तृप्ति की वासना तृप्ति-1
(Tripti Ki Vasna Tripti-1)
लेखक : संजय शर्मा उर्फ़ संजू
सम्पादक एवं प्रेषक : सिद्धार्थ वर्मा
अन्तर्वासना के पाठको, आप सबको सिद्धार्थ वर्मा का अभिनन्दन।
मैं उन सभी पाठकों का धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने मेरी दो रचनाएँ
सम्पूर्ण काया मर्दन, सन्तुष्टि
और
वह मेरे बीज से माँ बनी
पढ़ी और पसंद करके उनकी प्रशंसा एवं टिप्पणी करके मुझे और भी रचनाएँ लिखने के लिए प्रेरित किया।
मित्रो, अन्तर्वासना के एक नए पाठक संजय शर्मा ने अन्तर्वासना में प्रकाशित होने वाली कहानियाँ पढ़ने के बाद अपने जीवन की एक आनन्दमयी घटना को भी प्रकाशित करने की सोची और तब उसने मुझे सहायता के लिए अनुरोध किया।
संजय के अनुरोध के अनुसार मैं उसकी मूल रचना को सिर्फ सम्पादित करके आपके सामने पेश कर रहा हूँ।
इस रचना में जो कुछ भी लिखा गया है वह सब संजय द्वारा लिखी घटना का विवरण है जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।
मैंने इस रचना में सिर्फ व्याकरण शुद्धिकरण, भाषा में सुधार और वाक्यों को रचना की आवश्यकता के अनुसार पुनर्व्यवस्थित ही किया है।
संजय की रचना का विवरण उसी की ओर से इस प्रकार है:-
अन्तर्वासना पढ़ने वाले प्यारे पाठक साथियों लगभग एक वर्ष तक रचनाएँ पढ़ने के बाद मैं भी अपने जीवन की एक घटना का विवरण लिख रहा हूँ।
यह मेरा पहला प्रयास है इसलिए इस रचना में त्रुटियाँ होने की सम्भावना है।
मैं आशा करता हूँ कि आप उन त्रुटियों को माफ़ एवं नज़रंदाज़ कर देंगे।
मैं अपने माता, पिता, छोटे भाई और चाची के साथ यूपी के एक शहर में रहता हूँ और कॉलेज में पढ़ता हूँ।
हमारा घर दो मंजिला है, जिसकी नीचे की मंजिल में एक बड़ा हॉल, दो बैडरूम जिसमें से एक में मम्मी-पापा और दूसरे में मेरा छोटा भाई सोते हैं तथा एक रसोई और दो बाथरूम है जो कि बैडरूम के साथ संलग्न है।
ऊपर की मंजिल में दो बैडरूम, जिसमें से एक बैडरूम में मैं और दूसरे बैडरूम में मेरी चाची सोती हैं तथा एक छोटा स्टोर और एक बाथरूम है। वह बाथरूम दोनों बैडरूम के बीच में है और उसमें दो दरवाज़े हैं जिस में से एक मेरे बेडरूम में और दूसरा चाची के बैडरूम में खुलता है।
मेरे पापा एक निजी कंपनी में उच्च महा-प्रबंधक हैं और रोज़ सुबह नौ बजे तक तैयार ऑफिस चले जाते तथा रात को देर से ही घर लौटते हैं।
पापा की कम्पनी की दूसरे 12 शहरों में भी शाखाएँ हैं जिनकी देखरेख के सिलसिले में अधिकतर उन्हें हर सप्ताह दो से तीन दिन के लिए बाहर जाना ही पड़ता है।
मेरी मम्मी एक कुशल गृहिणी हैं और घर के काम के साथ साथ अपने खाली समय में वह एक समाज सेवा संस्था के लिए भी काम करती हैं।
सोमवार से शुक्रवार तक मम्मी रोज़ घर का काम-काज निबटा कर सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक समाज-सेवा के कार्य के लिए घर से बाहर ही व्यस्त रहती हैं।
मेरा छोटा भाई दिन में स्कूल और शाम को एयर-फोर्स में भरती की परीक्षा की तैयारी में कोचिंग और ट्रेनिंग के लिए घर से बाहर ही रहता है तथा रात आठ बजे तक ही घर लौटता था।
मैं कॉलेज में बी.कॉम के अन्तिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा हूँ और सुबह आठ बजे कॉलेज के लिए निकल जाता था और अपराह्न 4 बजे तक ही घर पहुँचता था।
मेरी चाची भी एक गृहिणी हैं और पूरा दिन घर पर ही रहती हैं तथा घर के काम और देखभाल में माँ की सहायता करती हैं।
मेरे चाचा चाची पहले तो एक अलग घर में रहते थे लेकिन एक वर्ष पहले जब चाचा को नौकरी के सिलसिले में दुबई चले गए, तब से चाची हमारे साथ रहने आ गई।
जिस घटना का विवरण मैं आप सबके साथ साझा करना चाहता हूँ वह लगभग छह माह पहले घटी थी और उससे मिलने वाले आनन्द और संतुष्टि को मैं आज भी प्राप्त कर रहा हूँ।
घटना वाले दिन की सुबह जब कॉलेज में पहले दो पीरियड की पढ़ाई हो चुकी थी और अगले दो पीरियड खाली थे, तब मुझे याद आया कि मैं लायब्ररी की एक किताब को लाना भूल गया था और वह मुझे उसी दिन वापिस जमा करानी थी।
तभी मुझे विचार आया कि मैं इन दो खाली पीरियड में घर जाकर उस किताब को लाकर लायब्ररी में जमा करा सकता हूँ तथा बाकी के सभी पीरियड में भी उपस्थित रह सकता हूँ।
तब मैंने तुरंत बाइक उठायी और घर की ओर चल पड़ा।
जब मैंने घर पहुँच कर घंटी बजाई तो पाया कि लाइट न होने के कारण वह बज नहीं रही थी।
तब मैंने दरवाज़ा खटखटाया लेकिन किसी ने नहीं भी खोला।
यह सोच कर कि शायद माँ समाज सेवा में चली गई होगी और चाची स्नान आदि कर रही होगी, इसलिए मैंने मेरे पास जो घर की डुप्लिकेट चाबी थी उससे दरवाज़ा खोला और अन्दर गया।
घर के अंदर जाकर नीचे की मंजिल में जब मैंने माँ और चाची को नहीं पाया तब यह सोच कर की शायद चाची बाज़ार से सामान खरीदने गई होगी, मैं ऊपर की मंजिल अपने कमरे की ओर चल पड़ा।
मैं जैसे ही चाची के कमरे के पास पहुँचा तो मुझे कुछ खुसफ़ुसाने की आवाजें सुनाई दी।
मैं ठिठक कर रुक गया और दरवाज़े पर कान लगा कर ध्यान से सुनने लगा।
चाची किसी से कह रही थी– अभी तुम परसों ही तो आये थे, फिर इतनी जल्दी कैसे आना हुआ?
किसी आदमी की आवाज सुनाई दी- मेरी जान, आज तो तुम्हारे पिताजी यानि मेरे ताऊजी ने भेजा है यह सामान देकर। और सच कहूँ तो मेरा मन भी तुमसे मिलने के लिए का बहुत आतुर था।
फिर वह बोला- तृप्ति डार्लिंग, कल जब से ताऊजी ने बोला यह सामान तुम्हें दे आने को तब से बस यही मन कर रहा था कि कब सवेरा हो और मैं उड़ कर तुम्हारे पास पहुँचूं, तुम्हारी गुद्देदार चूचियों को मुंह में लेकर चूसूँ और अपने लंड तथा तुम्हारी चूत दोनों की प्यास बुझाऊँ।
चाची बोली- तुम अभी परसों ही तो चोद कर गए हो… फिर इतनी जल्दी क्या ज़रूरत पड़ गई।
नितिन बोला- अरे जालिम बहना, तेरी चूत है ही इतनी प्यारी। अगर मेरे बस में होता तो मैं हर वक्त अपना लंड उसी में डाल कर पड़ा रहता। तेरी इन संतरे जैसी चूचियों का शहद तो सारा दिन चूसने का मन करता रहता है।
दोनों की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वह चाची का चचेरा भाई नितिन था और घर में कोई न होने का सबसे ज्यादा फायदा यह दोनों ही उठा रहे थे।
मैं कुछ और सोचता, इससे पहले चाची की आवाज सुनाई दी- सुनो नितिन, आज जरा चूसा-चुसाई को छोड़ो और जो भी करना है जल्दी से करो। आज जीजी कह रही थी कि वे घर जल्दी वापिस आएँगी क्योंकि भाई जी टूर से आज ही वापिस आने वाले हैं।
नितिन बोला- मेरी रानी, तुम जो हुक्म करोगी और जैसा भी चाहोगी वैसी ही चुदाई का कार्यक्रम बना दिया जायेगा।
उनकी बातें सुन कर मैंने अपने मन में ठान ली कि आज तो मैं उनकी ब्लू फिल्म का सीधा प्रसारण देख कर ही वापिस कालेज जाऊँगा।
इसलिए बिना कोई आहट किये मैं अपने कमरे से बाथरूम में जा कर चाची के ओर वाला दरवाज़े को थोडा सा खोल दिया जिससे मुझे उस कमरे के अन्दर का दृश्य साफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था।
शायद उन लोगों को इस बात का एहसास भी नहीं था कि कोई उस समय भी घर पर आ सकता है इसलिए वह दोनों चुम्बन के आदान प्रदान और अपनी रास लीला में मग्न थे।
उस समय चाची नीले रंग के ब्लाउज तथा पेटीकोट पहने थी और सिर पर तौलिया लपेटा हुआ था।
शायद वह उसी समय नहा कर आई थी जब नितिन आ गया होगा।
नितिन खड़े-खड़े ही दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही चाची की चूचियों से खेल रहा था।
फिर उसने धीरे-धीरे चाची के ब्लाउज के हुक खोल कर उसे शरीर से अलग कर दिया और चाची ने अन्दर जो नीले रंग ब्रा पहन रखी थी उसे भी उतार दिया।
इस बीच नितिन ने चाची के शरीर को चूमते हुए उसके पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया और उसे नीचे उसके पैरों के पास गिरने दिया।
अब चाची सिर्फ नीले रंग की पैंटी में नितिन के सामने खड़ी थी और वह उसके 34-26-36 पैमाने वाले गोरे तथा मांसल शरीर को ऊपर से नीचे तक मसल एवं चूम रहा था।
नितिन को उसके शरीर को चूमने और मसलने में व्यस्त देख कर चाची बोली- अब तुम चूमा चुसाई करके क्यों देर कर रहे हो? जो करने आये हो वह जल्दी से करो और यहाँ से निकल जाओ। मैंने तुम्हें बताया है न कि जीजी आज जल्दी आने को कह गई हैं। अगर वह आ गईँ तो हमें लेने के देने पड़ जायेंगे।
यह बात सुन कर नितिन जल्दी से नीचे बैठ गया और दोनों हाथों से चाची की पैंटी को पकड़ कर नीचे खींच कर उसे उतार कर कोने में फेंक दिया तथा चाची को बिलकुल निर्वस्त्र कर दिया।
इसके बाद नितिन ने चाची को बैड पर लिटाया और खुद भी अपने सारे कपड़े उतार कर नग्न हो कर बैड पर चढ़ गया।
फिर उसने चाची की दोनों टांगों को पकड़ कर चौड़ा करते ही बोला- क्या बात है जानेमन, आज तो तुमने बड़ी सफाई कर रखी है? परसों तो यहाँ पर झांटों का जंगल उगा हुआ था।
चाची बोली- आज कल गर्मी बहुत होने की वजह मुझे नीचे चूत के पास बहुत पसीना आता था और सारा दिन तथा रात मैं वहाँ खुजली करती रहती थी। इसीलिए मैं अभी-अभी नहाते हुए इन्हें साफ़ करके ही आई हूँ।
नितिन बोला- कोई बात नहीं मेरी जान। इस काम के लिए तो मैं हमेशा तुम्हारी सेवा में हाज़िर हूँ। अभी तुम्हारी चुदाई करके तुम्हारी चूत की गर्मी ठंडा करता हूँ और सारी खुजली मिटा देता हूँ।
यह कहते हुए नितिन अपना मुंह चाची की चूत पर ले गया और जीभ से उसको चाटने लगा और उसकी फांकों में से रिसने वाले रस को चूसने लगा।
चाची नितिन द्वारा करी जाने वाली इस चुसाई से मस्त होने लगी और सिसकारियाँ लेते हुए अपनी कमर को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगी।
पांच मिनट चुदाई करने के बाद नितिन उठा और अपने अध-खड़े लंड को चाची की चूत पर घिसने लगा जिससे उसका लंड एकदम से सख्त हो कर खड़ा हो गया।
तब नितिन जल्दी से चाची की टांगों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को उनकी चूत के मुहाने पर लगा कर उसे एक ही झटके में पूरा का पूरा चाची की चूत के अंदर डाल दिया।
चाची ने एक हलकी सी सिसकारी भरी और नितिन के अगले कुछ धक्कों के बाद ही उन्होंने हर धक्के का जवाब अपने कूल्हे उठा कर धक्कों से ही देने लगी।
लगभग 20-22 तेज़ धक्के मारने के बाद नितिन ने अपनी गति बढ़ा दी और बहुत तेज़ धक्के लगते हुए बोला- मेरी रानी, आज तो तुम्हारी चूत बहुत टाइट हो रखी है और मेरे लंड को बहुत रगड़ मार रही है। अच्छा अब मैं झड़ने वाला हूँ इसलिए अपने को संभालो और जल्दी से मेरे साथ ही झड़ जाओ।
चाची बोली- मेरे राजा, मैं भी आने वाली हूँ। तुम जल्दी से आ जाओ मेरे राजा। मैं एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने दूँगी।
इसके बाद नितिन ने 6-7 अत्यधिक तीव्र गति से धक्के मारे और चाची के साथ खुद भी झड़ गया तथा पस्त होकर उसके ऊपर ही लेट गया।
इस सीधे प्रसारण की समाप्ति के होने तक मेरा हथियार भी पैन्ट में तन कर खड़ा हो गया था।
उस समय मेरा मन तो कर रहा था कि मैं अन्दर जाकर नितिन को वहाँ से हटा दूँ और खुद मोर्चा सम्भाल कर चाची की चूत का बाजा ही बजा दूँ।
लेकिन समय की नजाकत को समझते हुए मैंने वहाँ से निकल जाने में ही अपनी भलाई समझी और तुरंत बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया तथा लाइब्रेरी की किताब उठा कर घर से बाहर निकल गया।
अगले पीरियड के शुरू होने से पहले मैं कॉलेज तो पहुँच गया था, लेकिन वहां मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा और चाची तथा नितिन की चुदाई का दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमता रहा।
पीरियड के अंत होने पर जब मैं कॉलेज से घर वापिस पहुँचा तब देखा कि नितिन जा चुका था तथा चाची भी कपड़े बदल कर हरे रंग की चमकली साड़ी पहने बैठक में टीवी देख रही थी।
कहानी जारी रहेगी।
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कहानी का दूसरा भाग: तृप्ति की वासना तृप्ति-2
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