मैं और मेरी प्यारी शिष्या -1

(Mai Aur Meri Pyari Shishya- Part 1)

टॉम हूक 2007-11-14 Comments

This story is part of a series:

मेरा नाम अनुज है, मैं बंगलोर की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूँ। अन्तर्वासना पर काफी समय हो गया कहानियाँ पढ़ते हुए तो सोचा कि क्यों न अपनी कहानी आपको सुनाऊँ !

यह बात तब की है जब मैं अपनी मास्टर डिग्री पूरी कर रहा था। पढाई में अच्छा था तो खाली समय में टयूशन पढ़ा लेता था। मुझे किसी के रेफेरेंस से एक टयूशन मिली। वो एक लड़की थी जिसका नाम तनवी था, वो स्नातिकी कर रही थी। जब पहली बार मैंने उसे देखा तो बस देखता ही रह गया। मन ही मन उस इंसान को शुक्रिया कहने लगा जिसने मुझे उससे मिलवाया था। जिसे आप सम्पूर्ण लड़की कह सको, बिल्कुल वैसी थी तनवी। जवानी पूरे जोर से छाई थी उस पर .. कातिलाना आँखें, भरे-भरे स्तन, करीब 28 इन्च की कमर और एकदम मक्खन जैसे होंठ.. और उसके कपड़े- उफ्फ्फ ! क्या कहूँ .. गहरी वक्ष-रेखा बहुत आराम से आपको निहारती थी..

खैर टयूशन शुरू हुई.. वो मेरे ही घर आती थी पढ़ने.. घर पर सब होते थे और सबको पता था कि वो पढ़ने आती है तो एक कमरा हम दोनों के लिए खाली रखा जाता था। फिर ऐसे ही चलता रहा, वो पढ़ने आती रही..

धीरे-धीरे हम दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई। हम इधर-उधर की बातें भी करने लगे पढाई के साथ साथ। कभी कभी मैं उसके गालों को खींच देता जब वो कोई गलती करती पढ़ाई में..

कभी कभी हम दोनों के हाथ भी टकरा जाते कुछ समझाते हुए। उसने कभी कुछ भी नहीं कहा.. जब भी मैं उससे छू जाता तो पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती थी.. उसके बारे में सोच-सोच कर कई बार मैंने रात को मुठ भी मारा था.. मन करता किसी दिन वो हाँ कर दे तो उसके साथ एक भरपूर सेक्स का मज़ा लूँ ! उसकी आँखों को देख कर लगता था कि वो सब समझती है।

एक बार की बात है मेरे घर वालों को बाहर जाना था। मैं नहीं गया, मेरा मन नहीं था जाने का।

तनवी हमेशा फोन करके आती थी। उस दिन भी उसका फोन आया पर यह बात मैंने तनवी को नहीं बताई कि घर पर कोई नहीं है।
वो आई, बोली- अंकल-आंटी सब कहाँ गए?
मैंने बोल दिया- बाज़ार गए है..

फिर हम पढ़ने बैठ गए हमेशा की तरह। लेकिन मैंने उससे कहा- आज सोफे पर बैठ कर पढ़ेंगे..
वो बोली- क्यों?
मैंने कहा- आज मेज़-कुर्सी पर बैठने का मन नहीं है..
तो उसने कहा- ठीक है..

फिर हम दोनों एक ही सोफे पर बैठ गए.. एक तरफ़ वो, दूसरी तरफ़ मैं ..
उस दिन पढ़ते हुए उसने कुछ गलती की तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा- आज तुमको इस गलती की बड़ी सजा मिलेगी..
तो इस पर वो बोली- क्या?
यह सुनकर मैंने उससे एकदम से अपनी ओर खींच लिया..

वो एकदम से खुद को संभाल नहीं पाई और मेरे ऊपर आ कर गिरी, उसके स्तन मेरे सीने पर थे, लगा जैसे पूरे शरीर में बिजलियाँ दौड़ गई हों..
फिर हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे..
वो बोली- छोड़ो ना..

मैंने कहा- तनवी, कब से इस दिन का इंतज़ार किया है ! आज छोड़ने को मत कहो..
वो बोली- मतलब?
मैंने कहा- तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.. मैं तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ..
वो बोली- मुझे पता है ! बस तुम्हारे मुँह से सुनना चाह रही थी..

यह कह कर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. यह पहली बार तो नहीं था कि मैं किसी लड़की को चूम रहा था पर फिर भी इतने नर्म होंठ मैंने कभी चूमे नहीं थे..
वो अपने मुलायम होंठों से मेरे होंठों को चूसने लगी..
मैंने उससे बाहों में भर रखा था..

हम करीब 15 मिनट तक एक दूसरे के होंठों को चूसते रहे, फिर वो बोली- छोड़ो ! कोई आ जाएगा ..
तब मैंने उसे बताया- कोई नहीं आएगा ! सब शहर से बाहर गए हैं..
तो वो समझ गई कि मैंने उससे झूठ कहा था, बोलो- नौटी बॉय !
और कह कर फिर से मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए..

इस बार पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैं उसे पागलों की तरह चूमने लगा .. उसकी टी-शर्ट के ऊपर से उसके स्तन दबाने लगा ..

उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी.. वो मुझसे कस कर चिपक गई.. मैं उसकी टी-शर्ट ऊपर करने लगा… और उसकी नंगी पीठ पर हाथ फिराने लगा.. उसकी सिसकारियाँ बढ़ने लगी.. मैंने उसकी टी-शर्ट निकल दी.. उसकी काले रंग की ब्रा पहनी थी.. उसमें से उसके गोरे-गोरे स्तन बाहर निकल कर मुझे छूने को आमंत्रित कर रहे थे..
मैंने भी उनको जल्दी से उस ब्रा से आज़ाद कर दिया..
इतने भरे-पूरे मम्मे मैंने कभी नहीं देखे थे.. मैं उनको दबा-दबा कर चूसने लगा..

उसकी सिसकारियाँ सुन-सुन कर मेरा जोश बढ़ जाता और मै उनको ज्यादा जोर से दबा-दबा कर चूसने लगता..

इसी बीच मैंने उसका हाथ अपने लंड पर महसूस किया, मैंने देर न करते हुए अपनी टी-शर्ट और पैंट उतार दी.. अब मै सिर्फ जॉकी की चड्डी में उसके सामने था..
वो अपनी कैपरी उतारने लगी तो मैंने कहा- मुझे उतारने दो..
फिर मैंने उसकी कैपरी उतार दी..

अब हम दोनों सिर्फ चड्डी में थे एक दूसरे के सामने..
हम दोनों एक दूसरे से चिपक गए और प्रगाढ़ चुम्बन करने लगे..
वह अपना हाथ मेरी चड्डी में डाल कर मेरे लौंडे से खेलने लगी।

मेरे लौड़े का बुरा हाल हो रहा था .. इतना ज्यादा तन चुका था कि दर्द होने लगा लौड़े में..
अब मैंने उसको बोला- इसको प्यार करो ना..
तो उसने प्यार से मेरे लौड़े पर एक चुम्बन ले लिया..

मैंने बोला- ऐसे नहीं ! इसको मुँह में लेकर लॉलीपोप की तरह चूसो, तब इसको अच्छा लगेगा..

पहले तो उसने मना किया लेकिन मेरे कहने पर मुँह में ले लिया फिर धीरे धीरे उसको मज़ा आने लगा और वो बुरी तरह मेरे लौड़े को चूसने लगी..

मेरी सिसकारियाँ निकलने लगी तो वो और भी ज्यादा जोर से चूसने लगी लौड़े को.. बोली- आज इस लॉलीपोप को मैं खा जाउंगी..
मैं हंस पड़ा..
फिर मैं उसकी चड्डी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाने लगा..वो गीली हो चुकी थी..

ऊपर से सहलाने के बाद मैंने उसकी चड्डी उतार दी तो देखा उसकी चूत पर बहुत ही हल्के हल्के बाल थे और गुलाबी सी चूत की दो फाकों को देख कर लग रहा था कि किसी ने अभी तक इन्हें छुआ भी नहीं होगा !
मैंने आव देखा ना ताव ! और उस पर मुँह रख दिया.. अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटने लगा ..
तो वो पागल सी हो उठी.. बोली- चाटो आआआअ ह्ह्ह्ह ह्हह्ह्ह और ज़ोर से आआ अह्ह्ह्ह ह्ह्ह चाटो…
मैं चाटता रहा, फिर वो झड गई…

मेरी हालत ख़राब हो रही थी, अभी मेरा नहीं निकला था.. मैंने उसको कहा- मैं तुम्हारी चूत में अपना लौड़ा डाल रहा हूँ !
तो वो बोली- नहीं यह मत करो प्लीज !
तो मैं बोला- मेरा क्या होगा ? मेरा तो निकला भी नहीं अभी तक..
तो वो बोली- मैं कुछ करती हूँ..

यह कह कर वो मेरे लौड़े को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी और अपने हाथों से मेरा मुठ मारने लगी..
मैंने भी कई बार मुठ मारा था पर उसके कोमल कोमल होंठों और हाथों से मुठ मरवाने में अलग ही मज़ा आ रहा था..
मैं बोला- और जोर से चूसो ! और जोर से मुठ मारो..

तो उसने और जोर जोर से मेरा मुठ मारना शुरू कर दिया। करीब पाँच मिनट बाद मेरा माल निकल पड़ा.. वो सारा माल मैंने उसकी चूचियों पर गिरा दिया ..
और वो हंसने लगी और बोली- यह क्या किया..?
मैं भी हँसने लगा..

फिर मैंने उसे बाहों में ले लिया और हम दोनों ज़मीन पर लेट गए और ऐसे ही पड़े रहे बहुत देर तक !
उसके बाद उसने कहा- अब मुझे जाना है..
मैंने कहा- पहले मुझे तुम्हारी चूचियाँ साफ़ करने दो..

फिर मैंने एक गीले कपड़े से उसके वक्ष को मल-मल कर साफ़ किया..
फिर उसने कपड़े पहने और मुझे चूमा..
फिर वो चली गई अगले दिन आने का बोलकर..

घर वाले तीन दिन बाद वापस आने वाले थे.. अभी २ दिन और थे दोस्तो ..
तो यह थी कहानी मेरी और मेरी शिष्या तनवी की..
हमने अगले दो दिनों में क्या-क्या किया ! वो अगली बार..
अपनी राय मुझे लिखें !
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