अन्तर्वासना की प्रशंसिका की बुर की पहली चुदाई-3

(Antarvasna Ki Prashansika Ki Bur Ki Pahle Chudai- Part 3)

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अब तक
सर ने मुझे नंगी कर लिया था और अपना लंड चुसवा कर मेरे मुँह में ही अपना वीर्य छोड़ दिया।
मुझे काफी देर हो गई, मैंने अपने कपड़े पहन लिए। सर ने मुझे अगले दिन उसी समय आने को कहा।
मैं वहाँ से निकल कर घर आ गई।
अब आगे:

मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था.. जो कुछ हुआ वो इतना अच्छा लगा था कि मैं उसको शब्दों में बयां नहीं कर सकती.. ये सब सोचते सोचते मैं अपना बदन सहलाने लगी पर मुझे वो मजा नहीं आ रहा था जो सर के हाथों से से आ रहा था।
फिर मैं कब सो गई, पता ही नहीं चला।

दूसरे दिन मैं बेसब्री से वहाँ जाने का इंतज़ार करने लगी, स्कूल में भी मन नहीं लगा.. मैं ठीक समय सर के घर गई, सारे स्टूडेंट जा चुके थे, सर मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे.. जैसी ही उन्होंने दरवाज़ा बंद किया, मैंने उनको पीछे से बाँहों में भर लिया।

सर ने पलट कर मुझे बाँहों में भर लिया और उठा कर बैडरूम के तरफ बढ़ गए, मुझे अपने बिस्तर पर लिटा कर गौर से देखने लगे। मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी पर दिल से कल जैसा ही कुछ होने का इंतज़ार कर रही थी।

सर मेरे पास आये और मेरे जिस्म पर अपना हाथ फेरने लगे… मेरे अंदर एक आग से भरने लगी.. मेरे मुख से सीत्कार निकल गई- ओह्ह आआह्हः सर.. अच्छा लग रहा है.. ओह्ह आअह्ह्ह आ आह्ह!

मैंने हल्के रंग के शर्ट और रेड शॉर्ट पैंट पहनी थी, अंदर लाल रंग के ब्रा और पेंटी थी।

सर ने अपने सारे कपड़े निकाल दिए, वो सिर्फ फ्रेंची में थे और उनका लंड का उभार मुझे साफ दिख रहा था।
और फिर…

उनके जिस्म के नीचे मैं थी और मेरे लिप्स वो चूस रहे थे, मैं भी उनको किस में साथ दे रही थी.. या यह कहो कल और आज में सिर्फ ये फर्क था कि आज मैं कल से ज्यादा समझदार थी… मैं भी उनके लिप्स को चूस रही थी… मेरे खुले मुँह में उनकी जीभ प्रवेश कर गई, मैं उनकी जीभ चूसने लगी, उनके पीठ को सहला रही थी।

मेरा हाथ सर की गांड पे गया और मुझे न जाने क्या हुआ उनके गांड को में जोर से दबा कर अपने से और जोर से चिपका लिया।
फिर सर ने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए.. मैंने भी शर्म छोड़ कर उनको भी नग्न कर दिया और लंड को हाथों में ले लिया।
सर मेरे बेदाग कमसिन मासूम से बदन में खो से गए- ओह्ह ऋचा, तुम कितनी अच्छी हो! तुमको मैं पास करवा दूंगा… उफ्फ्फ तुम्हारा बदन कितना सिल्की सा है मुलायम और बेदाग… आअह्ह आह्ह!

सर की साँसें तेज होने लगी, आँखें बन्द हो गई, मेरी आँखों में भी लाल डोरे खिंच गये और उनमें नशा सा उतर आया था और मैं जितना सर को देखती, उतना ही नशा मुझ पर भी चढ़ रहा था।

सर ने मुझे लिटा दिया और मेरे पैरों के बीच आ गए, मैं भी आज बुर चुसाई के लिए तैयार थी, मैं कल वाला अनुभव फिर से चाहती थी.. मेरी बुर से लगातार पानी निकल रहा था।

जब सर ने मेरी बुर को देखा, वो एकदम चिकनी थी, फ़ूली हुई सी, गुलाबी से गोरी गोरी बीच की लंबी दरार मेरे बुर के होंठ बिल्कुल चिपके थे। सर ने मेरी बुर को अपनी उँगलियों से चौड़ा किया और सूँघा, ऐसा लगा कि सर को मेरी बुर से बड़ी ही मादक सुगन्ध मिल रही है।

जब सर ने मेरी बुर को जैसे ही चूमा मैं तो ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… हहईई…’ की आवाज़ के साथ उछल ही पड़ी।
सर मेरी बुर को बेसब्री से चाट रहे थे, कभी दाँतों से काट लेते, मैं चीख पड़ती- आह सर, लगती है.. प्लीज न करो ऐसा आप सर!
पर सर कहाँ सुन रहे थे।

तभी सर ने जीभ मेरी बुर के अंदर डाल दी और गोल गोल घुमाने लगे, मैं सिसकारी भरने लगी- उफ्फ्फ सरर आअह्ह आह्ह उफ!
मेरे जिस्म में बिजली सी दौड़ गई… जिस्म से लगा कुछ निकल जायेगा.. मेरी कंपकपाहट बढ़ गई।

सर ने जोर से मेरी जांघों को पकड़ रखा था, मैं छटपटा रही थी, मेरी बुर से कुछ निकलने को था, मैं जोर से चीख पड़ी- सररर ओह्ह आअह्ह उफ्फ!
मेरी सिसकारियां निकलने के साथ ही मेरी बुर से पानी छूट गया जिसे सर ने प्यार से चाट चाट कर पी लिया, मैं निढाल सी हो गई थी जैसे मेरे जिस्म में जान ही नहीं हो!

सर मेरे बगल में आ गए और मेरे जिस्म को हल्के हल्के सहलाने लगे, मेरी आँखें बंद हो गई, मैं लंबी सांसों के साथ हर पल का आनन्द लेने लगी।

सर के प्यार से सहलाने से मेरी चेतना वापस आने लगी, मेरा हाथ उनके लंड पर चला गया, उसको मैं सहलाने लगी.. सर समझ गए थे कि मैं फिर से तैयार हूँ।
सर मेरे ऊपर आकर मेरी गर्दन, चूची, नाभि, मेरी जांघों को चूमने लगे, चाटने लगे, उन्होंने मुझे उठाया और बेड पर बिठा कर जमीन पे खड़े होकर मेरे मुँह के पास अपना लंड लाये, आज मैं जानती थी कि मुझे क्या करना है… मैंने झट से लंड को मुँह में लिया और चूसने लगी।

करीब 5 मिनट में सर ने लंड को मुँह से निकाल लिया… और फिर मेरे दोनों पैरों के बीच में आ गए।
मैंने सोचा कि वो फिर मेरी बुर चाटेंगे… पर मैं कितना गलत थी… आने वाले कष्ट का मुझे अंदाज़ा नहीं था.. सर ने अपना लंड मेरी बुर की दरार पे रगड़ना चालू कर दिया।

मेरी बुर पहले से ही पानी पानी थी, मैं उत्तेज़ना से कांपने लगी- ओह्ह्ह्ह सरर… बहुत अच्छा लग रहा है, उफ्फ सर, आप कितने प्यार से करते हो.. आह हहह हह उफ़ ओह्ह हहह!

तभी सर मेरे ऊपर लेट गए… मेरे कंधो को जोर से पकड़ कर मेरे होंटों को अपनी होंटों से जकड़ लिया.. मैं उनके जिस्म के नीचे दबी थी, सर ने उसी अवस्था में एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर बुर पर रगड़ा और फिर…

एकदम से मेरी चीख निकल गई- ऊईईई… मर गईईई… रेएए ! आह्ह्ह… मरररर… गई!
मेरी बुर में कुछ घुस गया था.. मेरी चीख मेरे मुँह में रह गईं… मेरी आँखें बाहर आ गई, सब कुछ धुंधला सा हो गया… मैंने छटपटाते हुए निकलने की कोशिश की पर मेरी एक न चली।
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फिर एक झटका फिर लगा, मैं दर्द से बिलबिला उठी… अपना होश खो बैठी… लग रहा था कि मेरे गले तक कुछ फंस गया था… मैं रोना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी पर मेरी आवाज़ मेरे मुँह में ही रह गईं.. थोड़ी देर में सर ने अपने पकड़ ढीली की और मेरी चूची चूसने लगे, उनका हाथ मेरी कमर सहला रहा था।

सच कहूँ तो इन सब से मेरी चेतना वापस आने लगी… मेरे जिस्म में रक्त का संचार फिर से होने लगा… मैंने रोते रोते बोला- सर, ये क्या कर दिया आपने?
सर- ऋचा मेरी जान, अब दर्द नहीं होगा, बस तुम इस पल का आनन्द लो!
कह कर सर ने अपना लंड थोड़ा निकाल कर फिर से अंदर कर दिया।

मैं- अई इइइ सरर… द र द होता है…
पर सर धीरे धीरे लंड को मेरी बुर में अंदर बाहर करते रहे।

दर्द खत्म हो गया था.. मेरी बुर ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था, लंड भी फंस फंस कर मेरी बुर में अंदर बाहर हो रहा था। मेरी सांसें तेज़ हो रही थी- आह्ह… ओह्ह… उईईईई… उम्म्म्म… सररर… आह्ह्ह… बहुत अच्छा लग रहा है उम्म्म्म सर!

थोड़ी देर के बाद ‘मुझे कुछ हो रहा है सर..’ सर यह सुन कर जोर जोर से लंड को अंदर बाहर करने लगे, उनकी हर चोट के साथ दर्द भरी मेरी सिसकारी निकल जाती!
मैंने उनको जोर से जकड़ लिया और सर ने भी अचानक जोर से चिल्लाते हुए मुझे जकड़ लिया।

तभी मुझे अपनी बुर में कुछ गर्म गर्म गिरता सा महसूस हुआ… सर मेरे ऊपर धप्प से गिर गए… मैं भी निढाल सी हो गई।

थोड़ी देर में हमको होश आया… सांसें ठीक हुई, उनका लंड भी बुर से बाहर आ गया था, मेरी बुर से गर्म गर्म कुछ निकल रहा था, मैंने हाथ लगा कर देखा सफ़ेद और लाल रंग का गन्दा सा लिक्विड था।

सर- ऋचा, तुमने आज मुझे खुश कर दिया!
फिर उन्होंने मेरे बदन को साफ किया और बिठा कर दो गोली खाने को दी और बताया कि एक गोली दर्द कि है दूसरी प्रेग्नेंसी रोकने की! फिर मुझे विस्तार से समझाया.. कि क्या क्या हुआ.. सेक्स क्या होता है… मैं हैरान रह गई सब सुन कर…

पर मैं खुश थी कि सर खुश हो गए।

मैं उठ कर बाथरूम गई और बुर को अच्छे से धोकर बाहर आई तो सर वैसै ही नंगे खड़े थे, उन्होंने मुझे बाँहों में लेकर समझाया कि जो कुछ भी हुआ वो सिर्फ हम दोनों के बीच में रहना चाहिए, भूल कर भी किसी को नहीं बताना, अपनी किसी सहेली को भी नहीं!
मैं ‘जी सर… जी सर… जी सर…’ करती रही।

तभी मेरी नज़र बिस्तर पर गई, बिस्तर पर खून के निशान थे।

मुझे चलने में थोड़ी परेशानी थी पर मैं घर आकर खाना खाकर अपनी कमरे में आ गई। मैं सोचती रही कि जो हुआ वो सही था या गलत?
मैं तो नादान थी पर सर तो सब जानते थे, फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया… इसमें कोई शक़ नहीं कि जितना दर्द, हुआ उससे ज्यादा मुझे मजा आया.. सुख मिला!

मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था पर फूल सा हल्का लग रहा था।

दूसरे दिन सुबह तक मेरा दर्द भी कम हो गया था और फिर स्कूल में भी मन नहीं लगा।
पर सर ने बताया कि मेरी अटेंडेन्स ठीक कर दी है और मेरे अंक भी बढ़ा दिए हैं, अब मैं बोर्ड के एग्जाम दे सकती थी।
दिल में संतोष सा था… दो दिन तक मैं नार्मल थी।

पर दो दिन के बाद मुझे सर की याद आने लगी, मेरा जिस्म फिर से वो सब मांगने लगा। बहुत कंट्रोल किया पर हुआ नहीं और मैं फिर सर के पास चली गई… हम दोनों के बीच फिर वो सब हुआ, कई बार हुआ।

धीरे धीरे मुझे स्त्री और पुरुष के बीच के संबंधों का ज्ञान हो गया, सेक्स और बुर चुदाई लंड आदि का भी ज्ञान हो गया।
12 के एग्जाम में मैं पास हो गई.. पर मैंने सर के पास जाना बंद कर दिया, सर ने भी मुझे खुद नहीं बुलाया।

पर मेरे इस ज्ञान ने मुझे एक मासूम नादान लड़की से बिंदास बोल्ड लड़की बना दिया।

यह थी मेरे और हर्ष सर के बीच की मेरे पहले बुर चोदन की कहानी.. आशा है आप सबने चटकारे ले कर पढ़ी और सुनी होगी… साथ में आप लड़कों ने अपने लंड को हिला हिला कर माल निकाला होगा और मेरी बहन, भाभी आंटी ने भी अपनी बुर में उंगली जरूर की होगी।

मेरी कहानी पर अपने विचार अवश्य प्रकट करें।
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