गणित का ट्यूशन-2
उन दिनों रेखा जवानी में कदम रख ही रही थी। गणित सीखने रेखा उनके पिता के सीनियर राकेश के पास जाने लगी। आगे की घटना उन्ही की जुबानी:
मैं राकेश अंकल के यहाँ जाने लगी पहले दो-तीन हफ्ते तो एक असहज दूरी रखते निकल गए।
पर वक़्त के साथ झेंप मिटने लगी, शायद शुरू उन्होंने ही किया था जब एक शनिवार में सलवार कुर्ते की जगह जीन्स टी-शर्ट में ही चली गई।
‘आज बड़ी सुन्दर लग रही हो !’ जाते ही उन्होंने मुझे खुश करने को मेरी तारीफ़ में तीर मारा मगर निगाहें मेरे उभारों पे ही थी।
मैं मुस्कुरा दी।
सच पूछो तो उनका मेरी छाती को घूरना भी अच्छा लगा।
मैं अपने मम्मों की जब विमला के बड़े बड़े दूद्दुओं से तुलना करती तो मन करता कि जैसे सुनील जीजू दीदी के चूचे चूसते और दबाते हैं, काश कोई मेरे भी दबाये।
राकेश अंकल ने टी-शर्ट में देख कर अनायास ही तारीफ़ नहीं की थी। उन्हें मेरी हर वो ड्रेस पसंद आती जिसमें मेरे जिस्म का बेहतर अंदाज़ा हो।
वैसे मुझे भी तारीफ़ अच्छी लगती थी।
धीरे धीरे राकेश अंकल मुझे छूने लगे और यकायक मेरा हाथ पकड़ कर प्रश्न सुलझाने लगते।
मुझे अजीब तो लगा पर मैंने कोई प्रतिकार नहीं किया शायद उसी को उन्होंने ‘हाँ’ समझ ली।
उस शाम मैंने लाइक्रा के लेगिंग पहनी थी। पढ़ाते-पढ़ाते अचानक राकेश अंकल मेरी जांघ पर हाथ फिराने लगे।
मेरे आँखों में प्रश्न देख बात संभालते हुए बोले- बहुत अच्छा है, कौन सा कपड़ा है?
‘लाइक्रा !’ मैंने कहा।
‘अच्छा है, ज्यादा पसीना भी नहीं आता है।’ कहते हुए एक बार फिर हाथ फिरा दिया इस बार जांघ के भीतर तक।
अगर मैंने पैर ना सकुचाए होते तो शायद योनि को भी सहला देते।
मैं घर आई और अपने कमरे को बंद कर लेट गई। राकेश अंकल की हरकत पर गुस्सा सा आ रहा था मुझे।
झट से लेगिंग निकाल कर फेंकदी और उसी अर्धनग्न अवस्था में लेटी रही और बार बार उस हरकत के बारे में सोचती रही।
मेरे हाथ अपने आप मेरी नग्न जांघों को सहलाने लगे, धीरे धीरे गुस्सा काफूर हो वासना हावी हो गई।
मेरे ख्यालों में राकेश अंकल की जगह एक सुडौल मर्द ने ले ली, वो मेरी जांघें सहलाते हुए ऊपर बढ़ा, मेरी पेंटी पर सहलाने लगा और मेरी चूत में उंगली घुसाने का प्रयास कर रहा था।
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उस ख्याली मर्द ने मेरा टॉप भी खोल दिया और ब्रा से दायें मम्मे को आज़ाद किया और निप्पल को जुबान से उत्तेजित करने लगा। मेरी कामुकता बढ़ रही थी।
उसने हौले से मेरी पेंटी में हाथ डाल योनि को ज़ोर ज़ोर से रगड़ना चालू किया, बीच में हाथ में थूक लगा फिर चूत रगड़ने लगा।
मेरा शरीर कामुक अंगड़ाई ले रहा था और मीठी सिसकारियाँ जिस्म को वासना की आग में जला रहा था।
थोड़ी देर में मेरी चूत ने काम रस छोड़ दिया।
माँ की आवाज़ से तन्द्रा भंग हुई, राकेश अंकल की हरकत का ज़िक्र मैंने किसी से नहीं किया, मेरी पहली गलती।
पहले जितना गुस्सा था, वो यह सोच कर कि उनकी इस हरकत ने मुझे काम के स्वप्न सागर में गोते लगाने में सहयता की, फुर्र हो गया।
उनकी मुझे छूने की हरकते बढ़ने लगी। मामूली प्रश्न का हल निकालने पर मेरी पीठ थपथपा देते और हाथ फिराते हुए चूतड़ भी सहला जाते।
एक शाम उनके घर में मुझे गणित की किताबों के साथ नंगी सुन्दरियों की तस्वीरों वाली विदेशी मैगज़ीन मेरे हाथ लग गई।
‘अंकल, यह क्या? आप इस उम्र में?’ मैंने किताब खोल के प्रश्न किया।
झेंपते हुए मैगज़ीन छीन ली और बोले- क्या करूँ ! रमा (उनकी दिवंगत पत्नी) के जाने के बाद अकेला हूँ।
‘यह सब तो रमा की याद भूलने के लिए देख लेता हूँ !’ वो बोलते रहे।
‘दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?’ मैंने पूछा।
‘रमा से बहुत प्यार करता था, उससे वादा किया था.…’ बोलते हुए रूवासा हो गए और मेरी छाती पे सर रख आँसू टपकाने लगे।
फिर खुद को संभालते हुए आँसू पोछने के बहाने मेरे वक्षों को मसलने लगे।
मैंने झिड़कने के अंदाज़ में उनके हाथ हटाए पर वाणी में सहानुभूति लाते हुए बोली- चिंता मत कीजिये, आपको भी प्यार मिलेगा।
राकेश अंकल जैसे ठर्की मर्दों के लिए प्यार सिर्फ सम्भोग का पर्याय है।
‘तुम बहुत अच्छी हो !’ कहते हुए मेरे गालों पे चूम लिया और सीने से लगा लिया।
यकायक हुई इस हरकत से मुझे कुछ समझता उससे पहले मेरे जवां चूचे अंकल की छाती में गढ़ रहे थे और उनके हाथ मेरी पीठ और चूतड़ों का नाप ले रहे थे।
‘तुम दोगी मुझे प्यार?’ कहते हुए उन्होंने मेरे होंठ चूमना चाहे।
‘अंकल….’ मैं ज़ोर से चिल्लाती हुई उठी, अपनी किताबें ली और जाने को मुड़ी कि…
‘किसी को कुछ भी कहने से पहले सोच लो, मैं तुम्हारे बाप का बॉस हूँ। नौकरी तो जाएगी ही साथ ऑफिस से जो कर्जा लिया वो भी तत्काल लौटाना होगा। और तुम्हारी बदनामी तो तुम्हारे गाँव तक जाएगी।’ राकेश अंकल ने अपना असली चेहरा दिखा दिया।
मैं रुकी और पिताजी की आर्थिक हालत को जान वहीं बैठ गई।
यह मेरी दूसरी गलती थी। उस दिन और आने वाले कुछ दिनों तक उन्होंने कुछ नहीं किया। हाँ, नज़रों से मेरे अंगों को जरूर मापते रहे। दरसल वो यह भांप रहे थे कि कहीं मैं पापा से तो नहीं कह दिया?
जब उनको तसल्ली हो गई तो राकेश अंकल के अन्दर का जानवर हौंसले वाला हो गया, वो फिर मुझे छूने लगे, छोटी सी बात पे गले लगा लेते और इतनी देर लगा कर रखते जब तक मेरी ब्रा की डिज़ाइन उनकी छाती पे ना छप जाए और वो मेरे चूतड़ का दो-तीन बार माप ना ले चुके हों।
वो मुझे कार्य देकर अब मेरे सामने ही अश्लील मैगज़ीन्स देखने लगते।
ठर्की अंकल की हरकत पर बहुत ग़ुस्सा आता पर पापा की स्थिति को देख चुप रह जाती। वो उन विदेशी बालाओं की नग्न तस्वीरों को सहलाते और उत्तेजित होने पर अपने लिंग को बेशर्मो की तरह अपनी पैंट में एडजस्ट करते।
मेरी प्रतिकार नहीं करने की गलती ने क्या रूप लिया? यह अगले अंक में।
अपनी प्रतिक्रिया आप मुझे [email protected] gmail.com या रेखा को [email protected] gmail.com पर बता सकते हैं।
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