जवानी का ‘ज़हरीला’ जोश-1

(Jawani Ka Jaharila Josh- Part 1)

This story is part of a series:

मैं अंश बजाज एक बार फिर से आपका स्वागत करता हूं आपकी पसंदीदा साइट अंतर्वासना सेक्स स्टोरीज़ पर। दोस्तों आजकल का ज़माना कुछ ऐसी राह पर चल पड़ा है कि हर इंसान की ज़िंदगी में कुछ ऐसी उथल-पुथल मची है कि वो लंबे समय तक अपने निशान उसके दिल और दिमाग पर छोड़ जाती है। इन्हीं उतार-चढ़ावों में हर इंसान की कोई न कोई कहानी या तो बन चुकी होती है या बन रही होती है, या आने वाले समय में बनने के लिए तैयारी कर रही होती है।

मेरी कहानी तो रवि पर जाकर खत्म हो चुकी है लेकिन पाठक हर कहानी को मेरी कहानी समझ बैठते हैं, जबकि कहानी की शुरूआत में ही यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि मेरे द्वारा कौन यह कहानी आप तक पहुंचा रहा है।

यह कहानी है मेरे ही एक दोस्त प्रवेश की। दोस्त इसलिए कहा क्योंकि अंतर्वासना के सौजन्य से ही हमारी बातचीत शुरू हुई थी, जब विचार मिले तो दिल भी मिल गए, बात दोस्ती तक पहुंच गई।
अब आगे की कहानी को प्रवेश ही सुनाए तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि पानी की गहराई वही बता सकता है जिसने ज़िंदगी के पल-पल बदलते सागर में अंदर तक गोता लगाया हो।

मेरा नाम प्रवेश है और मेरी उम्र 32 साल की हो चुकी है। मैं हरियाणा के सोनीपत में रहता हूं। जब मैं जवान होने ही लगा था तब से ही मुझे पता था कि मैं लड़कों की तरफ आकर्षित होता हूं लेकिन रहने वाला गांव का था इसलिए अपनी भावनाओं को दबाकर बस मुट्ठ मारकर काम चला लेता था। हालांकि मुझे अपनी समलैंगिक वृत्ति (होमोसेक्सुअल ओरिएंटेशन) के बारे में यह ज्ञान नहीं था कि मुझे लड़कों के लंड को अपनी गांड में डलवाने में मज़ा आएगा या अपने लंड को किसी लड़के की गांड में डालकर उसको चोदने में।

बस इतना जानता था कि मुझे हैंडसम और अच्छे कद-काठी वाले लड़कों को देखना, उनके शरीर को कल्पना की शक्ति से नंगा करना, उनके जिस्म को चूमने-चाटने के सुनहरे ख्वाब देखना, रात को कमरे की लाइट बंद करके दिन में देखे हुए किसी हैंडसम लड़के को अपने काल्पनिक तरीके से अप्रोच करते हुए उसके बदन के एक-एक अंग को अपनी आंखों के सामने नंगा होते हुए देखने की दिल मचला देने वाली कल्पना, और उसकी कल्पना में अपने लंड की मुट्ठ मारकर अंडरवियर में अपना वीर्यपात करना अच्छा लगता था।

कई बार तो ऐसा होता था कि किसी हैंडसम लड़के से हाथ मिलाने के उपरांत जागी वासना की लहरें उसी समय मुझे बाथरूम में ले जाती थीं और जब तक लंड से वीर्य ना झाड़ लूं तब तक उसके ख्याल मन से जाते ही नहीं थे। इसी तरह अक्सर दिन में तीन-तीन बार मुट्ठ के राउंड लग जाते थे। गांव के लड़के तो वैसे ही लार टपटाकने वाले जिस्म के मालिक होते हैं, इसलिए नई-नई जवानी के शुरुआती दो तीन सालों में तो मैंने लगातार हर दिन तीन बार तक मुट्ठ मारी है।

पहला राउंड सुबह नहाते हुए बाथरूम में, दूसरा राउंड दिन में किसी भी वक्त जब लंड परेशान करता और तीसरा राउंड रात को सोते समय।
और अगर किसी दिन कुदरत का तराशा हुआ कोई कामदेव दिख गया तो एक घंटे के अंदर ही तीन बार लंड को रगड़ देता था। लंड में दर्द होने लगता था, झाग बन जाते थे, पेशाब निकालते समय परेशानी हो जाती लेकिन जोश कम नहीं होता था, जवानी भी क्या दौर होता है उम्र का… बहुत वीर्य बहाया उन दिनों में।

फिर पढ़ाई खत्म हुई तो नौकरी की तलाश शुरू हो गई। उस समय कॉल सेंटर की जॉब्स का काफी क्रेज़ था, मैंने भी दिल्ली के एक कॉल सेंटर में जॉब कर ली। रेलगाड़ी से आना जाना होता था। रोज़ कईयों के लंड को सहलाकर आता था, कोई हाथ हटवा लेता तो किसी का खड़ा हो जाता, वो भी मज़े ले लेता। मेरी गांड को दबाने लगता, कंधों को सहलाते हुए मेरी निप्पल्स को टटोलने की कोशिश करता, मुझे भी अच्छा लगता था।

कई बार तो मुझे चूसना भी पड़ता था क्योंकि मर्द को छेड़े बिना मुझसे रहा नहीं जाता था और जब उसका लंड खड़ा हो जाता तो फिर चूसने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता था। ऐसा भी नहीं था कि मुझे लंड चूसने की ललक लगी रहती थी लेकिन छेड़ना बहुत पसंद था, फिर जब चूसना पड़ता तो किसी का चूसने में आनंद आता तो किसी से घिन सी आने लगती थी। इसीलिए मैं अभी तक इसी असमंजस में था कि मैं चाहता क्या हूं।

गांव में मैं ऐसी हरकत कभी नहीं करता था क्योंकि गांव के हर व्यक्ति को अपने गांव में रहने वाले परिवारों की पूरी पीढ़ी के बारे में पता होता था, इसलिए हर हरकत गली-गली में फैलते देर नहीं लगती थी। बदनामी का डर और परिवार का खौफ दोनों ही मुझे मेरे गांव के लंडों से दूर रखते थे।
हां, बाहर का कोई मौका मैं नहीं चूकता था।

ज़िंदगी ऐसे ही छेड़छाड़ में गुज़र रही थी। उस वक्त तक इंटरनेट लोकप्रिय होने लगा था और साइबर कैफे के कैबिन में बैठकर लोग ज्यादातर पॉर्न ही देखा करते थे। मेरे कई दोस्त अक्सर नंगी साइटों के बारे में बातें किया करते थे। ऑफिस से निकलने के बाद एक दिन मैं भी पहुंच गया शहर के एक साइबर कैफे में… 20 रूपये एक घंटे का चार्ज होता था। मैंने भी इंटरनेट के मशहूर सर्च इंजन पर नेक्ड फोटोज़ टाइप कर दिया। सर्च पर क्लिक करते ही औरत और मर्द की चुदाई वाली तस्वीरों से कंप्यूटर स्क्रीन भर गई। कोई मुंह में लेकर चूस रही है तो कोई चूत में लेकर चुदाई करवा रही है। किसी की चूत वीर्य से सनी है तो किसी के होंठ और गाल।

लंड सेकेण्ड्स के हिसाब से खड़ा हो गया। फिर क्या था, शुरू हो गया क्लिक-क्लिक का खेल। जैसे-जैसे नीचे जाने लगा और मज़ा आने लगा। फोटो देखते-देखते मेरी नज़र एक जगह जाकर ठहर गई। फोटो में एक मर्द ने दूसरे गांड में लंड डाला हुआ था और जिसकी गांड में घुसा था उसके होंठों पर आनंद और दर्द साथ-साथ झलक रहा था। चोदने वाले मर्द के एक्सप्रेशन जोशीले थे, उसने एक हाथ से चुदने वाले के बालों को पकड़ा हुआ था और दूसरा हाथ कंधे पर जमाकर पूरा लंड उसकी गांड में घुसाया हुआ था।

वो फोटो मैं देखता ही रह गया।

हालांकि औरत और मर्द की चुदाई वाली फोटो में भी मेरा ध्यान नंगे मर्दों पर ज्यादा जा रहा था लेकिन यहां तो दोनों ही मर्द थे और वो भी चुदाई करते हुए। औरत-मर्द की चुदाई वाली फोटो ने जो उत्तेजना पैदा की थी उससे 4 गुना ज्यादा इस फोटो ने कर दी। मैं कुछ पल तक आंखें गड़ाकर उस फोटो को देखता रहा, हाथ अपने आप ही खड़े हुए लंड पर चला गया और उसको पैंट के ऊपर से सहलाने लगा। फोटो को और बड़ा करके देखने की इच्छा हुई तो मैंने फोटो पर क्लिक कर दिया।

क्लिक करते ही एक नई साइट खुल गई जिसमें ऐसी ही ढ़ेर सारी फोटो थीं, जिनमें मर्द ही मर्द दिखाई दे रहे थे। एक लंड चूस रहा है तो दूसरा मज़े से चुसवा रहा है, कोई अंडरवियर में खड़े लंड को ऊपर से ही जीभ लगाकर चाट रहा है तो किसी ने पूरा लंड नीचे बैठे हुए मर्द के गले तक उतार रखा है और उसका चेहरा लाल हो गया है। किसी ने गांड में लंड डाल रखा है तो किसी ने नीचे लेटे हुए मर्द की हेयरी चेस्ट पर वीर्य की बूंदें गिरा रखी हैं।
मैंने साइट का नाम देखा तो पहली बार मैं इस शब्द से मुख़ातिब हुआ- ‘गे’।

इस शब्द को पढ़कर मैंने सर्च इंजन पर टाइप किया तो दुनिया भर की साइट्स के नाम मेरे सामने आ गए। बाप रे बाप! मैं तो सोच रहा था दुनिया में एक मैं ही अकेला ऐसा इंसान हूं जिसको लड़कों में रूचि है लेकिन यहां तो दुनिया भरी पड़ी है।

पहली साइट पर क्लिक किया, फिर दूसरी पर, फिर तीसरी, चौथी, और चस्का बढ़ता ही गया। जब रहा नहीं गया तो धीरे से केबिन पर लगे पर्दे को खींचकर पूरा बंद कर लिया और जिप खोलकर लंड को अंडरवियर से बाहर निकाल लिया। लंड तो पहले से ही झटके मार-मारकर हांफ रहा था। टोपी पूरी चिकनी और हल्के से झाग मूतने वाले कट के मुहाने पर लगे थे। तनाव इतना कि जैसे कोई लकड़ी का सख्त मोटा डंडा।

फिर से नज़र फोटो पर गई जिसे देखते हुए मैंने मुट्ठ मारना शुरू कर दिया। ओह. .कितना सेक्सी है, इस्स्स… इसकी छाती, आह्ह्ह्ह… इसके निप्पल, ओह्ह्ह्ह… इसके तो होठों को चूस लूं, हाय रे क्या जिस्म है इसका, और कैसे चोद रहा है, इस्स्स… आह्ह्ह्ह… कैसे मज़े से चुदवा रहा है..
स्क्रीन की हर एक फोटो को देखने की लालसा के साथ लंड पर हाथ ऊपर-नीचे चलने की स्पीड भी बढ़ती जा रही थी।

फिर एक ऐसी फोटो दिखाई दे गई जिसमें तीन मर्द थे, एक ने नंगा खड़ा होकर तने हुए लंड को दूसरे के मुंह में दे रखा था, और जो घोड़ी बना था उसके पीछे तीसरे ने उसकी गांड में लंड फंसा रखा था और जबरदस्त तरीके से चोद रहा था। इस फोटो में इनके चेहरे के भाव देखकर मेरी अंतर्वासना अपने चरम पर पहुंच गई और मैंने दोगुनी स्पीड से मुट्ठ मारते हुए आंखें बंद कर ली और कुछ ही सेकेण्ड्स में मेरे लंड ने मेरे पेट पर वीर्य की धार मारना शुरू कर दिया।

मैं ये भी भूल गया कि मैं साइबर कैफे के अंदर बैठा हुआ हूं। जब पूरा लंड झटके मारते हुए खाली हो गया तब होश आया कि मैं साइबर कैफे में हूं। लेकिन तब तक लंड ने शर्ट का सत्यानाश कर दिया था। पेट पर बीच के हिस्से को वीर्य ने गीला कर दिया था।
अब क्या करूं…ये क्या हो गया…? अब बाहर कैसे जाऊंगा…

मैं थोड़ा झुंझलाया और पैंट की जेब टटोलने लगा। टटोलते हुए जेब में रुमाल का अहसास हुआ। फटाक से रुमाल निकाला और शर्ट को साफ करने लगा। थोड़ा घबरा रहा था कि कहीं कोई देख ना रहा हो लेकिन केबिन ऐसा बना हुआ था कि परदा लगने के बाद चारों तरफ से बिल्कुल बंद। मैंने जल्दी-जल्दी शर्ट को रुमाल से साफ किया और लंड को अंडरवियर के अंदर करके पैंट की जिप को बंद कर लिया और रुमाल को ऐसे ही दबोच कर वापस से जेब में ठूंस लिया।

अब मैं ऐसे बैठ गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो, लेकिन शर्ट अभी भी गीली थी। टाइम देखा तो दो घंटे बीत चुके थे। मैं हैरान… बहनचोद, टाइम का पता ही नहीं चला यार… दिमाग खराब हो गया। एक तो वीर्य छूटने के बाद वैसे ही हर चीज़ से मन उठ जाता है ऊपर से इतना टाइम बर्बाद हो गया था।
और शर्ट पर ये दाग, आज कैसे निकलूं इस दाग के साथ?

फिर दिमाग में आया कि बैग भी तो है साथ में। मैंने फटाक से सारी साइट्स के टैब बंद किए और बैग को गीले दाग वाले हिस्से के सामने रखकर पर्दा हटाया और कैबिन से बाहर निकल कर कैफे वाले भैया के पास पहुंच कर पूछा- कितना चार्ज हुआ भैया?
उसने पूछा- किस नाम से एंट्री की थी रजिस्टर में?
मैंने कहा- प्रवेश!

कैफे वाले ने एंट्री टाइम देखा और फिर अपने कंप्यूटर सिस्टम पर देखा और बोला- 60 रूपये..
मैंने बिना कोई सवाल किए 100 का नोट निकाल कर दे दिया, उसने नोट लिया और 10 रूपये के 4 नोट हाथ में लेकर मेरी तरफ बढ़ा दिए। पैसे वापस लेकर मैं सीढ़ियों से उतरा तो गुस्सा आ रहा था उस पर… हरामी ने 10 मिनट ऊपर होने का भी पूरा चार्ज काट लिया।
लेकिन जब साइट्स के बारे में सोचा तो मन कुछ शांत हुआ। पैसे लगे तो क्या हुआ, मज़ा भी बहुता आया यार…

फिर ध्यान गया उस शब्द पर जो आज मैंने सीखा था… ‘गे…’ मतलब मैं भी ‘गे’ हूं इसीलिए मुझे लड़के अच्छे लगते हैं।

रास्ते में मर्दों को घूरते हुए मैं रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहा था। अब तक वीर्य निकलने के बाद आने वाली ग्लानि की जगह नई अंतर्वासना का अंकुर फूट चुका था और मन कर रहा था कि कोई मिल जाए मुझे भी। मैं भी उसके जिस्म को नंगा करवा कर उसको चाटूं, चूमूं, खेलूं उसके छाती के निप्पलों और नीचे लटकने वाले बड़े निप्पल के साथ। सारा दूध पी जाऊं किसी हैंडसम का।

दिमाग में इंटरनेट साइट्स पर देखी फोटोज की ताज़ा छवि और आंखों के सामने रास्ते में चलते हुए दिखने वाले सेक्सी मर्दों की शर्ट और पैंट के नीचे छिपे बदन को मन की आंखों से नंगा देखने के ख्याल फिर से लंड में अकड़न पैदा कर रहे थे।

पैंट में खड़े लंड के साथ स्टेशन पर पहुंचा तो पता चला ट्रेन जा चुकी है। धत तेरी… आज तो किस्मत ही खराब है। अगली ट्रेन दो घंटे के बाद थी। तब तक कहां टाइम पास करूं… रात तो पहले ही हो चुकी है।

एक बार तो सोचा कि बस से ही चला जाता हूं लेकिन फिर सोचा कि बस अड्डे तक पहुंचने में भी उतना ही टाइम खराब हो जाएगा। इसलिए स्टेशन पर रूक कर ट्रेन का इंतज़ार करना ही बेहतर समझा।

कुछ देर बैठा लेकिन गांड में लड़कों को देखने का कीड़ा पैदा हो चुका था जिसने एक जगह टिकने नहीं दिया, यहां-वहां टहलने लगा। फिर सोचा कि टॉयलेट में ही चला जाता हूं, मूतने के बहाने कोई तो फंसेगा।
बार-बार टॉयलेट के चक्कर लगाने लगा लेकिन मेरी पसंद का एक भी अंदर नहीं घुसा जिसको पटाने के लिए हाथ-पैर मारे जाएं।
थक-हारकर आ गया।

अब और हिम्मत नहीं थी, स्टेशन पर बने फुट ओवर ब्रिज की सीढियों पर आकर बैठ गया और ग्रिल के सहारे कमर लगाकर गहरी थकान भरी सांस लीं। इक्का दुक्का लोग सीढ़ियों पर चढ़-उतर रहे थे। और ज्यादातर रेलवे लाइन को कूदकर ही पार करते थे, कितनी बेवकूफ होती है दुनिया; जान-बूझकर मौत को न्यौता देती रहती है।

थकान के कारण मुझे झपकी आने लगी थी। फिर एक ट्रेन के हॉर्न ने नींदिया रानी को वापस उसके देस भेज दिया, आंखें खोलकर देखा तो मालगाड़ी धड़धड़ाती हुई गुज़रने लगी।

ट्रेन गुज़री और प्लेटफार्म पर गश्त लगाते हुए गज़र रहे एक पुलिसवाले पर जाकर आंखें रुक गईं। 25-26 साल का जवान लौंडा था, फिगर भी एकदम फिट! स्टेशन पर लगी लाइटों की पीली रोशनी में चेहरे से भी हैंडसम लग रहा था और उसके बदन पर फंसी खाकी वर्दी ने नज़रें हटने ही नहीं दी। हाथ में हिलता हुआ डंडा और पैरों में काले जूते। मस्ती में चलते हुए मदमस्त चाल और उठते कदमों के साथ उभर कर आती उसकी जांघों के बीच में चेन के पास बनता हुआ उभार… माल था कसम से!

यहां-वहां देखते हुए वो फुट ओवर ब्रिज के पास पहुंचकर मेरी नज़रों के सामने से गुज़रा तो मैं थकान भूलकर उसके पीछे-पीछे चलने लगा। क्या गांड थी यार उसकी… गोल, मटकती हुई, बिल्कुल शेप में। एक बात तो माननी पड़ेगी कि पुलिसवालों की गांड जैसी मस्त शेप दुनिया के दूसरे प्रोफेशन वाले मर्दों में शायद ही देखने को मिलती हो।

वो आगे-आगे और मैं पीछे-पीछे।
हाय…क्या चीज़ है यार ये! एक बार कहीं से भी टच हो जाए तो मेरा तो छूट ही जाए।

वो टॉयलेट के सामने पहुंचने वाला था, मैंने मन ही दुआ की, काश ये अंदर घुस जाए। लेकिन वो टॉयलेट के सामने से निकल गया। फिर भी मैं दूर-दूर उसके पीछे-पीछे चलता रहा, जब प्लेटफॉर्म का दूसरा छोर आ गया तो वो मुड़ने लगा। मैं उससे पहले ही मुड़ गया ताकि उसको शक न हो जाए। मैं वहीं खड़ा होकर सामने वाले प्लेटफॉर्म की तरफ देखने लगा, जैसे उसकी तरफ मेरा ध्यान ही ना हो। वो वापस मेरे करीब से गुज़रा और आगे निकल गया।

मैं फिर पीछे-पीछे चल पड़ा। टॉयलेट के सामने से गुज़रते हुए वो अचानक टॉयलेट की तरफ बढ़ने लगा, ये क्या…! जल्दी चल यार वो गया अंदर… मैं कदम बढ़ाता हुआ टॉयलेट की तरफ तेजी से बढ़ा, कहीं मेरे पहुंचने से पहले ये बाहर न आ जाए, उसको घुसे हुए कुछ ही सेकेण्ड्स हुए थे कि मैं भी यूरीनल में घुस गया.

कहानी जारी है.
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