जिस्मानी रिश्तों की चाह -25

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 25)

जूजाजी 2016-07-09 Comments

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सम्पादक जूजा

अब तक आपने पढ़ा..
आपी ने अपना हाथ डिल्डो की तरफ बढ़ाया और अपने लेफ्ट हैण्ड की मुट्ठी में उसे थाम लिया और उठा कर अपना राईट हैण्ड की नर्मी से डिल्डो की पूरी लंबाई पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फेरने लगीं।
मैंने कहा- आपी आप चाहें तो असली चीज से भी यह कर सकती हैं।

अब आगे..

‘जी नहीं.. मुझे कोई जरूरत नहीं प्रैक्टिकल की.. बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब का..’ आपी ने नखरीले अंदाज़ में कहा और डिल्डो मेरी तरफ़ फेंक दिया।

आपी ने अपनी टाँगों को थोड़ा सा खोला और अपने बायें हाथ से अपनी बायीं निप्पल को 2 ऊँगलियों की चुटकी में पकड़ते हुए थोड़ी सी टाँगें खोलीं और राईट हाथ को अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह पर आहिस्ता से रगड़ते हुए कहा- चलो अब जल्दी से शुरू करो.. मुझसे अब मज़ीद सब्र नहीं हो रहा है।

मैंने डिल्डो को अपने हाथ में पकड़े रखा और अपनी जगह से हरकत किए बिना ही कहा- मेरी सोहनी बहना जी.. आज का शो ज़रा स्पेशल है.. तो इसका टिकट भी ज़रा क़ीमती ही होगा ना..

‘अब क्या तक़लीफ़ है कमीने..?’ आपी ने ज़रा गुस्सैल लहजे में पूछा।

मैंने वहाँ हाथ का इशारा सोफे के साथ रखे टेबल की तरफ किया.. जहाँ आपी के तहशुदा चादर.. स्कार्फ और कमीज़ पड़ी थी और जवाब दिया- आपी मेरा ख़याल है कि इस टेबल पर अब एक और चीज़ का इज़ाफ़ा कर ही दो आप..

‘बकवास मत करो.. मैं जो कर चुकी हूँ ये ही बहुत है.. जो तुम कह रहे हो.. वो मैं कभी नहीं करूँगी और प्लीज़ अब शुरू करो.. मैं रियली तुम लोगों को इस डिल्डो के साथ एक्शन में देखने के लिए बहुत एग्ज़ाइटेड हूँ।’ आपी ने झुँझलाहटजदा अंदाज़ में कहा।

मैंने कहा- आपी आप भी तो खामखाँ ज़िद पर अड़ी हो ना.. हम आप का आधा जिस्म तो नंगा देख ही चुके हैं.. तो अब आपको सलवार भी उतार देने में क्या झिझक है.. और मैं सिर्फ़ सलवार उतारने का ही तो कह रहा हूँ.. आपको अपने साथ शामिल करने की शर्त तो नहीं रख रहा ना..?

कुछ देर तक कमरे में खामोशी छाई रही मैं भी कुछ नहीं बोला और आपी भी कुछ सोच रही थीं।

‘ओके दफ़ा हो तुम लोग.. नहीं देखना मैंने तुम लोगों को भी..’ आपी ने चिल्ला कर कहा और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं।

हम चुपचाप खड़े आपी को देखते रहे उन्होंने क़मीज़ पहनी.. स्कार्फ बाँधा और अपने जिस्म पर चादर को लपेट कर हमारी तरफ देखे बगैर बाहर जाने लगीं..

आपी अभी दरवाज़े में ही पहुँची थीं कि मैंने ज़रा तेज आवाज़ में कहा- मेरी सोहनी बहना जी.. अगर जेहन चेंज हो जाए और हमारी हालत पर रहम आ जाए तो हमारे कमरे का दरवाज़ा आपके लिए हमेशा खुला है.. बिला-झिझक कमरे में आ जाना.. हम आपको इस शानदार चीज़ के साथ यहाँ ही मिलेंगे।’

आपी ने दरवाज़े में खड़े हो कर घूम कर मुझे बहुत गुस्से से देखा और कुछ बोले बिना ही दरवाज़ा ज़ोर से बंद करती हुई बाहर चली गईं।

आपी के बाहर जाते ही फरहान मेरे पास आया और फ़िक्र मंदी और मायूसी के मिले-जुले तसब्बुर से बोला- भाई आज तो आपका प्लान बैकफायर नहीं कर गया? मेरा मतलब है कि अपनी बहन को पूरा नंगी देखने के चक्कर में हम आधे से भी गए.. कम से कम आपी के खूबसूरत मम्मे तो हमारे सामने होते ही थे ना.. अब तो सब खत्म हो गया।

‘फ़िक्र ना करो यार.. हम से ज्यादा मज़ा आपी को आता है.. हमें ये सब करते देखने में.. मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ वो वापस ज़रूर आएँगी.. बेफ़िक्र रहो.. वो अब इसके बिना नहीं रह सकेंगी।

लेकिन मेरा अंदाज़ा गलत निकला और आपी उस रात वापस नहीं आई थीं।

सुबह नाश्ते के वक़्त भी आपी बहुत खराब मूड में थीं.. मुझसे बात करना तो दूर की बात.. मेरी तरफ देख तक नहीं रही थीं।
लेकिन मुझे अपनी बहन का ये अंदाज़ भी बहुत अच्छा लग रहा था.. गुस्से में वो और ज्यादा हसीन लग रही थीं।

उनके गुलाबी गाल गुस्से की हिद्दत से लाल-लाल हो रहे थे।

तीन दिन तक आपी का गुस्सा वैसा ही रहा.. फिर चौथी रात को फिर आपी हमारे कमरे में आईं और मुझसे नज़र मिलने पर दरवाज़े में खड़े-खड़े ही पूछने लगीं- सगीर तुम्हारा दिमाग वापस ठिकाने पर आ गया है या अभी भी तुम वो ही चाहते हो जो उस दिन तुम्हारी ज़िद थी?

मैंने कहा- नहीं आपी.. हम आज भी वो ही कहेंगे और कल भी वो ही कहेंगे.. जो उस दिन हमने कहा था।

आपी ने घूम कर एक नज़र दरवाज़े से बाहर सीढ़ियों की तरफ देखा और पलट कर अपने हाथों से चादर और क़मीज़ के दामन को सामने से पकड़ा और एक झटके से अपनी गर्दन तक उठा दिया और कहा- एक बार फिर सोच लो.. वरना इनसे भी जाओगे..

फरहान ने फ़ौरन मेरी तरफ देखा जैसे कह रहा हो कि भाई मान जाओ..
आज तीन दिन बाद अपनी बहन के खूबसूरत गुलाबी उभारों और छोटे-छोटे चूचुकों को देख कर दिमाग को एक झटका सा लगा.. लेकिन मैंने अपने जेहन को अपने कंट्रोल में कर ही लिया और फरहान को चुप रहने का इशारा करते हुए आपी को कहा- बहना जी हमारा फ़ैसला अटल है।

‘ओके तुम्हारी मर्ज़ी..’
आपी ने अपनी क़मीज़ सही की.. और दरवाज़ा बंद करके बाहर चली गईं।

आपी के जाने के बाद हम दोनों कुछ देर वैसे ही उदास बैठे रहे और फिर फरहान सोने के लिए बिस्तर पर लेट गया।

मेरा भी दिल उदास सा था और कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। मैं भी बिस्तर पर लेट कर इन हालात पर सोचने लगा.. मुझे भी यक़ीन सा होता जा रहा था कि अब शायद हमारे रूम में आपी कभी नहीं आएँगी और यह सिलसिला शायद इसी तरह खत्म होना था.. जो शायद आज ही खत्म हो गया है।

लगभग 45 मिनट से मैं अपनी इन्हीं सोचों में गुमसुम था कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पर चौंक कर देखा तो आपी कमरे में दाखिल हो रही थीं।

उन्होंने अन्दर आकर दरवाज़ा लॉक किया और झुंझलाते हुए बोलीं- तुम दोनों पूरे के पूरे खबीस हो.. तुम अच्छी तरह से जानते हो कि इंसान का कौन सा बटन किस वक़्त पुश करना चाहिए और मैं जानती हूँ ये सारी कमीनगी सगीर, तुम्हारी ही प्लान की हुई है.. तुम बहुत.. बहुत ही कमीने हो.. अब उठो दोनों.. क्यों मुर्दों की तरह पड़े हुए हो।

आपी ने ये कहा और फिर सोफे के पास जाकर अपनी क़मीज़ उतारने लगीं। चादर और स्कार्फ वो अपने कमरे में ही छोड़ आई थीं।

आपी को क़मीज़ उतारते देख कर मैं भी बिस्तर से उठा और अपने कपड़े उतारने लगा। अपनी सग़ी बहन को मादरजात नंगी देखने के तसव्वुर से ही मेरे लण्ड में जान पड़ने लगी थी और वो भी खड़ा हो गया था।

मेरी देखा-देखी फरहान ने भी अपने कपड़े उतारे और हम दोनों अपने-अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर आपी से चंद गज़ के फ़ासले पर ज़मीन पर बैठ गए।

आपी हमारे बिल्कुल सामने खड़ी थीं उन्होंने बेल्ट वाली काली सलवार पहनी हुई थी और इजारबंद नज़र नहीं आ रहा था.. जिससे ज़ाहिर होता था कि आपी की इस सलवार में इलास्टिक ही है।

मेरी बहन का दूधिया गुलाबी जिस्म काली सलवार में बहुत खिल रहा था और नफ़ के नीचे काला तिल सलवार के साथ मैचिंग में बहुत भला दिख रहा था।

आपी के पेट और सीने पर ग्रीन रगों का एक जाल सा था.. जो जिल्द के शफ़फ़ होने की वजह से बहुत वज़या था।

आपी ने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर की साइड्स पर रखा.. अंगूठों को सलवार में फँसा दिया और अपने हाथों को नीचे की तरफ दबाने लगीं। आपी की सलवार आहिस्तगी से नीचे सरकना शुरू हो गई। जैसे-जैसे आपी की सलवार नीचे सरक रही थी.. मेरे दिल की धडकनें भी तेज होती जा रही थीं।
तकरीबन 2 इंच सलवार नीचे हो गई थी।

आपी की नफ़ के तकरीबन 3 इंच नीचे बालों के आसार नज़र आ रहे थे.. जिनको देख कर लगता था कि शायद आपी ने एक दिन पहले ही सफाई की थी। अचानक आपी ने अपने हाथों को रोक लिया। मेरी नजरें उनकी टाँगों के दरमियान ही जमी हुई थीं।

आपी के हाथ रुकते देख कर मैंने अपनी नज़र उठाई.. जैसे ही आपी की नजरें मुझसे मिलीं.. उन्होंने शदीद शर्म के अहसास से अपनी आँखों को भींच लिया और अपने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख कर चेहरा छुपाते हुए पूरी घूम गईं।

आपी की शफ़फ़ और गुलाबी पीठ मेरी नजरों के सामने थी.. चंद लम्हों तक हम तीनों ऐसे ही चुप रहे और मुकम्मल खामोशी छाई रही.. फिर मैंने इस खामोशी को तोड़ते.. हुए सिर्फ़ दो लफ्ज़ कहे- आपी प्लीज़..।

चंद लम्हें मज़ीद खामोशी की नज़र हो गए.. तो मैंने फिर कहा- आअप्प्पीईइ.. मेरी आवाज़ सुन कर आपी ने अपने चेहरे से हाथ उठा लिए और वापस अपनी कमर पर रखते हो अंगूठों को सलवार में फँसा दिया.. लेकिन आपी हमारी तरफ नहीं घूमीं.. और वैसे ही हमारी तरफ पीठ किए अपनी सलवार को नीचे खिसकने लगीं।

सलवार का ऊपरी किनारा वहाँ पहुँच गया था.. जहाँ से आपी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी। सलवार थोड़ा और नीचे हुई.. तो उनके खूबसूरत शफ़फ़ और गुलाबी कूल्हों का ऊपरी हिस्सा और दोनों कूल्हों के दरमियान वाली लकीर नज़र आने लगी।

आपी ने सलवार को थोड़ा और नीचे किया और अपने हाथ फिर रोक लिए। उनके आधे कूल्हे और गाण्ड की आधी लकीर देख कर नशा सा छाने लगा था.. और मैं अपने हाथ से अपने लण्ड को भींचने लगा।
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आपी थोड़ी देर ऐसे ही रुकी रहीं और फिर थोड़ा झुकीं और एक ही झटके में सलवार को अपने पाँव तक पहुँचा कर दोबारा सीधी खड़ी होते हुए अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया और पाँव की मदद से सलवार को अपने जिस्म से अलग करने लगीं।

खवातीन और हजरात, यह कहानी बहुत ही रूमानियत से भरी है.. आपसे आग्रह है कि अपने ख्याल कहानी के अन्त में जरूर लिखें।
कहानी जारी है।
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