लव की आत्मकथा-2
(Love Ki Aatmkatha-2)
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दिसम्बर का महीना था मैं अपने गाँव गया हुआ था। एक दिन अन्तर्वासना पर मैंने भाई-बहन की चुदाई की कहानी पढ़ी। अब तक किसी से सेक्स नहीं किया था मैंने और उस कहानी को पढ़ने के बाद मैं स्वाति के बारे में सोचने लगा- उसकी हाहाकारी चूचियाँ उसके मांसल चूतड़। मेरा लण्ड उसके शरीर के कल्पना से ही तन गया।
तभी मेरी मम्मी ने मुझे पुकारा, मैं जैसे नींद से जागा और सोचने लगा- छिः ! मैं अपनी बहन के बारे में यह क्या सोच रहा हूँ?
पर वो कहते हैं कि जब दिमाग में कोइ चीज घुस जाये तो वो आसानी से नहीं निकलती ! वो भी चोदने का ख्याल- कभी सोच कर देखिएगा।
अब मैं अपनी बहन स्वाति के बारे में सोचने लगा। कभी सोचता- नहीं यह गलत है ! पर कभी सोचता- इसमें गलत क्या है। मैं इसी अन्तर्द्वद्व में फ़ंसा था।
एक रात को मेरी एक चचेरी बहन और मेरी दोनों बहनें पढाई कर रहे थे, ठण्ड काफ़ी थी, मैं एक रजाई ओढ़े लेटा हुआ था और एक रजाई में वो तीनों बहनें पढ़ रही थी।
तभी अदिति और दिव्या, मेरी चचेरी बहन जिसकी उम्र 10 साल थी रजाई को लेकर खींचातानी करने लगी।
स्वाति ने उस दोनों की नोंकझोंक को रोकने के लिए कहा- तुम दोनों शांत होकर पढ़ाई करो !
तो दिव्या ने कहा- दीदी, रजाई छोटी है तीनों के लिए !
तो उसने कहा- कोई बात नहीं ! तुम दोनों इसे ओढ़कर पढाई करो, मैं भैया की रजाई ओढ़ लेती हूँ।
वो लेटकर पढ़ रही थी, उसने मेरे पैर के तरफ़ की रजाई खींचकर ओढ़ ली।
करीब 15 मिनट के बाद मेरा पैर अचानक किसी गुदाज वस्तु से टकराया और मैंने स्वयं यह कल्पना कर ली कि यह शायद स्वाति की चूची थी।
मेरा लण्ड खड़ा हो गया। अब मेरे मन का चोर जाग उठा था, मैंने धीरे से अपना पैर थोड़ा सा आगे खिसकाया अब मेरे पैर का अँगूठा उसके चूचियों को छू रहा था। मैंने अपने पैर का दबाव थोड़ा सा और बढ़ाया, तभी स्वाति ने मेरे पैर के अँगूठे को पकड़ कर उसे हटा दिया। मैंने नींद में होने का नाटक करते हुए कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई। स्वाति ने भी शायद यही सोचा और थोड़ा सा खिसक गई।
मेरी हिम्मत जवाब दे गई लेकिन वो क्या कहते हैं कि जब चुदाई का भूत सवार होता है तो आदमी को चुदाई के अलावा कुछ नहीं सूझता है। मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही थी।
तभी दिव्या ने मुझे पुकारा- भैया ! भैया !
पर मैं कुछ नहीं बोला।
अदिति ने कहा- भैया शायद सो गये हैं ! क्या बात है?
तो दिव्या ने कहा- सवाल पूछ्ना था !
तो स्वाति ने कहा- लाओ, मैं बता देती हूँ ! भैया थके हुए हैं, उन्हे सोने दो।
मैंने सोचा- सभी सोच रहे हैं कि मैं सोया हुआ हूँ, इसका फ़ायदा उठाया जाये !
पाँच मिनट के बाद मैं थोड़ा सा नीचे की ओर खिसका और धीरे-धीरे अपना पैर उसकी चूचियों की ओर बढ़ाने लगा। मेरा प्रयास रंग लाया और एक मिनट के बाद मेरा पंजा उसकी चूचियों पर था। वो थोड़ा सा कुनमुनाई पर उसके और खिसकने के लिये जगह भी नहीं थी सो वह यूँ ही लेटी रही।
मैंने अपने पैर का दबाव उसकी चूचियों पर थोड़ा सा बढ़ाया, कुछ देर उसी तरह रहने के बाद मैंने धीरे से अपना दूसरा पैर भी बढ़ाकर उसकी चूचियों से लगा दिया। वो पेट के बल लेटी हुई थी और मेरे दोनों पैर उसकी दायीं चूची पर थे। कुछ देर के बाद मैं अपने दाएँ पैर के अँगूठे से उसके चूची के बाहरी भाग को स्वेटर के ऊपर से सहलाने लगा। उसने ना तो कोई हरकत की और ना ही कुछ बोली।
मेरी हिम्मत कुछ और बढ़ गई। अब मैंने अपने दाएँ पैर को धीरे धीरे आगे खिसकाना शुरु किया। उसे भी शायद मज़ा आने लगा था, उसने मेरी इस हरकत का कोई विरोध नहीं किया।
पर मेरा पैर अब आगे नहीं जा रहा था, कि तभी उसने करवट बदली अब उसकी दोनों चूचियाँ मेरे पैर की तरफ़ थी। मैंने धीरे से अपने दोनों पैर उसकी दोनों चूचियों पर लगा दिए।
तभी उसने लेटे-लेटे ही अदिति से कहा- मेरी किताब बंद करके रख दो ! मेरे पेट में दर्द हो रहा है !
और उसने थोड़ी सी और रजाई खींचकर अपने सिर और मुँह को भी ढक लिया। मेरे पैर अब उसकी चूचियों का मुआयना कर रहे थे पर उसके स्वेटर पहने होने के कारण उसकी चूचियों को महसूस करने में ज्यादा मज़ा नहीं आ रहा था।
मैंने थोड़ा हिम्मत करके अपने बांए पैर को उसके स्वेटर के नीचे से घुसा दिया। स्वाति कुछ नहीं बोली, शायद वो सो गई थी।
मैंने अपनी शंका का समाधान करने के लिए अपने पैर से उसकी चूचियों को जोर से दबाया पर वह कुछ नहीं बोली।
अब मैं थोड़ा सा बेफ़िक्र हो गया और अपने दोनों पैरों को उसके स्वेटर के अन्दर घुसा दिया अब मेरे पैर उसकी शमीज के ऊपर से उसकी चूचियों को छू रहे थे ! क्या मांसल और गुदाज चूचे थे उसके !
अब मैं अपने पैर के पन्जे से उसकी चूचियों को सहला रहा था, वो वैसे ही लेटी रही। मेरे पैर के पंजे उसकी चूचियों पर थे और धीरे-धीरे मैं अपने अपने अँगूठे से उसके चुचूक को मसलने लगा। वो थोड़ी सी कुनमुनाई पर मैंने अपने पैरों का काम जारी रखा।
अब मैं अपने पैरों को उसकी नाभि की ओर बढ़ाने लगा। मेरी हिम्मत धीरे-धीरे बढ़ रही थी। पैरों को बढ़ाते हुए मैंने उसे उसकी सलवार के अन्दर ले जाना चाहा पर सलवार का नाड़ा काफ़ी मजबूती से बँधा था। मैं अब उसकी चूचियों को पंजे और अँगूठे दोनों की मदद से दबा रहा था।
तभी अदिति और दिव्या किताब और लैम्प उठाकर बोली- दीदी, मैं खाना खाने जा रही हूँ।
पर वह कुछ नहीं बोली।
दिव्या बोली- शायद दीदी भी सो गई !
मैंने जल्दी से अपने दोनों पैर वहाँ से हटाए लेकिन दिव्या और अदिति स्वाति को उठाये बिना खाना खाने चली गई। उनके जाने के मैं खिसककर उसके बगल में आ गया और उसके समांतर लेट गया। अब मैंने अपना हाथ उसकी चूचियों पर रखा। क्या मजा आ रहा था। मैं उसकी चूचियों को स्वेटर के अन्दर से मसल रहा था उसकी चूचियों के दाने खड़े थे। मैंने अपना पैर उसके पैर पर रख दिया। अब मैं एक हाथ उसकी शमीज के अन्दर ले गया और उसकी चूचियों को सहलाने लगा।
कुछ देर इसी तरह सहलाने के बाद मैंने अपने हाथ से उसके सलवार का नाड़ा खोल दिया और हाथ को उसके अन्दर ले गया। मेरा लण्ड बुरी तरह से खड़ा हो चुका था और उससे लिसलिसा द्रव्य निकल रहा था।
मैं अपने हाथ को उसकी पैंटी पर ले गया, वो चिपचिपी और गीली थी। मैं समझ गया कि वो जाग रही है और उसे भी मजा आ रहा है। यह जानकारी मुझे अन्तर्वासना से मिली थी। अब मैं पुरी तरह से बेफ़िक्र हो गया था, मैं समझ गया था कि वो भी मजा ले रही है।
मैंने अपने हाथ को उसकी पैंटी के अन्दर घुसा दिया। आज से पहले मैंने केवल इसके बारे में पढ़ा था, आज महसूस कर रहा था।
मेरे हाथ उसकी बुर को छू रहे थे। उसकी बुर पर थोड़े से रेशम जैसे मुलायम बाल थे, चूत पूरी तरह से गीली थी। मैं उसकी बुर को एक हाथ से टटोलने लगा और मेरा दूसरा हाथ उसकी दोनों चूचियों को बारी-बारी से मसल रहा था।
मैं अपने बाँए हाथ को उसकी पैंटी के अन्दर ही खिसकाकर उसके पीछे गाँड पर ले गया और अपने शरीर को उसके बदन से चिपका दिया। मेरा लण्ड उसकी जांघों को छू रहा था। एक हाथ से मैं उसकी चूचियों को दबाये हुए था।
अब मैंने अपने होंठ उसके होंठ से लगा दिए और उसके होंठों को चूसने लगा। मैंने अपनी जीभ को उसके मुँह से सटाई तो उसने अपना मुँह खोल दिया। अब वो भी मेरी जीभ चूसने लगी, शायद वो इतनी गर्म हो चुकी थी कि अपने आप को रोक नहीं पाई।
मैंने अपना हाथ उसकी गांड से हटाया और पकड़ कर अपने पजामे के अन्दर घुसा दिया। उसने अपना हाथ झट से हटा लिया, शायद वो मेरा लण्ड पकड़ने में हिचकिचा रही थी। मैंने फ़िर से उसके हाथ को अपने लण्ड से सटा दिया। अबकी बार उसने अपना हाथ नहीं हटाया और मेरे लण्ड को पकड़ कर सहलाने लगी।
मैंने उसका चुंबन लेना बन्द किया और अपने मुँह को उसकी शमीज के ऊपर से उसकी चूचियों से सटा दिया।
वो मेरा लण्ड लगातार सहलाए जा रही थी, मैं भी उसकी चूचियों को उसकी शमीज के ऊपर से ही चूस रहा था।
उसने तभी कहा- रुकिए !
मैं रुका और बोला- क्या हुआ?
उसने कहा कुछ नहीं और अपनी शमीज का हूक खोल दिया।
मैंने उसे थैंक्यू कहा और उसकी शमीज को नीचे कर दिया और उसकी नंगी चूचियों को चूसने लगा।
अचानक मम्मी ने आवाज लगाई- बेटा लव, आओ, खाना खा लो।
स्वाति हड़बड़ाकर उठी अपने कपड़े ठीक किये और चली गई।
मैं भी उठा और पजामा ठीक किया पर मेरा लण्ड काफी तना हुआ और फ़ूला हुआ था जो पजामे के ऊपर से भी महसूस होता था।
मैं तेजी से उठकर बाथरुम गया और हस्तमैथुन किया।
खाना खाने के बाद मैंने सोने जाते समय स्वाति से कहा- सबके सोने के बाद मेरे कमरे में आ जाना।
उसने मना कर दिया, कहा- नहीं, यह गलत बात है ! हम दोनों भाई बहन हैं ! हमें इस तरह की बात सोचना भी नहीं चाहिए। पता नहीं क्यों मैंने आपको मना नहीं किया ? हमने जो किया, वो हमें नहीं करना चाहिए था।
यह कह कर वो चली गई।
फिर क्या हुआ ? मैंने स्वाति और फिर अदिति को कैसे चोदा?
यह अपनी कहानी के अगले भाग में !
यह कहानी मेरी अपनी कहानी है और सच्ची है !
आपको कैसी लगी, जरूर बताईयेगा और मुझे मेल करते रहियेगा।
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