एक कुंवारे लड़के के साथ-1

(Ek Kunvare Ladke Ke Sath-1)

शालिनी 2009-01-18 Comments

हालाँकि मैंने बहुत सारे लड़कों के साथ चुदाई की है परन्तु मैं हमेशा ही किसी कुंवारे लड़के से चुदने के सपने देखा करती थी, एक ऐसा लड़का जिसने कभी किसी लड़की को छुआ भी ना हो !

और एक दिन मुझे अपने सपनों का राजकुमार मिल ही गया, मनीष नाम था उसका ! कोई उन्नीस साल की उम्र होगी।

मेरी बुआजी के घर में उत्सव था और वहीं पर मुझे यह जवान मिला। उत्सव चार दिन तक चलने वाला था और इन चार दिनों में ही मुझे उस लड़के को जैसे तैसे पटाना था। हालाँकि वो सिर्फ उन्नीस साल का था परंतु उसका भरा हुआ शरीर जैसे किसी भी लड़की को रात भर चोदने के लिए बना था। बहुत सारे लड़के इस उम्र में दुबले पतले होते हैं पर जैसे वह शायद जिम में जाता होगा, इसीलिए उसकी चौड़ी एवं फूली हुई छाती थी और चौड़े कंधे थे। जो पैंटें वो पहनता था उनमें से उसकी भरी हुई गांड और आगे से उसका तगड़ा सा लंड मुझे हमेशा दिखता था। उसका रंग साफ़ था, छोटे बाल और गहरी काली आँखें। कुल मिला कर बिल्कुल वैसा ही, जैसा मैं चाहती थी।

उसको पहली बार देख कर मुझे कुछ होने लगा था और मैंने सोचा कि काश मैं उसकी उम्र की होती तो मेरा चुदाई का काम कितना आसान हो जाता। कभी कभी मैं सोचती थी कि मुझे शायद ही कभी उसकी पैंट उतारने का मौका मिले। परंतु मैं गलत थी। हालाँकि हम दोनों के बीच सिर्फ साधारण बातें ही हुईं थी, पर मैंने उसे कई बार मुझको घूरते हुए देखा था। और अब उसको रिझाने के लिए मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करने लगी। मैं हमेशा उसके आस पास ही मंडराती रहती थी, अपने 34 इंच के मोम्मे और अपनी बड़ी गांड को तंग टी-शर्ट और जींस में दिखाते हुए।

पारिवारिक बातों के दौरान ही मुझे पता लगा कि वो दिल्ली में ही पढ़ता है और मैंने सब लोगों के सामने ही उसको अपना टेलिफोन नंबर दे दिया और उसको कहा कि जब भी उसको कोई परेशानी हो तो वह मुझे संपर्क कर ले। साथ ही साथ उसके माता-पिता का नंबर भी ले लिया। (सिर्फ सब को दिखाने के लिए)।

कोई दो महीने के बाद मनीष ने मुझे टेलिफोन किया तो मैंने उसको आने वाले इतवार को खाने पर बुला लिया और उसको अपना पता और पहुँचने के रास्ते बताये।

तब उस दिन मनीष सुबह कोई 11 बजे आ गया। मैं घर पर साफ़-सफाई कर रही थी। पूजा अपने कॉल-सेंटर गई थी और रात को आठ बजे के बाद आने वाली थी। मैंने सिर्फ एक झीना गाउन पहना हुआ था और अंदर से बिल्कुल नंगी थी। मेरे मोम्मे साफ़ साफ़ दिख रहे थे जबकि कोई पारखी आँखें हीं मेरी बिना झांटों की चिकनी चूत को देख सकती थी।

मैंने उसको अंदर बिठाया और उसके लिए पानी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद मैंने उसके और अपने लिए ठंडा पेय डाला और उसके सामने वाले सोफे पर आ कर बैठ गई। बातों बातों में मैंने देखा कि वो मेरे मोम्मों को घूर रहा था, मैं समझ गई कि आज तो मैं इससे चुद ही जाऊँगी।

मैंने उससे पूछा कि वह खाने में कुछ विशेष खाना चाहता है तो बता दे ताकि मैं बना दूँ !
मनीष ने कहा- जो भी कुछ आप बना रही हैं, मैं खा लूँगा।
फिर मैंने उससे पूछा कि उसको कोई समस्या तो नहीं होगी कि हम लोग खाना बनाते हुए बात करतें रहें तो?
उसने कहा- मुझे क्या परेशानी हो सकती है?
बातें करते हुए मैंने उससे पूछा- तुम्हारी कोई सहेली है?
तो उसने कहा- नहीं, मेरी कोई सहेली नहीं है।

तब मैंने उसको कहा- तुम इतने आकर्षक हो, सेक्सी हो, ऐसा नहीं हो सकता कि तुम पर लड़कियाँ मर ना मिटती हों ! तुम्हारी तो कई सहेलियाँ होंगी?

मनीष ने कहा- मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, मैंने आज तक किसी भी लड़की में दिलचस्पी नहीं ली है।
मैंने उसको कहा- समय के साथ साथ तुम्हें बहुत सारी लड़कियाँ भी मिलेंगी और मज़ा भी मिलेगा।
मनीष ने पूछा- क्या आप अकेली रहती हो?
तो मैंने कहा- मैं अपनी एक दूर की रिश्तेदार पूजा के साथ रहती हूँ, वो अपने कॉल सेंटर गई है रात को ही आएगी।

बातें करते हुए मैंने कई बार उसकी तरफ देखा परंतु उसकी पैंट में कोई हरकत नहीं थी। क्योंकि मेरी पीठ उसकी तरफ थी इसलिए मैंने अपनी गांड को कई बार दायें बाएं हिलाया कि शायद वह एक बार मेरी बड़ी सी गरम गांड को देखे।

मैंने उसको पूछा- खाने से पहले कुछ पीने के लिए दूँ क्या?
और एक बार फिर अभी नहीं एवं धन्यवाद उसके मुंह से निकला।

तब मैंने उसको कहा- जब तक मैं खाना बनाती हूँ, तुम सोने के कमरे में जा कर टेलिविज़न देख लो, आराम कर लो।

जब मैंने खाना बना लिया तो मैं भी सोने के कमरे में गई तो देखा तो वह हमारी एक अश्लील पुस्तक देख रहा था। जैसे ही उसने मुझे देखा उसने वह पुस्तक एक ओर रख दी पर मैं उसकी पैंट में एक तम्बू देख सकती थी।

मैंने मनीष को कहा- तुम चाहो तो इस पुस्तक को ले जा सकते हो।
मनीष ने कहा- मैंने पहले भी वैसी कई पुस्तकें देखी हैं, मेरे छात्रावास में बहुत लड़कों के पास हैं।
मैंने उसको पूछा- तुमने कभी चुदाई की है?
उसने जवाब दिया- नहीं।
मैंने फिर उसको पूछा- कभी ऐसी पुस्तकें पढ़ते हुए किसी को चोदने की इच्छा नहीं हुई?
तो वह बिल्कुल चुप रहा।

तब मैंने उसको छेड़ते हुए कहा- मैं शर्त लगा सकती हूँ कि जब भी तू बिस्तर में लड़की को लेकर जायेगा तो बहुत ही मस्त चुदाई करेगा !

मेरी इस बात पर वह शरमा गया और उसका चेहरा पके हुए टमाटर ही तरह लाल हो गया।
अंत में मैंने उसको पूछ ही लिया- क्या तू एक असली नंगी लड़की को देखना चाहेगा?
और तभी मैंने अपना गाउन उतार दिया और देखा कि मनीष मेरे चुचूकों को घूर रहा था जो कि अब तक बहुत कड़े हो चुके थे।
अपने मोम्मों की तरफ इशारा करते हुए…

पढ़ते रहिए ! कहानी जारी रहेगी !
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कहानी का अगला भाग : एक कुंवारे लड़के के साथ-2

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