जवानी का ‘ज़हरीला’ जोश-7
(Jawani Ka Jaharila Josh- Part 7)
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अभी तक आपने पढ़ा कि गगन से मेरी लड़ाई हो गई थी और मैं बिना बताए उसको सरप्राइज़ देने उसके घर चला गया। जब घर पहुंचा तो उसने पहले से एक नाइजीरियन ब्लैक को अपनी गांड मरवाने के लिए घर में बुला रखा था। उस नाइजीरियन के सामने तो मैंने कुछ नहीं कहा लेकिन मुझसे वहाँ पर रुका भी नहीं गया। थ्रीसम करना तो दूर मुझे वहां सांस लेने में भी घुटन सी महसूस होने लगी, एक अजीब सी घबराहट अंदर पैदा हो गई मानो कोई चीज़ मुझे अंदर से कचोट रही हो।
मैं वहां से निकलने लगा तो गगन समझ गया कि मैं उसकी इस हरकत से नाराज़ होकर जा रहा हूं। उसने मुझे रोकने की कोशिश की लेकिन मैंने मुड़कर भी नहीं देखा। दिल टूट गया था मेरा।
गगन मेरा पहला प्यार था और मुझसे उसकी ये बेवफाई किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वहां से तो रोते हुए वापस आ गया लेकिन दिल का दर्द किसे बताता। घरवालों को तो बता नहीं सकता था और ऐसा मेरा कोई दोस्त भी नहीं था जिसके सामने रोकर अपने दिल की भड़ास निकाल सूकँ।
उस रात को मेरे आंसू नहीं सूखे, देर रात तक छत पर बैठा रहा आंसू बहाता रहा। घरवालों से छिपते-छिपाते कि कहीं उनको उनके गे बेटे के बारे में पता न लग जाए। माँ जानती थी कि कुछ तो गड़बड़ है, उसने पूछने की कोशिश भी की लेकिन मैं बताता तो क्या बताता।
यही कि उनके टॉप गे बेटे का दिल एक बॉटम गे ने छलनी कर दिया है?
मैं चुपचाप आकर बेड पर पड़ा रहा, रात भर करवटें बदलता रहा। रह-रहकर उसके साथ गुज़ारे पल याद आते और कलेजा फिर से भर आता। बहुत बुरी हालत हो रही थी मेरी। सुबह के 3.30 बजे उठा घर से बाहर निकलने लगा।
माँ की आँख खुली तो उसने पूछा- इतनी सुबह कहां जा रहा है?
मैंने कहा- कुछ नहीं, बस यूं ही खेतों की तरफ टहलने जा रहा हूं।
वो बोली- इतने अंधेरे में? थोड़ी रौशनी तो होने दे!
मैंने माँ की बात भी अनसुनी कर दी और घर से निकल गया। बाहर सच में बहुत अंधेरा था और सड़क पर चलते हुए मुझे थोड़ा डर भी लग रहा है। लेकिन टूटे दिल के दर्द के सामने वो डर रत्ती भर की भी औकात नहीं रखता था।
मैं बेसुध सा बस चला जा रहा था। चलता गया-चलता गया और धीरे-धीरे दिन निकलना शुरू हो गया। देखते ही देखते सूरज भी निकल आया। मैं घर से बहुत दूर गांव के खेतों में निकल आया था। चलते-चलते जब थकान होने लगी तो एक खेत की बांध (डोली) पर बैठ गया। बस बैठा रहा… अब न रोने का मन कर रहा था और न किसी से बात करने का।
सुबह के आठ बज गए और सूरज की धूप सताने लगी तो वहां से भी उठकर चल दिया। लेकिन जाता कहां, आना तो वापस घर ही था। मैं घर आ गया लेकिन बिल्कुल गुमसुम, उदास सा रहने लगा।
माँ ने मेरे बड़े भाई को मेरे पास भेजा कि तू ही पूछ ले क्या बात है, ये ऐसे क्यों रहता है दो दिन से।
मैंने भाई को भी कुछ नहीं बताया। बताने का फायदा भी नहीं था क्योंकि भाई को अगर गे लाइफ के बारे में समझा भी देता तो माँ-बाप को कैसे समझाता।
मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा।
गगन के कॉल आते रहे लेकिन मैंने फोन नहीं उठाया। वो मेरे घर भी आया लेकिन मैंने घरवालों को बोल दिया कि कह दें मैं घर पर नहीं हूँ। घर वाले भी हैरान थे… कहां इतनी गहरी दोस्ती थी और कहां अब मिलने से बचने के लिए झूठा बहाना बनाया जा रहा है.
लेकिन दोस्ती के नीचे की सच्चाई कुछ और थी जो कोई नहीं जानता था।
दो दिन से मैं ऑफिस भी नहीं जा रहा था। बॉस का फोन आया अगर लीव एप्लीकेशन नहीं दोगे तो टर्मिनेट कर दिए जाओगे।
मुझे टर्मिनेशन की भी कोई परवाह नहीं थी लेकिन फिर सोचा कि जॉब छोड़ी तो घरवालों के सामने सौ झूठ बोलने पड़ेंगे क्योंकि सच्चाई को वो ना तो समझ पाएंगे और अगर समझ भी गए तो माँ बर्दाश्त नहीं कर पाएगी।
मैं लीव एप्लीकेशन देने ऑफिस गया तो मेरे कलीग्स ने पूछा कि सब तो ठीक तो है?
मैंने ऊपरी मन से ही सबको कुछ न कुछ बहाना बना दिया। असली बात कोई नहीं जानता था कि प्यार में मेरा दिल टूटा हुआ है। बात किसी लड़की की होती तो किसी से शेयर भी कर लेता लेकिन लड़के और लड़के बीच में प्यार?
लोग मुझे दिलासा देने की बजाए मेरा मज़ाक बनाने लग जाते। इस बात का अंदाज़ा मुझे भूषण ने पहले ही करवा दिया था। इसलिए अपना गम अंदर ही अंदर ही पीता जा रहा था।
एक हफ्ते की छुट्टी के बाद मैंने मरे मन से फिर ऑफिस ज्वाइन कर लिया लेकिन काम में तो दिल लग नहीं रहा था बस वहां पर भी दिन काट रहा था। लेकिन कहते हैं कि वक्त बहुत बड़ा मरहम होता है।
ऑफिस जाते हुए धीरे-धीरे मेरे अंदर का कॉन्फीडेंस भी फिर से डेवलेप होने लगा था… क्योंकि रोज़ बाहर जाता, लोगों से मिलता, थोड़ा हंसी मज़ाक होता और 3-4 महीने के अंदर गगन की वो हरकत मैं धीरे-धीरे दिमाग से निकालकर अपनी लाइफ पर फोकस करने लगा। अब प्यार-व्यार की बातें मुझे बकवास लगने लगी थीं। पहले प्यार का दर्द अपने पीछे दिल को भी नीरस बनाकर चला जाता है।
मेरे साथ तो ऐसा ही हो रहा था कई लोगों को दूसरी और तीसरी बार भी प्यार हो जाता है लेकिन पता नहीं कैसे… मैं तो इस प्यार शब्द से नफरत करने लगा था। मैंने फोन नम्बर भी दूसरा बदल लिया था। उसकी हर याद अपनी ज़िंदगी से मिटा देना चाहता था।
6 महीने बीत गए… मेरे घर वाले मेरे लिए लड़की ढूँढने लगे। उनको लगा कि अब इसकी शादी कर देनी चाहिए, लेकिन मैं हर बार मना कर देता था। अब बहाना बनाने की बजाय साफ-साफ मना कर देता था कि मुझे शादी-वादी नहीं करनी है।
वो मेरे इस बर्ताव से परेशान हो गए थे और कुछ दिन बाद उन्होंने भी मुझे शादी के लिए फोर्स करना छोड़ दिया था।
ज़िंदगी गुज़र रही थी लेकिन ना कोई मकसद था और ना मंज़िल। बस दिन कट रहे थे।
छुट्टी वाले एक दिन गगन फिर से मेरे घर आ गया, मैं बाहर ही बैठा हुआ था, उसने मुझे देख लिया इसलिए अंदर बुला लिया।
हम अंदर वाले कमरे में चले गए क्योंकि मुझे पता था कि अपनी सफाई देने वाला है और घर वालों के सामने ये सब बातें नहीं हो सकती थी.
वो बोला- अभी तक नाराज़ है?
मैंने उससे यही सवाल किया- मैंने तेरे साथ क्या गलत किया था जो तू अपनी जगह पर लॉयल नहीं रहा?
वो बोला- यार, प्यार तो मैं भी तुझसे बहुत करता था लेकिन मेरी आदत ही ऐसी है, मुझे हफ्ते भर के बाद चेंज चाहिए होता है, लेकिन मैं जानता था कि तू ये बात बर्दाश्त नहीं कर पाएगा इसलिए तुझे बताया नहीं।
मैंने कहा- तो ज़रा सोच… अगर मैं किसी और के साथ मुंह मारता हुआ मिलता तो तुझे कैसे लगता?
उसने कहा- मुझे कोई दिक्कत नहीं होती उस बात से। तेरी लाइफ है, मैं कौन होता हूं रोकने वाला…
मुझे बड़ी हैरानी हुई उसकी बात सुनकर, मैंने कहा- फिर ऐसे रिलेशन का फायदा ही क्या। इससे अच्छा तो रिलेशन में जाना ही नहीं चाहिए जब रोज़ ही पार्टनर बदलना है तो।
उसने कहा- तो बहुत पज़ेसिव है प्रवेश, गे लाइफ में मुझे आज तक ऐसा कोई नहीं मिला जो एक पार्टनर पर टिक कर रहा हो।
मैंने कहा- कोई बात नहीं, लेकिन मैं तो ऐसा ही हूं।
उसने कहा- ठीक है! लेकिन हम दोस्त तो रह सकते हैं ना?
उसकी बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया.
उसने मेरे हाथ पर हाथ रखा और बोला- देख यार… मैंने भी ज़िंदगी में बहुत धक्के खाए हैं। तेरे जैसा दोस्त मैं खोना नहीं चाहता। तुझे सेक्स नहीं करना तो ना सही लेकिन मुझसे रिश्ता क्यों तोड़ रहा है।
मुझे उस पर तरस आ गया… मैंने कहा- ठीक है लेकिन मुझसे कभी फिज़ीकल होने की उम्मीद मत रखना.
वो बोला- ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी, मैं तुझे कभी फोर्स नहीं करूंगा।
उस दिन से हमारी दोस्ती फिर शुरू हो गई। अब पुराना चैप्टर बंद हो गया था। धीरे-धीरे मेरा उसके घर आना-जाना फिर शुरू हो गया। पुरानी बातों को भूलकर अब हम सिर्फ दोस्त थे। लेकिन वो अपनी बात पर कायम नहीं रहा। जब भी मैं उसके घर जाता वो मुझे किस करने की कोशिश करने लगता लेकिन मैं उसको मना कर देता था। मेरे अंदर वाकयी उसके लिए वो प्यार वाली फीलिंग मर चुकी थी।
उसने बहुत बार कोशिश की मेरे साथ फिज़ीकल होने की लेकिन वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया। मुझे भी इस बात का पता था कि किसी को इतना तड़पाना भी ठीक नहीं है लेकिन जिस गगन को छूते ही पहले मेरा लंड खड़ा हो जाता है, अब उसकी छुअन से मुझे चिढ़ हो जाती थी। उसके लिए मेरे अंदर वैसा कुछ बचा ही नहीं था।
ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं कि फिर से वही प्यार पैदा करने की। लेकिन पता नहीं क्यों, मेरे अंदर से वो प्यार वाला दिल जैसे खत्म ही हो गया हो।
लाइफ बिल्कुल नॉर्मल थी। हम पहले की तरह ही साथ में मस्ती करते। बातें करते लेकिन दोबारा उसके लिए कभी प्यार पैदा नहीं कर पाया मैं। अब मैंने भी वही पुरानी छेड़छाड़ वाली आदत फिर से शुरू कर दी थी। लेकिन बस टाइम पास करने तक ही लिमिट कर लिया था खुद को।
पीआर पर अकाउंट भी था लेकिन बस चैटिंग के लिए, पॉर्न देखकर मन बहला लेता या किसी से बातें करता रहता। अब रिलेशन का भूत सिर से उतर गया था। मुझे समझ आ गया था कि लाइफ ऐसे ही चलने वाली है।
दो साल ऐसे ही गुज़र गए। गगन और मैं अपनी-अपनी लाइफ में बिज़ी रहने लगे लेकिन घर आना-जाना होता रहता था।
एक दिन मैं किसी काम से गगन के घर गया तो वो घर पर नहीं था, सिर्फ उसका भाई ही था, मैंने पूछा- आंटी भी नहीं हैं?
सागर (उसके बड़े भाई) ने बताया कि वो दोनों भी गांव गए हुए हैं, एम.पी में।
मैंने पूछा कि गगन कब तक आएगा तो सागर ने बताया कि वो किसी डॉक्टर के पास गया हुआ है.
मुझे थोड़ी चिंता हुई तो पूछ लिया- कि सब ठीक तो है।
सागर ने कहा- वैसे तो सब ठीक है लेकिन उसको पाइल्स की प्रॉब्लम हो गई है, उसी के लिए गया हुआ है।
मैंने मन ही मन कहा कि इतनी गांड मरवाएगा तो पाइल्स ही होगा…
मुझे पता था ये कभी नहीं सुधरेगा, अच्छा हुआ मैंने इसके साथ ब्रेक-अप कर लिया। ऐसे बंदे के साथ रिलेशन में जाना मेरी बहुत बड़ी बेवकूफी थी। खैर… हम यहां-वहां की बातें करने लगे।
सागर के साथ भी मेरी अच्छी बनती थी। हम तीनों अक्सर बाहर भी जाते रहते थे। सागर भी मुझे उसका भाई कम और दोस्त ज्यादा लगता था। सागर ने कम्प्यूटर ऑन कर दिया और इंटरनेट पर कुछ देखने लगा। मैं भी उसके साथ जा बैठा।
कुछ देर उसने अपने काम की चीज़ देखी फिर उसने पूछा- तू बोर तो नहीं हो रहा है?
मैंने कहा- नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।
लेकिन उसने फिर एक मूवी चला दी। हम दोनों साथ बैठकर मूवी देखने लगे ‘आशिक़ बनाया आपने’ मूवी काफी हॉट थी। सागर और मेरी उम्र में दो साल का ही अंतर था इसलिए इस तरह की मूवी देखने में हमें कोई प्रॉब्लम नहीं थी।
सागर ने शॉर्ट्स डाले हुए थे। उसके बदन का रंग गेहुंए रंग से हल्का सा सांवला था लेकिन उसकी थाइज़ काफी अट्रैक्टिव थी।
जब तक मैं गगन के साथ रिलेशन में रहा मेरा ध्यान कभी उसके भाई की तरफ गया ही नहीं। हम कम्प्यूटर स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए हुए थे। बीच-बीच में जब इमरान और तनुश्री के हॉट सीन्स आते तो मेरी नज़र सागर के लंड को ढ़ूंढने लगती कि पता तो चले कि उसका साइज़ कितना है। लेकिन शॉर्ट्स में पता नहीं लग पा रहा था। या फिर वो मेरे पास बैठा होने की वजह से खुद कंट्रोल कर रहा था।
जब मूवी के बीच में इमरान और तनुश्री का हॉट रोमांस चालू हुआ तो सागर अपने लंड को खुजलाते हुए एडजस्ट करने लगा। वो अपनी तरफ से लंड को छिपाने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे उसका खड़ा हुआ लंड एक तरफ शार्ट्स में उछलता हुआ अलग से दिखाई दे रहा था। सामने स्क्रीन पर हॉट इमराऩ की चेस्ट दिखाई दे रही थी तो नीचे सागर का लंड।
मैं भी खुद को नहीं रोक पाया और मैंने धीरे से सागर की जांघ पर हाथ रख दिया। उसने मेरी तरफ देखा और मैं मुस्कुरा दिया। वो कुछ नहीं बोला और उसकी टांगें फैल गईं। वो तो गरम हो ही रखा था और मुझसे भी ज्यादा देर कंट्रोल नहीं हुआ और मैंने उसके झटके मारते लंड पर हाथ रख ही दिया।
काफी मोटा लंड था उसका… लंबा भी ठीक ही था।
उसने शॉर्ट्स के बटन खोल दिए और मैंने हाथ अंदर डाल दिया और उसके खड़े लंड को पकड़ लिया उसके मुंह से सिसकारी निकल गई- इस्स्स्… करते हुए वो थोड़ा आगे पीछे मूवमेंट करने लगा जैसे मेरे हाथ को ही चूत समझ रहा हो।
मैंने उसके लंड को बाहर निकाल लिया। उसने मुझे अपनी टांगों के बीच में नीचे फर्श पर बैठा लिया।
मैं समझ गया कि वो क्या चाहता है, मैंने सीधा उसके लंड को मुंह में ले लिया और उसकी आह्ह्ह… निकल गई।
मैं उसके लंड को चूसने लगा और उसके हाथ मेरे सिर पर आकर सहलाने लगे।
कुछ देर तक चुसवाने के बाद वो उठने लगा, मैंने लंड मुंह से बाहर निकाला और वो खड़ा होकर शार्ट्स का ऊपर वाला बटन खोलने लगा और नीचे से नंगा हो गया। उसका लंड काफी बड़ा था जो मेरे थूक में सनकर और ज्यादा सेक्सी दिखाई दे रहा था।
वो उठकर पास के सोफे पर टांगें फैला कर जा बैठा और मैं फिर से फर्श पर बैठकर उसकी टांगों के बीच में बैठकर उसके लंड को चूसने लगा। वो मस्ती में भरता जा रहा था, मेरी तरफ कामुक नज़रों से देख रहा था।
मैं उसके लंड को अच्छे से चूस रहा था। उसके लंड से प्रीकम निकलना शुरु हो गया था जिसका नमकीन सा स्वाद मुझे मेरे मुंह में आने लगा था।
उसने कहा- पैंट उतार ले ना…
मैंने ‘ना’ में गर्दन हिला दी… क्योंकि गांड मरवाने का मुझे कोई शौक नहीं था लेकिन उसके मस्त लौड़े को चूसे जा रहा था।
उसने फिर से रिक्वेस्ट की पैंट खोलने के लिए लेकिन अबकी बार मैंने उसकी गोटियों को मुंह में भर लिया। वो और कामुक हो गया और मेरे गालों को सहलाने लगा, कभी कंधों को दबाने लगा। उसने पूरी टांगें उठा दीं ताकि उसकी गोटियां पूरी मेरे मुंह में आराम से भर जाएं और उसकी टांगें दोनों तरफ मेरे कंधों पर आकर टिक गईं। मैंने फिर से लंड को मुंह में ले लिया।
अबकी बार उससे कंट्रोल नहीं हुआ और वो अपने हाथों से मेरे मुंह को लंड में घुसाते हुए मुंह को चोदने लगा। लंड मेरे गले में फंसने लगा और मुझे उल्टी होने लगी लेकिन वो रुक नहीं रहा था।
तभी डोरबेल बज गई। हम दोनों घबराकर उठ गए, सागर शार्ट्स पहन कर खड़े लंड को हुक के नीचे पेट पर दबाकर शर्ट से ढकते हुए नीचे गेट खोलने चला गया।
कुछ पल बाद गगन और सागर दोनों ही रूम में दाखिल हुए।
गगन मुझे देखकर एक बार तो हैरान हुआ लेकिन फिर खुश हो गया लेकिन उसे नहीं पता था कि मैं उसके भाई का लंड चूस रहा था। सागर ने भी इस बात की भनक नहीं लगने दी।
हमने कुछ देर बातें की और गगन से मिलकर मैं वापस जाने के लिए कहने लगा। सागर मुझे रूम के गेट तक छोड़ने आया, मैंने उससे हाथ मिलाया तो आज उसके हाथ मिलाने का अंदाज़ बदल गया था, जैसे मेरे हाथ को सहलाने की कोशिश कर रहा हो।
मैंने उसको स्माइल दी और वो भी हल्के से मुस्कुरा दिया। मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया.
कहानी जारी रहेगी.
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