बावले उतावले-1
(Desi Sex Kahani: Bawle Utawale- Part 1)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right बावले उतावले-2
-
View all stories in series
दोस्तो, मेरा नाम सूरज है, मैं गाजियाबाद में रहता हूँ। शादी हो चुकी है, एक बेटा भी है। बीवी अच्छी है, शादीशुदा जीवन भी अच्छा चल रहा है। अन्तर्वासना का मैं पाठक हूँ। अकसर कहानियाँ पढ़ता हूँ, मेरी बीवी भी मेरे साथ ही बैठ कर कहानियाँ पढ़ती है और फिर बाद में जैसे कहानी में होता है, वैसे ही हम भी रोल प्ले करते हैं।
हम दोनों आपस माँ बेटा, बाप बेटी, भाई बहन, दोस्त, प्रेमी, मालिक नौकरनी, हर तरह के कैरक्टर को खेल चुके हैं। हम दोनों ने आपस में एक दूसरे से कुछ नहीं छुपाया।
आपको जान के हैरानी होगी, मैं उस आदमी से भी मिला हूँ, जिससे मेरी पत्नी शादी से पहले चुदवा चुकी थी। दिक्कत क्या है यार, मैंने भी तो शादी से पहले बहुत से रांडों की भोंसड़ी मारी है। मेरी बीवी ने मरवा ली तो क्या पहाड़ टूट पड़ा।
एक दिन मैं अपने लैपटाप पर अन्तर्वासना पर कहानी पढ़ रहा था, उस कहानी में एक लड़का अपने चाचा की लड़की से सेक्स करता है। कहानी पढ़ते पढ़ते मुझे अपने बचपन का एक किस्सा याद आ गया, जब एक एक बार मैं और मेरी चचेरी बहन ने, और दो और लोगों से मिल कर कुल चार लोगों ने एक साथ सेक्स किया था। बैठे बैठे सोचा, यार क्यों न अपनी भी कहानी लिखूँ और लोगों से शेयर करूँ।
औरों की कहानियां भी तो पढ़ता हूँ, अपनी कहानी भी पढ़ कर देखूँ, जब अन्तर्वासना पर छप कर आएगी, और लोग उसे पढ़ेंगे, तो कैसा लगेगा। बस यही सोच कर अपना लैपटाप उठाया और लिखने बैठ गया।
लैपटाप में मेरा दफ्तर का काम भी होता है, और हिन्दी में चिट्ठी पत्री टाइप करने के लिए मैंने गूगल इंडिक इनपुट टूल्ज़ का सॉफ्टवेअर इनस्टाल कर रखा है, इससे इंग्लिश को हिन्दी में टाइप करने में बड़ी आसानी रहती है। तो पुरानी यादों का बक्सा खोला और जैसे जैसे जो जो याद आता गया उसे टाईप करता गया। बस जो कहानी मैं लिख पाया, लीजिये आपके सामने है।
बात तब की है जब मैं 18 को पार कर चुका था और 11वीं क्लास में पढ़ता था, गाँव में देर से पढाई शुरू होती है तो इतनी उम्र हो जाती है. गाजियाबाद के पास हमारा गाँव है, वहीं पर हमारा पुश्तैनी घर है और बाकी का सारा खानदान रहता था।
अब यू पी का लड़का हूँ, तो खून में गर्मी कुछ ज़्यादा ही है। तो 11वीं क्लास में ही लुल्ली उठने लगी थी, बड़ा मन करता था कि कोई गर्लफ्रेंड हो, तो साली को जम कर पेलूँ, मगर स्कूल में जो लड़कियां थी, उनसे तो बात नहीं बन पा रही थी। बड़ा मन भटकता, कभी कभी मुट्ठ भी मार लेता. मगर दिल तो फुद्दी मारने को करता था, मुट्ठ से कहाँ मन को चैन मिल सकता था।
चलो इसी उम्मीद में ज़िंदगी निकल रही थी कि सब्र करो एक न एक दिन तो ज़रूर कोई फुद्दी मिलेगी, जिसे मैं खूब जम कर मरूँगा।
किस्मत ने मुझ पर मेहरबानी की। गर्मियों की छुट्टियाँ हुई तो मैं और मेरी छोटी बहन, मम्मी पापा के साथ हम सब अपने गाँव गए। हालांकि हमारा गाँव कोई हिल स्टेशन तो नहीं था, मगर बचपन में हमें गाँव जाने का बहुत चाव था क्योंकि वहाँ सारा दिन आवारागर्दी करनी, कभी खेत में, कभी ट्यूबवेल पर, कभी ताल पर, कभी बाग में … बस यूं ही घूमते रहना, कभी गर्मी नहीं लगती थी, कभी बोर नहीं होते थे।
मेरे दो चाचा हैं, उनके बच्चे हमारी ही उम्र के हैं, तो उनसे हमारी खूब पटती थी। हम चारों भाई बहनों ने खूब मस्ती करनी। इस बार भी हमने खूब मस्ती करने की सोची थी।
जब गाँव पहुंचे तो जब मैंने अपनी चाचा की लड़की को देखा, तो एक बार तो मैं भी अचंभित सा हुआ। उसकी कमीज़ सीने से काफी उठी हुई थी।
“अरे यार!” मैंने सोचा- ये तो साली जवान हो गई, बड़ा मम्मा फूला है साली का।
बस दिमाग में ये बात आई और वो जो कुछ पल पहले मेरी बहन थी, अब मुझे वो एक सेक्सी लड़की दिख रही थी। खैर मैंने अपने मन में उठ रहे जवानी की हिलौरें मन में ही संभाली और चुपचाप वक्त का इंतज़ार करने लगा, जब मुझे कोई मौका मिलता और मैं उसकी चढ़ती जवानी को देख सकता, छू सकता या भोग सकता, हालांकि इसकी ऐसी कोई संभावना तो नहीं थी, पर उम्मीद पर दुनिया कायम है, सो मैं भी उम्मीद की कतार में लग गया।
पहले दिन तो कुछह भी खास नहीं था। मगर अगले दिन तक हम सब बिल्कुल घुलमिल गए। अब साल में एक आध बार आते थे गाँव तो साल बाद मिल कर घुलने मिलने थोड़ा सा समय तो लगता ही है।
अगले दिन सुबह उठे और हम दोनों चचेरे भाई पहले खेत में गए। बड़े दिन बाद खुले में शौच किया, तब कोई स्वच्छ भारत जैसी बात नहीं थी, सब खेत में ही जाते थे। हम दोनों भाई काफी देर इधर उधर घूम फिर कर घर वापिस आए। घर आए तो चाय नाश्ता किया, फिर खेलने लगे।
दोपहर के बाद हम सभी चारों भाई बहन घर के पीछे बने बड़े सारे कमरे में बैठे लूडो खेल रहे थे। इस कमरे में घर का पुराना और इस्तेमाल में ना आने वाला समान पड़ा रहता था। इधर कोई आता जाता भी नहीं था। मेरी चचेरी बहन सुमन मेरे बिल्कुल सामने बैठी थी, और मेरी पार्टनर के तौर पर मेरे साथ खेल रही थी। मेरी छोटी बहन मेरे चाचा के लड़के सौरभ की पार्टनर थी।
पहले तो हम सीधे बैठ कर खेल रहे थे, मगर जब खेल काफी चला तो सुमन थोड़ा आगे को झुक कर बैठ गई. और जब वो आगे को झुकी, तो मेरी निगाह उसके कमीज़ के गले के अंदर गई। अंदर दो दूध से गोरे, गोल मम्में दिखे। बस देखते ही मेरा तो मन मचल उठा, मैं सबसे नज़र चुरा कर बार बार उसकी कमीज़ के गले के अंदर देख रहा था। उसके मम्में देख कर मेरा तो लूडो के खेल से मन ही उठ गया। मैं तो अब कोई और ही खेल खेलना चाहता था। मगर चाह कर भी मैं सुमन से वो सब नहीं कह सकता था, जो मेरे मन में था. आखिर मेरी बहन थी, कैसे कहता कि बहना … मैं तेरे मम्मों से खेलना चाहता हूँ। बेशक मैं सबसे नज़र चुरा कर सुमन के मम्मों को ताड़ रहा था.
मगर सुमन ने मुझे पकड़ लिया और मुझे थोड़ा ताड़ कर बोली- लूडो में ध्यान दो भैया।
बेशक उसकी बात में मुझे ताड़ना थी मगर उसकी आवाज़ में तल्खी नहीं थी, नाराजगी या गुस्सा नहीं था क्योंकि मुझे कहने के बावजूद उसने सीधा होकर बैठने के जहमत नहीं की। मैं फिर भी उसके मम्में ताड़ता रहा, हर बार वो देखती कि मैंने उसकी कमीज़ के गले के अंदर उसके झूल रहे गोरे गोरे मम्में देख रहा हूँ, मगर उसने फिर भी उन्हें छुपाने की कोई कोशिश नहीं की। जिससे मुझे लगा, शायद वो भी यही चाहती है कि मैं उसके मम्में देखूँ।
थोड़ी देर बाद मैंने कहा- यार लूडो में मज़ा नहीं आ रहा, क्यों न कुछ और खेलें।
वैसे भी काफी देर हो गई थी लूडो खेलते, तो मेरे कहने पर सबने छुपन छुपाई खेलने की बात मान ली। बात तो दरअसल यह थी कि मैं सुमन के साथ अकेले में कुछ करने की सोच रहा था और इसके लिए इन दोनों छोटे भाई बहनों को भगाना ज़रूरी था।
खेल खेलते हुये मुझे मौका मिला भी, जब सुमन ऊपर वाले कमरे में जा कर छुपी, तो मैं भी उसके पीछे पीछे भाग कर गया, और उसकी के कमरे में जा छुपा। दरवाजा अंदर से हमने बंद कर लिया। सुमन खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई और नीचे देखने लगी ताकि वो नीचे से आने वाले खिलाड़ी पर नज़र रख सके। मगर मेरी नज़र सिर्फ सुमन पर थी, मैं मन में सोच रहा था ‘यार अकेली है, पकड़ ले साली को, जो होगा देखा जाएगा। पकड़ ले साले पकड़ ले।’ मेरे मन में बार बार तूफान उठ रहा था।
बस फिर मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया और मैंने पीछे से जाकर सुमन को अपनी बांहों में भर लिया। वो थोड़ा चिहुंकी तो, मगर उसने न तो मुझे रोका और न ही कोई शोर मचाया। नई नई जवानी दोनों पर चढ़ी थी, शायद दोनों के दिमाग में एक ही बात चल रही थी। मैंने उसे पीछे से कस कर अपनी बांहों में भरा तो लुल्ली उसकी चूतड़ों की दरार में सेट हो गई। मैंने अपने हाथ थोड़े से ऊपर की और बढ़ाए और उसके दोनों मम्मों पर रखे. अभी मैंने उसके मम्में अपने हाथों में पकड़े नहीं थे कि देखूँ कहीं बुरा तो नहीं मानती।
मगर उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने अपने हाथों की पकड़ बढ़ाई और उसके दोनों मम्में अपने दोनों हाथों में पकड़ लिए और दबा कर देखे। दोनों बहुत ही नर्म पर तने हुये से लगे। उसके कड़क मम्में दबाये तो मेरी लुल्ली भी कड़क हो गई और वो पूरी तरह से अकड़ गई। मैं अपनी लुल्ली जो अब काफी हद तक लंड बन चुकी थी, अपनी बहन की गांड पर घिसा कर मज़े ले रहा था, और दोनों हाथों से उसके मम्में भी दबा रहा था।
मम्में मेरे हाथों में और लंड उसकी गांड पर अब तो और आगे बढ़ना चाहिए। यही सोच कर मैंने उसका एक मम्मा छोड़ा और उसका मुंह अपनी तरफ घुमाया। पहली बार हमने एक दूसरे की आँखों में देखा, और फिर मैंने उसके होंठ पर हल्का सा चूमा। ऐसा लगा जैसे हम दोनों को करंट लगा हो। बहुत ही उत्तेजक एहसास हुआ हम दोनों को, मगर इस छोटे से चुंबन में अगर बेहद ऊर्जा थी, तो बेहद मज़ा भी आया।
इसी मज़े ने मुझे दोबारा उसके होंठ चूमने को मजबूर किया। इस बार मैंने उसे अपनी और ही घुमा लिया और मैंने फिर से उसके होंठ चूमे। वो भी शायद जानती थी, होंठ चूमने के बारे में, शायद फिल्मों में देखा होगा. जैसे मैंने उसके होंठ चूसे, उसने भी मेरे होंठों को चूसा।
मैंने अपनी पैन्ट की ज़िप खोल कर अपना लंड बाहर निकाला और उसके हाथ में पकड़ाया। उसने पकड़ तो लिया पर हिलाया नहीं, शायद वो हिलाना नहीं जानती थी। मैंने उसे हिला कर बताया तो वो मेरे बताए अनुसार हिलाने लगी। तन से तन चिपके पड़े थे, होंठ से होंठ जुड़े थे। नई जवानी का पहला प्रेम अपने उत्कर्ष पर था।
मेरा दिल तो कर रहा था कि ये वक्त यहीं रुक जाए। मगर नीचे से दोनों छोटे भाई बहन ने शोर मचाना शुरू कर दिया, उन्हें हम नहीं मिल रहे थे। उनकी आवाज़ सुन कर, सुमन ने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किए। मगर मैंने आगे बढ़ कर फिर से उसके होंटों को चूमा, उसके दोनों मम्में दबाये। उसने भी मेरे लंड को छोड़ दिया और नीचे भाग गई।
उसके बाद तो हम दोनों का एक दूसरे को देखने का नज़रिया ही बदल गया। आते जाते हर वक्त हमारा ध्यान एक दूसरे पर ही रहता। रात के खाने के बाद भी हमें एक दो बार मौका मिला तो मैंने अगर उसके होंठ चूमे, उसके मम्में दबाये तो उसने भी बड़ी उतावली होकर मुझे चूमने दिया, और मेरी लुल्ली को पकड़ा और खींचा। एक दिन में ही हमारा प्यार परवान चढ़ गया था।
देसी सेक्स कहानी जारी रहेगी.
[email protected]
What did you think of this story??
Comments