नंगी आरज़ू-10

(Nangi Aarzoo- Part 10)

This story is part of a series:

“चल बे तू आ अब … और जैसे मैं कहती हूँ वैसे ही डालना।” उसने रोहित से कहा।
फिर वह दीवार से सट गयी सीने की तरफ से और दोनों हाथ से अपने फ्लैट से नितम्ब पकड़ कर इस तरह फैलाये कि उसकी गुदा का छेद हमें दिखने लगा जो इस तरह कूल्हे चीरने से कुछ हद तक फैल गया था।

“वैसलीन लगा दे मेरी गांड में भी और अपने लंड पे भी.. फिर पेल दे मगर धीरे-धीरे।”
रोहित ने देर नहीं की और जल्दी से डिबिया से वैसलीन निकाल कर उसके छेद में भर दी और आधी अपने लिंग पर मल दी, फिर अपने लिंग का अग्रभाग उसके छेद से सटा कर अंदर दबाने लगा।

मेरी बहन की गांड चुदाई का नजारा देखने के लिये हम दोनों उसके दायें-बायें खड़े हो गये थे। पहले शिश्नमुंड अंदर धंसा तो वह उचकी और लगा कि उसे पीछे धकेलेगी लेकिन उसी क्षण में रोहित ने उसकी पीठ के ऊपरी सिरे पर दबाव डाल कर उसे दीवार से सटा दिया।

लेकिन फिर भी अपने छेद को फैलाने वाले उसके हाथ अब कूल्हों से हट कर दीवार से चिपक गये थे और ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी सारी तकलीफ दीवार में जज़्ब कर देना चाहती हो।
और धीरे-धीरे रोहित ने पूरा लिंग अंदर ठेल दिया।

“उफ.. मादरचोद.. ऐसा लग रहा है जैसे मेरी गांड फट गयी हो.. अबे वाकई फाड़ दी है क्या भड़वे।” वह बिलबिलाती हुई बोली थी.. उसकी आँखों में छलक आये आंसू हम भी देख सकते थे।
“अभी एक और लंड चला जायेगा तब भी न फटेगी रांड.. थोड़ा सब्र तो कर।” पूरा अंदर डालने के बाद रोहित उसकी पीठ से एकदम चिपक गया था।

थोड़ी देर तक दोनों वैसे ही खड़े रहे, फिर आरजू एक हाथ पीछे कर के उसके नितम्ब को थपकते हुए बोली- सारा नशा तोड़ दिया तेरे लंड ने.. चल अब धक्के शुरू कर … ए तुम लोग गिनो रे।
रोहित उसकी पीठ से थोड़ा दूर हुआ तो हमें उसके बाहर आते लिंग के दर्शन हुए जिसे उसने ‘एक’ का उच्चारण करते हुए फिर अंदर कर दिया।

हमारे देखते उसने कमर आगे पीछे कर के लिंग को अंदर-बाहर करना शुरू किया। साथ ही वह गिनती भी करता जा रहा था और आरजू ने होंठ और आंखें भींच कर चेहरा दीवार से सटा रखा था, जिससे कुछ पता नहीं चल रहा था कि उसे तकलीफ हो रही थी या मजा आ रहा था।

एकदम कसी हुई गुदा में यूँ चोदन करना स्खलन के लिहाज से खतरनाक खेल था लेकिन एक तो नशे का असर और उसपे धक्के गिनने में ध्यान बंटना.. इन दोनों वजहों से मुझे नहीं लगता कि इस स्तम्भन का रोहित की उत्तेजना पर कोई खास असर पड़ रहा था।
शुरू में उसने धक्के धीरे-धीरे ही लगाये थे लेकिन बाद में उसकी गति तेज होती गयी थी और अंतिम धक्कों के वक्त तो सुपरफास्ट हो गया था।

धक्के पूरे हो गये तो वह निकाल कर दीवार से टिक गया और हांफने लगा जबकि आरजू दोनों पैर फैला कर जमीन पर बैठ गयी।
“नशा ही उतर गया.. एक-एक पैग और बनाओ।” वह शिवम को देखते हुए बोली।

सोडा तो खत्म हो चुका था.. नीट ही चार पैग बना लिये गये और हम आसपास बैठ कर अपने-अपने पैग चुसकने लगे।

“पक्का लाल पड़ गयी होगी ठुक के.. अभी भी ऐसा लग रहा है जैसे गांड में लंड घुसा हुआ हो। साली कल तक सूज भी जायेगी और हगने में भी तकलीफ होगी।”
“ढीली भी तो ऐसे ही होगी.. आखिर रोज मारी जानी है अब तो।”
“घंटा.. तीन चार दिन तो गांड पे लंड लगाना भी मत। बस चूत पेलो और मुंह चोद लो। अगली बार पहले मेरा भाई मेरी गांड मार मार के ढीली करेगा तब तुम लोग मारोगे।”
“अरे तो आज तो मारने दोगी न?”
“हां आज तो सब छूट है। तुम लोगों ने कामयाबी से अपनी-अपनी सजा पूरी कर ली इसलिये इनाम के तौर पर मेरे तीनों छेद तुम लोगों के हवाले। आज तो जी भर के चोदो मुझे।”

थोड़ी देर पीने के बाद हम सब उठ खड़े हुए। आरजू ने खुद से शिवम को बेड पर बिठा दिया कि उसकी टांगें फैली रहें और बेड से नीचे रहें और उसके लिंग को चूसने सहलाने लगी।

इतनी देर के ब्रेक में तीनों के ही लिंग मुरझा गये थे। उसके इशारे पर हम दोनों उसके चेहरे के दायें-बायें अपने-अपने लिंग लटकाये खड़े हो गये और वह बारी-बारी सभी के लिंग चूसने लगी.
हां रोहित का लिंग उसने चूसने से पहले अच्छे से साफ कर लिया था.. साथ ही हाथ से सहलाती भी जा रही थी।

शनै: शनै: हमारे अंगों में तनाव आता गया और वे तन कर ठुनकने लगे।

अब डिबिया की बची-खुची वैसलीन उसने खुद से अपने पीछे के छेद पर भी लगाई और शिवम के लिंग पर भी मल दी।

शिवम दोनों हाथ पीछे टिकाते थोड़ा पीछे की तरफ झुक गया और आरजू उसकी जांघों के आसपास ही बेड के किनारे पर पांव टिकाये उसके लिंग पर बैठ गयी।

शिवम के लिंग के हिसाब से उसका छेद फैला तो उसके मुंह से फिर जोर की ‘सी …’ निकली लेकिन उसने खुद को रोका नहीं और अपने छेद को उसके लिंग पर धंसाते चली गयी और उसकी मंशा समझ कर शिवम ने उसकी कमर थामते हुए पीठ बिस्तर से लगा ली।

जब पूरा लिंग अंदर हो गया तो उसने बेड के किनारे पे रखे पैर उठा कर शिवम की फैली हुई जांघों पर टिका लिये और खुद अपने हाथ शिवम के सीने पे टिकाती पीछे हो गयी जिससे उसकी योनि पूरी खुल के सामने आ सके।
“अब तू मुहूर्त निकालेगा क्या.. डाल न बहनचोद अपना लंड?” उसने रोहित को गाली देते हुए कहा।
रोहित ने तत्काल आगे बढ़ कर थूक से अपना लिंग गीला किया और उसकी योनि में ठूंस दिया।

अब दो मोटे लंबे लिंग उसके दोनों छेदों में ठुंसे हुए थे और आनंद के अतिरेक से उसकी आंखें मुंद गयी थीं। वह सांसों ही सांसों में सीत्कार कर रही थी जबकि दोनों अपने लिंग बस हिला भर रहे थे।
“अब तुम्हारे लिये भी मुहूर्त निकालूं?” उसने आंखें खोल कर मुझे देखा।
यानि उसे मुंह भी खाली नहीं चाहिये था।

मैं बेड पर चढ़ कर उसके पास खड़ा हो गया और उसने चेहरा तिरछा कर के मेरे लिंग को दबोच लिया।
“चलो अब तीनों लोग गचागच धक्के लगा कर पेलो मुझे। पहले धीरे-धीरे.. बाद में तेज-तेज।” उसने नया आदेश जारी किया।

और हमारी कमरें चलने लगीं.. इस पोजीशन में मुझे और रोहित को धक्के लगाने की तो आसानी थी लेकिन शिवम के लिये धक्के लगाना थोड़ा मुश्किल जरूर था.. बाकी अपनी क्षमता भर लगा वह तब भी रहा था। और मेरी बहन एक साथ तीन-तीन लिंगों का मजा ले रही थी। कमरे का वातावरण आग हो रहा था और वहां बस हमारी धचर-पचर की आवाजें ही गूँज रही थीं।

“हटो बे.. ऐसे बन नहीं रहा।” थोड़ी देर बाद शिवम ने इस सिलसिले में ब्रेक लगाते हुए कहा।
सब न सिर्फ रुके बल्कि अलग-अलग भी हो गये।

वह उठ के बैठा और उसने आरजू को अपनी तरफ मुंह कर के अपने लिंग पर इस तरह बिठाया कि आरजू की योनि उसके पूरे लिंग को लीलती जड़ पर जा जमी.. फिर उसने आरजू की टांगों के नीचे से हाथ निकाले और उसका वजन अपने हाथों पे लेता खड़ा हो गया।

इस पोजीशन में मैंने भी पिछली बार में उसे फक किया था और तब शिवम कायदे से धक्के लगाने लगा। साथ ही आरजू खुद भी अपनी कमर को उछाल रही थी। अब उसके मुंह से मादक सिस्कारियां निकलने लग गयी थीं।

थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा- अब तू मार इसकी गांड।
मैं उनके सामने आ गया और पीछे से आरजू की गुदा के छेद में अपना लिंग घुसा दिया जो अब बिलकुल ढीली हो रही थी और उसने बड़े आराम से मेरे लिंग को लेने लगा।

शिवम ने अपने धक्के रोक दिये थे और मैं पीछे से धक्के लगा रहा था.. लेकिन आरजू को योनि में भी घर्षण चाहिये था तो वह खुद से ही हिलती हुई ऊपर नीचे हो रही थी।

थोड़ी देर बाद उसे उसी पोजीशन में उसकी टांगों के नीचे से हाथ निकाल कर उसकी पीठ अपने सीने से टिकाये मैंने अपनी गोद में ले लिया जबकि शिवम से खाली हुई उसकी योनि में रोहित ने अपना लिंग ठूंस दिया और गपागप धक्के लगाने लगा।

फिर जब वह थक गया तो आरजू को उसने संभाल लिया और मैं पीछे से हट गया। मेरी जगह शिवम ने ले ली और अपना लिंग उसकी गुदा में घुसा के धक्के लगाने लगा।
बाद में इसी तरह शिवम ने उसे पीठ से सटाये संभाल लिया और यूँ आगे से खुल गयी योनि रोहित को हटा कर मैंने अपने कब्जे में ले ली और चोदन करने लगा।

इसी तरह बड़ी देर तक यह खेल चलता रहा.. इस बीच यह तो नहीं पता चला कि आरजू का पानी छूटा था या नहीं पर उसके हावभाव बता रहे थे कि मजा उसे भरपूर आ रहा था। वह लगातार मुंह चलाती वैसे ही गंदी-गंदी बातें कर रही थी जैसा मैंने उसे समझाया था।

यूँ आगे पीछे से उसे फक करते हम तीनों ही चरम पर पंहुच गये तो तय हुआ कि कौन कैसे निकालेगा। मैंने पीछे का छेद चुना और उसे बेड के किनारे पर कुतिया बना लिया गया। यूँ मैंने अपने आखिरी धक्के उसके नितम्बों पर जोर देते लगाये और अंदर ही कीचड़ कर दिया।

मुझे हटा कर रोहित ने उसकी पीछे से अंतिम हद तक उभरी योनि में अपना लिंग ठूंस दिया और उसकी कमर पकड़ कर जोर-जोर से धक्के लगाने लगा।
“अंदर मत झड़ना भोसड़ी के!” बीच में ही शिवम ने चेतावनी जारी कर दी थी। और निकालने के टाईम उसने एकदम से अपना लिंग योनि से निकाल कर उसके कूल्हे पे रख कर दबा दिया और वीर्य उगलने लगा।

उसे ऐसी हालत में परे धकेल कर शिवम ने अपना लिंग ठूंस दिया और तेजी से धक्के लगाने लगा। हालाँकि कूल्हे पर बहा रोहित का वीर्य और गुदा में भरा मेरा वीर्य फिर भी उसके योनिभेदन करते लिंग तक पंहुचने लगा था। फिर उसने भी अंदर ही अपना वीर्य उगल दिया।
फिर सभी अलग-अलग पड़ कर हांफने लगे।
इसके बाद देर रात तक यही सिलसिला चलता रहा और अगले दिन सब अपने काम से लग गये।

आगे मेरी इंडीकेशन के मुताबिक ऑफिस में काम करते हुए एक महीने के अंदर ही आरजू ने एक ब्वायफेंड ऑफिस में और दो बाहर से ऐसे बना लिये जिनके पास मौज मेले के लिये जगह का जुगाड़ था।

अपने पुराने ब्वायफ्रेंड सैंडी उर्फ संदीप से भी उसका कांटैक्ट हो गया, जिसने शादी तो कर ली थी लेकिन फिर भी पुरानी गर्लफ्रेंड को भोगने का लोभ संवारण न कर सका और आरजू के लिये भी उपलब्ध हो गया।

महीना भर उन दोनों के साथ रहते उसने जी भर के मजे किये वह अलग.. इसके अतिरिक्त ऑफिस से लौटने के बाद वह योगा करती, हल्की-फुल्की एक्सरसाईज करती, दोनों जमूरों से अच्छे से मसाज करवाती और सुबह कभी मेरे ले जाये, तो कभी उन दोनों में से किसी के ले जाये.. पास के स्मृति पार्क जा कर आधा घंटा दौड़ लगाती। खूब खुश रहती और अच्छे से खाती पीती।

महीने भर बाद मेरे पास के मुहल्ले में ही आंटी के यहाँ शिफ्ट हो गयी, जहां मैंने बात की थी। अब उसकी जिंदगी में सबकुछ नार्मल था। अब उसे रोज सेक्स की जरूरत नहीं थी क्योंकि वह इसके लिये तरसी नहीं थी, बल्कि वह जब चाहती उसके लिये सेक्स उपलब्ध था और कई विकल्प मौजूद थे।
इसका सकारात्मक असर उसके शरीर पर पड़ा और वह धीरे-धीरे फिर खिल गयी।

धीरे-धीरे हम दोनों फिर अपनी दुनिया में व्यस्त और मस्त हो गये।

समाप्त

मेरी सेक्स कहानी पर अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करायें। मेरी मेल आईडी है [email protected]
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