दिल का क्या कुसूर-9
(Dil Ka Kya Kasoor- Part 9)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left दिल का क्या कुसूर-8
-
View all stories in series
मुझे लगा कि इस बार मैं पहले शहीद हो गई हूँ। अरूण का दण्ड नीचे से लगातार मेरी बच्चेदानी तक चोट कर रहा था। तभी मुझे नीचे से अरूण का फव्वारा फूटता हुआ महसूस हुआ। अरूण ने अचानक मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और मेरी योनि में अपना काम प्रसाद अर्पण कर दिया।
मैं लगातार शीशे की तरफ ही देख रही थी। अब मुझे यह देखना बहुत सुखदायी लग रहा था पर शरीर में जान नहीं थी, मैं वहीं फर्श पर लेट गई परन्तु अरूण इस बार उठकर बाथरूम गये, खुले दरवाजे से मुझे दिख रहा था कि उन्होंने एक मग में पानी भरकर अपने लिंग को अच्छे से धोया, तौलिये से पौंछा और बाहर आ गये।
उनके चेहरे पर जरा सी भी थकान महसूस नहीं हो रही थी, उनको देखकर मुझे भी कुछ फूर्ति आई। मैं भी बाथरूम में जाकर अच्छी तरह धो पौंछ कर बाहर आई। घड़ी में देखा 3.15 बजे थे मैंने अरूण को आराम करने को कहा।
वो मेरी तरफ देखकर हंसते हुए बोले, “जब जा रहा था तो जाने नहीं दिया। अब आराम करने को बोल रही हो अभी तो कम से कम 2 राउण्ड और लगाने हैं, आज की रात जब तुम्हारे साथ रूक ही गया हूँ तो इस रात का पूरा फायदा उठाना है।”
अरूण की इस बात ने मेरे अन्दर भी शक्ति संचार किया, मेरी थकान भी मिटने लगी। मैंने फ्रिज में से एक सेब निकाला, चाकू लेकर उनके पास ही बैठकर काटने लगी।
वो बोले, “मुझे ये सब नहीं खाना है।”
मैंने कहा, “आपने बहुत मेहनत की है अभी और भी करने का मूड़ है तो कुछ खा लोगे तो आपके लिये अच्छा है।”
अरूण बोले, “आज तो तुमको ही खाऊँगा बस।”
सेब और चाकू को अलग रखकर मैं वापस आकर अरूण के पास बैठ गई। मेरे बैठते ही उन्होंने अपना सिर मेरी जांघों पर रखा और लेट गये। मैं प्यार से उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी। पर वो तो बहुत ही बदमाश थे उन्होंने मुँह को थोड़ा सा ऊपर करके मेरे बांये स्तन को फिर से अपने मुँह में भर लिया। मैंने हंसते हुए छोटे से हो चुके उनके लिंग को हाथ में पकड़ कर मरोड़ते हुए पूछा, “यह थकता नहीं क्या?”
अरूण बोले- थकता तो है पर अभी तो बहुत जान है अभी तो लगातार कम से कम 4-5 राउण्ड और खेल सकता है तुम्हारे साथ।
“पर मैंने तो कभी भी एक रात में एक से ज्यादा बार नहीं किया इसीलिये मुझे आदत नहीं है।” मैंने बताया।
अरूण ने तुरन्त ही अपने मिलनसार व्यवहार का परिचय देते हुए कहा, “तब तो तुम थक गई होंगी तुम लेट जाओ, मैं तुम्हारी मालिश कर देता हूँ ताकि तुम्हारी थकान मिट जाये और अब आगे कुछ नहीं करेंगे।”
मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माने खुद उठकर बैठ गये और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। ड्रेसिंग टेबल से तेल लाकर मेरी मालिश करने लगे। इससे पहले मेरी मालिश कभी बचपन में मेरी माँ ने ही की होगी। मेरी याद में तो पहली बार कोई मेरी मालिश कर रहा था, वो भी इतने प्यार से!
मैं तो भावविभोर हो गई, मेरी आँखें नम होने लगी, गला रूंधने लगा।
अरूण ने पूछा, “क्या हुआ?”
“कुछ नहीं।” मैंने खुद को सम्भालते हुए कहा और अरूण के साथ मालिश का मज़ा करने लगी, मेरी बाजू पर, स्तनों पर, पेट पर, पीठ पर, नितम्बों पर, जांघों पर, टांगों पर और फिर पैरों पर भी अरूण तन्मयता से मालिश करने लगे।
वास्तव में मेरी थकान मिट गर्इ अब तो मैं खुद ही अरूण के साथ और खेलने के मूड़ में आ गई। आज मैं अरूण के साथ दो बार एकाकार हुई और दोनों बार ही अलग अलग अवस्था में। मेरे लिये दोनों ही अवस्था नई थी, अब कुछ नया करना चाहती थी पर अरूण को कैसे कहूँ समझ नहीं आ रहा था। पर मैं अरूण के अहसानों का बदला चुकाने के मूड में थी, मैं तेजी से दिमाग दौड़ा रही थी कि ऐसा क्या करूँ जो अरूण को बिल्कुल नया लगे और पूर्ण सन्तुष्टि भी दे।
सही सोचकर मैंने अरूण के पूरे बदन को चाटना शुरू कर दिया। अरूण को मेरी यह हरकत अच्छी लगी शायद, ऐसा मुझे लगा। वो भी अपने शरीर का हर अंग मेरी जीभ के सामने लाने का प्रयास करने लगे। धीरे धीरे मैं उनके होंठों को चूसने लगी पर मैं तो इस खेल में अभी बच्ची थी और अरूण पूरे खिलाड़ी। उन्होंने मेरे होठों को खोलकर अपनी जीभ मेरी जीभ से भिड़ा दी। ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों की जीभें ही आपस में एकाकार कर रही हैं।
मैं अरूण के बदन से चिपकती जा रही थी बार-बार। मेरा पूरा बदन तेल से चिकना था अरूण के हाथ भी तेल से सने हुए थे। अरूण ने अपनी एक उंगली से मेरी योनि के अन्दर की मालिश भी शुरू कर दी। मेरी योनि तो पहले ही से गीली महसूस हो रही थी, उनकी चिकनी उंगली योनि में पूरा मजा दे रही थी, उनकी उंगली भी मेरे योनिरस से सन गई।
उन्होंने अचानक उंगली बाहर निकाली और मेरे नितम्बों के बीच में सहलाना शुरू कर दिया।
चिकनी और गीली उंगली से इस प्रकार सहलाना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। अचानक “हाययय… मांऽऽऽऽऽ… ऽऽऽऽ…” फिर से वो ही हरकत!
उन्होंने फिर से अपनी उंगली मेरी गुदा में घुसाने का प्रयास किया, मैं कूद कर दूर हट गई।
मैंने कहा, “आप अपनी शरारत से बाज नहीं आओगे ना…?”
अरूण बोले, “मैं तो तुमको नया मजा देना चाहता हूँ। तुम साथ ही नहीं दे रही हो।”
मैंने कहा, “साथ क्या दूँ? पता है एकदम कितना दर्द होता है!”
“तुम साथ देने की कोशिश करो। थोड़ा दर्द तो होगा, पर मैं वादा करता हूँ जहाँ भी तुमको लगेगा कि इस बार दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा बोल देना मैं रूक जाऊँगा।” अरूण ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा।
मैं गुदा मैथुन को अपने कम्प्यूटर पर कई बार देख चुकी थी। मेरे अन्दर भी नया रोमांच भरने लगा पर दर्द के डर से मैं हामी नहीं भर रही थी। हां, कुछ नया करने की चाहत जरूर थी मेरे अन्दर, यही सोचकर मैंने अरूण का साथ देने की ठान ली।
अरूण ने मुझे बिस्तर पर आगे की ओर इस तरह झुकाकर बैठा दिया कि मेरी गुदा का मुँह सीधे उनके मुँह के सामने खुल गया। अब अरूण मेरे पीछे आ गये, उन्होंने ड्रेसिंग से बोरोप्लस की टयूब उठाई और मेरी गुदा पर लगा कर दबाने लगी। टयूब से क्रीम निकलकर मेरी गुदा में जाने लगी।अरूण बोले, “जैसे लैट्रीन करते समय गुदा खोलने का प्रयास करती हो ऐसे ही अभी भी गुदा को बार बार खोलने बन्द करने का प्रयास करो ताकि क्रीम खुद ही थोड़ी अन्दर तक चली जाये।” क्रीम गुदा में लगने से मुझे हल्की हल्की गुदगुदी होने लगी। मैं गुदा को बार-बार संकुचित करती और फिर खोलती, अरूण गुदाद्वार पर अपनी उंगली फिरा रहे थे जिससे गुदगुदी बढ़ने लगी, कुछ क्रीम भी अन्दर तक चली गई।
इस बार जैसे ही मैंने गुदा को खोला, अरूण ने अपनी उंगली क्रीम के साथ मेरी गुदा में सरका दी। जैसे ही मैं गुदा संकुचित करने लगी मुझे उंगली का अन्दर तक अहसास हुआ पर तब तक उनकी उंगली इतनी चिकनी हो गई थी कि गुदा में हल्के हल्के सरकने लगी। दर्द तो हो रहा था पर चिकनाहट का भी कुछ कुछ असर था मजा आने लगा था।
मैं भी तो कुछ नया करने के मूड में थी। अरूण ने एक उंगली मेरी गुदा में और दूसरी मेरी योनि में अन्दर बाहर सरकानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे मैं तो आनन्द के सागर में हिचकौले खाने लगी।
कुछ सैकेण्ड बाद ही अरूण बोले, “अब तो कोई परेशानी नहीं है ना?”
मैंने सिर हिलाकर सिर्फ ‘ना’ में जवाब दिया। बाकि जवाब तो अरूण को मेरी सिसकारियों से मिल ही गया होगा। उन्होंने फिर से क्रीम मेरी गुदा में लगाना शुरू किया। मैं खुद ही बिना कहे एक गुलाम की तरह उनकी हर बात समझने लगी थी। मैंने भी अपनी गुदा को फिर से संकुचित करके खोलना शुरू कर दिया। इस बार अचानक मुझे गुदा में कुछ जाने का अहसास हुआ मैंने ध्यान दिया तो पाया कि अरूण की दो उंगलियाँ मेरी गुदा में जा चुकी थी। फिर से वही दर्द का अहसास तो होने लगा। पर आनन्द की मात्रा दर्द से ज्यादा थी। तो मैंने दर्द सहने का निर्णय किया।
उनकी उंगलियाँ मेरी गुदा में अब तेजी से चलने लगी थी।
ये क्या..? मैं तो खुद ही नितम्ब हिला हिला कर गुदा मैथुन में उनका साथ देने लगी।
वो समझ गये कि अब मुझे मजा आने लगा। उन्होंने अपना लिंग मेरी तरफ करके कहा कि अपने हाथ से इस पर क्रीम लगा दो। मैंने आज्ञाकारी दासी की तरह उनकी आज्ञा का पालन किया।
लिंग को चिकना करने के बाद वो फिर से मेरे पीछे आ गये, मुझसे बोले, “अब मैं तुम्हारे अन्दर लिंग डालने की कोशिश करता हूँ। जब तक बर्दाश्त कर सको ठीक, जब लगे कि बर्दाश्त नहीं हो रहा है बोल देना।”मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
अरूण मेरे पीछे आये और अपना कामदण्ड मेरी गुदा पर रखकर अन्दर सरकाने का प्रयास करने लगे। मैंने भी साथ देते हुए गुदा को खोलने का प्रयास किया। लिंग का अगला सिरा यानि सुपारा धीरे धीरे अन्दर जाने लगा। कुछ टाइट जरूर था पर मुझे कोई भी परेशानी नहीं हो रही थी।
एक इंच से भी कुछ ज्यादा ही शायद मेरी गुदा में चला गया था। मुझे कुछ दर्द का अहसास हुआ, “आहहह…” मेरे मुँह से निकली ही थी… कि अरूण रूक गये, पूछने लगे, “ठीक हो ना?”
मैंने पुन: ‘हाँ’ में सिर हिला दिया और दर्द बर्दाश्त करने का प्रयास करने लगी। मैंने पुन: गुदा को खोलने का प्रयास किया क्योंकि संकुचन के समय तो लिंग अन्दर जाना सम्भव नहीं हो पा रहा था बस एक सैकेण्ड के लिये जब गुदा को खोला तभी कुछ अन्दर जा सकता था। जैसे ही अरूण को मेरी गुदा कुछ ढीली महसूस हुई उन्होंने अचानक एक धक्का मारा। मेरा सिर सीधा बिस्तर से टकराया, मुँह से ‘आहहहहह…’ निकली। तब तक अरूण अपने दोनों हाथों से मेरे स्तनों को थाम चुके थे। मुझे बहुत दर्द होने लगा था।
अरूण मेरे चुचूक बहुत ही प्यार से सहलाने लगे और बोले, “जानेमन, बस और कष्ट नहीं दूँगा।”
मुझे उनका इस प्रकार चुचूक सहलाना बहुत ही आराम दे रहा था, गुदा में कोई हलचल नहीं हो रहा थी, दर्द का अहसास कम होने लगा। मुझे कुछ आश्वस्त देखकर अरूण बोले, “देखो, तुमने तो पूरा अन्दर ले लिया।”
मैंने आश्चर्य से पीछे देखा… अरूण मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे। पर लगातार मेरे वक्ष-उभारों से खेल रहे थे। अब तो मुझे भी गुदा में कुछ खुजली महसूस होने लगी। मैंने खुद ही नितम्बों को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। क्रीम का असर इतना था कि मेरे हिलते ही लिंग खुद ही सरकने लगा। अरूण भी मेरा साथ देने लगे। मैं इस नये सुख से भी सराबोर होने लगी।
दो चार धक्के हल्के लगाने के बाद अरूण अपने अन्दाज में जबरदस्त शॉट लगाने लगे। मुझे उनके हर धक्के में टीस महसूस होती परन्तु आनन्द की मात्रा हर बार दर्द से ज्यादा होती। इसीलिये मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही थी। अरूण ने मेरे वक्ष से अपना एक हाथ हटाकर मेरी योनि में उंगली सरका दी। अब तो मुझे और भी ज्यादा मजा आने लगा। उनका एक हाथ मेरे चूचे पर, दूसरा योनि में और लिंग मेरी गुदा में।मैं तो सातवें आसमान में उड़ने लगी। तभी मुझे गुदा में बौछार होने का अहसास हुआ। अरूण के मुँह से डकार जैसी आवाज निकली। मेरी तो हंसी छूट गई, “हा… हा… हा… हा… हा… हा…”
मुझे हंसता देखकर अपना लिंग मेरी गुदा से बाहर निकालते हुए अरूण ने पूछा, “बहुत मजा आया क्या?”
मैंने हंसते हुए कहा,” मजा तो आपके साथ हर बार ही आया पर मैं तो ये सोचकर हंसी कि आपका शेर फिर से चूहा बन गया।”
मेरी बात पर हंसते हुए अरूण वहाँ से उठे और फिर से बाथरूम में जाकर अपना लिंग धोने लगे। मैं भी उनके पीछे-पीछे ही बाथरूम में गई और शावर चला कर पूरा ही नहाने लगी…
अरूण से साबुन मल-मल कर मुझे अच्छी तरह नहलाना शुरू कर दिया… और मैंने अरूण को…
मैं इस रात को कभी भी नहीं भूलना चाहती थी। अरूण ने बाहर झांककर घड़ी को देखा तो तुरन्त बाहर आये। 4.50 हो चुके थे।
अरूण ने बाहर आकर अपना बदन पौंछा और तेजी से कपड़े पहनने लगे। हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना पर!
मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
अरूण बोले, “दिन निकलने का समय हो गया है। कुछ ही देर में रोशनी हो जायेगी मैं उससे पहले ही चले जाना चाहता हूँ। ताकि मुझे यहाँ आते-जाते कोई देख ना पाये।”
मैंने बोला, “पर आप थक गये होंगे ना, कुछ देर आराम कर लो।” पर अरूण ने मेरी एक नहीं सुनी और जाने की जिद करने लगे। मुझे उनका इस तरह जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। पर उनकी बातों में मेरे लिये चिन्ता थी। वो मेरा ख्याल रखकर ही से सब बोल रहे थे। उनको मेरी कितनी चिन्ता थी वो उसकी बातों से स्पष्ट था।
वो बोले, “मैं नहीं चाहता कि मुझे यहाँ से निकलते हुए कोई देखे और तुमसे कोई सवाल जवाब करे, प्लीज मुझे जाने दो।”
मेरी आँखों से आँसू टपकने लगे, मुझे तो अभी तक कपड़े पहनने का भी होश नहीं था, अरूण ने ही कहा- गाऊन पहन लो, मुझे बाहर निकाल कर दरवाजा बन्द कर लो।
मुझे होश आया मैंने देखा… मैं तो अभी तक नंगी खड़ी थी। मैंने झट से गाऊन पहना और अरूण को गले से लगा लिया, मैंने पूछा, “कब अगली बार कब मिलोगे?”
अरूण ने कहा, “पता नहीं, हाँ मिलूँगा जरूर!” इतना बोलकर अरूण खुद हर दरवाजा खोलकर बाहर निकल गये।
मैं तो उनको जाते ही देखती रही। उन्होंने बाहर निकलकर एक बार चारों तरफ देखा, फिर पीछे मुड़कर मेरी तरफ देखा और हाथ से बॉय का इशारा किया बस वो निकल गये… मैं देखती रही… अरूण चले गये।
मैं सोचने लगी। सैक्स एक ऐसा विषय है जिसमें दुनिया के शायद 99.99 प्रतिशत लोगों की रूचि है। फर्क सिर्फ इतना है कि पुरूष तो कहीं और कैसे भी अपनी भड़ास निकाल लेता है। पर महिलाओं को समाज में अपनी स्थिति और सम्मान की खातिर अपनी इस इच्छा को मारना पड़ता है परन्तु जब कभी कोई ऐसा साथी मिल जाता है जहाँ सम्मान भी सुरक्षित हो और प्रेम और आनन्द भी भरपूर मिले तो महिला भी खुलकर इस खेल को खुल कर खेल कर आनन्द प्राप्त करना चाहती है।
वैसे भी दुनिया में सबकी इच्छा, ‘जिसके पास जितना है उससे ज्यादा पाने की है’ यह बात सब पर समान रूप से लागू होती है। अगर सही मौका और समाज में सम्मान खोने का डर ना हो तो शायद हर इंसान अपनी इच्छा को बिना दबाये पूरी कर सकता है। अरूण के बाद मेरी बहुत से लोगों से चैट हुई पर अरूण जैसा तो कोई मिला ही नहीं इसीलिये शायद 2-4 बार चैट करके मैंने खुद ही उसको ब्लॉक कर दिया।
मेरे लिये वो रात एक सपना बन गई। ऐसा सपना जिसके दोबारा सच होने का इंतजार मैं उस दिन से कर रही हूँ। मेरी अब भी अरूण से हमेशा चैट होती है, दो-चार दिन में फोन पर भी बात होती है पर दिल की तसल्ली नहीं होती। भला कोई बताये इसमें मेरे दिल का क्या कसूर…
पाठकगण कृपया अपने विचार एवं सुझाव इस इमेल आई डी पर भेजें!
[email protected]
What did you think of this story??
Comments