रोहण के बन्द कमरे की पीछे वाली खिड़की से एक बार कविता ने रोहण को ब्ल्यू फ़िल्म देखते फिर मुठ्ठ मारते देख लिया था। वो भी जवान थी, उसके दिल के अरमान भी जाग उठे थे।
‘अंकल जी, हाय चूत मार दी रे, मेरी फ़ुद्दी चुद गई, आह्ह मेरा माल निकला रे , हरामजादी… मेरी चूत फ़ोड़ डाली रे…’ और उसने अपनी चूत सिकोड़ ली। राधा झड़ने लगी, उसका पानी निकलने लग गया था।
मेरी टांगें चौड़ी करके उसका चेहरा मेरी चूत पर झुक गया और वहाँ अपना मुँह लगा दिया। ‘अरे ये क्या कर रहे हो… ये तो पेशाब की जगह है छी: हटो, जाने क्या कर रहे हो?’
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