मुझे रण्डी बनना है-1
(Mujhe Randi Banna Hai-1)
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बीते दिनों की बात है, मैं हमेशा की तरह ट्रेन में सफ़र कर रहा था, बारिश के कारण ट्रेन में भीड़ नहीं थी। एक डिब्बे में सिर्फ 5-6 लोग अलग अलग बैठे थे। मैं छुप-छुप कर सेक्सी कहानियों वाली किताब पढ़ रहा था और उस पर मैंने एक कवर चढ़ा रखा था जिससे किसी को पता न चले। मेरे बाजू वाली सीट खाली थी।
मैंने किताब बंद करके सीट पर रखी और बाथरूम की तरफ चला गया। उतने में मुगलसराय स्टेशन आया, ट्रेन रुकी, तब मुझे बाथरूम में ही किसी यात्री के ट्रेन में चढ़ने की आवाज सुनाई दी। वापस आकर मैंने देखा कि एक आदमी मेरे बाजू वाली सीट पर बैठा है, साथ में एक औरत भी थी।
साली क्या सेक्सी लग रही थी ! मेरी किताब पढ़ रहा था वो और उसमें से कुछ नंगी तस्वीरें अपनी बीवी को दिखा रहा था। मैं शर्म के मारे पानी पानी हो गया, सोचा कि क्या समझ बैठेगा मेरे बारे में ! उसने मुस्कुरा कर कहा- यह आपकी है? इससे बढ़िया मैं अपनी सच्ची कहानी सुनाता हूँ, सच्ची कहानी सुनोगे तो पागल हो जाओगे, जो अभी-अभी 2 हफ्ते भुगती है।
उसने अपने बारे में बताया कि :
यह मेरी बीवी सुनीता है और मेरा नाम है सुजीत..
उसने अपना कहानी का दौर शुरू किया.
सुजीत- अभी अभी मैं और सुनीता कुल्लू-मनाली, शिमला और आखिर में दिल्ली घूमने के लिए गये थे और शिमला में बहुत खर्च हुआ, सोचा कि दिल्ली में सस्ते में घूमेंगे, सस्ता खाएंगे और सस्ते होटल में रहेंगे पर दिल्ली उतरते ही जेब कट गई। सोचा कि अब कैसे होगा? कैसे भी करके घूमना ही है।मैंने शर्म के मारे किसी से या अपने घर से पैसे नहीं मंगवाए। सोचा कि मेरा मजाक बन जाएगा। तभी मेरे दिमाग में एक शैतानी बात आई कि दुनिया में एक ही चीज कहीं पर भी बिक सकती है, वो है औरत का जिस्म, उसके लिये ग्राहक सामने आ ही जाते हैं।
वो आगे कुछ बोलता, उसके पहले उसकी बीवी सुनीता बोली- औरत का जिस्म ऐसा है कि कोई रोक नहीं कमाने के लिए ! सब भूखे ही होते हैं, इसलिए मैंने उनको कहा कि कोई जगह ढूँढो जहाँ यह सब चलता हो। तुम्हें ताज्जुब होगा मगर मैं जबसे जवान हुई तबसे मुझे रंडियों के बारे में जानने का शौक था। मुझे कुछ दिनों के लिये रंडी बनकर जी कर देखना था, समाज का डर था और अपने शहर में तो यह मुमकिन नहीं था। मैं जब अपने शहर में घूमने निकलती तो रंडियों के कोठे के पास आते ही नीचे अजीब सी खुजली शुरू होती और मैं सोचती थी कि ये रंडियाँ क्या करती होगी मर्द को अंदर ले जाकर? तभी मेरे साथ वाली सहेली ने मुझे समझाया था कि अंदर ले जाकर मर्द के सुसू करने की चीज को औरत अपने सुसू करने की जगह में लेती है, इसे चोदना कहते हैं, पर कहते हैं यह सब गंदा हैं। मैं तो पागल हो गई थी यह सुनकर ! सच कहूँ तो शादी तक मैंने कभी नहीं चुदवाया, पहली रात मैंने सुजीत को यह बता दिया और शादी के बाद इनसे बहुत चुदवाया पर वो तड़प शांत नहीं हुई और मैं मौका ढूंढ्ने लगी। मैंने शादी के बाद इनको यह बात बताई तो ये बोले- यह मुमकिन नहीं ! और फिर यह मौका हाथ आया।
सुजीत- और मुझे स्टेशन पर ही जी.बी. रोड का एक दलाल मिल गया उसे मैंने दबी आवाज में पूछा कि ऐसी कोई जगह दिखाओ कि जहाँ जिस्मफरोशी बेरोकटोक चलती हो। मैंने अपने विचार उसे बताये तो वो ले गया एक कोठे पर.. दलाल ने मेरी पहचान कराई वहाँ की मालकिन से ! वो बेफिक्र थी, बड़ी सेक्सी थी, 40 की होगी।
दलाल- मौसी, यह देखो, एक आदमी कुछ अजीब काम से आया है।
मौसी- यहाँ पर एक ही काम होता है चोदने का। तुम क्या दूसरा काम लेकर आये हो?
सुजीत- मौसी, मेरी एक समस्या है और वो तुम सुलझा सकती हो।
मौसी- क्या? ठीक से बात करो।
सुजीत- मौसी कोई कोने में चलते हैं जहाँ तुमसे मैं खुलकर बात कर सकूँ।
मौसी मुझे ऊपर वाले कमरे में ले गई, वहाँ रंडियाँ तैयार हो रही थी। उसका कोठा किसी होटल से काम नहीं था, साफ़ सुथरा था और 6-7 कमरे थे जिसमें बड़े पलंग थे और दीवारों पर ग्राहकों को उकसाने वाली नंगी तस्वीरें थी।
मौसी- ए लड़कियो ! चलो बाहर जाओ ! मुझे इससे ख़ास बात करनी है।
सभी चली गई, एक लड़की खड़ी रही।
मौसी- जाहिदा, तू क्यों खड़ी है? जा 2-4 ग्राहक पकड़ !
जाहिदा- मौसी, तू इसे लेने वाली है क्या? मुझे दे न यह कस्टमर.. साला बहोत मस्त है रे।
मौसी- चल हरामी ! तू जा ! मुझे कुछ बात करनी है !
वो चली गई, जाते जाते मुझे एक गन्दा इशारा कर गई।
मौसी- हाँ, अब बोलो !
सुजीत- मौसी, मैं और मेरी बीवी घूमने निकले थे और दिल्ली आने पर जेब कट गई, पराये शहर में कोई पैसे नहीं देगा और घर से नहीं मंगवाना चाहता हूँ।
मौसी- तो क्या मैं पैसे दूँ तुझे? मैं नहीं देती पैसे ! उसके बदले अपनी बीवी को ले आ, दो दिन धंधा करवा और जो कमाया है उससे घर चले जाना।
सुजीत- हाँ मौसी हाँ ! तुमने बस मेरे मुंह की बात छीन ली ! मैं यही तो कहने आया हूँ और तेरे दलाल को भी बताया था।
मौसी- उस भड़वे ने कुछ नहीं कहा। तुझे यहाँ छोड़ कर चला गया शाम को दलाली लेने आएगा साला।
सुजीत- मौसी, मेरी बीवी की ख्वाहिश भी है कि एक बार रंडी की तरह जी लूँ !
मौसी- क्या बात करता है? ऐसा कभी होता है क्या? क्या उसे पसंद है?
मैं- अरे उसकी तो यह इच्छा है और उसने ही मौके का लाभ उठाना है।
मौसी- अरे इस धंधे में आई हुई तो यहाँ से छूटने की कोशिश करती है। ऐसा तो मैंने कभी नहीं देखा कि किसी आम जिंदगी जीने वाली औरत को रंडी बन कर देखना है?
सुजीत- हाँ मौसी, उसने कई बार यह बताया था और समाज के डर से अपने शहर में तो नहीं कर सकते।
मौसी- हाँ ले आ उसको ! देखूँ तो सही कितना दम है उसमें? धंधे के लायक है भी क्या? छाती छोटी नहीं चलेगी, कोई पसंद नहीं करेगा मेरे यहाँ।
सुजीत- अरे मौसी, तू एक बार देख ले ! मौसी तेरी इन रंडियों को पीछे छोड़ देगी।
मौसी- यह बात है तो जल्दी से ले आ ! आज ही उसे रंडी होने का मज़ा देती हूँ, बनने का मज़ा देती हूँ ! तेरी बातों से लगता है कि जितने दिन रहेगी, रंडी बनकर कस्टमर को चूस लेगी साली !
तुरंत मैं स्टेशन पर पहुँचा, सुनीता ने चाय-नाश्ता कर लिया था, मेरी राह देख रही थी। मैंने उसे मौसी के कोठे के बारे में और मौसी के बारे में कहा। वो तो खुश हुई। मैंने उसे बुरका पहनने कहा।.फिर रिक्शे में बैठ कर मैं और सुनीता मौसी के जी.बी. रोड वाले कोठे पर पहुँचे।
मैंने सुनीता को बुरका पहनाया था.. आजू-बाजू की औरतें धंधे पर खड़ी थी और ग्राहक का इन्तजार कर रही थी, वो कुछ अजीब नजरों से हमें देख रही थी, सोच रही होंगी कि और एक औरत रंडी बन गई क्या?
हमने अपना सामान उतारा और कोठे के अन्दर चल दिए।
मौसी ने उसका बुरका उठाया, तुरंत पूरा बुरका निकालने कहा और उसकी छाती दबाकर देखी और गांड पर थपथपाया।
मौसी ने खुश होकर कहा- साली मस्त रांड बनेगी !
सुनीता- मैं सिर्फ 4-5 दिन के लिए आई हूँ, मुझे भी यह जिंदगी जी कर देखनी है।
मौसी- अच्छा चलो, थोड़ा फ्रेश हो जाओ और कुछ खा लो तुम दोनों !
मौसी ने होटल से बढ़िया खाना मंगवाया, खाते खाते बातें होने लगी।
मौसी- साली, तुझे यह रंडी बन कर जीने का कैसे सूझा?
सुनीता- जब से मेरी एम सी चालू हुई। एक बार मैंने पड़ोस में मिया बीवी को लिपट कर सोये हुए देखा और हमारे शहर में भी रंडी बाज़ार है, उसे देखकर यह लालसा हुई। मैंने सहेली से सुना तो था ही कि चोदना क्या है? मुझे अनजान लोगों से खूब चुदवाना है और आम जिंदगी में यह नहीं कर सकती और सुजीत को भी नई-नई औरतों के साथ चोदना अच्छा लगता है।
मौसी- साले, तुम दोनों रांड और भड़वे ही हो ! मज़ा आएगा ! सुनो हर ग्राहक पर मुझे 200 रु. कमीशन देना होगा और तू ग्राहक से 500 रु. से कम मत लेना। मेरे यहाँ सब रईस आते हैं। जाहिदा, इसे ले जाकर सब सिखा दे।
जाहिदा- चलो दीदी, सब सिखाती हूँ।
और दोनों ऊपर चली गई, मैं मौसी के पास बैठा था।
मौसी- क्या नाम है रे? तेरा और तेरी बीवी का?
मैं- सुजीत और बीवी का सुनीता।
मौसी- मैं तुम्हें राजू बुलाऊंगी जिससे तेरी पहचान छिपी रहे।
सुजीत- हाँ यह भी सच है।
मौसी- तेरी बीवी को सीमा बुलाऊंगी।
मैं- चलेगा !
मौसी- कोई गड़बड़ नहीं चाहिए, नहीं तो मार-मार कर भुरता बना दूँगी और बिना औरत जाना पड़ेगा।
मैं- क्या मौसी? मैं और बीवी खुद आये और तुम्हें विश्वास नहीं है?
मौसी- ठीक है, यहाँ गाली गलोच तो चलती रहती है, वो भी सहना पड़ेगा।
मैं- क्या मौसी, मुझे मालूम है, गाली बगैर कोठे की इज्जत नहीं ! हमें तो बस मजा करना है और पैसे कमा कर दिल्ली देख कर घर लौटना है।
मौसी- यह हुई न बात ! चल तुझे भी चोदने का मज़ा चखा देती हूँ।
मौसी ने एक सेक्सी मगर थोड़ी सांवली लड़की को बुलाया और :
मौसी- ए सुशी ! ये देखा जो नई रांड आई है, उसका भड़वा है यह ! जब तक जाहिदा उसको तैयार कराती है तब तक तू इसको चढ़वा। पूरा मजा दे !
मैं- क्या मौसी? अभी बनी नहीं, उसके पहले उसे रांड मत बोल ! अच्छा नहीं लगता।
मौसी- अरे अभी एकाध घण्टे में बन जायेगी, ऐसे रंडीपन करेगी कि घर जाना नहीं चाहेगी। तुझे मालूम है कितनी भी गाली खायेगी पर धंधा नहीं छोड़ेगी ! बिना मेहनत पैसे मिलते हैं. बाहर की जिंदगी में? कोई मुफ्त में चोद लेगा और तुझसे यह बात छुपी रहेगी। उससे बेहतर है कि तेरे सामने उसके अरमान पूरे हों !
सुशी ने नखरीले अंदाज में मुझे बाहों में लपेटा और मेरे कमर पर हाथ डाल कर ले गई। उसने बिन बांह का नीला ब्लाउज और नीली साड़ी पहनी थी।
सुशी- चलो राजा जी, अब तुम्हें भी मज़ा दे दें ! एड्स तो नहीं न हुआ?
मैं- न, नहीं, क्यों?
सुशी- मैं तुमसे बिना निरोध के चुदवाना चाहती हूँ ! देखो, आज सब तरह से मजे करवा दूँगी ! तुम क्या दोगे? तुम्हारी बीवी अब हम जैसे धंधा करेगी तो वो हमारी दीदी और आप उनके मर्द हो इसलिए आप हमारे जीजाजी !
मैं- चलो पहले देखने दो कि क्या कर सकती हो? मेरी साली जी !
कमरे जाती ही वो मेरे गोद में बैठ गई और उसने मुझे चूम लिया। उसने एक एक करके मेरे सारे कपड़े उतार दिए और खुद कपड़ों में मेरी गोद में बैठ गई।
यह एक लम्बी कहानी है, पढ़ते रहिए !
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2001
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