हो तब भी शब्दों का चयन और उसे क्रम से परोसना भी तो एक बड़ा काम है, और फिर व्याकरण पर भी पकड़ होना जरूरी होता है। ये सब कुछ कोई कोई ही समझता है। और कुछ साथी लेखक भी संदेश भेजते हैं, कोई बधाई देता है तो कोई आपकी कहानी कितने दिनों में छपी, यह पूछता है.
और कुछ लड़की बनकर बेवकूफ बनाने की कोशिश करते हैं तो कुछ रियल लड़कियों के भी संदेश आते हैं।
भाभी को मेरे खुले शब्दों से ज्यादा तकलीफ नहीं हुई और फिर भाभी जी ने कहा- मतलब ई मेल में केवल बकवास ही होता है।
मैंने कहा- ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, बहुत से लोगों के समझदारी भरे कमेंट डिस्कस बाक्स में देखने को मिलते हैं, वे लोग शब्द और सोच दोनों में ही परिपक्व लगते हैं, उनमें से एक लड़की शर्मा के कमेंट तो और भी गजब के होते हैं, लोग उनको भी संभोग और अन्य चीजों का आग्रह करते हैं। और वो सभी को सलीके से जवाब देती है। वाकई वो बहुत ही समझदार और अच्छी लड़की है।
भाभी ने पूछा- इतनी तारीफ कर रहे हो तो उससे भी चैटिंग करते हो क्या?
मैंने कहा- नहीं तनु, वो तो सिर्फ डिस्कस बाक्स में ही चैट करती है। पर हाँ ख्वाबों में मैंने उससे जरूर मुलाकात की है।
‘ठीक है, तो तुम मुझे अपने ख्वाबों की ही दास्तान सुना दो, फिर मैं भी वादा करती हूं कि तुम्हारी बात खत्म होते ही मैं तुम्हें अपनी प्रेम कहानी जरूर बताऊंगी।’
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मैंने कहा- यार तनु, तुम तो जानती हो कि कल्पनाओं में कुछ ऐसा भी हो जाता है जो मैं नहीं बता सकता।
तब भाभी ने कहा- मुझे तुम्हारी कल्पना के बारे में सब कुछ विस्तार से जानना है, यही मेरी जिद है।
मैंने कहा- कौन कल्पना?
भाभी ने कहा- अब नौटंकी बंद करो… वही… तुम्हारी कल्पनाओं की कल्पना, उसके बारे में..
मैंने कहा- ओह तो अब आपने उसका नाम भी रख दिया। ठीक है तो सुनो..
जब मेरी कहानी
आधी हकीकत आधा फसाना
प्रकाशित हुई थी तब कल्पना ने बहुत अच्छे कमेंट किये थे.. उन कमेंटस को मैंने बाद में देखा, सभी कमेंट बहुत समझदारी भरे थे, समाज के लिए चिंतन और सेक्स में पकड़, उसके शब्दों से साफ झलक रही थी, मेरी कहानी के हर भाग में उसके कमेंट आने लगे, और मैं रोज रात अंतर्वासना की कहानियों के अलावा उसके कमेंट खोजने लगा। मैं अक्सर उसके कंमेट प्रोफाइल को भी क्लिक करके कमेंट पढ़ा करता था।
एक रात मैं कमेंट पढ़ते हुए उसके बारे में सोचने लगा। वो कैसी होगी विवाहित होगी या अविवाहित, गोरी होगी या सांवली या फिर काली, मोटी या पतली, शहर की या गांव की…
यही सब सोचते हुए मैंने उसको मैसेज किया ‘तुम मेरे ईमेल पर चैट करो’
उसका जवाब बहुत देर तक नहीं आया।
फिर मैंने भी ध्यान नहीं दिया, पर बहुत दिनों बाद अचानक मुझे उसका जवाब मिला- हाय कैसे हो… फला..फला.. फला… और फिर हमारी बहुत अच्छी बातें होने लगी। हाँ, हमने अपनी पहचान जरूर छुपाई रखी पर एक दूसरे के बारे सामान्य जरूरी जानकारियां ले ली। और कुछ दिनों बाद हमने अपनी-अपनी फोटो भी एक दूसरे को भेज दी।
फोटो में एक विवाहित महिला थी, जो देखने में सुंदर थी, पर उसने उस फोटो के चेहरे पर आंखों की जगह काली पट्टी लगा दी थी। शरीर की बनावट और कसावट से वो लगभग 30/32 साल की लग रही थी।
मैं फोटो को देखकर ही मदहोश होने लगा उसके चेहरे में एक तेज था, भले ही आंखें ढकी थी पर होंठ गाल और मस्तक की सुन्दरता उजागर थी। उभार थोड़े छोटे थे या शायद फोटो में छोटे लगे हों, पर नुकीले ऊपर की ओर उठे हुए से लग रहे थे। त्वचा की सफाई और नर्म अहसास मैं फोटो से भी महसूस कर सकता था।
फिर एक दिन जब मैं गहरी नींद में था, तब मुझे एक धूंधला सा प्रतिबिंब नजर आने लगा। वो कोई लड़की थी जो मुझे बुला रही थी, और मैं उसके पीछे खिंचा जा रहा था। वास्तव में यह सब एक खूबसूरत सा ख्वाब था।
मैं उसके पीछे-पीछे एक चौराहे पर पहुंच गया, मैंने वहाँ पहुँच कर देखा कि चारों तरफ लोग ही लोग हैं, गाड़ी मोटर की कतारें हैं, बच्चे बूढ़े दुकान ग्राहक सब कुछ है, लेकिन वो नहीं है, जिसके पीछे-पीछे मैं यहाँ तक खिंचा चला आया हूं।
मैं थक हार के एक पेड़ के नीचे, अपनी आंखें बंद किये हुए सर पर हाथ रख कर बैठ गया, तभी मेरी नाक से एक खुशबू टकराई और फिर मैं जैसे एकाएक चौंक सा गया, तभी एक तेज आवाज भी कानों को चीरती हुई मेरे दिल तक पहुंची ‘शैतान… परफ्यूम की पूरी बोतल तोड़ दी, दुकानदार को पैसे भी देने पड़े, और तुमने हम दोनों के कपड़े खराब कर दिए वो अलग..! अब तुम्हारे स्कूल वाले सोंचेंगे कि मैं इतना सारा परफ्यूम पोत कर घर से निकली हूं। डी.पी.एस. में पढ़ता है और अक्ल जरा सा भी नहीं… चल घर चल के कपड़े बदलने पड़ेंगे।
मैं खुशी से आंखें फाड़े उसी को देखता रहा, यही तो थी मेरी कल्पना… गुलाबी साड़ी, मैचिंग की ब्लाऊज, खुले बाल, सामान्य सा शरीर, गोरी तो थी पर एकदम सफेद नहीं, चूचियां सख्त, छोटी किन्तु सुडौल थी। सुंदर सी कमर की लचक के साथ, आंखों में चश्मा लगाये, हाथों में लंबा दास्ताना पहने हुए अपने पांच साल के बच्चे को लेकर एक दुकान से निकली और बड़बड़ाती हुई अपनी सफेद स्कूटी में बैठ कर निकल गई।
मैं कोने पर बैठा था शायद इसीलिए वो मुझे पहचान ना सकी। और ऐसे भी कोई किसी को सिर्फ एक पिक में देख कर अचानक जहां उसने सोचा ना हो और दिख जाये तो पहचानना मुश्किल ही होता है।
और मैं भी तो उस हसीना के रूप में सम्मोहित सा हो गया था, मेरा सम्मोहन उसके जाने के कुछ क्षणों बाद एक गाड़ी के तेज हार्न से टूटा। अब मेरे पास उसका पता ठिकाना तो नहीं था पर उसे ढूंढने का एक आधार मिल गया था।
उसका बच्चा दिल्ली के डी.पी.एस. में पढ़ता था तो मैं छुट्टी होने के समय, मौके के इंतजार में गेट के सामने खड़ा हो गया।
छुट्टी लगभग एक बजे होती थी और मैं वहाँ 12 बजे ही पहुँच गया था। दोपहर का वक्त था इसलिए मैंने चेहरे पर स्कार्फ बांधा हुआ था। और मैं जानबूझ कर भी अपना चेहरा छिपाये हुये था ताकि मैं उसे सही वक्त आने पर ही मिलूं, मुझे डर था कि वो मुझे देख कर, किसी आशिक के पीछे पड़ने वाले अहसास से ना डर जाये।
फिर जब वो बच्चे को लेने पहुंची उस समय बच्चे को स्कूल से निकलने में थोड़ा टाईम था। अब वो इंतजार करते हुए मेरे से कुछ ही दूरी पर खड़ी थी तो मुझे उससे बाते करने का मौका मिला, पर जैसे ही मैंने उसे कुछ कहने के लिए रोका उसके पास एक और लड़की आ गई फिर भी मैंने अपनी बात पूरी करने की ठान ली थी।
कहानी लंबी है, धैर्य से पठन करें और अपनी राय निम्न पते पर दें।
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