12वीं पास करने के बाद पापा ने आर्थिक मजबूरी से मेरी पढ़ाई बंद कर दी. मेरे सारे अरमान धूल में मिल गए पढ़ाई करके बड़ी जॉब पाने के … मैंने अंकल से मिलना बंद कर दिया. फिर उसके बाद?
मैं पहली चुदाई का मजा ले चुकी थी. लेकिन इससे मेरी चुदाई की आग कुछ ख़ास शांत नहीं हुई थी. चुदाई की आग वो आग है कि जितनो चुदो, उतना भड़कती है. पढ़ें मेरी अगली चुदाई!
लम्बे अरसे से मेरे जिस्म की भड़की हुई आग पर एक मर्द के लंड का जल गिर जाने को तैयार था. लेकिन पहली बार चुदाई में होने वाले दर्द का डर मेरे दिलोदिमाग में छाया हुआ था.
मेरी कामुकता पूरे उफान पर थी लेकिन किसी लड़के से बात करने की हिम्मत नहीं थी. मेरी सहेली ने मुझे एक सलाह दी और कहा कि वो खुद भी यही करती है. क्या थी वो सलाह?
यह सच्ची सेक्स कहानी है अन्तर्वासना की एक पाठिका की … जब वो 18 साल की थी, स्कूल में पढ़ती थी तो सहेलियों की बातें सुन सुन कर उसकी कुंवारी बुर में कुछ कुछ होता था.
वो शादी से पहले एक बार फिर चुदना चाहती थी; लेकिन शादी की भीड़ में जुगाड़ हो नहीं पाया; कम्मो ने अपनी चूत हेयर रिमूवर से चिकनी बना कर मुझे जरूर दिखाई और मेरा हाथ पकड़ कर वहां रखवाया.
छोरी चुदासी तो थी पर चुदना अपने हिसाब से चाहती थी. उजाले में अपनी चूत नहीं दिखाना चाहती थी. मैंने भी तय कर लिया कि इसे रोशनी में पूरी नंगी करके अपने लंड पर झूला झुलाऊँगा.
वो सुलगने लगी, उसकी सांसें भारी होने लगीं और उसकी बांहें मुझे कसने लगीं. कड़क जवान छोरी थी सो जल्दी गर्म होनी ही थी. कम्मो मेरे सीने से लग गयी और अपना मुंह वहीं छुपा कर दो तीन बार चूम लिया.
वो इमोशनल हो रही थी, वर्जित फल खा लेने का वो पागलपन हम दोनों पर सवार हुआ था वो घोर निराशा में बदला जा रहा था. कम्मो तो मुझे समर्पित थी कि जो करना है, जहां ले चलना है ले चलो. कोई लड़की इससे ज्यादा आखिर कह भी क्या सकती है.
लड़की की क्लिट को छेड़ो और इसकी जवानी की प्यास ना भड़के … वो चुदने को न मचल जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. कम्मो ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और आनन्द से आंखें मूंद लीं और और अपने पैर और चौड़े कर दिए.
अनजान शहर में किसी भी परिचित देसी गर्ल की पैंटी उतरवा कर उसकी टाँगें उठवा देना इतना आसान नहीं होता चाहे वो कितनी भी चुदासी, लंड की प्यासी और चुदने को पूरी तरह तैयार ही क्यों न हो.
हसीनाओं की ये भोली अदाएं ही तो चुदाई का आनन्द दोगुना कर देतीं हैं; इनका ये रोना धोना, नखरे कर कर के चुदना, एक प्रकार का कॉम्प्लीमेंट, उत्साहवर्धक ही है हम चोदने वालों के लिये.
बहू के मायके में मैं अपनी बहू को बंजारन के लिबास में देख कर उसकी चुदाई के लिए बेचैन हो रहा था, बहू भी मेरी लालसा को जानती थी और वो भी यही चाहती थी. हमारी प्यास कैसे बुझी?
मैं अपनी पूत्रवधू को लेकर उसके चचेरे भाई की शादी में गया. अब शादी में तो रंग बिरंगी तितलियाँ आई ही होती हैं, मैं चक्षु चोदन कर रहा था कि मेरी बहू बंजारन लिबास में मेरे पास आई.
कामवासना से भरपूर कहानी में आपने पढ़ा कि हम ससुर बहू अपने केबिन के बाहर की दुनिया से बेपरवाह अपनी ही दुनिया में खोये हुए सेक्स का मजा कर रहे थे.
अब हमारा सफर अंतिम दौर में था, बस यही रात थी हमारे पास! फिर न जाने कब ऐसा मौका मिले!
बहूरानी खनकती हुई हंसी हंसी- हा हा हा, अरे नहीं पापा जी. मैं तो बस ऐसे ही हंसी ठट्ठा कर रही थी. ये ससुरी ना दुखती… इसे तो लंड से जितना मारो पीटो… उतनी ही ज्यादा खुश होती है बेशरम! यह आपकी चहेती हो गई है, बिगड़ गई है, पूरी की पूरी ढीठ हो गई है, हद कर दी इसने तो बेशर्मी की!
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