रंगीली बहनों की चूत चुदाई का मज़ा -1
(Rangili Bahanon Ki Chut Chudai Ka Maza-1)
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दोस्तो, मैं सुशान्त चंदन.. एक बार फिर से हाज़िर हूँ..
अब तक आपने पढ़ा.. कि मैं सुरभि और सोनाली मेरी दोनों बहनों को चोद चुका हूँ। पूरी कहानी जानने के लिए मेरी पिछली कहानियाँ पढ़ें..
जिन पाठकों ने इस किस्से को पढ़ा है.. या ईमेल किया है.. उनको मेरी कहानी को पढ़ने के लिए शुक्रिया.. और अपने अच्छे सुझाव देने के लिए भी धन्यवाद।
मैंने उन सुधि पाठकों में से कुछ के सुझाव को माना भी है.. कुछ पाठकों की ईमेल में फरमाइश की थी कि मैं अपनी चुदाई का वीडियो बना कर या फ़ोटो खींच कर भेजूँ.. माफ़ करना दोस्तो.. लेकिन यह संभव नहीं है।
कुछ लोगों ने कहा कि एक बार उनको मैं अपनी बहनों से बात करा दूँ या उसका नंबर दे दूँ.. यह भी नहीं कर सकता.. मेरी बहनें मुझसे चुद रही हैं.. इसका मतलब यह तो नहीं.. कि मैं उनको पूरी दुनिया से चुदवा दूँ।
चलिए आगे बढ़ते हैं..
मैंने दोनों बहनों को अब तक अलग-अलग चोदा था।
एक बार मैं और सोनाली घर पर थे.. और रोज की तरह चुदाई कर रहे थे.. तभी पता चला की सुरभि भी आने वाली है।
सोनाली- आज सुरभि आने वाली है.. पता है तुमको?
मैं- हाँ पता चला.. मुझे भी!
सोनाली- तो?
मैं- तो क्या?
सोनाली- अब हम लोग मस्ती कैसे करेंगे?
मैं- जैसे करते थे..
सोनाली- सुरभि के सामने?
मैं- हाँ कौन सा मैंने उसको नहीं चोदा हुआ है?
सोनाली- लेकिन मुझे शर्म आ रही है..
मैं- आने तो दो.. जो होगा देखा जाएगा..
सोनाली- हाँ लेकिन दोनों में से किसको चोदोगे?
मैं- एक साथ दोनों को..
सोनाली- नहीं.. मैं नहीं करूँगी.. लेकिन तब भी आइडिया बुरा नहीं है..
मैं- बुरा नहीं है.. तो ट्राई कर सकते हैं ना..
सोनाली- सोचूँगी इसके बारे में..
मैं- सोचना क्या है इसमें.. साथ में ही कर लेंगे..
सोनाली- ओके..
मैं- सुरभि आ रही है.. स्टेशन लेने के लिए मेरे साथ चलना है क्या?
सोनाली- ओके चलो.. चलती हूँ..
मैं- ठीक है।
हम दोनों स्टेशन पहुँच गए सुरभि को लेने… चुदाई के बाद दोनों बहनें पहली बार एक-दूसरे से मिलने वाली थीं..
सुरभि की ट्रेन अभी तक नहीं आई थी, हम ट्रेन का इंतज़ार करने लगे।
जैसे ही ट्रेन आई.. हम दोनों की नजरें सुरभि को ढूँढने लगीं.. तभी सामने ट्रेन से उतरती हुई दिखी।
सोनाली- वो देखो..
मैं- मैंने भी देख लिया..
सोनाली- चलो चलते हैं।
मैं- नहीं यहीं रूको.. आ जाएगी!
सोनाली- ठीक है।
तभी देखा कि सुरभि सामने से आ रही थी।
मैं- वो देखो इधर ही आ रही है।
सोनाली- हाँ दिख रही है, और भी बहुत कुछ दिख रही है।
मैं- मतलब.. क्या दिख रही है?
सोनाली- कुछ नहीं.. तुम्हारी मेहनत..
मैं- मेरी मेहनत?
सोनाली- हाँ तुम्हारी मेहनत सुरभि के फिगर पर.. तुमने उसका सब कुछ बढ़ा दिया है।
मैं- ऊओह.. अब समझा.. बढ़ तो तुम्हारा भी गया है..
सोनाली- हाँ लेकिन उतना नहीं.. जितना सुरभि का साइज़ बढ़ा हुआ है.. तुम और सूर्या दोनों ने मिल कर मुझसे अधिक मेहनत सुरभि पर हुई है।
मैं- हाँ ये तो है.. सुरभि की फिगर पहले भी बड़ी थी.. खुद भी खूब मेहनत करती थी और उसका ब्वॉय-फ्रेण्ड भी खूब उछल-कूद करके मेहनत किया करता था..
सोनाली- वो तो ऊपर से मेहनत करता था ना.. और नीचे से देखो.. पिछवाड़ा कितना फैला हुआ है..
मैं- हाँ वो मेरी मेहनत है.. वैसे भी अभी उसको देख कर मुझसे कंट्रोल नहीं हो पा रहा है।
सोनाली- तो क्या करने वाले हो?
मैं- देखो क्या करता हूँ..
सोनाली- ओके.. नज़दीक तो आ ही गई।
तब तक सुरभि हमारे पास पहुँच गई तो मैं सीधा उसके गले लग गया और उसकी चूतड़ों को दबा दिया और जल्दी से अलग हो गया। ये सब मैंने इतना जल्दी किया कि किसी को ज्यादा पता ही नहीं चला।
तो सुरभि मुस्कुरा दी.. और हम तीनों गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगे और गाडी में आगे मैं और सुरभि बैठे और सोनाली पीछे वाली सीट पर बैठ गई।
अब हम घर जाने लगे.. रास्ते में कुछ हुआ नहीं.. सो ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है। कुछ ही देर में हम लोग घर पहुँच गए।
अब मैं दीदी को चोदने का मौका ढूँढ रहा था लेकिन सब घर में थे.. सो चुदाई का मौका ही नहीं मिल पा रहा था। क्योंकि दीदी माँ-पापा के पास बैठी हुई थी.. तो सोनाली ने मुझे अपने पास बुलाया।
मैं- क्या हुआ?
सोनाली- कुछ नहीं.. आगे का क्या प्लान है?
मैं- पता नहीं.. दीदी कभी अकेली तो रह नहीं रही है।
सोनाली- तो मुझसे काम चला लो..
मैं- तुमको तो रोज चोद ही रहा हूँ.. आज दीदी को चोदना है.. उसको बहुत दिन से नहीं चोदा है।
सोनाली- ठीक है.. माँ-पापा को ऑफिस जाने दो.. फिर चोद लेना।
मैं- हाँ, यह आइडिया बुरा नहीं है।
सोनाली- लेकिन मैंने आइडिया दिया है.. तो मुझे क्या मिलेगा?
मैं- क्या चाहिए.. जाओ सूर्या के पास से निपट आओ..
सोनाली- नहीं अब उसके साथ उतना मजा नहीं आता है।
मैं- तो तुम्हारे लिए और क्या कर सकता हूँ।
सोनाली- कुछ नहीं.. बस तुम सुरभि दीदी को चोदना और मैं देखूंगी!
मैं- क्या बात कर रही हो.. क्या तुम साथ में नहीं चुदवाओगी?
सोनाली- नहीं.. मैं देखना चाहती हूँ कि दीदी कैसे चुदती हैं।
मैं- ओके मेरी जान..
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कुछ देर बाद दीदी रसोई में खाना बनाने गई.. तो मैं भी मौका देख कर उसके पीछे से चला गया और उसको पीछे से पकड़ लिया।
सुरभि- क्या कर रहे हो.. कोई देख लेगा!
मैं- क्या करूँ.. कंट्रोल नहीं हो पा रहा है।
सुरभि- कंट्रोल करो.. कोई देख लेगा तो गड़बड़ हो जाएगा।
मैं उसका हाथ अपने लंड पर रखते हुए बोला- मैं तो कर भी लूँगा.. लेकिन ये तुम्हार हथियार कंट्रोल नहीं कर पा रहा है।
सुरभि मेरे लंड को दबाते हुए इसको भी बोलो करने को..
मैं- नहीं मान रहा है.. पूछ रहा है इसकी गुफा कब मिलेगी!
सुरभि- रात को मिल जाएगी..
मैं- इतना लंबा इंतज़ार नहीं हो पा रहा है।
सुरभि- करना पड़ेगा.. और कोई रास्ता भी तो नहीं है।
मैं- एक रास्ता है।
सुरभि- क्या?
मैं- दोनों के ऑफिस जाने के बाद..
सुरभि- लेकिन सोनाली तो रहेगी ना..
मैं- उसको भी बाहर भेज दूँगा.. उसके दोस्त के घर या मार्केट।
सुरभि- तब ठीक है.. अब जाओ यहाँ से..
मैं- ओके जाता हूँ.. लेकिन बिना कुछ लिए कैसे चला जाऊँ?
सुरभि- क्या चाहिए.. ये लो खाना खाओ..
मैंने उसकी चूचियों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा- खाना नहीं.. ये पीना है..
सुरभि- ये बाद में.. अभी जाओ..
मैं- प्लीज़.. थोड़ा..
सुरभि- कोई देख लेगा तो?
मैं- कोई नहीं देखेगा..
सुरभि- ओके.. ये लो.. जल्दी करो।
उसने अपना टॉप उठा दिया और मैं चूचियों को पी कर बोल उठा- उम्माह्ह.. मजा आ गया..
सुरभि- अब जाओ यहाँ से..
मैं- हाँ जा रहा हूँ.. दोपहर को पूरा मजा लूँगा।
सुरभि- ओके..
थोड़ी देर बाद माँ-पापा ऑफिस चले गए। मैं सोनाली के पास गया और बोला- तुम भी किसी बहाने से बाहर जाओ.. और पीछे के दरवाजे से आ जाना और वहीं बैठ जाना.. जहाँ मैं सूर्या के टाइम बैठा था।
सोनाली- ओके जाती हूँ..
मैं- जाती हूँ नहीं.. जा कर दीदी को बोल कि तुम अपनी सहेली के घर जा रही हो।
सोनाली- ओके बाबा जा रही हूँ..
वो दीदी के पास गई और बोली- मैं अपनी एक सहेली के पास जा रही हूँ.. 2-3 घंटे में आती हूँ।
सुरभि- ओके जाओ.. और ठीक से जाना।
सोनाली- ठीक है दीदी।
वो चली गई.. उसके जाते ही मैं दीदी के कमरे में पहुँचा, मुझे देख कर दीदी मुस्कुराई।
मैं- भगा दिया ना उसको भी.. अब तो कोई नहीं है!
सुरभि- हाँ लेकिन जाओ पहले दरवाजा बंद करके आओ.. ताकि कोई आए तो पता चल जाएगा।
मैं- ओके.. मैं आता हूँ..
मैं दरवाजा बंद करके बाहर निकला तो पीछे के दरवाजे से सोनाली अन्दर आ चुकी थी.. तो मैंने दरवाजा बंद कर दिया।
सुरभि- ठीक से बंद कर दिया ना?
मैं- हाँ मेरी जान.. अब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है।
सुरभि- तो करने को कौन बोल रहा है.. मेरी जान.. आ जाओ मैं भी तड़फ रही हूँ।
मैं- तो आ जा.. अभी तड़फ मिटा देता हूँ।
मैं दीदी से लिपट गया और दोनों एक-दूसरे को चूमने लगे और मैंने तो सीधा उसके होंठों पर अपने होंठों को रख दिया और उसे किस करना शुरू कर दिया।
दोस्तो, उम्मीद है कहानी में रस आ रहा होगा.. मेरी इस कहानी के बारे में मुझे अपने विचार जरूर लिखियेगा.. मुझे आप सभी के ईमेल का इन्तजार रहेगा।
कहानी जारी है।
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